शनिवार, मार्च 27, 2021

लक्ष्मी जी तथा शंख का प्राकाट्योत्सव : होलिकोत्सव...


        पुरणों और शास्त्रों में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी की  प्राकाट्य और दक्षिणवर्ती शंख का उद्भव मानव जीवन का रुप और अभिमान तथा बुराइयों का दहन कर मानवीय जीवन में चतुर्दिक विकास का उल्लेख है । फाल्गुन मास की पूर्णिमा को  समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी प्रकट होने के कारण लक्ष्मी जयंती के रूप में मनाया जाता है । माता लक्ष्मी जी कीअराधना करने से आर्थिक संकट को दूर कर सकते हैं । फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं।  फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 28 मार्च को 3 बजकर 27 मिनट से शुरू हो जाएगी और अगले दिन यानी 29 मार्च को 12 बजकर 17 मिनट तक रहेगी । लक्ष्मी  माता की विधि विधान से पूजा करने से  अत्यंत प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की मनोकामना को पूरा करती हैं.।  घर में आर्थिक किल्लत दूर होती है। 28 मार्च को सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें और एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर माता लक्ष्मी की तस्वीर इस तरह रखें कि पूजा के दौरान आपका मुंह पूर्व दिशा की ओर हो. इसके बाद माता को जल, सिंदूर, अक्षत, लाल पुष्प, वस्त्र, दक्षिणा, धूप-दीप, इत्र और खीर का प्रसाद अर्पित करें. इसके बाद लक्ष्मी चालीसा, मंत्र जाप या माता के 1008 नामों का उच्चारण करें. फिर आरती करके प्रसाद वितरित करें । दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर लक्ष्मी माता का अभिषेक करें. माता को शंख अतिप्रिय है । शंख माता लक्ष्मी का भाई है क्योंकि उसकी भी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान ही हुई थी ।लक्ष्मी पूजन के बाद घर के ईशानकोण में गाय के दूध से बने घी का दीपक जलाएं और उसमें कलावे से बनी बत्ती लगाएं और थोड़ा सा केसर डालें ।पूजा के बाद पांच या सात कुंवारी कन्याओं को माता के प्रसाद की खीर प्रेमपूर्वक खिलाएं और उन्हें दक्षिणा और सामर्थ्य अनुसार वस्त्र आदि दान करने से माता अत्यंत प्रसन्न होती हैं ।पूजा के समय कौड़ी, केसर, हल्दी की गांठ और चांदी के सिक्के को साथ रखकर पूजा करने के बाद एक पीले वस्त्र में  बांधकर उस स्थान पर रख दें जहां धन रखने से काफी लाभ होगा। लक्ष्मी जयंती के दिन पूजा के बाद जरूरतमंदों को  दान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी माता अत्यंत प्रसन्न होती है। 
 होलिका दहन का संदेश है कि ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।होलिका दहन, होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। होलिका दहन  के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है। होलिका दहन  - पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता है । हिरण्यकश्यप क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुंचा सकती है।  किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। होलिका दहन की   याद में इस दिन होलिका दहन करने की परंपरा है। पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी तरफ गया ही नहीं। प्रेम के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया। तपस्या भंग होने से शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और शिव से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई। होली के दिन शिव का क्रोध शांत हो चुका था, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित किया। कामदेव के भस्म होने के दिन होलिका जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है ।महाभारत के अनुसार युधिष्ठर को श्री कृष्ण ने बताया-  त्रेतायुग में श्री राम के एक पूर्वज रघु, के शासन मे होला  असुर वरदान प्राप्त महिला थी। उसे गली में खेल रहे बच्चों, के अलावा किसी से  डर नहीं था। गुरु वशिष्ठ, ने बताया कि- होला मारी जा सकती  है, यदि बच्चे अपने हाथों में लकड़ी के छोटे टुकड़े लेकर, शहर के बाहरी इलाके के पास चले जाएं और सूखी घास के साथ-साथ उनका ढेर लगाकर जला दें। फिर उसके चारों ओर परिक्रमा दें, नृत्य करें, ताली बजाएं, गाना गाएं और नगाड़े बजाएं। फिर ऐसा  किया गया। होला दहन  उत्सव के रूप में मनाया गया।  बुराई पर एक मासूम दिल की जीत का प्रतीक है। होली का श्रीकृष्ण से  त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है।  कंस को श्रीकृष्ण के गोकुल में होने का पता चला तो उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल में जन्म लेने वाले हर बच्चे को मारने के लिए भेजा। पूतना स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए। उन्होंने दुग्धपान करते समय ही पूतना का वध कर दिया। विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख  है। भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली  खेलती है ।शाक  कैलेंडर के अनुसार वर्ष के अंतिम माह फाल्गुन माह पूर्णिमा को होलिका दहन होता है।  शाक संबत का नव वर्ष फाल्गुन शुक्ल पक्ष  प्रतिपदा होली प्ररंभ है।


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