भारत की भूमि अपने भीतर अनगिनत कहानियों को समेटे हुए है, जहाँ धर्म, संस्कृति और इतिहास की धाराएँ एक साथ बहती हैं। बिहार के जहानाबाद जिले में स्थित बराबर पर्वत समूह एक ऐसा ही पवित्र स्थल है, जो अपनी प्राचीन गुफाओं, पौराणिक कथाओं और धार्मिक महत्व के कारण सदियों से आध्यात्मिक और ऐतिहासिक शोध का केंद्र रहा है। यह स्थल शैवधर्म, सिद्ध संप्रदाय, जैन धर्म और बौद्ध धर्म की साधना भूमि रहा है, जिसे इतिहासकारों और यात्रियों ने 'मगध का हिमालय' कहा है।
शैवधर्म की अनूठी गाथा और बराबर का महत्व
भगवान शिव की आराधना भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य विरासत है, जिसे वेदों में रुद्र और पुराणों में शिव के रूप में वर्णित किया गया है। शैवधर्म, भगवान शिव को सृष्टि का रक्षक मानकर उनकी उपासना करता है। शैवधर्म के इतिहास में कई संप्रदाय हुए, जिन्होंने शिव भक्ति को अलग-अलग तरीकों से प्रचारित किया।
पाशुपत संप्रदाय: इस संप्रदाय के संस्थापक लकुलिश थे, जिन्होंने शिव को 18 अवतारों में से एक माना। नेपाल के काठमांडू में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर इसी संप्रदाय का केंद्र है।
कापालिक और कलामुख संप्रदाय: ये संप्रदाय भैरव की उपासना करते थे और नरमुंड में भोजन करने, चिता भस्म लगाने जैसी कठोर साधनाओं के लिए जाने जाते थे। इन्हीं साधकों को औघड़ कहा जाता था।
लिंगायत संप्रदाय: दक्षिण भारत में अल्लभ प्रभु और उनके शिष्य वासव द्वारा स्थापित इस संप्रदाय को वीरशैव संप्रदाय भी कहा जाता है। इसके अनुयायी शिवलिंग की उपासना करते हैं।
इन सभी संप्रदायों ने शैवधर्म को पूरे भारत में फैलाया। कुषाण राजाओं ने अपनी मुद्राओं पर शिव और नंदी को एक साथ चित्रित किया, तो राष्ट्रकूटों ने एलोरा का प्रसिद्ध कैलाश मंदिर बनवाया और चोल शासक राजा राज प्रथम ने तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर का निर्माण कराया। इसी कड़ी में, बराबर पर्वत समूह में सिद्ध संप्रदाय ने शैवधर्म का प्रचार किया और यहाँ सिद्धेश्वर नाथ शिवलिंग की स्थापना की।
बराबर पर्वत का पौराणिक और ऐतिहासिक वैभव
बराबर पर्वत का इतिहास पौराणिक काल से जुड़ा है। महाभारत के वन पर्व में इसे बाणेश्वर शिवलिंग के रूप में वर्णित किया गया है। मान्यता है कि यहीं पर भगवान शिव ने दानव राजा सुकेशी को ईश्वर गीता का उपदेश दिया था। बाद में, यह स्थल दैत्य राज बलि के पुत्र बाणासुर की राजधानी बनी, जिन्होंने यहाँ गुफाओं, मूर्तिकला और वास्तुकला को विकसित किया।
इस पर्वत समूह में कई श्रृंखलाएँ हैं, जैसे बराबर और नागार्जुन, जहाँ मौर्यकाल से लेकर गुप्तकाल तक के शासकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मौर्यकाल और गुफाएँ: सम्राट अशोक ने 231 ई.पू. में और उनके पौत्र दशरथ ने यहाँ आजीवक संप्रदाय के भिक्षुओं के लिए गुफाओं का निर्माण करवाया। इन गुफाओं में लोमष ऋषि गुफा, सुदामा गुफा, कर्ण गुफा, गोपी गुफा, वाह्वक गुफा और विश्वामित्र गुफा प्रमुख हैं।
नागार्जुन पहाड़ी: यह पहाड़ी बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन के नाम पर जानी जाती है, जिनकी कर्मभूमि यह क्षेत्र रही। यहाँ के खगोलीय अध्ययन शाला के अवशेष, जिसमें सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक पत्थर शामिल हैं, प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का प्रमाण देते हैं।
मगध का हिमालय: प्राचीन काल में इस पहाड़ को खालतिका पर्वत या सिलाटिका कहा जाता था, और इसे मगध का हिमालय भी कहते थे। यहाँ की गुफाओं की वास्तुकला मिश्र शैली में है, जो कला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
लोमष ऋषि और उनकी अमर गाथा
लोमष ऋषि गुफा, बराबर पर्वत की सबसे प्रसिद्ध गुफाओं में से एक है। इसकी स्थापत्य कला झोपड़ी शैली, मगध शैली और चैत्य आर्क शैली का अद्भुत मिश्रण है। इस गुफा का मुख्य द्वार हाथी, स्तूप और फूलों की लताओं से सजा है, जो शांति और ऐश्वर्य का संदेश देता है।
स्कंद पुराण के अनुसार, लोमष ऋषि ने हिमाचल प्रदेश में तपस्या करने के बाद गया के ब्रह्म योनि पर्वत पर सौ वर्षों तक भगवान शिव की आराधना की थी। उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान दिया कि जब तक उनके शरीर पर रोएं रहेंगे, तब तक वे पृथ्वी पर ज्ञान का प्रकाश फैलाते रहेंगे। लोमष ऋषि ने यहाँ पर राजा दादूर्भ को देवी भागवत की कथा सुनाई और काकभुसुंडि को रामकथा का आख्यान सुनाया, जिसे काकभुसुंडि ने गरुड़ को सुनाया। लोमष ऋषि ने लोमस संहिता, लोमस शिक्षा और लोमस रामायण जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की भी रचना की।
बराबर महोत्सव: एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण
बराबर पर्वत समूह की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को पुनर्जीवित करने के लिए बिहार सरकार ने 2013 से यहाँ वाणावर महोत्सव का आयोजन शुरू किया है। इस महोत्सव के माध्यम से इस प्राचीन स्थल की सांस्कृतिक विरासत को उजागर किया जा रहा है, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिले।
इस स्थल की यात्रा करने वाले भक्त और पर्यटक यहाँ की पाताल गंगा में स्नान करके सिद्धेश्वर नाथ शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहाँ पर सावन माह की अनंत चतुर्दशी को भगवान सिद्धनाथ पर जलाभिषेक करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
बराबर पर्वत समूह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि मगध की सांस्कृतिक विरासत का एक अनमोल धरोहर है। यह स्थल शैवधर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और आजीवक संप्रदाय की महान साधना भूमि रही है। यहाँ की गुफाएँ, शिलालेख और प्राकृतिक सुंदरता हमें भारतीय इतिहास के उन भूली-बिसरी पन्नों की याद दिलाती हैं, जो हमारी समृद्ध संस्कृति और ज्ञान की प्रतीक हैं।
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