मंगलवार, अगस्त 12, 2025

मदसर्वां: जहाँ पुराणों की कथाएँ जीवंत होती हैं...

भारत की भूमि अनगिनत रहस्यों और प्राचीन कथाओं से भरी पड़ी है। हर गली, हर नदी और हर पहाड़ अपने भीतर एक कहानी छिपाए हुए है। बिहार के अरवल जिले में स्थित मदसर्वां नामक एक छोटा सा गाँव भी इन्हीं रहस्यों में से एक है। यह स्थान केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि इतिहास और आध्यात्म का एक संगम है, जहाँ महर्षि च्यवन की अमर गाथा आज भी गूँजती है। वेदों, पुराणों और स्मृतियों में वर्णित यह भूमि एक ऐसी कहानी सुनाती है, जिसमें प्रेम, तपस्या, शक्ति, और देवताओं के अहंकार का टकराव है।

च्यवन ऋषि: एक तपस्वी का विराट जीवन

कश्यप ऋषि के वंश में महर्षि भृगु की पत्नी पुलोमा के पुत्र च्यवन ऋषि का जन्म हुआ। उनका जीवन तपस्या, ज्ञान और अलौकिक शक्तियों का प्रतीक था। उनकी तपस्या इतनी गहन थी कि उनका शरीर दीमक-मिट्टी और लताओं से ढँक गया था, और केवल दो आँखें ही टिले के रूप में दिखाई देती थीं।

यह कहानी शुरू होती है राजा शर्याति और उनकी रूपवती पुत्री सुकन्या से। राजा शर्याति, वैवस्वतमनु के पुत्र थे, जिन्होंने मधुश्रवा नदी और हिरण्यबाहु नदी के संगम पर आनर्त देश की स्थापना की थी। एक बार वे अपनी पुत्री और सेना के साथ शिकार पर निकले और च्यवन ऋषि के आश्रम के पास पहुँचे।

सुकन्या ने उत्सुकता से टीले में दिख रहे दो छिद्रों में काँटे गड़ा दिए, जिससे ऋषि की आँखों से रक्त बहने लगा। जब राजा को इस भूल का पता चला, तो वे भयभीत हो गए। ऋषि ने शाप दिया, जिससे राजा की सेना के सभी सैनिक मल-मूत्र त्यागने में असमर्थ हो गए। पश्चाताप में राजा ने अपनी प्रिय पुत्री सुकन्या को ऋषि की सेवा में समर्पित कर दिया।

प्रेम, पातिव्रत और यौवन का चमत्कार

सुकन्या ने बिना किसी शिकायत के अपनी जवानी का त्याग कर, अंधे और वृद्ध ऋषि की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका प्रेम और पातिव्रत इतना गहरा था कि यह किसी भी तपस्या से कम नहीं था। उनकी इसी भक्ति से प्रसन्न होकर, देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार एक दिन उनके आश्रम में प्रकट हुए।

अश्विनी कुमारों ने सुकन्या की सेवा से प्रसन्न होकर च्यवन ऋषि को न केवल उनकी आँखों की रोशनी वापस दिलाई, बल्कि उन्हें यौवन भी प्रदान किया। उन्होंने ऋषि को अपने साथ सरोवर में डुबकी लगाने को कहा। जब तीनों बाहर निकले, तो वे तीनों एक जैसे युवा दिख रहे थे। अश्विनी कुमारों ने सुकन्या से अपने पति को पहचानने के लिए कहा। अपने पातिव्रत और तेज बुद्धि से सुकन्या ने अपने पति को पहचान लिया, जिससे अश्विनी कुमार अत्यंत प्रसन्न हुए।

वाजपेय यज्ञ: इंद्र के अहंकार का अंत

यौवन प्राप्त करने के बाद, च्यवन ऋषि ने राजा शर्याति के लिए एक भव्य वाजपेय यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में 32 करोड़ देवी-देवताओं ने भाग लिया, जिसमें 12 सूर्य, 11 रुद्र और 9 वसु प्रमुख थे। जब यज्ञ में अश्विनी कुमारों को सोम रस देने की बारी आई, तो देवराज इंद्र ने इसका विरोध किया। इंद्र का मानना था कि अश्विनी कुमार सिर्फ वैद्य हैं और उन्हें यज्ञ में सोमपान का अधिकार नहीं है।

लेकिन च्यवन ऋषि ने इंद्र की बात नहीं मानी। उनके इस निर्णय से क्रोधित होकर इंद्र ने उन पर अपना वज्र चलाया। ऋषि ने अपनी तपोबल से वज्र को हवा में ही रोक दिया और एक भयानक मद दैत्य को उत्पन्न किया। यह दैत्य इंद्र को निगलने के लिए दौड़ा, जिससे इंद्र भयभीत हो गए। देवताओं के अनुरोध पर च्यवन ऋषि ने इंद्र को मद से मुक्त किया और मद दैत्य को जुआ, शिकार, मदिरा और स्त्रियों में निवास करने का स्थान दिया।

इंद्र ने अपनी हार स्वीकार की और अश्विनी कुमारों को सोमपान करने का अधिकार दिया। इसी घटना के बाद इंद्र ने उस स्थान को मदसर्वां नाम दिया, जहाँ मद दैत्य का जन्म हुआ था।

मदसर्वां: एक तीर्थ, अनेक मान्यताएँ

यह प्राचीन भूमि आज भी अपनी समृद्ध विरासत को सहेजे हुए है। मदसर्वां को कई नामों से जाना जाता है, जैसे मधुश्रवा, मदुसरवा और मधुस्त्रवा। पुराणों के अनुसार, यहाँ के पवित्र मधुश्रवा में स्नान, तर्पण और श्राद्ध करने से मनोवांछित फल मिलते हैं। यह स्थान गया श्राद्ध के 365 पिंड वेदिकाओं में से एक है।

  • च्यावनेश्वर शिवलिंग: मदसर्वां का सबसे महत्वपूर्ण स्थल च्यावनेश्वर शिवलिंग है, जिसे स्वयं च्यवन ऋषि ने वाजपेय यज्ञ के दौरान स्थापित किया था। यह एक अनोखा चौकोर शिवलिंग है, जिसे "सर्वार्थ सिद्धि" प्रदान करने वाला माना जाता है।

  • वधूसरोवर: राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या ने इस सरोवर का निर्माण कराया था, जहाँ च्यवन ऋषि ने अपना यौवन प्राप्त किया था। यह सरोवर आज भी अपनी पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है, और यहाँ स्नान करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

  • पुण्य भूमि की यात्रा: ब्रह्म पुराण के अनुसार, इस क्षेत्र में देव ह्रद, कन्याश्रमहृद, पंचतीर्थ, मधुवट पुलोमा तीर्थ और देवकुंड जैसे कई तीर्थस्थल हैं, जो इसे एक पवित्र भूमि बनाते हैं।

संस्कृति का संगम: मागध से आधुनिक युग तक

मदसर्वां का महत्व केवल पौराणिक कथाओं तक सीमित नहीं है। यह सैंधव सभ्यता, मागधीय सभ्यता, मौर्य, शुंग, गुप्त और पाल काल में भी एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यहाँ तक कि त्रेता युग में, जब भगवान राम ने मधुस्त्रवा की यात्रा की, तो उन्होंने च्यावनेश्वर महादेव की उपासना की और अपने भाई शत्रुघ्न को सोन प्रदेश का राजा बनाया।

आज, यह स्थान एक प्राचीन शिव मंदिर और आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित मदसर्वां मठ के लिए जाना जाता है। यहाँ का इतिहास हमें यह सिखाता है कि कैसे एक ही भूमि पर पुराण, वैदिक काल, और आधुनिकता का संगम हो सकता है। यह हमें यह भी बताता है कि प्रकृति, प्रेम और तपस्या की शक्ति किसी भी अहंकार से बड़ी होती है।

यह मदसर्वां की कहानी है, जहाँ इतिहास और आध्यात्म एक साथ मिलते हैं और हमें अपनी समृद्ध विरासत पर गर्व करने का अवसर देते हैं।


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