बुधवार, अगस्त 20, 2025

हिंदी हमारी पहचान

हिंदी: सिर्फ एक भाषा नहीं, हमारी पहचान और स्वाभिमान का प्रतीक
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के विशाल सागर में, हिंदी एक ऐसी सागर  है जो असंख्य धाराओं को समेटकर एकता का संदेश देती है। यह सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी गौरवशाली परंपरा, समृद्ध इतिहास और सामूहिक पहचान का जीवंत प्रतीक है। जब हम 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस और 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाते हैं, तो हम केवल एक भाषा का सम्मान नहीं करते, बल्कि उस भावना का सम्मान करते हैं जिसने हमें विश्व पटल पर एक नई पहचान दी है। हिंदी सिर्फ हमारे राष्ट्र की राजभाषा नहीं, बल्कि विश्व की सबसे प्राचीन और समृद्ध भाषाओं में से एक है। इसकी सरलता और मिठास इसे दुनिया भर में लोकप्रिय बनाती है। स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने सर्वसम्मति से हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित किया, जो हमारी एकता की भावना को दर्शाता है। इसी ऐतिहासिक निर्णय के सम्मान में हर साल 14 सितंबर को पूरा देश हिंदी दिवस मनाता है।
हिंदी का गौरवशाली इतिहास और उद्भव - हिंदी का सफर एक हजार वर्ष से भी पुराना है। इसका उद्भव अपभ्रंश की अंतिम अवस्था 'अवहट्ठ' से हुआ, जिसे चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने 'पुरानी हिंदी' का नाम दिया। शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित होकर, लगभग 1000 ईस्वी के आसपास हिंदी ने एक स्वतंत्र भाषा के रूप में अपना परिचय दिया। यह वह समय था जब साहित्यिक और जनभाषा के रूप में हिंदी अपनी पहचान बना रही थी।'हिंदी' शब्द का संबंध संस्कृत के 'सिंधु' शब्द से है। फारसी और ईरानी भाषा के प्रभाव से 'सिंधु' शब्द 'हिंदू', 'हिंदी' और 'हिंद' में बदल गया। धीरे-धीरे इस शब्द का अर्थ व्यापक होता गया और यह पूरे भारत का वाचक बन गया। यूनानी शब्द 'इन्दिका' और अंग्रेजी 'इंडिया' भी इसी 'हिंदीक' शब्द के विकसित रूप हैं। इस तरह, हिंदी सिर्फ एक भाषा का नाम नहीं, बल्कि भारत की पहचान का सार है। मध्यकाल में भक्ति और रीति काल के कवियों ने हिंदी को समृद्ध किया। तुलसीदास, सूरदास, कबीरदास, मीरा, रसखान और बिहारी जैसे महान कवियों की रचनाओं ने हिंदी को नई ऊंचाइयां दीं। आधुनिक काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, जयशंकर प्रसाद, रामधारी सिंह दिनकर, प्रेमचंद, हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा और अन्य साहित्यकारों ने हिंदी को एक सशक्त और परिष्कृत रूप प्रदान किया। इन साहित्यकारों ने न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक चेतना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजभाषा, राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा: हिंदी के विविध रूप - यह जानना महत्वपूर्ण है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला है, क्योंकि भारतीय संविधान में किसी भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया है। हालाँकि, हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा है और सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। इसके अलावा, हिंदी भारत की संपर्क भाषा भी है। यह विभिन्न भाषा-भाषियों के बीच विचार-विनिमय का एक सहज माध्यम है। जब एक तमिलभाषी और एक बंगालीभाषी व्यक्ति आपस में बात करते हैं, तो अक्सर हिंदी उनकी संवाद की कड़ी बनती है। यह हिंदी की शक्ति है कि यह पूरे देश को एक सूत्र में पिरोती है।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी हिंदी के इस महत्व को समझा था। 1918 में इंदौर में हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा था कि 'राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है' और हिंदी ही स्वराज्य की भाषा है। उनका मानना था कि एक समृद्ध देश में राष्ट्रभाषा, राजभाषा और संपर्क भाषा एक ही होनी चाहिए, और भारत के लिए यह भाषा हिंदी ही है।
हिंदी की वैश्विक पहचान और बढ़ती शक्ति - एक समय था जब हिंदी को सिर्फ भारत तक सीमित माना जाता था, लेकिन आज यह धारणा बदल गई है। चीनी के बाद, हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। एथनोलॉग की गणना के अनुसार, यह विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है, जबकि विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, यह विश्व की दस सबसे शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। विदेशों में भी हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है। मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में बड़ी संख्या में लोग हिंदी बोलते हैं। हाल ही में, फरवरी 2019 में अबू धाबी में हिंदी को न्यायालय की तीसरी भाषा के रूप में मान्यता मिली, जो हिंदी की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा का एक और प्रमाण है। दुनिया भर के लगभग 150 से अधिक विश्वविद्यालयों और सैकड़ों केंद्रों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। बीबीसी, डॉयचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चाइना रेडियो इंटरनेशनल जैसी अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंपनियां भी हिंदी में कार्यक्रम प्रसारित करती हैं। विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन और विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना (2008 में) जैसे प्रयास हिंदी को एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए किए गए हैं।
तकनीकी युग में हिंदी का बढ़ता प्रभाव - आज के डिजिटल युग में, हिंदी ने अपनी जगह मजबूती से बनाई है। कंप्यूटर, इंटरनेट, और मोबाइल फोन के आगमन से हिंदी के प्रयोग में क्रांति आ गई है। गूगल जैसे सर्च इंजन हिंदी को प्राथमिक भारतीय भाषा के रूप में पहचानते हैं, और 19 अगस्त 2009 को गूगल ने बताया कि हर 5 वर्षों में हिंदी की सामग्री में 94% की बढ़ोतरी हो रही है।
यूनिकोड के आगमन के बाद, हिंदी में टाइपिंग और लेखन बहुत आसान हो गया है। गूगल ट्रांसलेशन, ट्रांस्लिटरेशन और फोनेटिक टूल्स जैसी सेवाएं हिंदी को आम लोगों के लिए सुलभ बना रही हैं। फेसबुक, व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हिंदी का उपयोग अभूतपूर्व रूप से बढ़ रहा है। सितंबर 2018 की एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक पुनः ट्वीट किए गए 15 संदेशों में से 11 हिंदी के थे, जो हिंदी की सोशल मीडिया पर लोकप्रियता को दर्शाता है।
सिनेमा और विज्ञापन उद्योग में हिंदी का वर्चस्व - हिंदी सिनेमा, जिसे हम बॉलीवुड के नाम से जानते हैं, ने हिंदी को देश-विदेश में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिंदी फिल्में और उनके गीत दुनिया के कोने-कोने तक पहुंच चुके हैं। इसी तरह, विज्ञापन उद्योग भी हिंदी को अपनी पसंदीदा भाषा बना रहा है। बड़े-बड़े ब्रांड्स अपने उत्पादों का प्रचार हिंदी में करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि भारत के अधिकांश उपभोक्ता हिंदी में ही संदेश को बेहतर ढंग से समझते हैं।आज, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का बाजार इतना बड़ा है कि अनेक वैश्विक कंपनियां अपने उत्पाद और वेबसाइटें हिंदी में उपलब्ध करा रही हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि हिंदी केवल भावनात्मक या सांस्कृतिक भाषा नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली आर्थिक भाषा भी है।
चुनौतियां और भविष्य - इन सभी सफलताओं के बावजूद, हिंदी को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कुछ माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाना पसंद करते हैं और हिंदी पर उतना ध्यान नहीं देते। यह प्रवृत्ति हमारे समाज में एक विडंबना पैदा करती है, जहाँ हम हिंदी दिवस तो मनाते हैं, पर दैनिक जीवन में अंग्रेजी को अधिक महत्व देते हैं।इसके बावजूद, हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है। डिजिटल क्रांति और युवा पीढ़ी की बढ़ती रुचि हिंदी को एक नई दिशा दे रही है। हमें गर्व होना चाहिए कि हमारी मातृभाषा, हमारी पहचान, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान और पहचान बना रही है। हिंदी दिवस हमें याद दिलाता है कि हिंदी सिर्फ एक दिन मनाने की भाषा नहीं, बल्कि हर दिन हमारी पहचान और स्वाभिमान का प्रतीक है। आइए, हम सब मिलकर हिंदी को सम्मान दें, उसे सीखें और उसका प्रचार करें। क्योंकि, जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, "स्वराज्य के लिए हिंदी भाषा का होना बहुत जरूरी है।" और आज हम कह सकते हैं कि हिंदी हमारी स्वाभिमान और गर्व की भाषा है, जिसने हमें विश्व में एक नई पहचान दिलाई है।


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