मधुबनी जिला मुख्यालय मधुबनी से 12 किमि एवं पंडौल रेलवे स्टेशन से ३ कि०मी० की दूरी पर भवानी पुर में 14 वीं सदी में स्थापित विद्यपति के आराध्य देव उगना महादेव मंदिर के गर्भगृह में भगगवन उगणेश्वर शिवलिंग व उगना महादेव अवस्थित हैं । भगवान् शिव ने शैव भक्त विद्यपति से प्रभावित होकर भगवान उगणेश्वर शिव नौकर उगना के रूप में विद्यापति के साथ रहने लगे थे । विद्यापति के साथ उगना विश्वासी बन गए थे । विद्यापति के साथ उगना राज दरवार में जेठ महीना , रास्ते में कहीं पेड़ पौधे नहीं , परंतु विद्यापति को प्यास लगी थी । विद्यपति ने उगना से कहा कि उगना मुझे बहुत जोड़ों से प्यास लगने के कारण नहीं चल पाउँगा इसलिए कहीं से जल लाकर दो । विद्यपति ने झोला से लोटा निकाल कर उगना की तरफ बढ़ा दिए थे । उगना दूर- दूर तक नजर दौड़ाया कहीं भी कुआं , सरोवर या नदी दिखाई नहीं देने पर उगना झाड़ी के पीछे जाकर अपनी जटा से एक लोटा गंगाजल निकालकर विद्यापति को देते हुए कहा कि आस पास में कहीं भी जल नहीं मिला परंतु जल बहुत दूर से लाया हूँ । प्यास से व्याकुल विद्यपति द्वारा उगना द्वारा जल एक ही सांस में पी गए थे । जल पीने के बाद वे उगना से बोल पड़े कि जल का स्वाद जल नहीं गंगाजल है । , गंगाजल सिर्फ शिव के पास होता है । उगना विद्यापति की प्यास बुझाने के बाद उगना को अपना शिव का रूप में प्रगट होकर गुप्त रखने का विचार दिए थे । विद्यापति की पत्नी शुशीला उगना को काम करने के लिए बोली परंतु उगना को काम करने में कुछ देर हो गया था । उगना के कार्य विलंब होने के कारण विद्यपति की पत्नी सुशीला उगना को झाड़ू से मारने लगी थी । उगना झाड़ू की मार खा ही रहे थे कि विद्यापति की नजर उन पर पड़ी और अपनी पत्नी सुशीला को डांटने लगे , लेकिन सुशीला झारू से उगना को मारती रही ,। इस पर भावावेश में आकर विद्यापति सुशीला से कहा कि ओ ना समझ नारी , जिसे तुम मार रही हो यह कोई साधारण आदमी नहीं , ये भगवान शिव हैं | यह बात सुन कर उगना वहीँ पर अंतर्ध्यान हो गए । जिस स्थान पर उगना ने अपना शिव का प्रकट रूप विद्यपति को दर्शन दिए थे वह स्थल उगना महादेव व उगणेश्वर शिव लिंग स्थापित हुए कालांतर उगना महादेव विशाल मन्दिर निर्मित है ।
विद्यापति मैथिली और संस्कृत कवि, संगीतकार, लेखक, दरबारी और राज पुरोहित थे। वे शिव के भक्त , प्रेम गीत और भक्ति वैष्णव गीत की रचना की है । उन्हें 'मैथिल कवि कोकिल कहा गया है । विद्यापति द्वारा भाषा, प्राकृत , अवहट्ट, पूर्वी भाषाओं में मैथिली और भोजपुरी के शुरुआती संस्करणों में भाषाओं को बनाने पर विद्यापति के प्रभाव को "इटली में दांते और इंग्लैंड में चासर के समान” है। उन्हें "बंगाली साहित्य का जनक" कहा है। विद्यापति भारतीय साहित्य की 'शृंगार-परम्परा' के साथ-साथ 'भक्ति-परम्परा' के प्रमुख स्तंभों मे वैष्णव , शैव और शाक्त भक्ति के सेतु के रूप में भी स्वीकार किया गया है। मिथिला को 'देसिल बयना सब जन मिट्ठा' का सूत्र दे कर लोकभाषा की जनचेतना को जीवित करने का महान् प्रयास किया है। विद्यापति की शृंगार और भक्ति-रस में पगी रचनाएँ जीवित हैं। पदावली और कीर्तिलता अमर रचनाएँ हैं। बिहार राज्य के मधुबनी जिला के विस्फी गाँव में तिरहुत राज्य के राजा गणेश्वर का पुरोहित ब्राह्मण परिवार गणपति ठाकुर के पुत्र विद्यपति का जन्म 1352 ई. में हुआ था । मिथिला के ओइनवार वंशीय कीर्ति सिंह दरबार मे 1370 से 1380 तक कार्य के दौरान विद्यापति ने 'कीर्त्तिलता' की रचना की थी । विद्यापति ने कीर्ति सिंह उत्तराधिकारी देवसिंह के दरबार में एक स्थान हासिल किया। गद्य कहानी संग्रह भूपरिक्रमण देवसिंह के तत्वावधान में लिखा गया था। विद्यापति ने देवसिंह के उत्तराधिकारी शिवसिंह के साथ घनिष्ठ मित्रता की और प्रेम गीतों पर 1380 से 1406 ई. के बीच पाँच सौ प्रेम गीत , शिव, विष्णु, दुर्गा और गंगा की भक्तिपूर्ण स्तुति थे। 1402 से 1406 तक मिथिला के राजा शिवसिंह द्वारा विद्यपति को बिस्फी प्रदान कर जयदेव के नाम से विभूषित किया गया था । मुस्लिम सेना के साथ युद्ध मे 1406 ई. को विद्यापति और शिवसिंह ने नेपाल के राजाबनौली में राजा के दरबार में शरण ली एवं 1418 में, पद्मसिंह द्वारा मिथिला के शासक के रूप में शिवसिंह के उत्तराधिकारी बनेथे । शिवसिंह की प्रमुख रानी लखीमा देवी ने 12 वर्षों तक शासन किया। विद्यापति द्वारा कानून और भक्ति नियमावली पर ग्रंथ लिखा गया था । बिस्फी स्थित शिव मंदिर में 1430 ई. को विद्यपति भगवान शिव की उपासना करते थे। उनकी दो पत्नियाँ, तीन बेटे और चार बेटियाँ थीं। विद्यापति ने ओइनवार राजा, राजा गणेश्वर, को तुर्की सेनापति मलिक अरसलान ने 1371ई में मार दिया था। 1401 तक, विद्यापति ने जौनपुर सुल्तान अरसलान को उखाड़ फेंकने और गणेश्वर के पुत्रों, वीरसिंह और कीर्तिसिंह को सिंहासन पर स्थापित कर सुल्तान की सहायता से, अरसलान को हटा दिया गया और सबसे बड़ा पुत्र कीर्तिसिंह मिथिला का शासक बनाया था । विद्यपति का निधन 1458 ई. में गंगानदी के तट पर निधन हो गया था ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें