शनिवार, जुलाई 23, 2022

रामगढ़ जिले की सांस्कृतिक विरासत ...

 
       
     हिन्दी और संथाली भाषायी तथा 1211 वर्ग कि. मि. क्षेत्रफल में फैला 2011 जनगणना के अनुसार 949159 आवादी वाला रामगढ़ जिला का मुख्यालय  रामगढ़ कैंट है । छोटानागपुर के राजा द्वारा बाघ देव सिंह , खरवार सिंह और देव सिंह को  १३६८ मई 1368 ई . में  २४ परगना के शासक बनाया गया था । रामगढ़ का  क्षेत्र कोयला और खनिज  अभ्रक में समृद्ध है । रामगढ़ का अंतिम राजा रे बहादुर कामाख्या नारायण सिंह का जन्म 1916 और मृत्यु 1970 में हो गई है । १९४७ में आजादी के बाद  रामगढ़ जिला का क्षेत्र हजारीबाग जिले का एक भाग बन गया था । १२ सितंबर २००७ को रामगढ़ जिला बनाया गया। रामगढ़ जिले में  रामगढ़, गोला, मांडू , पतरातू ,दुलमीऔर चितरपुर प्रखण्ड है। रामगढ़ जिले के ऐतिहासिक तथा प्राचीन स्थल  में रजरप्पा , माता वैष्णो देवी मंदिर , टूटी झरना मंदिर ,चुटुपालु ,बानखेत्ता एवं लिरिल है । टूटी  झरना शिव मंदिर - झारखंड के रामगढ़ से 8 कि. मि. पर  अवस्थित भगवान शंकर के शिवलिंग पर जलाभिषेक मां गंगा निरंतर करती रहती  हैं । झारखंड राज्य  के रामगढ़ जिले में स्थित  शिव मंदिर को  टूटी झरना के नाम से ख्याति प्राप्त  है ।शिव मंदिर  का उद्भव ब्रिटिश प्रशासन द्वारा रेलवे लाइन बिछाने के दौरान भूस्थल के उत्खनन के तहत 1925 ई. में   जमीन के अन्दर  गुम्बदनुमा चीज दिखाई पड़ाने के दौरान शिव लिंग व  मंदिर ,  मां गंगा की सफेद रंग की प्रतिमा प्राप्त हुई थी ।मां गंगा की  प्रतिमा के नाभी से निरंतर   दोनों हाथों की हथेली से गुजरते हुए जल प्रवाहित  शिव लिंग पर गिरता है । भगवान शंकर के शिव लिंग पर जलाभिषेक  स्वयं मां गंगा करती हैं ।  दो हैंडपंप रहस्यों से घिरे हुए हैं. यहां लोगों को पानी के लिए हैंडपंप से अपने-आप हमेशा पानी नीचे गिरता रहता है । मंदिर के समीप  नदी में हैंडपंप से पानी निरंतर प्रवाहित  रहता है ।
 रजरप्पा मन्दिर  - झारखंड राज्य के रामगढ़ जिले के भैरवी  भेड़ा एवं दामोदर नदी के संगम पर स्थित  रजरप्पा मंदिर के गर्भगृह में  छिन्नमस्तिके सिद्धपीठ है । छिन्नमस्तिके मंदिर के समीप  महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर हैं। पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल भैरवी नदी का दामोदर में मिलन है।  मां छिन्नमस्तिके का मंदिर  की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप अंकित है।  रजरप्पा मंदिर  महाभारत युग काल में निर्मित  है। असम स्थित मां कामाख्या मंदिर को सबसे बड़ा शक्तिपीठ माना जाता है। मंदिर में बड़े पैमाने पर विवाह भी संपन्न कराए जाते हैं।मंदिर में प्रातःकाल 4 बजे माता का दरबार सजना शुरू होता है। भक्तों की भीड़ भी सुबह से पंक्तिबद्ध खड़ी रहती है, खासकर शादी-विवाह, मुंडन-उपनयन के लगन और दशहरे के मौके पर भक्तों की 3-4 किलोमीटर लंबी लाइन लग जाती है। मां छिन्नमस्तिके मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की 3 आंखें हैं। बायां पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए वे कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। बिखरे और खुले केश, जिह्वा बाहर, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में दिव्य रूप हैं। दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वे रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। इनके गले से रक्त की 3 धाराएं बह रही हैं। रजरप्पा मंदिर का मुख्य द्वार पूरबमुखी है। मंदिर के सामने बलि का स्थान है। बलि स्थान पर प्रतिदिन औसतन 100-200 बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। मंदिर की ओर मुंडन कुंड है। इसके दक्षिण में एक सुंदर निकेतन है जिसके पूर्व में भैरवी नदी के तट पर  बरामदा एवं पश्चिम  में भंडारगृह है।  रुद्र भैरव मंदिर के समीप  कुंड है। मंदिर की भित्ति 18 फुट नीचे से खड़ी की गई है। नदियों के संगम के मध्य में  पापनाशिनी कुंड है, जो रोगग्रस्त भक्तों को रोगमुक्त कर उनमें नवजीवन का संचार करता है। मुंडन कुंड, चेताल के समीप ईशान कोण का यज्ञ कुंड, वायु कोण कुंड, अग्निकोण कुंड जैसे कई कुंड हैं। दामोदर के द्वार पर  सीढ़ी का निर्माण 22 मई 1972 को संपन्न हुआ था। तांत्रिक घाट  20 फुट चौड़ा तथा 208 फुट लंबा है। भक्त गण दामोदर में स्नान कर मंदिर में जा सकते हैं।  प्राचीनकाल में छोटा नागपुर के राजा  रज की पत्नी  रूपमा द्वारा  रजरूपमा नगर की स्थापना की थी । कालांतर  रजरूपमा को रजरप्पा से ख्याति प्राप्त हुई है । छोटानागपुर के राजा रज दामोदर एवं भैरवी नदी के संगम पर  पूर्णिमा की रात में शिकार की खोज में रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुख मंडल वाली  कन्या देखी। कन्या ने राजा से कहा – हे राजन, इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है। मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी। राजा की आंखें खुलीं तो वे इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच उनकी आंखें स्वप्न में दिखी कन्या से जा मिलीं। वह कन्या जल के भीतर से राजा के सामने प्रकट हुई। दिव्य बालिका रूप अलौकिक रूप  देख राजा भयभीत हो उठे थे । दिव्य कन्या कहने लगी- हे राजन, मैं छिन्नमस्तिके देवी हूं। वन में प्राचीनकाल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं। मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से ठीक नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। दिव्य देवी बोली- हे राजन, मिलन स्थल के समीप तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा।  मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी। तुम सुबह मेरी पूजा कर बलि चढ़ाओ। ऐसा कहकर छिन्नमस्तिके अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद से  पवित्र तीर्थ रजरप्पा के रूप में विख्यात हो गया। भगवती भवानी  सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया। सहेलियों ने भोजन मांगा। देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने के लिए कही । बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह पर देवी ने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया। कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा व गले से 3 धाराएं निकलीं। वह 2 धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगने के कारण  छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं। रजरप्पा मंदिर शाक्त धर्म का प्रमुख केंद्र है । रामगढ़ का शाब्दिक  रूप में राम का शब्द मुर्रम से लिया गया है और गढ़ शब्द बेलागढ़ से निकला है। बिहार गजेटियर हजारीबाग  अध्याय IV, पृष्ठ संख्या। - 65, यह उल्लेख  है कि मगध साम्राज्य का राजा  जरासघं के अधीन छोटानागपुर  में था ।  छोटानागपुर अशोक महान (273 ई.पू.-232 ई.पू) के उप-समन्वय के अधीन था । रामसिंह द्वितीय के शासन काल में रामगढ़ में राजधानी निर्माण हुआ था । राम सिंह के पुत्र दलेल सिंह राजधानी स्थान्तरित कर लाए (1670-71) में राजधानी  रामगढ़ में रखा था । रामगढ़ को धन्धारहरवे , मुरम गढ़ा  कहा जाता था । पाषाण काल , मौर्य , गुप्‍त साम्राज्‍य, मुगल  और ब्रिटिश शासनकाल में रामगढ़ समृद्ध  है। रामगढ़ के धार्मिक स्‍थलों में टूटी झरना मंदिर, माया टु्ंगरी मंदिर, राजरप्‍पा मंदिर ,  प्राकृतिक स्‍थलों में, धर - दुरिया - झरना, अम - झारिया झरना, नैकारी बांध, अम - लारिया झरना, गांधोनिया ( गर्म पानी झरना), बानखेट्टा गुफा  आदि है।  महात्‍मा गांधी समाधि स्‍थल, इस जगह पर महात्‍मा गांधी 1940 में भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस अधिनियम की बैठक में शामिल होने का स्थल रामगढ़  थी। बौद्ध मंदिर और स्‍मारकीय स्‍तंभ है। 12 सितंबर 2007 को रामगढ़ जिला का  अक्षांश और देशांतर क्रमशः 230 38’ और 850 34’ पर अवस्थित  रामगढ़ जिले का कुल क्षेत्रफल 1360.08 वर्ग किलोमीटरमें 487.93 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वन क्षेत्र के तहत  351 राजस्व गांव में  334 चिरागी और 17 बेचिरगी हैं। कीकट प्रदेश का छोटानागपुर में नागवंशीय का शासन  था ।









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