शनिवार, अगस्त 27, 2022

सकरतमस्क ऊर्जा का द्योतक कुश ...


         वेदों , पुरणों और स्मृतियों में कुश को पवित्र कहा गया है । कुश की पत्तियाँ नुकीली, तीखी और कड़ी होती है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में  कुश को  एराग्रस्तिस  , अकंप्टोलडोस नाश , बोरिसकेलर टेरेचोव ,,डिएंड्रोचॉ डे विंटर , एरोचलोए रफ , केरोसिन लुनेल ,मॉरोबलेफोर्स फिल ,नीराग्रस्तइस बुश ,, पसिलैंथ ट्ज़वेलेव , रोशेवितज़िया ट्ज़वेलेव एवं कुश , कुशा कहा जाता है ।सनातन धर्म में  कुश  पवित्र  है । अथर्ववेद में  क्रोधशामक और अशुभनिवारक  है।  नित्यनैमित्तिक धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है। कौटिल्य साहित्य में कुश से तेल निकाने का  उल्लेख  है। भावप्रकाश के अनुसार कुश त्रिदोषघ्न और शैत्य-गुण-विशिष्ट है। कुश की जड़ से मूत्रकृच्छ, अश्मरी, तृष्णा, वस्ति और प्रदर रोग को लाभ होता है। महाभारत आदि पर्व अध्याय 23 के अनुसार गरुड़ जी अपनी माता की दासत्व से मुक्ति के लिए स्वर्ग से अमृत कलश लाकर कुशों पर रखने से अमृत का संसर्ग होने के कारण  कुश को पवित्री कहा गया  है । जातक के जन्म कुंडली या लग्न कुण्डली में राहु महादशा की आने पर कुश के पानी मे ड़ालकर स्नान करने से राहु की कृपा प्राप्त होती है। महाभारत आदिपर्व अध्याय 23 के अनुसार गरुड़ जी अपनी माता की दासत्व से मुक्ति के लिए स्वर्ग से अमृत कलश लाये थे, उसको उन्होंने कुशों पर रखा था। अमृत का संसर्ग होने के कारण  कुश को पवित्री कहा गया  है । जातक के जन्म कुंडली या लग्न कुण्डली में राहु महादशा आती है तब  कुश के पानी मे ड़ालकर स्नान करने से राहु की कृपा प्राप्त होती है। भगवान विष्णु के पसीने से  तिल और शरीर के रोम से कुश उत्पन्न हुए हैं। कुश का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु और अग्रभाग शिव का जानना चाहिए। ये देव कुश में प्रतिष्ठित माने गए हैं। ब्राह्मण, मंत्र, कुश, अग्नि और तुलसी पुराने नहीं होते वल्कि  पूजा में बार-बार प्रयोग से सर्वांगीण सुख की प्राप्ति होती है  ।
दर्भ मूले स्थितो ब्रह्मा मध्ये देवो जनार्दनः। दर्भाग्रे शंकरं विद्यात त्रयो देवाः कुशे स्मृताः।।
विप्रा मन्त्राः कुशा वह्निस्तुलसी च खगेश्वर। नैते निर्माल्यताम क्रियमाणाः पुनः पुनः।।
तुलसी ब्राह्मणा गावो विष्णुरेकाद्शी खग। पञ्च प्रवहणान्येव भवाब्धौ मज्ज्ताम न्रिणाम।।
विष्णु एकादशी गीता तुलसी विप्रधनेवः। आसारे दुर्ग संसारे षट्पदी मुक्तिदायनी।।
कुश को अनुष्ठान करते समय  अंगूठी की भांति तैयार कर हथेली की बीच वाली उंगली में पहनी जाती है। अंगुठी के अलावा कुश से पवित्र जल का छिडकाव किया जाता है। मानसिक और शारीरिक पवित्रता के लिए कुश का उपयोग पूजा में आवश्यक है।  ग्रहण से पहले और ग्रहण के दौरान खाने-पीने की चीजों में कुश डाल कर रख दिया जाता है। कुश का अनुसंधान के अनुसार  कुश घास प्राकृतिक रूप से छोटे-छोटे कीटाणुओं को दूर करने में  सहायक और  प्यूरिफिकेशन का काम करता है। पानी में कुश रखने से छोटे- छोटे सूक्ष्म कीटाणु  कुश घास के समीप एकत्रित हो जाते हैं। अथर्ववेद के अनुसार कुश घास के उपयोग करने से  क्रोध को नियंत्रित करने में सहायक होती है। कुश का प्रयोग एक औषधि के रूप में किया जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार वराह कल्प में   भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण कर दैत्यराज  हिरण्याक्ष  का वध कर  धरती को समुद्र से निकालकर सभी प्राणियों की रक्षा की थी। भगवान वराह ने भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या वराह कल्प को   शरीर पर लगे पानी को झटका करने से   भगवान वराह के शरीर के  बाल पृथ्वी पर आकर गिरा और कुश का रूप धारण कर लिया था । कर्ण ने अपने पितरों का तर्पण किया तब इसमें उन्होंने कुश का ही उपयोग किया था। तभी से यह मान्यता है कि कुश पहनकर जो भी अपने पितरों का श्राद्ध करता है उनसे पितरदेव तृप्त होते हैं। कुश के उपयोग से कई तरह की सकारात्मक ऊर्जाएं  मिलती है। कुश के आसन पर बैठकर पूजा-पाठ और ध्यान करते हैं तब उस दौरान हमारे शरीर से सकारात्मक ऊर्जाएं लगातार निकलती रहती है।कुश की अंगूठी के अनामिका उंगली में पहनने के पीछे भी इसका आध्यात्मिक महत्व है। धार्मिक अनुष्ठान में कुश की अंगूठी को हथेली तीसरी उंगली में पहना जाता है। अनामिका यानी रिंग उंगली के नीचे सूर्य का स्थान होने के कारण ज्योतिष में सूर्य को तेज और यश का प्रतीक माना गया है ऐसे में इससे प्राप्त होने वाली ऊर्जा धरती पर नहीं जा पाती। पूजा और धार्मिक अनुष्ठान में कुश घास के इस्तेमाल पीछ भी वैज्ञानिक कारण छिपे हुए हैं। दरअसल इस कुश घास में एक तरह का प्यूरिफिकेशन होने के कारण शुद्ध और दवाईयों के रूप में किया जाता है। कुश में एंटी ओबेसिटी, एंटीऑक्सीडेंट और एनालजेसिक कंटेंट मौजूद रहता है। धार्मिक व यज्ञ , अनुष्ठान , तर्पण , आदि कार्यों में कुश का महत्वपूर्ण स्थान है ।भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या को कुश को समर्पित तिथि को कुश अमावस्या कहा जाता है । भाद्रपद अमावस्या को जड़ सहित  कुश को घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश और नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास होता है|






 

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