पुरणों व संहिताओं में मन्वन्तरों तथा व्यासों का उल्लेख किया गया है । सृष्टि के प्रारम्भ श्वेत वराह कल्प में होने के बाद प्रत्येक द्वापर युग में व्यासों व्यासों द्वारा वेदों , पुरणों , उपनिषदों , उप पुरणों की रचना की गई है । व्यासों द्वारा प्रत्येक मन्वंतर के द्वापर युग में धर्म एवं कर्म की स्थापना के लिए नियमों तथा गीता का संदेश देकर मानव कल्याण का मार्ग प्रस्तुत किया गया है । जगत कल्याण और वेद का चार खंड , 18 पुरणों की रचना की गई है । स्वायंभुव मनु के स्वायम्भुव मन्वंतर के प्रथम द्वापर युग में व्यास ब्रह्मा जी , ब्रह्मा जी के पुत्रों में मरीचि , अत्रि, अंगिरा ,पुलह, क्रतु पुलस्त्य तथा वशिष्ट सप्तर्षि उत्तर दिशा के स्थित है ।
स्वायम्भुव मनु के पुत्रों में आग्रीघ्र,अग्निबाहु ,मेध्य ,मेघातिथि ,वासु ,ज्योतिष्मान , द्युतिमान , हव्य , सबल थे । स्वरोचिष मनु के स्वरोचिष मन्वंतर का द्वितीय द्वापर में व्यास प्रजापति , प्राण ,वृहस्पति ,दत्तात्रेय , अत्रि ,च्यवन ,व्युप्रोक्त तथा महाव्रत सप्तर्षि एवं स्वारोचिष मनु के पुत्रों में हाविर्घ्र , सुकृति , ज्योति ,आप ,मूर्ति ,प्रतीत ,नभस्य नभ तथा ऊर्जा थे । उत्तम मनु के उत्तम मन्वंतर का तीसरे द्वापर में व्यास उशना ,तथा वशिष्ट सात पुत्र तथा हिरण्यगर्भ के ऊर्ज ऋषि और उत्तम मनु के पुत्रों में ईश, ऊर्ज , तनुऊर्ज , मधु , माधव , शुचि , शुक्र , सह, नभस्य तथा नभ थे । उत्तम मन्वंतर में भगवान भानु की उपासना की जाती थी । तामस मनु के तामस मन्वंतर का चौथे द्वापर में व्यास वृहस्पति ,और सप्तर्षि में काव्य ,पृथु ,अग्नि ,जह्नु ,धता ,कपिवान ,और अकपिवान एवं तामस मनु के पुत्रों में द्युति , तसपस्य , सुतापा ,तपोभूत , सनातन ,तपोरती ,अकल्माष ,तन्वी , धन्वी , परंतप थे । तामस मन्वंतर में सत्य की उपासना की जाती थी । रैवत मनु के रैवत मन्वंतर का पाँचवे द्वापर में व्यास सविता और सप्तर्षि में देवबाहु ,यदुघ्न ,वेदशिरा, हिरण्यरोमा , पर्जन्य , सोमनन्दन उर्ध्यबाहु , अत्रि नंदन सत्यनेत्र तथा रैवत मनु के पुत्रों में धृतिमान ,अव्यय ,युक्त ,तत्वदर्शी ,निरुत्सुक ,आरण्य ,प्रकाश , निर्मोह , सत्यवाक , कृति थे । रैवत मन्वंतर में देवता अभूतरजा एवं प्रकृति की उपासना की जाती थी । चाक्षुष मनु के चाक्षुष मन्वंतर का छठे द्वापर में व्यास मृत्युदेव और सप्तर्षि में भृगु ,नभ ,विवस्वान , सुधामा ,विरजा ,अतिनामा ,सहिष्णु एवं चाक्षुष मनु के 10 पुत्रों में नाड़वलेय , उरु थे । चाक्षुष मन्वंतर में देवता लेख की उपासना की जाती थी । वैवस्वतमनु के वैवस्वत मन्वंतर के सातवें व्यास माधव और सप्तर्षियों में अत्रि, वशिष्ठ ,कश्यप ,गौतम , भारद्वाज , विश्वामित्र ,एवं जमदग्नि और वैवस्वतमनु के पुत्रों में इक्ष्वाकु , नाभाग , धृष्ट , शर्याति ,नरिष्यन्त ,प्रांशु ,अरिष्ट , करूष एवं पृषध्र थे । वैवस्वत मन्वंतर के देवताओं में साध्य , रुद्र ,विश्वेदेव ,वसु ,मरुद्गण , आदित्य और अश्विनीकुमार की उपासना की जाती है । सावर्णि मनु के सावर्णि मन्वंतर का आठवें व्यास वशिष्ठ एवं सप्तर्षियों में परशुराम ,व्यास , आत्रेय , भारद्वाज वंशीय द्रोण पुत्र अश्वस्थामा , गौतम वंशीय शरद्वान , कौशिक वंशीय गलव तथा कश्यप नंदन और्व थे । सावर्णि मनु के पुत्रों में वैरी ,अध्वरिमान ,शमन , धृतिमान , वसु ,अरिष्ट अदृष्ट , बाजी एवं सुमति थे । भगवान सूर्य के पुत्र सावर्णि तथा प्रजापति के मेरु सावणर्य मनु , रौच्य ,भौत्य मनु थे । नवें द्वापर में व्यास सारस्वत , दसवें व्यास त्रिधामा , ग्यारहवें व्यास त्रिवृष , बारहवें व्यास भारद्वाज तेरहवें अन्तरिक्ष , चौदहवें धर्म , पन्द्रहवें त्रय्यारुणि , सोलहवें धनन्जय , सत्रहवें मेघातिथि , अठारहवें व्रती , उन्नीसवें अत्रि , बीसवें , गौतम , इक्कीसवें हर्यात्मा उत्तम , वाईसवें द्वापर में व्यास वाजश्रवा वेन , तेइसवें आयुष्मान सोम , चौबीसवें तृण विन्दु , पच्चीसवें भार्गव , छब्बीसवें शक्ति , सत्ताइसवें जातूकर्ण्य और अठाइसवें व्यास कृष्ण द्वैपायन थे । द्वापर युग में पारासर ऋषि पुत्र कृष्णद्वैपायन द्वारा महाभारत की रचना तथा भगवान कृष्ण ने गीता का संदेश दिया था ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें