बुधवार, सितंबर 21, 2022

शाक्त धर्म और शक्ति उपासना ...

    शाक्त सम्प्रदाय में सर्वशक्तिमान देवी माना गया है। शाक्त धर्मावलंबी द्वारा विभिन्न  देवियों की   भिन्न भिन्न रूप में शक्ति की आराधना की जाती हैं। शाक्त मत के अन्तर्गत कई परम्पराएँ मिलतीं हैं जिसमें लक्ष्मी से लेकर भयावह काली तक हैं। देवी को दक्षिण मे काली चंडी,उत्तर में शाकुम्भरी देवी,पश्चिम मे अंबाजी,पूर्व मे काली रूप मे पूजा जाता हैकुछ शाक्त सम्प्रदाय अपनी देवी का सम्बन्ध शिव या विष्णु बताते हैं। श्रुति तथा स्मृति ग्रन्थ, शाक्त परम्परा का प्रधान ऐतिहासिक आधार बनाते हुए दिखते हैं। शाक्त धर्मावलबी देवीमाहात्म्य, देवीभागवत पुराण तथा शाक्त उपनिषदों  , देवी उपनिषद , देवी भागवत, देवी पुराण , मार्कण्य पुराण , दुर्गासप्तसती पर आस्था रखते हैं। शाक्त  शक्ति की उपासना कर  प्राणियों मे उर्जा का संचार करता है'। शाक्त धर्म शक्ति की साधना का विज्ञान है। शाक्त मतावलंबी शाक्त धर्म को प्राचीन वैदिक धर्म से पुराना मानते हैं। शाक्त धर्म का विकास वैदिक धर्म के साथ  साथ या सनातन धर्म में शाक्त  समावेशित  के साथ हुआ। यह हिन्दू धर्म में पूजा का एक प्रमुख स्वरूप है, जिसे अब 'हिन्दू धर्म' कहा जाता है, उसे तीन अंतःप्रवाहित, परस्परव्यापी धाराओं में विभाजित किया जा सकता है। सौरवाद  के अनुयायी  भगवान सूर्य की उपासना के साथ प्रक्टति यथा जल , पेड , चन्द्रमा की पूजा , तथा उर्जा के लिए शक्ति की उपासना , विष्णु की उपासना; शैववाद, भगवान शिव की पूजा; तथा शाक्तवाद, देवी के शक्ति रूप की उपासना। इस प्रकार शाक्तवाद दक्षिण एशिया में विभिन्न देवी परम्पराओं को नामित करने वाला आम शब्द है, जिसका सामान्य केन्द्र बिन्दु देवियों की पूजा है।'शक्ति की पूजा' शक्ति के अनुयायियों को अक्सर 'शाक्त' कहा जाता है। शाक्त न केवल शक्ति की पूजा करते  बल्कि उसके शक्ति–आविर्भाव को मानव शरीर एवं जीवित ब्रह्माण्ड की शक्ति या ऊर्जा में संवर्धित, नियंत्रित एवं रूपान्तरित करने का प्रयास भी करते हैं। विशेष रूप से माना जाता है कि शक्ति, कुंडलिनी के रूप में मानव शरीर के गुदा आधार तक स्थित होती है। जटिल ध्यान एवं यौन–यौगिक अनुष्ठानों के ज़रिये यह कुंडलिनी शक्ति जागृत की जा सकती है। इस अवस्था में यह सूक्ष्म शरीर की सुषुम्ना से ऊपर की ओर उठती है। मार्ग में कई चक्रों को भेदती हुई, जब तक सिर के शीर्ष में अन्तिम चक्र में प्रवेश नहीं करती और वहाँ पर अपने पति-प्रियतम शिव के साथ हर्षोन्मादित होकर नहीं मिलती। भगवती एवं भगवान के पौराणिक संयोजन का अनुभव हर्षोन्मादी–रहस्यात्मक समाधि के रूप में मनों–दैहिक रूप से किया जाता है, जिसका विस्फोटी परमानंद कहा जाता है कि कपाल क्षेत्र से उमड़कर हर्षोन्माद एवं गहनानंद की बाढ़ के रूप में नीचे की ओर पूरे शरीर में बहता है।शाक्त सम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है यह पुराण वस्तुत: 'दुर्गा चरित्र' एवं 'दुर्गा सप्तशती' के वर्णन के लिए प्रसिद्ध है। इसीलिए इसे शाक्त सम्प्रदाय का पुराण भी कहा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। हिन्दू धर्म के अनेक सम्प्रदायों में विभिन्न प्रकार के तिलक, चन्दन, हल्दी और केसर युक्त सुगन्धित पदार्थों का प्रयोग करके बनाया जाता है। वैष्णव गोलाकार बिन्दी, शाक्त तिलक और शैव त्रिपुण्ड्र से अपना मस्तक सुशोभित करते हैं।'धर्म ग्रंथ' शाक्त सम्प्रदाय में देवी दुर्गा के संबंध में 'श्रीदुर्गा भागवत पुराण' एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें १०८ देवी पीठों का वर्णन किया गया है। उनमें से भी ५१-५२ शक्ति पीठों का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसी में दुर्गा सप्तशति भी है।'दर्शन' शाक्तों का यह मानना है कि दुनिया की सर्वोच्च शक्ति स्त्रेण है। इसीलिए वे देवी दुर्गा को ही ईश्वर रूप में पूजते हैं। दुनिया के सभी धर्मों में ईश्वर की जो कल्पना की गई है, वह पुरुष के समान की गई है। अर्थात ईश्वर पुरुष जैसा हो सकता है, किंतु शाक्त धर्म दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्म है, जो सृष्टि रचनाकार को जननी या स्त्रेण मानता है। सही मायने में यही एकमात्र धर्म स्त्रियों का धर्म है। शिव तो शव है, शक्ति परम प्रकाश है। हालाँकि शाक्त दर्शन की सांख्य समान ही है।
'' सिंधु घाटी सभ्यता में मातृदेवी पूजा की प्रधानता  हैं। शाक्त सम्प्रदाय  गुप्त काल में उत्तर-पूर्वी भारत, कम्बोडिया, जावा, बोर्निया और मलाया प्राय:द्वीपों के देशों में लोकप्रिय था। बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद इसका प्रभाव कम हुआ। मानव के धार्मिक प्रवर्ग के रूप में शाक्तवाद इस हिन्दू आस्था का प्रतिबिम्ब है कि ग्रामीण एवं संस्कृत की किंवदन्तियों की असंख्य देवियाँ एक महादेवी की अभिव्यक्तियाँ हैं। आमतौर पर माना जाता है कि महादेवी की अवधारणा प्राचीन है। लेकिन ऐतिहासिक रूप से शायद इसका कालांकन मध्य काल का है। जब अत्यधिक विषम स्थानीय एवं अखिल भारतीय परम्पराओं का एकीकरण सैद्धांतिक रूप से एकीकृत धर्मशास्त्र में किया जाता था। धर्मशास्त्र प्रवर्ग के ऐतिहासिक और सैद्धांतिक रूप से भिन्न परम्पराओं में प्रयुक्त किया जा सकता है। मध्यकालीन पुराणों की विभिन्न देवियों की पौराणिक कथाओं से लेकर दो प्रमुख देवी शाखाओं या शाक्त तंत्रवाद कुलों[4] से पूर्ववर्ती एवं वर्तमान, वस्तुतः असंख्य स्थानीय ग्रामीण देवियों तक है। शाक्तवाद दक्षिण एशिया के कश्मीर, दक्षिण भारत, असम और बंगाल  , बिहार ,झारखण्ड में तांत्रिक प्रतीक और अनुष्ठान कम से कम छठी शताब्दी से हिन्दू परम्पराओं में सर्वव्यापी रहे हैं। हाल में परम्परागत प्रवासी भारतीय जनसंख्या के साथ, कुछ भारत विद्या शैक्षिक समुदाय में और विभिन्न नवयुग एवं नारीवादोन्मुखी परम्पराओं के साथ, सामान्यतः पश्चिम में तंत्रवाद या तंत्र के अंतर्गत परम्परागत, दार्शनिक एवं शाक्तवाद के विविध स्वरूपों ने प्रवेश किया है। शाक्त संस्कृति त्रेता काल के राम काल और द्वापर में कृष्ण काल में ब्रज में शाक्त संस्कृति का प्रभाव बहुत बढ़ा। ब्रज में महामाया, महाविद्या, करोली, सांचोली आदि विख्यात शक्तिपीठ हैं। मथुरा के राजा कंस ने वासुदेव द्वारा यशोदा से उत्पन्न जिस कन्या का वध किया था, उसे भगवान श्रीकृष्ण की प्राणरक्षिका देवी के रूप में पूजा जाता है। देवी शक्ति की यह मान्यता ब्रज से सौराष्ट्र तक फैली है। द्वारका में भगवान द्वारकानाथ के शिखर पर चर्चित सिंदूरी आकर्षक देवी प्रतिमा को कृष्ण की भगिनी बतलाया गया है, जो शिखर पर विराजमान होकर सदा इनकी रक्षा करती हैं। ब्रज तो तांत्रिकों का आज से १०० वर्ष पूर्व तक प्रमुख गढ़ था। यहाँ के तांत्रिक भारत भर में प्रसिद्ध रहे हैं। कामवन भी राजा कामसेन के समय तंत्र विद्या का मुख्य केंद्र था, उसके दरबार में अनेक तांत्रिक रहते थे। सभी सम्प्रदायों के समान ही शाक्त सम्प्रदाय का उद्देश्य भी मोक्ष है। फिर भी शक्ति का संचय करो, शक्ति की उपासना करो, शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही सत्य है, शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की सभी को आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। इसीलिए नाथ और शाक्त सम्प्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं। सिद्धियाँ प्राप्त करते रहते हैं। शक्ति से ही मोक्ष पाया जा सकता है। शक्ति नहीं है तो सिद्ध, बुद्धि और समृद्धि का कोई मतलब नहीं है। एक ही धर्म की अलग अलग परम्परा या विचारधारा मानने वालें वर्गों को सम्प्रदाय कहते है। सम्प्रदाय हिंदू, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम  धर्मों में मौजूद है। सम्प्रदाय के अन्तर्गत गुरु-शिष्य परम्परा चलती है जो गुरु द्वारा प्रतिपादित परम्परा को पुष्ट करती है।सनातन धर्म के हिन्दू धर्म के शैवाश्च वैष्णवाश्चैव शाक्ताः सौरास्तथैव च | गाणपत्याश्च ह्यागामाः प्रणीताःशंकरेण तु || -देवीभागवत ७ स्कन्द के अनुसार  सौर संप्रदाय , शाक्त संप्रदाय , शैव सम्प्रदाय ,वैष्णव सम्प्रदाय ,गाणपत सम्प्रदाय , भागवत संप्रदाय  , मत्स्येन्द्रमत नाथ सम्प्रदाय ,शांकरमत दशनामी सम्प्रदाय ,  महानुभाव सम्प्रदाय , सिख संप्रदाय  , बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय में थेरवाद , महायान , वज्रयान , झेन और नवयान संप्रदाय ;  इस्लाम के सम्प्रदाय में शिया और सुन्नी  तथा अहमदिया ;  जैन धर्म के श्वेतांबर  संप्रदाय और दिगंबर संप्रदाय ; ईसाई धर्म के रोमन कैथोलिक संप्रदाय , प्रोटेस्टेंट संप्रदाय , ऑर्थोडॉक्स संप्रदाय है ।
 माता चामुण्डा - मुनि मारकण्डेय का  दुर्गासप्तशती ,   देवी महात्म्य के अनुसार धरती पर शुम्भ और निशुम्भ  दैत्यो का राज था। उनके द्वारा धरती व स्वर्ग पर काफी अत्याचार किया गया। जिसके फलस्वरूप देवताओं व मनुष्यो ने हिमालय में जाकर देवी भगवती की आराधना की। लेकिन स्तुति में किसी भी देवी का नाम नही लिया। इसके पश्चात शंकर जी की पत्नी देवी पार्वती वहां मान सरोवर पर स्नान करने आई। उन्होंने देवताओ से पूछा कि किसकी आराधना कर रहे हो ? तब देवता तो मौन हो गए लेकिन क्योंकि भगवती के स्वरूप को तो ब्रह्मा, विष्णु और शिव भी नही जानते। तो फिर इन्द्रादि देवता कैसे बता सकते है कि वह कौन है, इसलिये वह मौन हो गए। लेकिन माँ भगवती ने देवी पार्वती जी के शरीर मे से प्रगट होकर पार्वती को कहा देवी यह लोग मेरी ही स्तुति कर रहे है। में आत्मशक्ति स्वरूप परमात्मा हूँ। जो सभी की आत्मा में निवास करती हूं। माता पार्वती जी के शरीर से प्रगट होने के कारण मा दुर्गा का एक नाम कोशिकी भी पड़ गया। कोशिकी को शुम्भ और निशुम्भ के दूतो ने देख लिया और उन दोनो से कहा महाराज आप तीनों लोको के राजा है। आपके यहां पर सभी अमूल्य रत्‍न सुशोभित है। इन्द्र का ऐरावत हाथी भी आप ही के पास है। इस कारण आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है। यह वचन सुन कर शुम्भ और निशुम्भ ने अपना एक दूत देवी कोशिकी के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ और निशुम्भ तीनो लोकों के राजा है और वो दोनो तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। यह सुन दूत माता कोशिकी के पास गया और दोनो दैत्यो द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ और निशुम्भ दोनों ही महान बलशली है। परन्तु मैं एक प्रण ले चूंकि हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी। यह सारी बाते दूत ने शुम्भ और निशुम्भ को बताई। तो वह दोनो कोशिकी के वचन सुन कर उस पर क्रोधित हो गये और कहा उस नारी का यह दूस्‍साहस कि वह हमें युद्ध के लिए ललकारे। तभी उन्होंने चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को भेजा और कहा कि उसके केश पकड़कर हमारे पास ले आओ। चण्ड और मुण्ड देवी कोशिकी के पास गये और उसे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी कौशिकी ने अपने आज्ञाचक्र भृकुटि (ललाट) से अपना एक ओर स्वरूप काली रूप धारण कर लिया और असुरो का उद्धार करके चण्ड ओर मुण्ड को अपने निजधाम पहुंचा दिया। उन दोनो असुरो को मारने के कारण माता का नाम चामुण्डा पड गया। आध्यात्म में चण्ड प्रवर्त्ति ओर मुण्ड निवर्ती का नाम है और माँ भगवती प्रवर्त्ति ओर निवर्ती दोनो से जीव छुड़ाती है और मोक्ष कर देती है। इसलिये जगदम्बा का नाम चामुंडा है। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कटरा बागमती नदी के  तट पर , नवादा जिले के रूपौ तथा काश्मीर के कटरा मे माता चामुण्डा प्रसिद्ध है । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै : ।
दूर्गा पूजा बांग्ला , असमिया,  अथवा ओड़िया: ,सुनें: सुनें  , "माँ दूर्गा की पूजा"  जिसे दुर्गोत्सव बांग्ला: अथवा ओड़िया:  सुनें: दुर्गोत्सव सहायता·सूचना, "दुर्गा का उत्सव" के नाम से भी जाना जाता है । शरदोत्सव दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला  वार्षिक सनातन पर्व है जिसमें हिन्दू देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इसमें छः दिनों को महालय, षष्ठी, महा सप्तमी, महा अष्टमी, महा नवमी और विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा को मनाये जाने की तिथियाँ पारम्परिक हिन्दू पंचांग के अनुसार आता है। पखवाड़े को देवी पक्ष, देवी पखवाड़ा के नाम से ख्याति  है।वेदसंहिता · ,वेदांग ,ब्राह्मणग्रन्थ · आरण्यक ,उपनिषद् · श्रीमद्भगवद्गीता ,रामायण · महाभारत ,· पुराण के अनुसार दुर्गा पूजा का पर्व हिन्दू देवी दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। अतः दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर भलाई की विजय के रूप में भी माना जाता है। दुर्गा पूजा भारतीय राज्यों असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मनाया जाता है जहाँ इस समय पांच-दिन की वार्षिक छुट्टी रहती है। बंगाली हिन्दू और आसामी हिन्दुओं का बाहुल्य वाले क्षेत्रों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में यह वर्ष का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यह न केवल सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव है बल्कि यह बंगाली हिन्दू समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव भी है। पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दुर्गा पूजा का उत्सव दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का उत्सव नेपाल और बांग्लादेश में भी बड़े त्यौंहार के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में विभिन्न प्रवासी आसामी और बंगाली सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राज्य अमेरीका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैण्ड, सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में आयोजित करवाते हैं। वर्ष 2006 में ब्रिटिश संग्रहालय में विश्वाल दुर्गापूजा का उत्सव आयोजित किया गया। दुर्गा पूजा की ख्याति ब्रिटिश राज में बंगाल और भूतपूर्व असम में धीरे-धीरे बढ़ी। हिन्दू सुधारकों ने दुर्गा को भारत में पहचान दिलाई और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया हैं । बंगाल, असम, ओडिशा में दुर्गा पूजा को अकालबोधन , बांग्ला: पतझड़ का उत्सव" , महा पूजो ("महा पूजा"), मायेर पुजो ("माँ की पूजा") या केवल पूजा अथवा पुजो भी कहा जाता है। बांग्लादेश में, दुर्गा पूजा को भगवती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। इसे पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा, दिल्ली और मध्य प्रदेश में दुर्गा पूजा भी कहा जाता है । दूर्गा पूजा को बिहार गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, केरल और महाराष्ट्र में नवरात्रि के रूप में कुल्लू घाटी, हिमाचल प्रदेश में कुल्लू दशहरा, मैसूर, कर्नाटक में मैसूर दशहरा,तमिलनाडु में बोमाई गोलू और आन्ध्र प्रदेश में बोमाला कोलुवू के रूप में भी मनाया जाता है। दुर्गा पूजा वर्ष का  वासंती नवरात्र में चैत्र  तथा  शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक  दुर्गा की पूजा होती है। दुर्गा पूजा नेपाल और भूटान में भी स्थानीय परम्पराओं और विविधताओं के अनुसार मनाया जाता है। पूजा का अर्थ "आराधना" है और दुर्गा पूजा बंगाली पंचांग के छटे माह अश्विन में बढ़ते चन्द्रमा की छटी तिथि से मनाया जाता है। तथापि कभी-कभी, सौर माह में चन्द्र चक्र के आपेक्षिक परिवर्तन के कारण इसके बाद वले माह कार्तिक में भी मनाया जाता है। ग्रेगोरी कैलेण्डर में इससे सम्बंधित तिथियाँ सितम्बर और अक्टूबर माह में आती हैं। रामायण में राम, रावण से युद्ध के दौरान देवी दुर्गा को आह्वान करते हैं। यद्यपि उन्हें पारम्परिक रूप से वसन्त के समय पूजा जाता था। युद्ध की आकस्मिकता के कारण, राम ने देवी दुर्गा का शीतकाल में अकाल बोधन आह्वान किया।
माता काली तंत्र विद्या की प्रमुख देवी हैं। यह सुन्दरी रूप वाली भगवती दुर्गा का काला और भय प्रद रूप है, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिये हुई थी। उनको ख़ासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। काली की व्युत्पत्ति काल अथवा समय से हुई है जो सबको अपना ग्रास बना लेता है। माँ का यह रूप है जो नाश करने वाला है पर यह रूप सिर्फ उनके लिए हैं जो दानवीय प्रकृति के हैं जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप बुराई से अच्छाई को जीत दिलवाने वाला है अत: माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेच्छु है और पूजनीय है। इनको महाकाली भी कहते हैं।महा काली से जहर खाया हुआ इंसान को भी बचा लेती है संर्प से अन्य जहरीले जानवरो से खाने के बाद भी बचाया जाता है माता काली महाविद्या देवी का निवासस्थान शमशान और  अस्त्र , खप्पर , मुण्ड – मुण्डमाला , जीवनसाथी  - भगवान शिव ,सवारी - शव है ।बांग्ला में काली का एक और अर्थ होता है - स्याही या रोशनाई सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति-समन्विते।भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते।।(दुर्गा सप्तशती) शाक्त संप्रदाय की दस महाविद्याओं  का माता काली है ।
सनातन धर्म के अनुसार जहां सती देवी के शरीर के अंग गिरे, वहां वहां शक्ति पीठ बन गईं। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। जयंती देवी शक्ति पीठ भारत के मेघालय राज्य में नाॅरटियांग नामक स्थान पर है।वेदसंहिता · वेदांग ,ब्राह्मणग्रन्थ · आरण्यक ,उपनिषद् · श्रीमद्भगवद्गीता ,रामायण · महाभारत , पुराणों के अनुसार सती के शव के विभिन्न अंगों से बावन शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था। इसके पीछे यह अंतर्कथा है कि दक्ष प्रजापति ने उतराखण्कड का कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व'  यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने गईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए इधर-उधर घूमने लगे। तदनंतर सम्पूर्ण विश्व को प्रलय से बचाने के लिए जगत के पालनकर्त्ता भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर को काट दिया। तदनंतर वे टुकड़े 52 जगहों पर गिरे। वे ५२ स्थान शक्तिपीठ कहलाए। सती ने दूसरे जन्म में हिमालयपुत्री पार्वती के रूप में शंकर जी से विवाह किया। पुराण ग्रंथों, तंत्र साहित्य एवं तंत्र चूड़ामणि में जिन बावन शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, वे निम्नांकित हैं। निम्नलिखित सूची 'तंत्र चूड़ामणि' में वर्णित इक्यावन शक्ति पीठों की है। बावनवाँ शक्तिपीठ अन्य ग्रंथों के आधार पर है। इन बावन शक्तिपीठों के अतिरिक्त अनेकानेक मंदिर देश-विदेश में विद्यमान हैं। हिमाचल प्रदेश में नयना देवी का पीठ (बिलासपुर) भी विख्यात है। गुफा में प्रतिमा स्थित है। कहा जाता है कि यह भी शक्तिपीठ है और सती का एक नयन यहाँ गिरा था। इसी प्रकार उत्तराखंड के पर्यटन स्थल मसूरी के पास [1]सुरकंडा]] देवी का मंदिर (धनौल्टी में) है। यह भी शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर सती का सिर धड़ से अलग होकर गिरा था। माता सती के अंग भूमि पर गिरने का कारण भगवान श्री विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से सती माता के समस्तांग विछेदित करना था।ऐसी भी मान्यता है कि उत्तरप्रदेश के सहारनपुर के निकट माता का शीश गिरा था जिस कारण वहाँ देवी को दुर्गमासुर संहारिणी शाकम्भरी कहा गया। यहाँ भैरव भूरादेव के नाम से प्रथम पुजा पाते हैं।
इक्यावन शक्तिपीठ इक्यावन भारतीय उपमहाद्वीप में विस्तृत हैं।"शक्ति" की उपासना देवी दुर्गा, जिन्हें दाक्षायनी या पार्वती रूप में जाती है। सती के शरीर का कोई अंग या आभूषण, जो श्री विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर गिरा, आज वह स्थान पूज्य है और शक्तिपीठ कहलाता है।
   1 .हिंगुल या हिंगलाज, कराची, पाकिस्तान  शक्ति पीठ ब्रह्मरंध्र  ,भैरव - भीमलोचन   , 2 . शर्कररे, कराची पाकिस्तान के सुक्कर स्टेशन के निकट, इसके अलावा नैनादेवी मंदिर, बिलासपुर, हि.प्र. भी बताया जाता है। आँख महिष मर्दिनी क्रोधीश , 3 . सुगंध, बांग्लादेश में शिकारपुर, बरिसल से 20 कि॰मी॰ दूर सोंध नदी तीरे नासिका सुनंदा त्रयंबक , 4 . अमरनाथ, पहलगाँव, काश्मीर में गला महामाया त्रिसंध्येश्वर 5 ज्वाला जी, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश जीभ सिधिदा (अंबिका) उन्मत्तभैरव 6 जालंधर, पंजाब में छावनी स्टेशन निकट देवी तलाब बांया वक्ष त्रिपुरमालिनी भीषण7 अम्बाजी मंदिर, गुजरात हृदय अम्बाजी बटुक भैरव 8 गुजयेश्वरी मंदिर, नेपाल, निकट पशुपतिनाथ मंदिर दोनों घुटने महाशिरा कपाली9 मानस, कैलाश पर्वत, मानसरोवर, तिब्बत के निकट एक पाषाण शिला दायां हाथ दाक्षायनी अमर10 बिराज, उत्कल, उड़ीसा नाभि विमला जगन्नाथ  , 11 . गण्डकी नदी नदी के तट पर, पोखरा, नेपाल में मुक्तिनाथ मंदिर मस्तक गंडकी चंडी चक्रपाणि ,12 बाहुल, अजेय नदी तट, केतुग्राम, कटुआ, वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल से 8 कि॰मी॰ बायां हाथ देवी बाहुला भीरुक ,13 उज्जनि, गुस्कुर स्टेशन से वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल 16 कि॰मी॰ दायीं कलाई मंगल चंद्रिका कपिलांबर ,14 माताबाढ़ी पर्वत शिखर, निकट राधाकिशोरपुर गाँव, उदरपुर, त्रिपुरा दायां पैर त्रिपुर सुंदरी त्रिपुरेश , 15 छत्राल, चंद्रनाथ पर्वत शिखर, निकट सीताकुण्ड स्टेशन, चिट्टागौंग जिला, बांग्लादेश दांयी भुजा भवानी चंद्रशेखर , 16 त्रिस्रोत, सालबाढ़ी गाँव, बोडा मंडल, जलपाइगुड़ी जिला, पश्चिम बंगाल बायां पैर भ्रामरी अंबर , 17 कामगिरि, कामाख्या, नीलांचल पर्वत, गुवाहाटी, असम योनि कामाख्या उमानंद18 जुगाड़्या, खीरग्राम, वर्धमान जिला, पश्चिम बंगाल दायें पैर का बड़ा अंगूठा जुगाड्या क्षीर खंडक , 19 कालीपीठ, कालीघाट, कोलकाता दायें पैर का अंगूठा कालिका नकुलीश20 प्रयाग, संगम, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश हाथ की अंगुली ललिता भव , 21 जयंती, कालाजोर भोरभोग गांव, खासी पर्वत, जयंतिया परगना, सिल्हैट जिला, बांग्लादेश बायीं जंघा जयंती क्रमादीश्वर , 22 किरीट, किरीटकोण ग्राम, लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन, मुर्शीदाबाद जिला, पश्चिम बंगाल से 3 कि॰मी॰ दूर मुकुट विमला सांवर्त , 23 मणिकर्णिका घाट, काशी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश मणिकर्णिका विशालाक्षी एवं मणिकर्णी काल भैरव , 24 कन्याश्रम, भद्रकाली मंदिर, कुमारी मंदिर, तमिल नाडु पीठ श्रवणी निमिष , 25 कुरुक्षेत्र, हरियाणा एड़ी सावित्री स्थनु26 मणिबंध, गायत्री पर्वत, निकट पुष्कर, अजमेर, राजस्थान दो पहुंचियां गायत्री सर्वानंद27 श्री शैल, जैनपुर गाँव, 3 कि॰मी॰ उत्तर-पूर्व सिल्हैट टाउन, बांग्लादेश गला महालक्ष्मी शंभरानंद28 कांची, कोपई नदी तट पर, 4 कि॰मी॰ उत्तर-पूर्व बोलापुर स्टेशन, बीरभुम जिला, पश्चिम बंगाल अस्थि देवगर्भ रुरु29 कमलाधव, शोन नदी तट पर एक गुफा में, अमरकंटक, मध्य प्रदेश बायां नितंब काली असितांग30 शोन्देश, अमरकंटक, नर्मदा के उद्गम पर, मध्य प्रदेश दायां नितंब नर्मदा भद्रसेन31 रामगिरि, चित्रकूट, झांसी-माणिकपुर रेलवे लाइन पर, उत्तर प्रदेश दायां वक्ष शिवानी चंदा32 वृंदावन, भूतेश्वर महादेव मंदिर, निकट मथुरा, उत्तर प्रदेश केश गुच्छ/चूड़ामणि उमा भूतेश 33 शुचि, शुचितीर्थम शिव मंदिर, 11 कि॰मी॰ कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग, तमिल नाडु ऊपरी दाड़ नारायणी संहार34 पंचसागर, अज्ञात निचला दाड़ वाराही महारुद्र35 करतोयतत, भवानीपुर गांव, 28 कि॰मी॰ शेरपुर से, बागुरा स्टेशन, बांग्लादेश बायां पायल अर्पण वामन36 श्री पर्वत, लद्दाख, कश्मीर, अन्य मान्यता: श्रीशैलम, कुर्नूल जिला आंध्र प्रदेश दायां पायल श्री सुंदरी सुंदरानंद37 विभाष, तामलुक, पूर्व मेदिनीपुर जिला, पश्चिम बंगाल बायीं एड़ी कपालिनी (भीमरूप) शर्वानंद38 प्रभास, 4 कि॰मी॰ वेरावल स्टेशन, निकट सोमनाथ मंदिर, जूनागढ़ जिला, गुजरात आमाशय चंद्रभागा वक्रतुंड39 भैरवपर्वत, भैरव पर्वत, क्षिप्रा नदी तट, उज्जयिनी, मध्य प्रदेश ऊपरी ओष्ठ अवंति लंबकर्ण40 जनस्थान, गोदावरी नदी घाटी, नासिक, महाराष्ट्र ठोड़ी भ्रामरी विकृताक्ष41 सर्वशैल/गोदावरीतीर, कोटिलिंगेश्वर मंदिर, गोदावरी नदी तीरे, राजमहेंद्री, आंध्र प्रदेश गाल राकिनी/ विश्वेश्वरी वत्सनाभ/दंडपाणि   42 बिरात, निकट भरतपुर, राजस्थान बायें पैर की अंगुली अंबिका अमृतेश्वर43 रत्नावली, रत्नाकर नदी तीरे, खानाकुल-कृष्णानगर, हुगली जिला पश्चिम बंगाल दायां स्कंध कुमारी शिवा44 मिथिला, जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट, भारत-नेपाल सीमा पर बायां स्कंध उमा महोदर 45 नलहाटी, नलहाटि स्टेशन के निकट, बीरभूम जिला, पश्चिम बंगाल पैर की हड्डी कलिका देवी योगेश46 कर्नाट, अज्ञात दोनों कान जयदुर्गा अभिरु , 47 वक्रेश्वर, पापहर नदी तीरे, 7 कि॰मी॰ दुबराजपुर स्टेशन, बीरभूम जिला, पश्चिम बंगाल भ्रूमध्य महिषमर्दिनी वक्रनाथ48 यशोर, ईश्वरीपुर, खुलना जिला, बांग्लादेश हाथ एवं पैर यशोरेश्वरी चंदा , 49 .अट्टहास, 2 कि॰मी॰ लाभपुर स्टेशन, बीरभूम जिला, पश्चिम बंगाल ओष्ठ फुल्लरा विश्वेश  50 नंदीपुर, चारदीवारी में बरगद वृक्ष, सैंथिया रेलवे स्टेशन, बीरभूम जिला, पश्चिम बंगाल गले का हार नंदिनी नंदिकेश्वर  5 1 लंका, स्थान अज्ञात, (एक मतानुसार, मंदिर ट्रिंकोमाली में है, पर पुर्तगली बमबारी में ध्वस्त हो चुका है। एक स्तंभ शेष है। यह प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट पायल इंद्रक्षी राक्षसेश्वर मंदिर है । शंकरी देवी, त्रिंकोमाली श्रीलंका , कामाक्षी देवी, कांची, तमिलनाडू  , सुवर्णकला देवी, प्रद्युम्न, पश्चिमबंगाल  , चामुंडेश्वरी देवी, मैसूर, कर्नाटक  , जोगुलअंबा देवी, आलमपुर, आंध्रप्रदेश  ,भराअंबा देवी, श्रीशैलम, आंध्रप्रदेश  , महालक्ष्मी देवी, कोल्हापुर, महाराष्ट्र  , इकवीराक्षी देवी, नांदेड़, महाराष्ट्र  , हरसिद्धी माता मंदिर, उज्जैन, मध्यप्रदेश  , पुरुहुतिका देवी, पीथमपुरम, आंध्रप्रदेश 11. पूरनगिरि मंदिर, टनकपुर, उत्तराखंड  ,मनीअंबा देवी, आंध्रप्रदेश  , कामाख्या देवी, गुवाहाटी, असम  , मधुवेश्वरी देवी, इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश  ,  वैष्णोदेवी, कांगड़ा, हिमाचलप्रदेश  , सर्वमंगला देवी, गया, बिहार  , विशालाक्षी देवी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश 18. शारदा देवी , पीओके ,  कालका देवी , दिल्ली , में स्थित शक्तिपीठ है ।
शक्ति पीठ मंदिर - विंध्यवासिनी मंदिर, मिर्ज़ापुर, उत्तर प्रदेश , महामाया मंदिर, अंबिकापुर,अंबिकापुर, छत्तीसगढ़ योगमाया मंदिर, दिल्ली, महरौली, दिल्ली ,दंतेश्वरी मंदिर,दंतेवाड़ा,दंतेवाड़ा,छत्तीसगढ़ ,शाकम्भरी देवी मंदिर सहारनपुर उत्तर प्रदेश, मनसा देवी मंदिर मनीमाजरा पंचकुला, माँ विजयासन (बीजासेन) धाम,सलकनपुर,जिला सीहोर,मध्य प्रदेश , स्थान, मुंगेर, बिहार ,मंगला गौरी गया बिहार  , पटनदेवी पटना बिहार ।  बिहार के गया जिले के गया में मॉ मंगला ,मॉ वॉग्ला , बागेश्वरी , शीतला मंदिर , डुंगेश्वरी मंदिर , बेलागंज में विभुक्षणी काली मंदिर , जहानाबाद जिले का बराबर पर्वत पर सिद्धेश्वरी ,वागेश्वरी ,  चरूई का काली मंदिर , अरवल जिले का करपी का जगदंबा स्थान , आरा का अरणी भवानी , बखोरापुर की जगदंबा मंदिर , नवादा जिले का रूपौ में चामुण्ड मंदिर , दरभंगा का श्यामा मंदिर ,धर्म स्थल है । प्रत्येक वर्ष शक्ति की उपासना के लिए वासंती नवरात्र चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी  , शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी , गुप्त नवरात्र माघ शुक्ल एवं आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मुख्य रूप से मनाई जाती है । 


 

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