शनिवार, जनवरी 07, 2023

वैदिक ऋषि भारद्वाज ,,,

सनातन धर्म के  वैदिक ऋषि भारद्वाज चरक संहिता के अनुसार भारद्वाज ने इन्द्र द्वारा आयुर्वेद का ज्ञान एवं ऋक्तंत्र के अनुसार वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद  चौथे व्याकरण-प्रवक्ता थे। प्राक्तंत्र 1.4 और वाल्मीकि रामायण के अनुसार  महर्षि भृगु ने धर्मशास्त्र का उपदेश एवं  तमसा नदी के -तट पर क्रौंचवध के समय भारद्वाज महर्षि वाल्मीकि के साथ थे । देव गुरु वृहस्पति की पत्नी ममता के पुत्र भारद्वाज द्वारा यमुना नदी , गंगा नदी और सरस्वती नदी त्रिवेणी संगम पर प्रयाग  की नींव रखा गया था । ऋषि भारद्वाज की पत्नी ध्वनि 


के पुत्रों में द्रोण , गर्ग तथा पुत्रियों में इलविदा और कात्यायनी पुत्री थी ।
महर्षि भारद्वाज व्याकरण, आयुर्वेद संहित, धनुर्वेद, राजनीतिशास्त्र, यंत्रसर्वस्व, अर्थशास्त्र, पुराण, शिक्षा आदि पर अनेक ग्रंथों के रचयिता हैं। वायुपुराण के अनुसार उन्होंने एक पुस्तक आयुर्वेद संहिता 8 भागों में लिखी थी। चरक संहिता के अनुसार ऋषि भारद्वाज ने आत्रेय पुनर्वसु को कायचिकित्सा का ज्ञान प्रदान किया था। ऋषि भारद्वाज ने   घरती पर प्रथम गुरूकुल की स्थापना कर  हजारों वर्षों तक विद्या दान करते रहे।  शिक्षाशास्त्री, राजतंत्र मर्मज्ञ, अर्थशास्त्री, शस्त्रविद्या विशारद, आयुर्वेेद विशारद,विधि वेत्ता, अभियाँत्रिकी विशेषज्ञ, विज्ञानवेत्ता और मँत्र द्रष्टा ऋषि भारद्वाज  थे। ऋग्वेेद के छठे मंडल के 765 मंत्र का   द्रष्टा ऋषि भारद्वाज और अथर्ववेद में  ऋषि भारद्वाज के 23 मंत्र हैं। तैतरीय ब्राह्मण 3/ 10 /11 के अनुसार प्रजापति ब्रह्मा जी द्वारा ऋषि भारद्वाज को आयुर्वेद और सावित्र्य अग्नि विद्या का ज्ञान इन्द्र और कालान्तर में प्राप्त किया एवं अग्नि के सामर्थ्य को आत्मसात कर भारद्वाज  ऋषि ने अमृत तत्व प्राप्त किया था और स्वर्ग लोक जाकर आदित्य से सायुज्य प्राप्त किया था।  चरक ऋषि ने चरक संहिता सूत्र स्थान 1 / 26  में उल्लेखानुसार भारद्वाज ऋषि को  अपरिमित आयु वाला कहा है।  ऋषि भारद्वाज ने प्रयाग के अधिष्ठाता भगवान श्री माधव  श्री हरि के निदेशानुसार पावन परिक्रमा की स्थापना एवं भगवान श्री शिव  के आशीर्वाद से की थी। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री द्वादश माधव परिक्रमा सँसार की पहली परिक्रमा है। ऋषि भारद्वाज ने  परिक्रमा की तीन स्थापनाएं में जन्मों के संचित पाप का क्षय होगा, जिससे पुण्य का उदय होगा। सभी मनोरथ की पूर्ति होगी , -प्रयाग में किया गया कोई भी अनुष्ठान/कर्मकाण्ड जैसे अस्थि विसर्जन, तर्पण, पिण्डदान, कोई संस्कार यथा मुण्डन यज्ञोपवीत आदि, पूजा पाठ, तीर्थाटन,तीर्थ प्रवास, कल्पवास आदि पूर्ण और फलित नहीं होंगे जबतक स्थान भगवान श्री द्वादश माधव की परिक्रमा न की जाए। आयुर्वेद सँहिता, भारद्वाज स्मृति, भारद्वाज सँहिता, राजशास्त्र, यँत्र-सर्वस्व(विमान अभियाँत्रिकी) आदि ऋषि भारद्वाज के रचित प्रमुख ग्रँथ हैं। शाकद्वीप के मग ब्राह्मण और भगवान सूर्य एवं अग्नि के उपासक ऋषि भारद्वाज ने कहा है कि अग्नि को देखो यह मरणधर्मा मानवों स्थित अमर ज्योति है। यह अति विश्वकृष्टि है अर्थात सर्वमनुष्य रूप है। यह अग्नि सब कार्यों में प्रवीणतम ऋषि है जो मानव में रहती है।   सनातन धर्मो के लिए ऋषि भारद्वाज सप्तऋषियों में कहे जाते है।अंगिरावंशी भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। बृहस्पति ऋषि का अंगिरा के पुत्र होने के कारण ये अंगिरा वंशीय कहलाए। ऋषि भारद्वाज ने अनेक ग्रंथों की रचना की उनमें से यंत्र सर्वस्व और विमानशास्त्र है। ऋषि भरद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्र द्रष्टा और उनकी  पुत्री  ‘रात्रि’ द्वारा रात्रि सूक्त की मन्त्रद्रष्टा की गई  है। भारद्वाज के मन्त्रद्रष्टा पुत्रों में  ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र। ऋग्वेद की सर्वानुक्रमणी के अनुसार ‘कशिपा’ भारद्वाज की पुत्री है। ऋषि भारद्वाज की 12 संताने मन्त्रद्रष्टा ऋषियों की कोटि में सम्मानित थीं। भारद्वाज ऋषि ने बड़े गहन अनुभव किये थे । महाभारत और हेमाद्रि के अनुसार  भारद्वाज ने आयुर्वेद-संहिता , पांचरात्र भक्ति सम्प्रदाय की भारद्वाज  संहिता  एवं  ‘भारद्वाज-स्मृति’,  की रचना किया था । ऋषि भारद्वाज ने ‘धनुर्वेद’- पर प्रवचन और  ‘राजशास्त्र’ का प्रणयन किया था। कौटिल्य ने अपने पूर्व में हुए अर्थशास्त्र के रचनाकारों में ऋषि भारद्वाज को सम्मान से स्वीकारा है।ऋषि भारद्वाज की रचना में ऋषि भारद्वाज ने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। यंत्र सर्वस्व  ग्रन्थ का स्वामी ब्रह्ममुनि ने ‘विमान-शास्त्र’ प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिये विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन है। व्याकरणशास्त्र, धर्मशास्त्र, शिक्षा-शास्त्र, राजशास्त्र, अर्थशास्त्र, धनुर्वेद, आयुर्वेद और भौतिक विज्ञानवेत्ता ऋषि भारद्वाज थे ।

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