सोमवार, जनवरी 09, 2023

मित्र आदित्य : सूर्य सप्तमी ,,


वेदों , पुरणों और संहिता में सूर्य सप्तमी का महत्व है । दक्ष प्रजापति की कन्या अदिति और महर्षि मरीचि के पुत्र  ऋषि कश्यप के संसर्ग से उत्पन्न भगवान सूर्य के अंशावतार 12 आदित्यों में मित्र आदित्य का जन्म मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी को हुआ था । मित्र सप्तमी को भगवान सूर्य को अर्घ्य और उपासना करने से सर्वांगीण सुख की प्राप्ति होती है । भगवान सूर्य की आराधना  गंगा-यमुना या  पवित्र नदी ,  पोखर के किनारे सूर्य देव को अर्घ देने से सर्वांगीण समृद्धि की प्राप्ति होती  हैं। मित्र सप्तमी का व्रत करने से सूर्य भगवान प्रसन्न हो कर उसके सारे दुखों को हर लेते है और घर में धन धान्य की वृद्धि साथ ही सुख समृद्धि का आगमन और सभी प्रकार के रोगों चर्म तथा नेत्र रोग दूर  तथा दीर्घआयु की प्राप्ति होती है। मित्र सप्तमी को सूर्य की किरणों को जरुर ग्रहण करना चाहिए एवं   फल, दूध, केसर, कुमकुम बादाम इत्यादि से सूर्य देव की पूजा की जाती है। स्वच्छता का विशेष ध्यान रख कर  मित्र सप्तमी के व्रत से मनुष्य कठिन कार्यों को संभव बनाने की ताकत रखता है और शत्रु को  मित्र बनाने की क्षमता रखता है। स्मृतियों के अनुसार एक बार राजा ने सपना देखा कि कोई साधु उससे कह रहा है कि कल रात एक विषैले सांप के ड़सने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। वह पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेना चाहता है। सपने की बात से घबराया राजा अपनी आत्मरक्षा के लिए उपाय ढूंढने मे लग गया सोचते-सोचते राजा इस निर्णय पर पहुंचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई उपाय नहीं अतः उसने पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह-जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो उसे किसी प्रकार का कष्ट पहुंचाने की कोशिश न की जायें। रात को सांप अपनी बांबी से बाहर निकला और राजा के महल की तरफ चल पड़ा। वह जैसे आगे बढ़ता गया, मार्ग मे अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देखकर आनन्दित होता गया। कोमल बिछौने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगन्ध का रसास्वादन करता हुआ, जगह-जगह पर मीठा दूध पीता हुआ आगे बढ़ता था। जैसे-जैसे वह आगे चलता गया, उसका क्रोध कम होता गया क्रोध के स्थान पर सन्तोष और प्रसन्नता के भाव बढ़ने लगे। राजमहल मे प्रहरी और द्वारपाल उसे हानि नहीं पहुंचा रहे है। यह दृश्य देखकर सांप के मन में प्रेम की भावना उमड़ पड़ी। सदव्यवहार, नम्रता, मधुरता के व्यवहार से बहुत प्रसन्न हुआ। राजा के पास पहुंचने तक सांप का निश्चय पूरी तरह से बदल गया। सांप ने राजा से कहा, राजन! मैं पूर्व जन्म का बदला लेने आया था, परन्तु आपके सदव्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया। अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूं। मित्रता के उपहार स्वरुप अपनी बहुमूल्य मणि तुम्हें दे रहा हूं| मित्र आदित्य द्वारा भूस्थल पर सौर धर्म का संचालन किया गया था । सौर सम्प्रदाय का संचालन में शाकद्वीप के मग ने सम्पूर्ण विश्व में सूर्योपासना और प्रकृति पूजा का महत्व विकसित की था ।

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