रविवार, जनवरी 15, 2023

पालनहार : भगवान विष्णु आदित्य...


सनातन धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु  आदित्य का उल्लेख है । भगवान सूर्य के 9 वें अंशावतार  दक्ष प्रजापति की पुत्री अदिति और महर्षि मरीचि के पुत्र ऋषि कश्यप के पुत्र विष्णु आदित्य का अवतरण हुआ है । भगवान विष्णु आदित्य  की स्तुति में ऋग्वेद में सूक्त के अनुसार विष्णु का उद्देश्य संसार को दुख मुक्त कर पृथ्वी को आवास योग्य बनाना है।  विष्णु को पालनहार देवता विश्व  के रक्षक और संरक्षक हैं। ऋग्वेद सूक्त में विष्णु आदित्य को त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश  प्रमुख स्थान दिलाता है। विष्णु सूक्त में विष्णु के तीन चरणों में  बालसूर्य, मध्याह्न सूर्य और सायं काल के सूर्य के स्थान हैं।  तीनों काल  में उच्चतम स्थान मध्याह्न सूर्य का है। मध्याह्न सूर्य का स्थान विष्णुलोक अथवा गोलोक है। विष्णु लोक में  भूरिश्रृंग गौएं यानी किरणें विचरती  और मधु की धाराएं प्रवाहित होती हैं।  'विष्णुसहस्त्रनाम्' में विष्णु के एक हजार पर शंकराचार्य ने भाष्य में विष्णु के रहस्य बताया  है। विष्णु आदित्य का  प्रसिद्ध नाम हरि  का   पाप और दुख को हरने या दूर करने वाले। एक नाम शेषशायी अथवा अनंतशायी है। विष्णु जब शयन करते हैं तब संपूर्ण विश्व अपनी अव्यक्त अवस्था में पहुंच जाता है। व्यक्त सृष्टि के अवशेष प्रतीक 'शेष' हैं,  शेषनाग के रूप में कुंडली मारकर अनंत जल राशि पर तैरते हैं।  शेषशायी विष्णु को नारायण व 'नार' यानी जल में निवास करने वाले और  नारायण में समस्त नरों का आवास है। ऋग्वेद के अनुसार संपूर्ण विश्व और भूत विष्णु के  चरण हैं। आकाश का अमर अंश  विष्णु का त्रिपाद यानी तीसरा चरण है। ब्रह्मा से विराट उत्पन्न हुए और विराट से अधिपुरुष है । गीता में कृष्ण ने अर्जुन को विराट रूप दिखाया वह समस्त लोकों से युक्त रूप था। पुराणों में वर्णन है कि विराट ब्रह्मा के प्रथम पुत्र हैं। ब्रह्मा के दो अंश स्त्री और पुरुष हैं। स्त्री अंश से विराट हुए जिससे अपने आप उत्पन्न मनु से प्रजापतियों की उत्पत्ति हुई थी । पद्म पुराण के पाताल खंड के अनुसार भगवान विष्णु आदित्य की 24 प्रकार की मूर्तियां विश्व में प्राप्त हुई है । पद्म पुराण और रूपमंडल ग्रंथों में  मूतिर्यों की व्याख्या के अनुसार केशव यानी लंबे केश वाले, माधव यानी मायापति और ज्ञानपति, गोविंद यानी पृथ्वी के रक्षक, विष्णु यानी सर्वव्यापक, जनार्दन यानी भक्तों के पालनहार, उपेंद्र यानी इंद के भाई, हरि यानी दुख, दरिद्र और पाप का हरण करने वाले, वासुदेव यानी विश्वात्मा, कृष्ण यानी आकर्षित करने वाले और श्याम यानी कृष्ण वर्ण वाले है। विष्णु के चार आयुधों सहित पीतांबर और यज्ञोपवीत उपकरण हैं। विष्णु की मूर्ति में चंवर, ध्वज और छत्र का अंकन होता है। विष्णु का वाहन गरुड़  वैदिक मंत्रों में शक्ति, गति, और प्रकाश का प्रतीक और  पंखों पर विष्णु को वहन करता है। विष्णु के पार्षदों में योग से प्राप्त अष्ट विभूतियां यानी आठ सिद्धियां है। भागवत के अनुसार विष्णु के शंख का नाम, पांचजन्य, चक्र का सुदर्शन, गदा का कौमुदकी और तलवार का नंदक है। आकाश, अंतरिक्ष और क्षीरसागर को विष्णुपद कहते हैं। ब्रह्मा ने विष्णु के पैर का अंगूठा धोकर गंगा की सृष्टि की, इसलिए गंगा को विष्णुपदी भी कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र में एकादशी और द्वादशी को विष्णु की तिथि मानते हैं। अठारह पुराणों में तीसरा विष्णु पुराण में तेईस हजार श्लोक हैं। पश्चिम के विद्वान एफ. विलसन के अनुसार भारतीय पुराणों में विष्णु पुराण प्राचीनतम है।.ॐ मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय। मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।7.7।।  अष्टावक्र गीता 9.2 के अनुसार ॐ एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय। अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस् । अष्टावक्र गीता 9.1 में ॐ अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्। जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।।7.5।। उल्लेख मिलता है ।  बिहार के गया जिले के गया का फल्गु नदी के किनारे प्रातः , मध्य एवं संध्या काल भगगवन विष्णु आदित्य है । गया में भगवान विष्णु का चरण , औरंगाबाद जिले के उमगा पर्वत पर व8विष्णु आदित्य प्रातः काल एवं महेश तथा गणेश , देव में  प्रातः , मध्यान्ह एवं संध्या काल की मूर्ति स्थापित है ।





1 टिप्पणी: