शुक्रवार, जनवरी 27, 2023

भगवान सूर्य का अवतरण दिवस है अचलासप्तमी....

 
सनातन धर्म एवं सौर सम्प्रदाय के विभिन्न ग्रंथों में अचला सप्तमी का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है । माघ शुक्ल सप्तमी को अचला सप्तमी, रथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, भानु सप्तमी, अर्क सप्तमी और सूर्य अवतरणोत्सव आदि  नामों से किया गया है । भगवान  सूर्य की उपासना कर पुत्र प्राप्ति, पुत्र रक्षा तथा पुत्र अभ्युदय के लिए और चतुर्दिक विकास के लिए अचला सप्तमी का व्रत  किया जाता है । स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान सूर्य प्रथम बार रथ पर माघ मास शुक्ल  सप्तमी को आरूढ़ हुए थे  जिसे रथसप्तमी कहा गया  हैं । अचला सप्तमी तिथि को दिया हुआ दान और  यज्ञ सब अक्षय माना जाता है । भविष्य पुराण के अनुसार सप्तमी तिथि को भगवान् सूर्य का आविर्भाव हुआ था । भगवान सूर्य  अंड के साथ उत्पन्न होकर मार्तण्ड के रूप में ब्रह्मांड में प्रकाश की वृद्धि  की है ।भविष्यत पुराण में उल्लेख किया गया है कि भगवान श्रकृष्ण कहते है– राजन ! शुक्ल पक्षकी सप्तमी तिथि को यदि आदित्यवार (रविवार) हो तो उसे विजय सप्तमी कहते है । वह सभी पापोका विनाश करने वाली है । उस दिन किया हुआ स्नान ,दान्, जप, होम तथा उपवास आदि कर्म अनन्त फलदायक होता है । जो उस दिन फल् पुष्प आदि लेकर भगवान सूर्यकी प्रदक्षिणा करता है । वह सर्व गुण सम्पन्न उत्तम पुत्र को प्राप्त करता है ।नारद पुराण में माघ शुक्ल सप्तमी को “अचला व्रत”  एवं  “त्रिलोचन जयन्ती” , रथसप्तमी , भास्कर सप्तमी”  कहा गया  है । आक और बेर के सात-सात पत्ते सिर पर रखकर स्नान करने से सात जन्मों के पापों का नाश होता है । इसी सप्तमी को ‘’पुत्रदायक ” व्रत भी बताया गया है । सभगवान सूर्य ने कहा है -  माघ शुक्ल सप्तमी को विधिपूर्वक मेरी पूजा करेगा, उसपर अधिक संतुष्ट होकर मैं अपने अंश से उन्सका पुत्र होऊंगा’ । इसलिये उस दिन इन्द्रियसंयमपूर्वक दिन-रात उपवास करे और दूसरे दिन होम करके ब्राह्मणों को दही, भात, दूध और खीर आदि भोजन करावें ।अग्नि पुराण में उल्लेख  हैं कि माघ मासके शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथिको अष्टदल अथवा द्वादशदल कमल का निर्माण करके उसमें भगवान् सूर्यका पूजन करने से मनुष्य शोकरहित हो जाता है । चंद्रिका में लिखा है “सूर्यग्रहणतुल्या हि शुक्ला माघस्य सप्तमी। अरुणोदगयवेलायां तस्यां स्नानं महाफलम्॥ अर्थात माघ शुक्ल सप्तमी सूर्यग्रहण के तुल्य होती है सूर्योदय के समय इसमें स्नान का महाफल होता है । नारद पुराण के अनुसार अरुणोदयवालायां शुक्ला माघस्य सप्तमी ॥ प्रयागे यदि लभ्येत सहस्रार्कग्रहैः समा॥ अयने कोटिपुण्यं स्याल्लक्षं तु विषुवे फलम् ॥११२॥चंद्रिका में विष्णु ने लिखा है “अरुणोदयवेलायां शुक्ला माघस्य सप्तमी ॥ प्रयागे यदि लभ्येत कोटिसूर्यग्रहैः समा अर्थात माघ शुक्ल सप्तमी यदि अरुणोदय के समय प्रयाग में प्राप्त हो जाए तो कोटि सूर्य ग्रहणों के तुल्य होती है ।मदनरत्न में भविष्योत्तर पुराण का कथन है की “माघे मासि सिते पक्षे सप्तमी कोटिभास्करा। दद्यात् स नानार्घदानाभ्यामायुरारोग्यसम्पदः॥ अर्थात माघ मास की शुक्लपक्ष सप्तमी कोटि सूर्यों के बराबर है उसमें सूर्य स्नान दान अर्घ्य से आयु आरोग्य सम्पदा करते है । सूर्य उपासना पर्व  माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी, रथ आरोग्य सप्तमी एवं  मां नर्मदा की जयंती मनाई जाती है। सप्तमी को जो भी सूर्य देव की उपासना तथा व्रत करते हैं उनके सभी रोग ठीक हो जाते हैं। माघ शुक्ल सप्तमी अचला सप्तमी या रथ सप्तमी में भगवान सूर्य की आराधना मनुष्य को हर कार्य में विजय की प्राप्ति करवाती है साथ ही मनुष्य के रोगों का नाश होकर वह आरोग्यवान हो जाता है।भगवान  सूर्य की नवग्रह में प्रधान होने के कारण  भगवान भास्कर की कृपा प्राप्त होने से जीवन मे ग्रहों का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। खरमास के पूर्ण होने के पश्चात भगवान सूर्य के रथ में अश्वों की संख्या 7 होकर पूर्ण हो जाती  एवं ऋतु परिवर्तन के साथ भगवान सूर्य का तेज  बढ़ने से  शीत ऋतु के पश्चात ग्रीष्म ऋतु के आगमन का होता है।सूर्य चिकित्सा का उपयोग आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। सूर्य की ओर मुख करके सूर्य स्तुति करने से शारीरिक चर्म रोग आदि नष्ट और  संतान प्राप्ति के लिए एवं  श्रद्धा तथा विश्वास से रखने पर पिता-पुत्र में प्रेम बना रहता है। शारिरिक कमजोरी, हड्डियों की कमजोरी या जोड़ों में दर्द जैसी परेशानियों में भगवान सूर्य की आराधना करने से रोग से मुक्ति मिलने की  बनती है।  जलाशय, नदी, नहर में सूर्योदय से पूर्व  स्नान करने के बाद उगते हुए सूर्य की आराधना तथा अर्घ्य  करनी चाहिए। भगवान सूर्य को जलाशय, नदी अथवा नहर के समीप खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। दीप दान ,  प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर बहते हुए जल में स्नान करना चाहिए। स्नान करते समय अपने सिर पर बदर वृक्ष और अर्क पौधे की सात-सात पत्तियां रखना चाहिए। स्नान करने के पश्चात 7 प्रकार के फलों, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि को जल में मिलाकर उगते हुए भगवान सूर्य को जल देना चाहिए। 'ॐ घृणि सूर्याय नम: अथवा ॐ सूर्याय नम:' सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके अतिरिक्त आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वेदों , पुरणों और  स्मृतियों में सूर्य को आरोग्यदायक और  उपासना से रोग मुक्ति  होती है।  श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान के मद में उन्होंने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। शाम्ब की धृष्ठता को देखकर दुर्वासा ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया।  भगवान श्रीकृष्ण ने शाम्ब को सूर्य भगवान की उपासना करने के लिए कहा। शाम्ब ने आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना की, जिसके फलस्वरूप उन्हें माघ शुक्ल सप्तमी व अचलासप्तमी को कष्ट से मुक्ति मिली थी ।



1 टिप्पणी: