उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले का एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा गांव गहमर पटना और मुगलसराय रेल मार्ग पर स्थित है । गाजीपुर जिला मुख्यालय से 40 किमि की दूरी पर 1530 ई. में राजा कुसुमदेव राव द्वारा गंगा नदी के किनारे सकरा डीह बसाया गया था । गहमर के 22 विभिन्न टोले भिन्न भिन्न प्रसिद्ध सैनिक का नाम पर है । प्रथम, द्वितीय विश्व युद्ध , 1971 के युद्ध ,कारगिल युद्ध में गहमर के सैनिकों द्वारा महत्वपुर्ण कार्य किया गया था । गहमर के 10 हजार लोग इंडियन आर्मी में जवान से लेकर कर्नल एवं 14 हजार से ज्यादा भूतपूर्व सैनिक हैं। विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों की फौज में गहमर के 228 सैनिक में 21 शहीद होने की याद में गहमर में शिलालेख है। गहमर के भूतपूर्व सैनिकों द्वारा पूर्व सैनिक सेवा समिति नामक संस्था के माध्यम से गांव के युवक गंगा तट पर स्थित मठिया चौक पर सुबह-शाम सेना की तैयारी करते हैं। इंडियन आर्मी गहमर में 1986 तक भर्ती शिविर लगाया करती थी । सैनिकों की भारी संख्या को देखते हुए भारतीय सेना ने गांव के लोगों के लिए सैनिक कैंटीन की भी सुविधा उपलब्ध कराई थी । गाजीपुर जिले के जिला मुख्यालय गाजीपुर से 38 किमी दूर गंगा नदी के किनारे गहमर में दो डाकघर, 2 यूबीआई, 1 एसबीआई, 1 एचडीएफसी बैंक और 10 से अधिक एटीएम, सार्वजनिक पुस्तकालय और पंचायत भवन है। निर्देशांक: 25.497°N 83.822°E पर महाराजा धामदेव सिंह द्वारा 1530 में स्थापित गहमर का क्षेत्र 1,766 हेक्टेयर (4,364 एकड़) में जनसंख्या (2011) के अनुसार 25,994 आबादी में 13367 पुरुष और 12627 महिला है । गहमर को धामदेव सिकरवार के वंशीय राजपूतों द्वारा 1527 ईस्वी में बाबर द्वारा कब्जा करने के बाद फतेहपुर सीकरी के आसपास से आए थे। फतेहपुर सीकरी से पूर्व की ओर चलने के बाद सिकरवार वंशज सकरडीह में बस गए परन्तु गंगा की बाढ़ के कारण धामदेव गहमर के पास मां कामाख्या धाम में चले गए और कामदेव रेतीपुर में बस गए। धाम देव के दो बेटे थे- रूप राम राव और दीवान राम राव। रूप राम के पुत्रों में से एक, सैनु मल राव और उनके वंशज बड़े पैमाने पर गहमर में बस गए। 1800 ईस्वी तक, गहमर में 23 पट्टियां कबीले के सदस्यों द्वारा स्थापित की गई थीं। यातायात साधन में गहमर में पटना और मुगलसराय जंक्शन रेलवे स्टेशन से जुड़ा एक रेलवे स्टेशन और रोडवेज गहमर NH-124C पर स्थित जिला मुख्यालय गाजीपुर से लगभग 35 किमी दूर जुड़ा हुआ गहमर है।
गहमर में मां कामाख्या मंदिर , मणिभद्र महादेव मंदिर, नारायण घाट , गहमर के गंगा नदी के किनारे हनुमान गढ़ी का 16 वीं सदी में कलवार द्वारा स्थापित दक्षिणेश्वर हनुमान जी की मूर्ति हनुमान मंदिर में विराजमान , अष्टभुजी मंदिर में सकरहट से प्राप्त 10 वी सदी की राजा चेरो खरवार की कुल देवी मूसा काला पाषाण में निर्मित के अवस्थित माता अष्टभुजी , 18 वी सदी की माता त्रिपुर सुंदरी , एवं 20 वीं सदी की माता लक्ष्मी , शिव मंदिर में स्थापित शिव लिंग स्थापित है । गहमर में सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थानों में 15 निजी स्कूल और 10 प्राथमिक विद्यालय , गहमर इंटर कॉलेज और सरकारी गर्ल्स इंटर कॉलेज गहमर , आरएसएम पब्लिक स्कूल, सुभाष चंद्र बोस इंटर कॉलेज , राम रहीम महाविद्यालय और माँ कामाख्या महाविद्यालय है । त्रय मासिक पत्रिका साहित्य सरोज एवं गोपालराम गहमरी सेवा संस्थान गहमर वेलफेयर सोसाइटी रघुवर सिंह का कटरा में स्थापित है ।जासूसी उपन्यास के जनक गोपालराम गहमरी की जन्म भूमि है ।
कामाख्या मंदिर गहमर - महाराज धामदेव द्वारा महवन में माता कामाख्या स्थापित किया गया था | कामाख्या मंदिर के गर्भ गृह में 12 फीट लंबा, 15 फीट ऊंचा बना माता की तीन मूर्तियां है । मंदिर के मध्य में माता कामाख्या के दाएं हाथ पर माता महालक्ष्मी विराजमान , बाएं हाथ पर श्री कामाख्या जी पिंडी के रूप में विद्यमान है । पिंडी के बगल में पीतल का बाघ एक फीट ऊंची है । मुख्य कामाख्या देवी श्यामवर्ण और मस्तक पर चांदी का मुकुट शोभित है |
चांदी का छत्र से युक्त माता कामाख्या सिंह पर सवार है। माता के सामने चांदी का पद चिन्ह ,आंखों में सोने का पत्र चढ़ा हुआ और मां का स्वरूप दिव्य है । मां लक्ष्मी जी की प्रतिमा संगमरमर की 2 फीट ऊंची गौरव वर्ण है| लाल चुनरी में फूलों के हार से मां सज्जित हैं| कामाख्या देवी लाल वस्त्र एव गले में हार धारण किए हुए हैं| संपूर्ण गर्भ ग्गृह संगमरमर से सज्जित है । गर्भ गृह में मुख्य तीन द्वार में -मुख्य द्वार पूर्व, उत्तर और दक्षिण दिशा की ओर खुलता है |द्वार पर पीतल का फाटक है । गर्भ ग्रह के चारों तरफ परिक्रमा मार्ग की संगमरमर का बना हुआ है। 15 फीट ऊंचे स्थान पर कामख्या मंदिर है । मन्दिर के दक्षिण की ओर धर्मशाला , विशाल सभाकक्ष भी निर्मित , मंदिर के ठीक सामने हवन कुंड है। कामाख्या मंदिर के बाई और गुफा की तरफ मंदिर में सरस्वती माता , श्री दुर्गा माता की ढाई फीट की सुंदर आकर्षक संगमरमर की प्रतिमाएं स्थापित एवं मंदिर के ठीक सामने नीम का वृक्ष और भैरव महाराज का मंदिर है । मुख्य मंदिर के दाएं तरफ उत्तर दिशा में दूसरी गुफा में महाकाली की प्रतिमा 3 फीट ऊंची श्याम वर्ण हाथ में खड़क धारण किए हैं । मंदिर का भीतरी भाग पत्थर से सज्जित है| मंदिर के कुआं के समीप पर पुराणिक मां कामाख्या की प्रतिमा का अवशेष है। कामख्या मंदिर निर्मित भवन 2 एकड़ में है । कामाख्या मंदिर का क्षेत्रफल 35 एकड़ है ।
अष्टभुजी मंदिर - गहमर का गंगा नदी के किनारे हनुमान गढ़ी में अष्टभुजी मंदिर परिसर में सकरहट से प्राप्त चेरो खरवार की 10 वीं सदी का अष्टभुजी मंदिर में कुल देवी मूसा काला पाषाण से युक्त माता अष्टभुजी , 18 वीं सदी की उजले पाषाण में निर्मित माता त्रिपुर सुंदरी एवं 20 वी सदी में उजले पाषाण में निर्मित माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित है । हनुमान मंदिर में 16 वीं सदी में गहमर का कलवार द्वारा दक्षिणेश्वर हनुमान जी , शिव मंदिर में भगवान शिव का शिवलिंग , बल गिरी बाबा की समाधि है । हनुमान मंदिर के पुजारी वीर बहन चौवे के अनुसार हनुमान गढ़ी स्थित दक्षिणेश्वर हनुमान एवं माता अष्टभुजी की महानता प्रसिद्ध है ।
गोपालराम गहमरी सेवा संस्थान एवं साहित्य सरोज के संयुक्त तत्वावधान में 8 वीं जासूसी उपन्यास के जनक गोपालराम गहमरी साहित्यकार महोत्सव 2022 एवं सम्मान समारोह 23 दिसंबर से 25 दिसंबर 2022 को आयोजित कार्यक्रम में साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक शामिल होने के बाद गहमर की सांस्कृतिक विरासत का परिभ्रमण 25 दिसंबर 2022 को किया गया । गहमरी साहित्यकार महोत्सव एवं सम्मान समारोह 2022 के अवसर पर साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक को गोपालराम गहमरी लेखक गौरव सम्मान एवं माता कामाख्या की प्रशस्ति पत्र देकर सम्मान समारोह के संचालक अखंड गहमरी द्वारा 25 दिसंबर 2022 में किया गया । 24 दिसंबर को मुम्बई हिंदी विद्यापीठ के संस्कृति मंत्री विनोद कुमार दुबे द्वारा भारती दिसंबर 2022 एवं आरोग्य धाम शरद ऋतु 2022 का अंक देकर साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक को सप्रेम भेट देकर सम्मानित किया गया ।
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