गुरुवार, अगस्त 10, 2023

कैमूर पर्वत समूह की विरासत ....



 कैमूर जिले के रामगढ़  का कैमूर पर्वय समूह की समुद्रतल से  600 फिट ऊँचाई पर अवस्थित  पंवरा श्रृंखला  पर सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय की उपासना स्थल मुंडेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में माता मुंडेश्वरी  स्थित है । जिसकी ऊँचाई लगभग 600 फीट है वर्ष 1812 ई0 से लेकर 1904 ई0 के बीच ब्रिटिश यात्री आर.एन.मार्टिन, फ्रांसिस बुकानन  ने 1812 ई. और ब्लॉक ने 1904 ई.  मुंडेश्वरी मंदिर का भ्रमण किया था ।Iपुरातत्वविदों के अनुसार मुंडेश्वरी मंदिर परिसर  से प्राप्त शिलालेख 389 ई0  है । नक्काशी और मूर्तियों उतरगुप्तकालीन मुंडेश्वरी मंदिर   अष्टकोणीय पाषाण युक्त   मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुण्डेश्वरी की पत्थर से भव्य मूर्ति  आकर्षण का केंद्र है I माँ वाराही रूप में विराजमान है, जिनका वाहन महिष है I मंदिर में प्रवेश के चार द्वार मे एक को बंद और एक अर्ध्द्वर है I  मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है I  पत्थर से यह पंचमुखी शिवलिंग निर्मित किया गया है उसमे सूर्य की स्थिति के साथ साथ पत्थर का रंग भी बदलता रहता है I मुख्य मंदिर के पश्चिम में पूर्वाभिमुख विशाल नंदी  मूर्ति है । मंदिर परिसर में  पशु बलि में बकरा तो चढ़ाया जाता है परंतु उसका वध नहीं किया जाता है । भभुआ  से चौदह किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित कैमूर की पहाड़ी पर साढ़े छह सौ फीट की ऊंचाई वाली  पहाड़ी पर माता मुंडेश्वरी एवं महामण्डलेश्वर महादेव  मंदिर है। मंदिर का शिलालेख के अनुसार  मुंडेश्वरी मंदिर  में तेल एवं अनाज का प्रबंध राजा के द्वारा संवत्सर के तीसवें वर्ष के कार्तिक  में २२वां दिन किया गया था। पंचमुखी महादेव का मंदिर  ध्वस्त स्थिति में है।  माता की प्रतिमा को दक्षिणमुखी स्वरूप में खड़ा कर पूजा-अर्चना की जाती है। माता मुंडेश्वरी की साढ़े तीन फीट की काले पत्थर की प्रतिमा  भैंस पर सवार है। कनिंघ्म ने भी अपनी पुस्तक के अनुसार कैमूर में मं◌ुडेश्वरी पहाड़ी पर  मंदिर ध्वस्त रूप में विद्यमान है। मुंडेश्वरी  मंदिर की खोज गड़ेरिये  द्वारा पहाड़ी पर आ अस्थित मुंडेश्वरी  मंदिर में दीया जलाते और पूजा-अर्चना करते थे।  धार्मिक न्यास बोर्ड, बिहार द्वारा इस मंदिर को व्यवस्थित किया गया है।
दैत्यराज चंड-मुंड के नाश के लिए जब देवी उद्यत  चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए पहाड़ी में छिप गया था और यहीं पर माता ने चण्डमुण्ड का वध किया था।  मुंडेश्वरी माता  जानी जाती हैं।  आश्चर्य एवं श्रद्धा से  भक्तों की कामनाओं के पूरा होने के बाद बकरे की बलि चढ़ाई जाती है।, माता रक्त की बलि नहीं लेतीं, बल्कि बलि चढ़ने के समय भक्तों में माता के प्रति आश्चर्यजनक आस्था पनपती है। जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है तब पुजारी अक्षत को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं। बकरा तत्क्षण अचेत, मृतप्राय हो जाता है। थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तब बकरा उठ खड़ा होता है। बलि की प्रक्रिया से  माता के प्रति आस्था को बढ़ाती है। पहाड़ी पर बिखरे हुए पत्थर एवं स्तम्भ पर श्रीयंत्र , सिद्ध यंत्र एवं मंत्र उत्कीर्ण हैं। मंदिर का प्रत्येक कोने पर शिवलिंग है। पहाड़ी के पूर्वी-उत्तरी क्षेत्र में माता मुण्डेश्वरी का मंदिर स्थापित , विभिन्न देवी-देवताओं के मूर्तियां स्थापित थीं। खण्डित मूर्तियां पहाड़ी के रास्ते मे विखरी पड़ी हैं । मुंडेश्वरी श्रृंखला पर  गुरुकुल आश्रम और तंत्र मंत्र का साधना स्थल कथा। पहाड़ी पर मुंडेश्वरी गुफा  है। मुंडेश्वरी मंदिर के रास्ते में सिक्के में  तमिल, सिंहली भाषा में पहाड़ी के पत्थरों पर  अक्षर  खुदे हुए हैं। श्रीलंका से श्रद्धालु आया करते थे।  मुंडेश्वरी श्रंखला पर अवस्थित ऋषि अत्रि द्वारा स्थापित गुरुकुल एवं मुंडेश्वरी गुफा रहस्यमयी है ।
 सनातन धर्म ग्रंथों , स्मृतियों औए ऐतिहासिक आलेखों के अनुसार विंध्यपर्वतमला का कैमूर पर्वत समूह  की लंबाई दक्षिण से पूरब  और उत्तर से पश्चिम तक 300 मील और 50 मील चौड़ाई  में फैले कैमूर पर्वत की विभिन्न श्रंखलाओं पर भारतीय संस्कृति और भिन्न भिन्न राजाओं द्वारा महल , सौर , शाक्त , शैव , वैष्णव सांस्कृतिक विरासत , झरने , और विभिन्न स्थलों पर झरने से प्रवाहित होने वाली नदियाँ वैवस्वत वैवस्वत मन्वंतर से प्रभावित है ।  बिहार के कैमूर जिले का कैमूर पर्वत समूह की कर्म श्रंखला में गैंडा युक्त पहाड़ी से निरंतर प्रवाहित होने वाली कैमूर जिले का अधौरा प्रखण्डान्तर्ग सारोदाग में कर्मनाशा नदी  से निकल कर  बिहार का कैमूर , बक्सर और उत्तरप्रदेश के  सोनभद्र , चंदौली , वाराणसी और ग़ाज़ीपुर जिले के क्षेत्रों को प्रवाहित है।  कैमूर जिले का कैमूर रेंज के सारोदाग की कैमूर पर्वत गैंडा आकर का श्रंखला समुद्र तल से 1150 फीट व 350 मीटर उचाई से कर्मनाशा नदी प्रवाहित होकर 119 मील व192 किमि दूरी तय करने के बाद चौसा का  निर्देशांक 25°30′54″ एन  83°52′30″ ई. पर है । वैवस्वत मन्वंतर में ऋषि विश्वामित्र ने तपस्या के माध्यम से नए ब्रह्मांड का निर्माण करने की शक्ति प्राप्त  करने के बाद  ब्रह्मांड की रचना करने के लिए निकलने के पश्चात इंद्र में घबराहट पैदा हो गई थी । ऋषि विश्वामित्र द्वारा नई  ब्रह्मांड का राजा त्रिशंकु को  ब्रह्मांड पर शासन करने के लिए भेजने का फैसला किया था ।देवराज इन्द्र ने विश्वामित्र की प्रगति रोकने के बाद  नए ब्रह्मांड का राजा त्रिशंकु का सिर हवा में लटकने क कारण त्रिशंकु के  मुख से टपकती लार से कर्मनाशा का जन्म हुआ था ।  कैमूर जिले में सारोदाग के पास कैमूर रेंज के उत्तरी सतह  पर 350 मीटर (1,150 फीट) की ऊंचाई पर कर्मनाशा का उद्गम होता है ।  कर्मनाशा उत्तर-पश्चिमी दिशा में मिर्ज़ापुर के मैदानी क्षेत्रों  से होकर प्रवाहित  उत्तर प्रदेश और बिहार के बीच सीमा बनाती हुई गाजीपुर की   बारा गांव के समीप गंगा में मिल जाती है। ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश का गाजीपुर और बिहार का चौसा  कर्मनाशा नदी की लंबाई 192 किलोमीटर (119 मील) है, । जिसमें से 116 किलोमीटर (72 मील) उत्तर प्रदेश में है और शेष 76 किलोमीटर (47 मील) उत्तर प्रदेश (बारा-गाजीपुर) और बिहार (चौसा) के बीच सीमा बनाती है। ). सहायक नदियों सहित कर्मनाशा का जल निकासी क्षेत्र 11,709 वर्ग किलोमीटर (4,521 वर्ग मील) है।  कर्मनाशा की सहायक नदियों में  दुर्गावती , चंद्रप्रभा, करुणुति, नदी, गोरिया और खजूरी हैं। करकटगढ़ , देवदारी और छनपत्थर झरने की ऊँचाई और सुंदरता से पर्यटक आकर्षित होते  हैं।  छनपाथर झरना 100 फीट (30 मीटर) ऊंचा है। रोहतास पठार के किनारे , कर्मनाशा के किनारे स्थित देवदारी जलप्रपात 58 मीटर (190 फीट) ऊंचा है।  देवदरी जलप्रपात को चंद्रप्रभा नदी पर होने का उल्लेख करता है। कर्मनाशा का लतीफ शाह बांध और नुआगढ़ बांध ,  चंद्रप्रभा बांध  है।  ग्रांड ट्रंक रोड कर्मनाशा पुल के ऊपर से गुजरती है। उत्तरप्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग ने उत्तरी सोनभद्र की कर्मनाशा नदी घाटी में राजा नल का टीला स्थल पर खुदाई में 1200 - 1300 ईसा पूर्व के बीच की लौह कलाकृतियों का पता लगाया है । यह भारत में लोहा बनाने के इतिहास पर नई रोशनी डालता है। कर्मनाशा अवध की पूर्वी सीमा में सेन राजवंश की पश्चिमी सीमा  थी । 26 जून 1539 को कर्मनाशा के तट पर स्थित चौसा की लड़ाई में , शेर शाह ने मुगल सम्राट हुमायूँ को हराया और फरीद अल-दीन शेर शाह की शाही उपाधि धारण की थी । कर्मनाशा नदी अपवित्र माना जाता है । आनंद रामायण यात्राकाण्ड 9 .3 , तीर्थ प्रकाश , महाभारत , भागवत , रामायण एवं स्मृति तथा विभिन्न पुस्तकों के अनुसार कैमूर पर्वत समूह  में फैले विरासतों का उल्लेख मिलता है । कैमूर प्रदेश का राजा त्रिबंधन के पुत्र सत्यब्रत व त्रिशंकु  का उल्ले है । कैमूर पर्वत समूह  का पूर्वी भाग मुर श्रंखला है । 1290 ई. में कौदुवाद के पुत्र शमसुद्दीन कैमूर तथा मामलुक वंशीय गयासुद्दीन बलवन का पौत्र कैकुद्दीन 1287 ई.  कैमूर का शासक था ।  कमसार राज  के तहत 1764 ई. में और 1837 ई. में  चैनपुर इस्टेट के अधीन उत्तरप्रदेश राज्य का गाजीपुर जिले का भाग कैमूर था ।
कैमूर जिला  जिला मुख्यालय भभुआ में स्थित हैं । 1991 से पूर्व रोहतास जिले का हिस्सा कैमूर का क्षेत्र  1764 ई. में   गाजीपुर जिला और कंसार राज और बाद में  चैनपुर एस्टेट 1837 तक था  । कैमूर जिले का 3,362 किमी 2 (1,298 वर्ग मील) क्षेत्रफल में 2011 की जनगणना के अनुसार 1,626,384 आवादी में साक्षरता दर 69.34% है । कैमूर  जिले में 18 कॉलेज, 58 हाई स्कूल, 146 मिडिल स्कूल और 763 प्राइमरी स्कूल , 1699 गांव ,  120 डाकघर और 151 पंचायत  ग्रैंड ट्रंक रोड से जुड़ा हुआ है।कैमूर जिले में बोली जाने वाली भाषा हिंदी और भोजपुरी हैं। रोहतास जिले से अलग भभुआ जिला 17 मार्च 1991 ई. में सृजित होने के बाद 1994 ई. में   भभुआ जिला का नाम बदलकर कैमूर जिला नाम कर दिया गया है। कैमूर जिले में मानव संस्कृति का विकास  लेहदा जंगल में 20,000 वर्ष पूर्व की रॉक पेंटिंग हैं । जून 2012 में, बैद्यनाथ कामुक गढ़ के उत्खनन के दौरान  पालकालीन मूर्तियों प्राप्त हुई थी । अत्रि ऋषि की तपस्या स्थल और मां मुंडेश्वरी  मंदिर और दैत्यराज मुंड का क्षेत्र था । भौगोलिक दृष्टि से कैमूर  जिले को पहाड़ी क्षेत्र को कैमूर पठार के  पश्चिम की ओर का मैदानी क्षेत्र कर्मनासा और दुर्गावती नदियों से घिरा एवं कुद्रा नदी  पूर्व की ओर स्थित है। बिहार राज्य का बक्सर जिले और उत्तरप्रदेश राज्य के गाजीपुर जिले ने कुंद्रा नदी उत्तर में बांध दिया है। दक्षिण में झारखंड राज्य का गढ़वा जिला और पश्चिम में उत्तरप्रदेश राज्य का चंदौली और मिर्जापुर जिला तथा  पूर्व में बिहार राज्य का रोहतास जिला की सीमा है । कैमूर जिले के वन अभ्यारण्य  1,06,300 हेक्टेयर में  कैमूर वन्यजीव अभयारण्य , घर के लिए बाघों , तेंदुओं और चिंकारा । करकट जलप्रपात और तेलहर  झरने  हैं। जिले में  चावल, गेहूं, तेलहन , दालहन और मक्का यहां की प्रमुख फसलें हैं। कैमूर जिले को 11 प्रखंड  तथा  भभुआ और मोहनिया अनुमंडल में  अधौरा , भभुआ ,भगवानपुर ,चैनपुर ,चाँद ,रामपुर , दुर्गावती , कुद्र , मोहनिया ,रामगढ़ ,नुआओं प्रखंड है।



                                                                 मुंडेश्वरी मंदिर 

                                                                            पंचलिंगी शिव



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें