शनिवार, फ़रवरी 03, 2024

अयोध्या परिभ्रमण

अयोध्या - परिभ्रमण
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
पुराणों , रामायण , अध्यात्म रामायण , कम्ब रामायण , रामचरितमानस, में अयोध्या का उल्लेख किया गया है । त्रेतायुग एवं द्वापरयुग में अयोध्या महत्वपूर्ण स्थल है।  विष्णु पुराण , 22 वां अध्याय के अनुसार इक्ष्वाकु वंशीय राजा भगवान राम के वंसज वृहद्वल , वृहत्क्षण , उरुक्ष्य , वत्सव्यूह , प्रतिव्योम ,, दिवाकर ,सिहादेव ,वृदृतग , भानुरथ ,प्रतिताश्व  , सुप्रतीक , मरूदेव ,सङ्क्षत्र।  , किन्नर ,अन्तरिक्ष , सुपर्ण , अमित्रजीत ,  वृहद्रज ,धर्मी ,कृतंजय , रण जय ,संजग , शाक्य , शुद्धोदन , राहुल , प्रसेनजित , शूद्रक कुंडक , सूरथ ,  सुमित्र  राजा अयोध्या के थे । अयोध्या के अंतिम राजा सुमित्रा द्वारा अयोध्या का चतुर्दिक विकास किया गया था । उत्तर प्रदेश राज्य में समुद्र तल से 93 मीटर उचाई पर 120. 8 वर्गकिमी अवस्थित  अयोध्या जिला मुख्यालय  सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 55890  है। कौशल की राजधानी अयोध्या थी । जैन ग्रंथों में तीर्थंकरों, ऋषभनाथ, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ की जन्मस्थली वर्णित  है। सनातन ,  जैन, बौद्ध, ग्रीक और चीनी स्रोतों में वामन शिवराम आप्टे के अनुसार, "साकेता" शब्द संस्कृत के शब्द सह (साथ) और अकेतेन (घर या भवन) से बना है। आदि पुराण मे अयोध्या "अपनी शानदार इमारतों के कारण साकेत कहा जाता है, । ब्रिटिश साम्राज्य में "अवध" या "औड" था । 1856 तक अवध स्टेट व औड रियासत की राजधानी , बाल्मीकीय रामायण में कौशल साम्राज्य की राजधानी अयोध्या थी ।अयुत्या (थाईलैंड) और योग्यकार्ता (इंडोनेशिया) में अयोध्या को कहा जाता है अयोध्या का टेराकोटा का उत्खनन में चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की जैन तीर्थंकर की टेराकोटा प्रतिम प्राप्त हुई है ।- पाणिनि की अष्टाध्यायी और पतंजलि की टिप्पणी, साकेत का उल्लेख हैं। बौद्ध ग्रंथ महावस्तु में साकेत को इक्ष्वाकु राजा सुजाता की स्थल के रूप में वर्णित  है ।  राजा सुजाता के वंशजों ने शाक्य राजधानी कपिलवस्तु की स्थापना की थी। बौद्ध पाली-भाषा ग्रंथों और जैन प्राकृत-भाषा ग्रंथों में कोसल महाजनपद के महत्वपूर्ण शहर के रूप में साकेता , प्राकृत में सगेया या सैया  शहर का उल्लेख है।  बौद्ध और जैन ग्रंथों का  संयुक्त निकाय और विनय पिटक के अनुसार, साकेत श्रावस्ती से छह योजन की दूरी पर स्थित था। चौथी शताब्दी के बाद, कालिदास के रघुवंश सहित ग्रंथों में अयोध्या का उल्लेख साकेत के दूसरे नाम के रूप में किया गया है।  जैन विहित पाठ जम्बूद्वीप-पन्नति में भगवान ऋषभनाथ के जन्मस्थान के रूप में विनिया व  विनीता शहर का वर्णन किया गया है । कल्प-सूत्र में इक्खागाभूमि को ऋषभदेव का जन्मस्थान बताया गया है। जैन पाठ पौमचरिया पर सूचकांक में अओझा (अयोध्या), कोसल-पुरी ("कोसल शहर"), विनिया, और सैया (साकेता) का राजा चक्रवर्ती भरत हैं। जैन ग्रंथों में "अओज्ज्झा" को अवस्सागाकुर्नी का कोसल के प्रमुख शहर के रूप में वर्णित है । अवस्सागानिजुट्टी  सागर चक्रवर्ती की राजधानी के रूप में वर्णित है। अवससागनिजुट्टी का तात्पर्य विनिया ("विनिया"), कोसलपुरी ("कोसलपुरा"), और इक्खागाभूमि अलग-अलग शहर थे, अभिनामदान, सुमाई और उसाभा की राजधानियो नामित था। पाँचवीं या छठी शताब्दी ई. पू. तक अयोध्या विकसित था।  बौद्ध धम्मपद- अट्ठकथा में  कौशल की राजधानी श्रावस्ती का   राजा प्रसेनजीत के निदेश  पर विशाखा के पिता व्यापारी धनंजय द्वारा साकेत नगर की स्थापना की गई थी । जैन ग्रंथों नयाधम्मकहाओ और पन्नवन सुत्तम, और बौद्ध जातक में, साकेत को कोशल की राजधानी के रूप में उल्लेख किया गया है। जैन ग्रंथ  अंतगदा-दसाओ, अनुत्तरोवैया-दसाओ, और विवागसुया  में कहा गया है कि महावीर , नयाधम्मकहाओ का कहना है कि पार्श्वनाथ ने साकेत का दौरा किया था। जैन ग्रंथ, विहित और उत्तर-विहित  में , अयोध्या को विभिन्न तीर्थस्थलों के नाग , यक्ष पसामिया, मुनि सुव्रतस्वामिन और सुरप्पिया के मंदिर का उल्लेख मिलता है। पांचवीं शताब्दी ई.पू.  में  मगध सम्राट अजातशत्रु द्वारा कोसल पर विजय प्राप्त करने के बाद वाणिज्यिक केंद्र बना था ।  तीसरी शताब्दी ई.पू.  में मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान साकेत शहर मे बौद्ध इमारतों का निर्माण का अयोध्या मेंमानव निर्मित टीलों पर स्थित थीं। अयोध्या में स्थित टीलों का उत्खनन पुरातत्व विद बी बी लाल द्वारा किए जाने पर ईंट की दीवार किले की दीवार के रूप में पहचान है। देव वंश के शासक मूलदेव का सिक्का अयोध्या, कोसल में ढाला गया था। अवलोकन: मूलदेवसा, हाथी बाईं ओर का प्रतीक है। युग पुराण में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद, साकेत पुष्यमित्र शुंग के शासन के अधीन आने के बाद धनदेव के प्रथम शताब्दी ई. पू. के शिलालेख के अनुसार अयोध्या में  राज्यपाल नियुक्त किया था।  यूनानियों, मथुराओं और पंचालों की संयुक्त सेना द्वारा हमला किए जाने के रूप में किया गया है। पाणिनि की  पतंजलि की टिप्पणी में साकेत की यूनानी घेराबंदी का उल्लेख है।  युग पुराण के अनुसार  यूनानियों के पीछे हटने के बाद साकेत पर सात शक्तिशाली राजाओं का शासन था। वायु पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण में कोसल की राजधानी अयोध्या  में सात शक्तिशाली राजाओं ने शासन किया था। अयोध्या राजाओं में धनदेव सहित देव वंश के राजाओं के सिक्कों प्राप्त है। शिलालेख में कोसल के राजा ( कोसलाधिपति ) के रूप में वर्णित किया गया है। देव राजाओं के बाद साकेत पर दत्त, कुषाण और मित्र राजाओं का शासन था । पहली शताब्दी ईस्वी के मध्य में दत्त देव राजाओं के उत्तराधिकारी बनने के बाद कौशल राज्य को कनिष्क ने कुषाण साम्राज्य में मिला लिया। तिब्बती पाठ एनल्स ऑफ ली कंट्री  के अनुसार 11वीं शताब्दी में खोतान के राजा विजयकीर्ति, राजा कनिका, गु-ज़ान के राजा और ली के राजा  ने भारत पर चढ़ाई की और सो-केड शहर पर कब्जा कर लिया।  विजयकीर्ति ने साकेत से कई बौद्ध अवशेष ले लिएऔर  फ्रु-नो के स्तूप में रख दिया था ।कुषाणों के आक्रमण के कारण साकेत में बौद्ध स्थल नष्ट हो गए थे ।, कुषाण शासन के दौरान साकेत समृद्ध शहर साकेत बना  है।  दूसरी शताब्दी के भूगोलवेत्ता टॉलेमी ने महानगर "सगेदा" या "सगोडा" का उल्लेख किया है ।चौथी शताब्दी में अयोध्या क्षेत्र गुप्तों के नियंत्रण में आ गया था । गुप्तकाल ने ब्राह्मणवाद को पुनर्जीवित किया।  वायु पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार  प्रारंभिक गुप्त राजाओं ने साकेत पर शासन किया था। पाँचवीं शताब्दी के चीनी यात्री फैक्सियन के अनुसार  "शा-ची" में बौद्ध इमारतों के खंडहर मौजूद थे। गुप्त काल के दौरान महत्वपूर्ण विकास साकेत को इक्ष्वाकु वंश की राजधानी, अयोध्या के प्रसिद्ध शहर के रूप में था । कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल के दौरान जारी 436 ईस्वी के करमदंड (कर्मदंड) शिलालेख में, अयोध्या को कोसल प्रांत की राजधानी के रूप में नामित किया गया है । पृथ्वीसेन द्वारा अयोध्या के ब्राह्मणों को दान देने का रिकॉर्ड है। गुप्त साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या स्थानांतरित कर दी गई। परमार्थ में  राजा विक्रमादित्य शाही दरबार को अयोध्या ले गए; जुआनज़ैंग नेपुष्टि करते हुए कहा कि विक्रमादित्य राजा ने दरबार को "श्रावस्ती देश", यानी कोसल में स्थानांतरित कर दिया था। रॉबर्ट मॉन्टगोमरी मार्टिन द्वारा 1838 ई. में अयोध्या की परंपरा का उल्लेख किया है कि भगवान  राम के वंशज बृहदबाला की मृत्यु के बाद शहर वीरान हो गया एवं  उज्जैन के राजा विक्रमादित्य  ने अयोध्या की  प्राचीन खंडहरों को ढकने वाले जंगलों को काटा, रामगर किला बनवाया और 360 मंदिर बनवाए थे ।परमारथ के लाइफ ऑफ वसुबंधु के अनुसार विद्वानों के संरक्षक विक्रमदित्य ने वसुबंधु को सोने की 300,000 मोहरें प्रदान की थीं। वसुबंधु साकेत ("शा-की-ता") के मूल निवासी और विक्रमादित्य को अयोध्या के राजा ("ए-यू-जा") के रूप में वर्णित करते हैं।  धन का उपयोग अ-यु-जा (अयोध्या) देश में तीन मठों के निर्माण के लिए किया गया था।   राजा बालादित्य नरसिम्हगुप्त  और उनकी मां ने भी वसुबंधु को बड़ी मात्रा में सोना दिया था ।  मानव सभ्यता की प्रथम  पुरी अयोध्या को  प्राप्त है। रामजन्मभूमि , कनक भवन , हनुमानगढ़ी ,राजद्वार मंदिर ,दशरथमहल , लक्ष्मणकिला , कालेराम मन्दिर , मणिपर्वत , श्रीराम की पैड़ी , नागेश्वरनाथ , क्षीरेश्वरनाथ श्री अनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर , गुप्तार घाट , बिरला मन्दिर , श्रीमणिरामदास जी की छावनी , श्रीरामवल्लभाकुञ्ज , श्रीलक्ष्मणकिला , श्रीसियारामकिला , उदासीन आश्रम रानोपाली तथा हनुमान बाग जैसे अनेक आश्रम आगन्तुकों का केन्द्र हैं।
 राम जन्मभूमि -  अयोध्या शहर के पश्चिमी भाग  में रामकोट में स्थित अयोध्या का प्रमुख स्थान श्रीरामजन्मभूमि है। श्रीराम-लक्ष्मण-भरत और शत्रुघ्न चारों भाइयों के बालरूप स्थापित  हैं। अयोध्या का राजा सुमित्रा द्वारा 4 थीं शताब्दी ई.पू.. में मकर पद्धति का गोलाकार 17 कतारों युक्त 85 खंभों वाला राम मंदिर का निर्माण कराया गया था । उज्जैन का राजा विक्रमादित्य द्वारा श्री राम मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया था ।  गढ़वाल राजा गोविंद चंद्र ने 1114 ई. से 1154 ई. तक श्री राम मंदिर को विष्णु हरि मंदिर का चतुर्दिक विकास किया था । द। शर्की आर्किटेक्चर ऑफ जौनपुर 1899 के लेखक पुराविद एंटोन फ़्यूहरर  ने आयुष्य चंद्र केयाल 12 विन सदी में राम मंदिर भव्य कहा है । संबत 1241 व 1184 ई. में श्री राम मंदिर भब्य था । उज्जैन का राजा विक्रमादित्य द्वारा निर्मित राम जन्मभूमि पर निर्मित श्री राम मंदिर को मुगल बादशाह बाबर का सूबेदार मीरबाँकी ने बाबर के सम्मान में 1528 ई. में श्री राम मंदिर पर  बाबरी मस्जिद का निर्माण कर बाबरी मस्जिद में  तब्दील कर दिया था ।  ब्रिटिश साम्राज्य केयाल में 1853 ई. में हिन्दू और मुस्लिम के बीच प्रथम बार राम मंदिर के लिए विवाद प्रारम्भ हो गया था । 30 नवंबर 1858 ई. में  खालसा पंथ के बाबा फ़क़ीर सिंह के नेतृत्व में 25 निहंग सिखों ने श्री राम मंदिर पर निर्मित बाबरी मस्जिद पर कब्जा कर भगवान राम की उपासना स्थल बनाया था । श्री राम मंदिर पर बने बाबरी मस्जिद को सनातन धर्मालंबियों द्वारा ध्वस्त कर श्री रामजन्म भूमि की लंबी कानूनी एवं संघर्ष के बाद सफलता प्राप्त किया गया । अयोध्या स्थित श्री राम जन्मभूमि पर 22 जनवरी 2024 सोमवार को  श्री राम मंदिर का निर्माण कर श्रीराम मंदिर  के गर्भगृह में श्री राम की बाल स्वरूप मूर्ति एवं राम लला  की प्राचीन मूर्ति  की स्थापना भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के बीच की गई है । श्री राम की मूर्ति की स्थापना के समय उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ एवं राज्यपाल शामिल थे । सनातन धर्म एवं श्री राम  भक्त लम लाला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल हुए । श्री राम मंदिर की लंबाई पूरब से पश्चिम 300 फीट ,चौड़ाई 250 फीट , उचाई 161 फीट, मंजिल प्रत्येक की ऊँचाई 20 फीट , 392 स्तम्भ ,44 दरवाजा , है । भूतल पर श्री राम मंदिर के गर्भगृह में शालिग्राम पाषाण में निर्मित श्री रामलला विराजमान , श्रीराम दरवार ,, मंडपों में नृत्य रंग ,प्रार्थना  , कीर्तन मंडप , प्रवेश में पूरब से 16.5 फीट , 32 सीढियां , आयताकार परकोटा 732 मीटर , चौड़ाई 4.5 मीटर है । श्री राम जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह में राम लाल की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा पौष शुक्ल द्वादशी सोमवार संबत 2080 दिनांक 24 जनवरी 2024 को किया गया है ।
कनक भवन - टीकम गढ़ की रानी द्वारा 1881 ई. को कनक मंदिर का निर्माण कर  सीता और राम के सोने मुकुट पहने प्रतिमाओं की स्थापना की गई थी । हनुमान गढ़ी - अयोध्या नगर के केन्द्र में स्थित राम जन्मभूमि मंदिर के सामने ऊँचे टीलहे हनुमान गढ़ी मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है ।  भगवान राम कीअयोध्या नगरी में  हनुमान जी सदैव निवास करते हैं।  अयोध्या आकर भगवान राम के दर्शन के पूर्व  हनुमान जी के दर्शन करते हैं।   हनुमान जी गुफा में निवास कर  रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। भगवान  श्रीराम ने हनुमान जी को अधिकार दिया था कि भक्त मेरे दर्शनों के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले तुम्हारा दर्शन पूजन करना होगा।  पवित्र नगरी अयोध्या में सरयू नदी में पाप धोने से पहले लोगों को भगवान हनुमान से आज्ञा लेनी होती है। यह मंदिर अयोध्या में अवस्थित  टीले पर स्थित होने के कारण मंदिर तक पहुंचने के लिए 76 सीढि़यां चढ़ने के बाद पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच की प्रतिमा के दर्शन होते हैं । हनुमान गढ़ी  मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनी माता की प्रतिमा है।  मंदिर परिसर में मां अंजनी व बाल हनुमान जी, अपनी मां अंजनी की गोद में बालक के रूप में विराजमान हैं। अवध नवाब सुल्तान मंसूर अली ने  एक बार उसका एकमात्र पुत्र गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। प्राण बचने के आसार नहीं रहे, रात्रि की कालिमा गहराने के साथ ही उसकी नाड़ी उखड़ने लगी थी ।अवध नबाब  सुल्तान ने थक हार कर संकटमोचक हनुमान जी के चरणों में माथा रख दिया। हनुमान ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का ध्यान किया और सुल्तान के पुत्र की धड़कनें पुनः प्रारम्भ हो गई। अपने इकलौते पुत्र के प्राणों की रक्षा होने पर अवध के नवाब मंसूर अली ने बजरंगबली के चरणों में माथा टेक दिया। जिसके बाद नवाब ने  हनुमान गढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया और  ताम्रपत्र पर लिखकर ये घोषणा की कि हनुमान गढ़ी  मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और नही  यहां के चढ़ावे से कोई कर वसूल किया जाएगा। उसने 52 बीघा भूमि हनुमान गढ़ी व इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई।अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, लेकिन फिर भी एक स्थान जो हमेशा अपने मूल रूप में रहा  हनुमान टीला  हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। लंका से विजय के प्रतीक रूप में लाए गए निशान  मंदिर में रखे गए लंका का पतीक  खास मौके पर बाहर निकाल कर जगह-जगह पर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। मन्दिर में विराजमान हनुमान जी को  अयोध्या का राजा माना जाता है।  हनुमान जी गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। 
राजद्वार मंदिर - , हनुमान गढ़ी के समीप भगवान राम को समर्पित राजद्वार  मंदिर  उच्च पतला शिखर वाला उच्च भूमि पर खड़ा है । श्री लक्ष्मण किला - महान संत स्वामी श्री युगलानन्यशरण जी महाराज की तपस्थली  रसिकोपासना के आचार्यपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। श्री स्वामी जी बिहार का  चिरान्द (छपरा) निवासी स्वामी श्री युगलप्रिया शरण 'जीवाराम' जी महाराज के शिष्य   बिहार का नालंदा जिले के इस्माइल पुर में 1818 ई. में जन्मे स्वामी युगलानन्यशरण जी का रामानन्दीय वैष्णव-समाज में  स्थान है। स्वामी जी ने रघुवर गुण दर्पण','पारस-भाग','श्री सीतारामनामप्रताप-प्रकाश' तथा 'इश्क-कान्ति' आदि लगभग सौ ग्रन्थों की रचना की है। ब्रिटिश साम्राज्य काल में 52 बीघे में विकसित आश्रम श्री लक्ष्मण किला को  रीवां राज्य (म.प्र.) द्वारा निर्मित सरयू नदी के तट पर ५२ बीघे भूमि  विल्व गंधर्व दान-स्वरूप मिली थी। श्री सरयू के तट पर स्थित  आश्रम श्री सीताराम जी आराधना के साथ संत-गो-ब्राह्मण सेवा संचालित होते है । नागेश्वर नाथ मंदिर -  भगवान राम के पुत्र कुश ने नागेश्वर नाथ मंदिर का निर्माण कराया था।  अवध का राजा  कुश सरयू नदी में स्नान करने के क्रम में  बाजूबंद खो गया था। कुश का बाजूबंद शिव भक्त   नाग कन्या को प्राप्त होने के बाद  कुश से प्रेम हो गया।  कुश ने नाग कन्या के लिए नागेश्वरनाथ मंदिर  का निर्माण कराया था ।   उज्जैन का राजा  विक्रमादित्य द्वारा नागेश्वर नाथ मंदिर पुनर्निर्माण कराया गया था । पञ्चमुखी महादेव मन्दिर - अन्तर्गृही अयोध्या के शिरोभाग में गोप्रतार घाट पर पञ्चमुखी शिव मंदिर है। शैवागम में वर्णित ईशान , तत्पुरुष , वामदेव , सद्योजात और अघोर नामक पाँच मुखों वाले लिंगस्वरूप की उपासना से भोग और मोक्ष  की प्राप्ति होती है। राघवजी का मन्दिर-   अयोध्या नगर के केन्द्र में स्थित भगवान श्री राम को समर्पित राघव मंदिर  है । सप्तहरि - मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की लीला स्थल  अयोध्या में श्रीहरि के अन्य सात प्राकट्य हुए हैं । सप्तहरि स्थल पर  देवताओं और मुनियों की तपस्या से प्रकट हुए थे । भगवान् विष्णु के सात स्वरूपों को ही सप्तहरि में   भगवान "गुप्तहरि" , "विष्णुहरि", "चक्रहरि", "पुण्यहरि", "चन्द्रहरि", "धर्महरि" और "बिल्वहरि" हैं। जैन मंदिर - अयोध्या को पांच जैन र्तीथकरों की जन्मभूमि है। र्तीथकर का जन्म भूमि पर  र्तीथकर का मंदिरका निर्माण फैजाबाद नबाब के खजांची केशरी सिंह द्वारा कराया गया था । बना हुआ है।  अयोध्या उच्चकोटि के सन्तों की साधना-भूमि है ।  स्वामी श्रीरामचरणदास जी महाराज 'करुणासिन्धु जी' स्वामी श्रीरामप्रसादाचार्य जी, स्वामी श्रीयुगलानन्यशरण जी, पं. श्रीरामवल्लभाशरण जी महाराज, श्रीमणिरामदास जी महाराज, स्वामी श्रीरघुनाथ दास जी, पं.श्रीजानकीवरशरण जी, पं. श्री उमापति त्रिपाठी जी आदि अनेक नाम उल्लेखनीय हैं। 
विल्व हरिघाट - अयोध्या का राजा भगवान राम के पिता स्वायम्भुव मनु के अवतार एवं शतरूपा की अवतार कौशल्या के पति दशरथ की  चिता भूमि अयोध्या से 13 . 5 किमि की दूरी पर सरयू नदी के तट पर अवस्थी चिता भूमि है । यह क्षेत्र गंधर्व राज विल्व गंधर्व के अधीन था । भगवान राम ने गंधर्व राज विल्व को उद्धार किया था । विल्व हरि घाट पर विल्व हरि शिव मंदिर में विल्व हरि शिव लिंग स्थापित है ।
गुप्तार घाट - अयोध्या का फैजाबाद के समीप सरयू नदी के तट पर अवस्थित गुप्तार घाट में  भगवान राम ने आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को जल समाधि ली थी । राजा दर्शन सिंह द्वारा 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में गुप्तारघाट घाट पर जलसमाधि स्थल का निर्माण कराया गया था । यहां भगवान शिव को समर्पित शिवमंदिर है ।
राम की पैड़ी -  त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा अश्वमेध यज्ञ अयोध्या स्थित सरयू नदी के तट पर किया गया था । यज्ञ स्थल पर ठाकुर जी मंदिर राम की पैड़ी पर स्थापित है ।

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