सोमवार, मार्च 11, 2024

घृनेश्वर ज्योतिर्लिंग परिभ्रमण

घृनेश्वर व एलोरा  परिभ्रमण 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
महाराष्ट्र राज्य का ओरंगाबाद जिले को छत्रपति संभाजी नगर जिले के रूप में ख्याति प्राप्त है । औरंगाबाद जिले के  पश्चिम में नासिक , उत्तर में जलगांव , पूर्व में जालना और दक्षिण में अहमदनगर जिले कि सीमा से घिरी हुई है। औरंगाबाद जिले का जिला मुख्यालय  औरंगाबाद शहर है । औरंगाबाद  जिले का क्षेत्रफल 10,100 वर्गकीमि में  मराठवाड़ा पर्यटन क्षेत्र है । छत्रपति संभाजी नगर जिला में एलोरा गुफाओं में कैलाश मंदिर ; अजंता गुफा 19 का अग्रभाग ; गुफा 19 के प्रवेश द्वार के दाईं ओर बुद्ध की नक्काशी; बीबी का मकबरा ; औरंगजेब का मकबरा , खुल्दाबाद ; दौलताबाद किला है। छत्रपति सम्भा जी नगर जिला का क्षेत्रफल 10,100 किमी 2 (3,900 वर्ग मील) में गोदावरी नदी बेसिन और आंशिक रूप से ताप्ती नदी बेसिन में स्थित है। जिला 19 और 20 डिग्री उत्तरी देशांतर और 74 और 76 डिग्री पूर्वी अक्षांश के बीच स्थित है। औरंगाबाद जिला दक्कन के पठार पर स्थित  और डेक्कन ट्रैप से ढका हुआ और लेट क्रेटेशियस और लोअर इओसीन युग के दौरान बना था। औरंगाबाद जिले के दक्षिणी भाग की औसत ऊंचाई 600 से 670 मीटर के बीच अंतूर - 827 मीटर , अब्बासगढ़ - 671 मीटर , सतोंडा - 552 मीटर , अजिंथा - 578 मीटर पर्वत एवं नदियों में गोदावरी , पूर्णा , शिवना और खाम नदियाँ हैं। नारंगी नदी नाराल के समीप मनियाड नदी के दक्षिण में जल विभाजन के दक्षिणी ढलानों से नारंगी नदी प्रविहित  वैजापुर से होकर  है । नारंगी नदी नासिक जिले से आने वाली देव नाला नदी से मिलती है। नारंगी गोदावरी में प्रवेश के बिंदु से पहले एक लंबे दक्षिण-दक्षिण-पश्चिमी मार्ग का अनुसरण करती हुई  पश्चिम से चोर नाला और पूर्व से कुर्ला नाला से जुड़ कर  कुर्ला के संगम के बाद कुर्ला नदी की प्रवृत्ति को जारी रखता है। जिले में नौ तहसीलें शामिल हैं  कन्नड़ , सोयागांव , सिल्लोड , फुलंबरी , औरंगाबाद , खुल्दाबाद , वैजापुर , गंगापुर और पैठन । तहसील का नया प्रस्ताव लासूर और पिशोर है. बड़े शहरों को गंगापुर तहसील और कन्नड़ है। विधानसभा क्षेत्र स्थित हैं: सिल्लोड , कन्नड़ , फुलंबरी , औरंगाबाद सेंट्रल , औरंगाबाद पश्चिम , औरंगाबाद पूर्व , पैठण , गंगापुर और वैजापुर  और लोकसभा क्षेत्रों में  औरंगाबाद और जालना है। 2011 की जनगणना के अनुसार , औरंगाबाद जिले की जनसंख्या 3,701,282 निवासी है । अजंता की गुफाएँ औरंगाबाद शहर से 107 किमी (66 मील) दूर स्थित अजंता की गुफाएँ घाटी के चारों ओर चट्टानों को काटकर बनाई गई 30 गुफाएं का निर्माण दूसरी और पांचवीं शताब्दी ईस्वी के बीच सातवाहन , वाकाटक और चालुक्य राजवंशों द्वारा किया गया था। गुफाओं में प्राचीन भारतीय कला के विभिन्न कार्य शामिल  अजंता की गुफाएँ यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैं । औरंगाबाद शहर से 29 किमी (18 मील) दूर एलोरा की गुफाएँ में राष्ट्रकूट राजवंश के संरक्षण में 5वीं और 10वीं शताब्दी के बीच निर्मित 34 गुफाएं शामिल हैं । एलोरा की गुफाएं  यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। औरंगाबाद शहर से 5 किमी (3 मील) दूर पर स्थित पहाड़ियों के बीच 3 ई. पू. की 12 बौद्ध गुफाएँ में   गुफाओं की प्रतिमा और वास्तुशिल्प डिजाइन में तांत्रिक प्रभाव है। कचनेर मंदिर में भगवान श्री पार्श्वनाथ की मूर्ति , घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में अहिल्याबाई होल्कर ने मराठा शैली में भूमिजा वास्तुकला  करवाया था। कचनेर जैन मंदिर के गर्भगृह में चिंतामणि पार्श्वनाथ मूर्ति 18 वी. सदी में  स्थापित है । औरंगाबाद के समीप एकशूली भंजन  पहाड़ी पर संत एकनाथ महाराज की तपस्या स्थली  थी। ओरंगाबाद जिले का घृष्णेश्वर मंदिर , वेरुल का एलोरा स्थित कैलाश मंदिर, एलोरा गुफाएं, खड़केश्वर मंदिर. विठ्ठल मंदिर, पंढरपुर, आबाद , रेणुकामाता मंदिर, कर्णपुराका  कर्णपुरा मंदिर.संस्थान गणपति मंदिर.सिद्धिविनायक मंदिर.पवन गणेश मंदिर., साई टेकाडी पहाड़ी , हनुमान टेकाडी पहाड़ी ,खंडोबा मंदिर, सतारा ,श्री भद्र मारुति मंदिर, संत ज्ञानेश्वर मंदिर, पैठण , एकनाथ महाराज मंदिर, पैठण , सावता महाराज मंदिर, वैजापुर , महालक्ष्मी मंदिर, वैजापुर, वीरभद्र मंदिर, वैजापुर , संत दानशॉवर महाराज संस्थान , म्हसोबा महाराज मंदिर, सिल्लोड , सिंधी मंदिर, सिल्लोड , श्री चक्रधर स्वामी मंदिर, गंगापुर , पंचवटी महादेव मंदिर, गंगापुर , एकमुखी दत्त मंदिर, गंगापुर , भैरवनाथ मंदिर, सोईगांव , मुंजोबा मंदिर, सोइगांव , महामुनि अगस्ति महाराज वारकरी शिक्षण संस्थान, सोएगांव , राम मंदिर, कन्नड़ , बजरंगबली मंदिर, कन्नड़ , जागृत सिद्धिविनायक मंदिर, कन्नड़ है । औरंगाबाद शहर में मुगल काल द्वारा निर्मित  52 द्वारों के लिए  "द्वारों का शहर कहा गया है। देवगिरि किला व दौलताबाद किला - औरंगाबाद से  15 किमी (9 मील) उत्तर-पश्चिम में स्थित देवगिरी किला व दौलाबाद किला 12वीं शताब्दी ई.  में यादव राजवंश द्वारा बनाया गया था । यादव राजवंश द्वारा देवगिरी किले का निर्माण 200 मीटर ऊंची (660 फीट) शंक्वाकार पहाड़ी पर बनाया गया था । किले की सुरक्षा खाई, खाइयों और बुर्जों वाली तीन घेरने वाली दीवारों से की गई थी। बीबी का मकबरा - बादशाह  औरंगजेब की पत्नी, दिलरास बानो बेगम (मरणोपरांत रबिया-उद-दौरानी   का दफन मकबरा है । यह स्थल औरंगाबाद शहर से 3 किमी (2 मील) दूर "दक्कन का ताज" के रूप में ख्याति प्राप्त है। बादशाह औरंगजेब का मकबरा खुल्दाबाद गांव में, औरंगाबाद शहर के उत्तर-पश्चिम में 24 किमी (15 मील) दूर, शेख ज़ैनुद्दीन की दरगाह के परिसर के दक्षिण-पूर्वी कोण  में स्थित है । 
 घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग -  भारतीय वाङ्गमय शास्त्रों और पुरणों में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग का उल्लेखनीय  है । मनोकामनाएं तथा मानवीय मूल्यों का स्थल घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग है । महाराष्ट्र राज्य का औरंगाबाद जिले के   वेरुल  देवगिरि पर्वत पर घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है । शिवपुरण कोटिरुद्रसंहिता अध्याय 32 - 33 के अनुसार ऋषि भारद्वाज कुल में उत्पन्न ब्राह्मण  सुशर्मा की पत्नी सुदेहा  और घुश्मा थी । घुश्मा से पुत्र का जन्म हुआ था । सुशर्मा की दूसरी पत्नी घुश्मा की भक्ति और निश्छल प्रभाव से भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति होने के कारण घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग ख्याति हुआ । घुश्मा ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर, घुश्मेश , तथा तलाव को शिवालय कहा गया है । घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग को , घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर कहा जाता है । देवगिरि पर्वत के निकट ऋषि  भारद्वाज कुल के  सुधर्मा नामक अत्यंत तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण सुशर्मा की पत्नी  सुदेहा रहती  । दोनों में परस्पर बहुत प्रेम था। किसी प्रकार का कोई कष्ट उन्हें नहीं था। परंतु सुशर्मा  को  संतान नहीं थी।ज्योतिष-गणना से  सुदेहा के गर्भ से संतानोत्पत्ति नहीं  थी । सुदेहा संतान की बहुत  इच्छुक थी। सुदेहा  ने सुधर्मा से अपनी छोटी बहन घुश्मा  से दूसरा विवाह करने का आग्रह किया।पहले  सुधर्मा को यह बात नहीं जँची। लेकिन अंत में उन्हें पत्नी की जिद के आगे झुकना पड़ा। वे उसका आग्रह टाल नहीं पाए। सुशर्मा ने अपनी पत्नी की छोटी बहन घुश्मा को ब्याह कर घर ले आए। घुश्मा अत्यंत विनीत और सदाचारिणी स्त्री थी। घुश्मा भगवान्‌ शिव की अनन्य भक्ता थी। प्रतिदिन एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर हृदय की सच्ची निष्ठा के साथ भगवान शिव की  पूजन करती थी।भगवान शिवजी की कृपा से उसके गर्भ से अत्यंत सुंदर और स्वस्थ बालक ने जन्म लिया। बच्चे के जन्म से सुदेहा और घुश्मा दोनों के आनंद का पार न रहा। दोनों के दिन बड़े आराम से बीत रहे थे। लेकिन न जाने कैसे थोड़े ही दिनों बाद सुदेहा के मन में एक कुविचार ने जन्म ले लिया। वह सोचने लगी, मेरा  इस घर में कुछ नही  है । सब कुछ घुश्मा का है। अब तक सुदेहा के मन का कुविचार रूपी अंकुर एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था। मेरे पति पर  उसने अधिकार जमा लिया। संतान  उसी की है। यह कुविचार धीरे-धीरे उसके मन में बढ़ने लगा। इधर घुश्मा का वह बालक  बड़ा हो रहा था। घुश्मा के पुत्र का विवाह हो गया। एक दिन सुदेहा ने घुश्मा के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला। उसके शव को ले जाकर उसने उसी तालाब में फेंक दिया जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को विसर्जित करती थी। सुबह होते सबको इस बात का पता लगा। पूरे घर में कुहराम मच गया। सुधर्मा और उसकी पुत्रवधू दोनों सिर पीटकर फूट-फूटकर रोने लगे। लेकिन घुश्मा नित्य की भाँति भगवान्‌ शिव की आराधना में तल्लीन रहने के बाद पूजा समाप्त करने के बाद घुश्मा पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोड़ने के लिए चल पड़ी। जब वह तालाब से लौटने लगी उसी समय उसका प्यारा लाल तालाब के भीतर से निकलकर आता हुआ दिखलाई पड़ा। वह सदा की भाँति आकर घुश्मा के चरणों पर गिर पड़ा । इसी समय भगवान्‌ शिव  वहाँ प्रकट होकर घुश्मा से वर माँगने को कहने लगे। वह सुदेहा की घनौनी करतूत से अत्यंत क्रुद्ध हो उठे थे। अपने त्रिशूल द्वारा उसका गला काटने को उद्यत दिखलाई दे रहे थे। घुश्मा ने हाथ जोड़कर भगवान्‌ शिव से कहा- 'प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं मेरी सुदेहा अभागिन बहन को क्षमा कर दें। निश्चित उसने अत्यंत जघन्य पाप किया है परंतु आपकी दया से मुझे मेरा पुत्र वापस मिल गया। अब आप सुदेहा को  क्षमा करें और प्रभो! मेरी एक प्रार्थना है कि  लोक-कल्याण के लिए आप इस स्थान पर सर्वदा के लिए निवास करें।' भगवान्‌ शिव ने उसकी ये दोनों बातें स्वीकार कर लीं। ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर वह वहीं निवास करने लगे।  शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण  घुश्मेश्वर से विख्यात हुए। घुश्मा द्वारा स्थापित शिवालय पर भगवान शिव ने घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग प्रकट हुए थे ।घुश्मा ज्योतिर्लिङ्ग को घुश्मेश, घुश्मेश्वर , घृष्णेश्वर कहा गया है । घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिग की उपासना करने से मनोवांक्षित तथा भुक्ति मुक्ति  प्राप्त होते है । घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव को समर्पित  दर्शनीय स्थान यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं।   घृष्णेश्वर मंदिर व  घुश्मेस्वर मंदिर 13 वीं शताब्दी से पूर्व निर्मित और मुगल साम्राज्य के दौरान बेलूर क्षेत्र में स्थित था । घृनेश्वर  मंदिर  के क्षेत्र में 13 वीं और 14 वीं शताब्दी के मध्य में  विनाशकारी हिंदू-मुस्लिम संघर्ष में मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था।  बेलूर के प्रमुख  छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा मालोजी भोसले ने 16 वीं शताब्दी घृनेश्वर   मंदिर को पुनर्निर्माण  करवाया था।  मुगल मराठा युद्ध में 1680 ई. से 1707 ई. तक  घृनेश्वर मंदिर फिरसे क्षतिग्रस्त हुआ और अंतिम  पुनर्निर्माण 18 वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी रानी अहिल्या बाई ने करबाया था। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर में आंतरिक कक्ष और गर्भगृह बना हुआ  लाल रंग के पत्थरों से बनी हुई  निर्माण 44,400 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर गर्भगृह में  घृनेश्वर ज्योतिर्लिंग  है। मंदिर परिसर में पांच स्तरीय लंबा शिखर स्तंभ  नक्काशियों के रूप में निर्मित हैं। मंदिर परिसर में बनी लाल पत्थर की दीवारें  भगवान शिव और भगवान विष्णु के दस अवतारों को दर्शाती हैं। गर्भगृह में पूर्व की ओर शिवलिंग  मार्ग में नंदिस्वर की मूर्ती के दर्शन करते  हैं। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी – घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी पति पत्नी के जोड़े सुधर्मा और सुदेहा की कहानी  हैं। पति पत्नी विवाहिक जीवन में खुश लेकिन परंतु  संतान सुख की प्राप्ति से वंचित थे । सुदेहा कभी माँ नही बन सकती है । सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा के साथ अपने अपने पति सुधर्मा का विवाह करवा दिया। समय व्यतीत होने लगा और घुश्मा के गर्व से खूबसूरत बालक ने जन्म लिया। लेकिन धीरे-धीरे अपने हाथ से पति, प्रेम, घर-द्वारा, मान-सम्मान को छिनते हुए देख सुदेहा के मन में ईर्ष्या के बीज अंकुरित होने लगे और एक दिन उसने मौका देखकर बालक की हत्या कर दी और उसके सव को उसी तालाब में डाल दिया जिसमे घुश्मा भगवान शिव के शिवलिंग का विसर्जन करती थी। सुधर्मा की दूसरी पत्नी घुश्मा जोकि भगवान शिव की परम भक्त थी नित्य प्रतिदिन सुबह उठकर भगवान शिव के 101 शिवलिंग बनाकर पूजन करती और फिर एक तालाब में डाल देती थी। बालक की खबर सुनकर चारो ओर हाहाकार मच गया लेकिन घुश्मा प्रतिदिन की तरह उस दिन भी भगवान शिव के शिवलिंग बनाकर शांत मन से पूजन करने में लगी रही और जब वह शिवलिंग को तालाब में विसर्जन करने के लिए गई तो उसका पुत्र तालाब से जीवित बाहर निकल आया। साथ ही साथ भगवान शिव ने भी घुश्मा को दर्शन दिए, भोलेनाथ सुदेहा की इस हरकत से रुस्ट थे उसे दंड और घुश्मा को वरदान देना चाहते थे। लेकिन घुश्मा ने सुदेहा को माफ़ करने के लिए विनती की और जन कल्याण के लिए शंकर भगवान से यही निवास करने की प्रार्थना की। घुश्मा की विनती स्वीकार करके भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में  निवास करने लगे और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रसिद्ध हुआ।

1 टिप्पणी: