समाज और परिवार की स्तम्भ है नारी
सत्येन्द्र कुमार पाठक
महिला अधिकार आंदोलन के केंद्र बिंदु और लैंगिक समानता , प्रजनन अधिकार और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार मुद्दों पर ध्यान का केंद्र विंदु अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है । जर्मन साम्राज्य द्वारा 8 मार्च, 1914 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के लिए जर्मन पोस्टर पर प्रतिबंध लगा दिया गया था । सार्वभौमिक महिला का मताधिकार आंदोलन द्वारा प्रेरित न्यूजीलैंड में प्रारम्भ इंटरनेशनल वोमेन डे तथा 20वीं सदी की शुरुआत में उत्तरी अमेरिका और यूरोप में श्रमिक आंदोलनों से हुई थी। न्यूयॉर्क शहर में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका द्वारा 28 फरवरी 1909 ई. को "महिला दिवस" आयोजित था। अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन में जर्मन प्रतिनिधियों को 1910 ई. में प्रस्तावित करने के लिए प्रेरित किया। यूरोप में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का पहला प्रदर्शन और स्मरणोत्सव के रूप में इंटरनेशनल वोमेन डे 8 मार्च 1917 को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया था । 1960 के दशक के उत्तरार्ध में वैश्विक नारीवादी आंदोलन द्वारा अपनाए जाने तक अवकाश आंदोलनों और सरकारों से जुड़ा था। 1977 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1977 ई. में महिला दिवस अपनाए जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मुख्यधारा का वैश्विक अवकाश बन गया है। संयुक्त राष्ट्र महिलाओं के अधिकारों में मुद्दे, अभियान या विषय के संबंध में छुट्टी मनाता है। विश्व में ?महिला दिवस राजनीतिक उत्पत्ति दर्शाता है । सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका द्वारा 28 फरवरी 1909 ई. को कार्यकर्ता थेरेसा मल्कील के सुझाव पर न्यूयॉर्क शहर में आयोजित किया गया था । 8 मार्च, 1857 को न्यूयॉर्क में महिला परिधान श्रमिकों द्वारा एक विरोध प्रदर्शन की याद में मनाया गया था । कोपेनहेगन, डेनमार्क मेंसोशलिस्ट सेकेंड इंटरनेशनल की आम बैठक से पूर्व अगस्त 1910 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन आयोजित किया गया था। अमेरिकी समाजवादियों से प्रेरित होकर, जर्मन प्रतिनिधियों क्लारा ज़ेटकिन , केट डनकर , पाउला थिएडे और वार्षिक "महिला दिवस" की स्थापना का प्रस्ताव रखा था । 17 देशों के 100 प्रतिनिधियों ने महिलाओं के मताधिकार सहित समान अधिकारों को बढ़ावा देने की रणनीति के विचार के साथ सहमति व्यक्त की थी । 19 मार्च, 1911 को ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में दस लाख से अधिक लोगों ने पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। ऑस्ट्रिया-हंगरी में, प्रदर्शन हुए, पेरिस कम्यून के शहीदों के सम्मान में बैनर लेकर विएना में रिंगस्ट्रैस पर परेड करने वाली महिलाओं के साथ यूरोप में, महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई थी । भारतीय राष्ट्रीय महिला दिवस व इंडियन नेशनल वोमेन्स डे 13 फरवरी को सरोजिनी नायडू की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हैदराबाद में जन्मी और कैब्रिज में शिक्षित महिलाओं की शक्तिशाली नेत्री सरोजनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हुआ था। ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया ’ या ‘भारत कोकिला ’ सरोजिनी नायडू को साहित्य में योगदान में जाना जाता है। साम्राज्यवाद-विरोधी, सार्वभौमिक मताधिकार, महिला अधिकार कार्यकर्ता श्रीमती नायडू ने भारत में महिला आंदोलनों का मार्ग प्रशस्त किया।। 1925 में सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष एवं 1947 में संयुक्त प्रांत में राज्यपाल और भारत के डोमिनियन में राज्यपाल का पद संभालने वाली पहली महिला थी । महिलाओं के अधिकारों, मताधिकार और संगठनों और विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व के लिए 1917 में महिला भारत संघ की स्थापना की थी । दिवस स्थापना महासभा के 2007 का संकल्प संख्या 62 / 136 के अनुसार अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है । महिला गण के 1995 में आंदोलन के पश्चात 15 अक्टूबर 2008 को प्रथम बार अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया गया था । न्यूयॉर्क में 8 मार्च 1908 को महिलाओं द्वारा मताधिकार के लिए रैली , सोसलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका द्वारा थेरेसा मल्किल के प्रस्ताव पर 28 फरवरी 1909 को राष्ट्रीय महिला दिवस , वोलिटीकेन के अनुसार 1908 में शिकागो में प्रथम महिला दिवस ,संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च 1975 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की मनाए जाने की स्वीकृति दी थी । महिलाओं में शैशवावस्था ,यौवन ,यौनप्रिपक्वता ,क्लीमेक्ट्रिक और पोस्ट क्लीमेंक्टेरिक है । वेदों , स्मृति ग्रंथों में महिलाओं नारी की महत्वपूर्ण प्रधानता का उल्लेख मिलता है ।
भारतीय वांग्मय इतिहास के पन्नों और समाज में नारी का स्थान उत्कृष्ट , गौरव, गरिमा और महिमा का अद्वितीय महत्व है। परिवार संभालने एवं समाज में योगदान भी अविस्मरणीय नारी का कार्य होता है। नारी का गौरव , समर्पण और संघर्ष में है। समाज में शिक्षा, संस्कृति, और आध्यात्मिकता का प्रतिष्ठान सुनिश्चित करती है। नारी की गरिमा साहसिकता और सहनशीलता , समाज में स्थिति के लिए एवं परिवार की रक्षा के लिए संघर्ष करती है। नारी की महिमा उसके कर्तव्य और सेवा है। वह परिवार की देखभाल के साथ-साथ समाज में सेवा करती ।है । नारी का गौरव, गरिमा, और महिमा का संरक्षण समाज की जिम्मेदारी है। हमें नारी के सम्मान और सम्मान के प्रति समाज में जागरूकता फैलानी चाहिए। उसके साथ समानता और न्याय का भाव बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। भारतीय नारी का गौरव, गरिमा, और महिमा समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अंग्रेजी साहित्य में शबा की रानी वीनस जोन ऑफ़ आर्क एवा पेरोन मैरी क्यूरी इंदिरा गांधी विलेन्डोर्फ़ की वीनस वंगारी मथाई मदर टेरेसा ग्रेस हूपर मामेचिहो, गीशा तिब्बती किसान मर्लिन मुनरो ओपरा विनफ़्रे आंग सान सू की जोसेफ़िन बेकर ईसिस लावरीन कॉक्स एलिज़ाबेथ प्रथम क्वेशुआई माँ का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है। पुरातन सनातन धर्म तथा मानव संस्कृति में पुरुष और नारी का सम्मान के लिए नारी का नाम पुरुष पहले जोड़ते थे । जैसे उमा शंकर , सिंता राम , राधा कृष्ण , लक्ष्मी नारायण आदि है । भारतीय संस्कृति मे प्वैदिक काल से नारी का स्थान सम्माननीय रूप यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रफलाः क्रियाः।। अर्थात् जिस कुल में स्त्रियों की पूजा होती है, उस कुल पर देवता प्रसन्न होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा, वस्त्र, भूषण तथा मधुर वचनादि द्वारा सत्कार नहीं होता है, उस कुल में सब कर्म निष्फल होते हैं। खेती की शुरूआत बस्ती बनाकर रहने की शुरूआत नारी द्वारा की थी ।, सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भ में नारी है । कालान्तर में धीरे-धीरे समाज में सामाजिक व्यवस्था मातृ-सत्तात्मक से पितृसत्तात्मक होती गई और नारी समाज के हाशिए पर चली गई। आर्यों की सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भिक काल में महिलाओं की स्थिति सुदृढ़ थी। ऋग्वेद काल में नारी की सर्वोच्च शिक्षा अर्थात् बृह्मज्ञान प्राप्त कर सकतीं थीं। ऋग्वेद में सरस्वती को वाणी की देवी नारी की शास्त्र एवं कला के क्षेत्र में निपुणता का परिचायक है। अर्द्धनारीश्वर की कल्पना स्त्री और पुरूष के समान अधिकारों तथा संतुलित संबंधों का परिचायक है। वैदिक काल में परिवार के कार्यों और भूमिकाओं में पत्नी को पति के समान अधिकार प्राप्त थे। नारियां शिक्षा ग्रहण करने के अलावा पति के साथ यज्ञ का सम्पादन करतीं थीं। वेदों में रोमाला, घोषाल, सूर्या, अपाला, विलोमी, सावित्री, यमी, श्रद्धा, कामायनी, विश्वम्भरा, देवयानी आदि विदुषियों के नाम हैं।वेदों की २१ प्रकाण्ड विदुषियो में दक्ष प्रजापति की पुत्री एवं ऋषि कश्यप की पत्नी देवमाता अदिति चारों वेदों की प्रकाण्ड विदुषि थी। देवमाता अदिति ने पुत्र इन्द्र को वेदों एवं शास्त्रों की शिक्षा दी थी । इन्द्र की पत्नी देव साम्राज्ञी शची वेदों की प्रकांड विद्वान थी। ऋग्वेद के सूक्तों पर शची ने अनुसन्धान किया। शचीदेवी पतिव्रता स्त्रियों में श्रेष्ठ मानी जाती हैं। प्रथम मनु स्वायम्भुव मनु की पत्नी शतरूपा चारों वेदों एवं योग शास्त्र की विदुषी थी। जल प्रलय के बाद मनु और शतरूपा से ही दोबारा सृष्टि का आरम्भ हुआ है। महाराज अश्वपति की पत्नी शाकल्य देवी वनों में रहकर कन्याओं के गुरुकुल स्थापित , आश्रम बनाएं और कन्याएं शिक्षा प्रदान की थी । शाकल्य देवी प्रथम विदुषी द्वारा कन्याओं के लिए शिक्षणालय स्थापित की गई थी । महर्षि मेधातिथि को शास्त्रार्थ में पराजित करने वाली वेदों के विदुषी संध्या ने यज्ञ को सम्पन्न कराने वाली प्रथम महिला पुरोहित थी। ब्रहर्षि वसिष्ठ जी की धर्मपत्नी विदुषी अरुंधति ने सप्तर्षि मंडल में ऋषि पत्नी के रूप में गौरवशाली स्थान पाई थी । काक्षीवान् की कन्या ब्रह्मवादिनी घोषा को कोढ़ रोग हो गया था, लेकिन उसकी चिकित्सा के लिए वेद और आयुर्वेद का गहन अध्ययन किया और ये कोढी होते हुए विदुषी और ब्रह्मवादिनी बन गई। भगवान सूर्य पुत्र अश्विनकुमारों ने घोषा की चिकित्सा की और ये अपने काल की विश्वसुन्दरी बनी थी । वेदों पर अनुसन्धान करने वाली विदुषीब्रह्मवादिनी विश्ववारा ने ऋग्वेद के पांचवें मण्डल के द्वितीय अनुवाक के अटठाइसवें सूक्त षड्ऋकों का सरल रूपान्तरण किया था। अत्रि महर्षि के वंश में पैदा होने वली इस विदुषी ने वेदज्ञान के बल पर ऋषि पद प्राप्त किया था।ऋषि अत्रि के वंश की ब्रह्मवादिनी अपाला को कुष्ठ रोग हो गया था । कुष्ट रोग के कारण इनके पति ने अपाला को घर से निकाल दिया था। अपाला द्वारा आयुर्वेद पर अनुसंधान कर सोमरस की का निर्माण कर इन्द्र देव को सोमरस प्रदान की गई थी । आयुर्वेद चिकित्सा से अपाला विश्वसुंदरी बनई और वेदों के अनुसंधान में संलग्न हो गईं थी । ऋग्वेद के अष्टम मंडल के ९१वें सूक्त की १ से ७ तक ऋचाएं संकलित कीं थी । आदित्य की पुत्री और सावित्री की छोटी बहन विदुषी तपती देवलोक, दैत्यलोक, गान्धर्वलोक और नागलोक में अधिक सुन्दरी थी। वेदों की विद्वान रूप और गुणों से प्रभावित होकर अयोध्या के महाराजा संवरण ने तपती से विवाह किया था। तपती ने अपने पुत्र कुरु को स्वयं वेदों की शिक्षा दी थी । ब्रह्मवादिनी वाक् अभृण ऋषि की कन्या ब्रह्मवादिनी वाक ने अन्न पर अनुसन्धान किया और युग में उन्नत खेती के लिए वेदों के आधार पर नए-नए बीजों को खेती के लिए किसानों को अनुसंधान से पैदा करके दिया था । देवगुरु बृहस्पति की पुत्री और भावभव्य की धर्मपत्नी ब्रह्मवादिनी रोमशा ने ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर नारी शक्ति में बुद्धि का विकास किया था । त्रेतायुग युग में मिथिला देश के विद्वान गर्ग गोत्रीय वचक्नु की पुत्री ब्रह्मवादिनी गार्गी वाचक्नवी भी कहते हैं। गर्ग गोत्र की गार्गी ने शास्त्रार्थ में विद्वान महिर्ष याज्ञवल्क्य तक को हरा दिया एवं माता सीता को नारीत्व की शिक्षा प्रदान की थी । महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी विदुषी मैत्रेयी ने वेदों का गहन अध्ययन किया। पति परमेश्वर की उपाधि इन्हीं के कारण जग में प्रसिद्ध हुई, क्योंकि इन्होंने पति से ज्ञान प्राप्त कर ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए कन्या गुरुकुल स्थापित किए थे ।मिथिला के महाराज जनक के राज्य की विदुषी सुलभा ने शास्त्रार्थ में राजा जनक को हराया एवं स्त्री शिक्षा के लिए शिक्षणालय की स्थापना की थी । महिर्ष अगस्त्य की धर्मपत्नी एवं विदर्भ राज की पुत्री विदुषी लोपामुद्रा ने राजकुल में जन्म लेकर सादा जीवन उच्च विचार की समर्थक थी, तभी तो इनके पति ने इन्हें कहा था- तुष्टोsअहमस्मि कल्याणि तव वृत्तेन शोभने, अर्थात् कल्याणी तुम्हारे सदाचार से मैं तुम पर बहुत संतुष्ट हूं। ये इतनी महान विदुषी ने अपने आश्रम में भगवान राम, सीता एवं लक्ष्मण को ज्ञान की बहुत सी बातों की शिक्षा दी थी। ममता के पुत्र दीर्घतमा ऋषि की धर्मपत्नी विदुषी उशीज थी। महर्षि काक्षीवान इन्हीं के सुपुत्र थे। इनके दूसरे पुत्र दीर्घश्रवा महान ऋषि थे। वेदों की शिक्षा उशीज ने अपने पुत्रों को प्रदान की थी। ऋग्वेद के प्रथम मंडल के ११६ से १२१ तक के मन्त्र पर अनुसंधान किया था। महर्षि दधीचि की धर्मपत्नी विदुषी प्रतिथेयी थी। ये विदर्भ देश के राजा की कन्या और लोपामुद्रा की बहिन थीं। इनका पुत्र पिप्पललाद बहुत बडा विद्वान हुआ है।दीर्घतमा ऋषि की माता ममता विदुषी एवं ब्रह्मज्ञानसम्पन्ना थीं।विदुषी भामती वाचस्पति मिश्र की पत्नी थी। विदुषी विद्योत्तमा से परास्त होकर पण्डितों ने एक मूर्ख को मौनी गुरु बताकर संकेत से शास्त्रार्थ की चुनौती दी थी। पण्डितों ने दो अंगुली और मुक्का आदि के अलग अर्थ बताकर विद्योत्तमा को परास्त घोषित करके मूर्ख से विवाह करने को विवश कर दिया। विद्योत्तमा ने पति से उष्ट्र को उसट सुनकर उसे रात में ही घर से भगाकर दरवाजा बंद कर दिया। ‘‘अनावृतकपाटं द्वारं देहि।’’-कुछ वर्ष बाद एक घनघोर रात्रि में पति ने पुकारा। विद्योत्तमा ने द्वार खोलकर कहा, ‘‘अस्ति कश्चित वाक् विशेषः।’’ पत्नी के उपरोक्त तीन शब्दों पर अस्ति से कुमार सम्भव महाकाव्य, कश्चित् से मेघदूत खण्डकाव्य और वाक्विशेषः से रघुवंश महाकाव्य की रचना कालजयी ग्रंथ के रचनाकार अतीत के मूर्ख, विश्व के सर्वश्रेष्ठ संस्कृत साहित्यकार अमर महाकवि कालिदास थे। मिथिला की वेदांत और शास्त्र ज्ञाता मंडन मिश्र की भार्या एवं वेदांत ज्ञातृ भारती ने आदि शंकराचार्य से शास्त्रार्थ की थी । आदि शंकराचार्य ने नारी की गुणों का महत्वपूर्ण उल्लेख किया है ।
मध्य काल में भारतीय नारी की स्थिति में कुछ गिरावट आ गई थी। परम्परागत तौर पर मध्य वर्ग में नारी की भूमिका घरेलू कामों से जुडी़ रहती थी जैसे कि बच्चों की देखभाल करना और ज़्यादातर औरतें पैसे कमाने नहीं जाती थीं। मध्यम वर्ग में धन की कमी की वजह से नारी को काम / मजदूरी करनी पड़ती थी। मध्य काल में महिलाए समाज में राज्य प्रमुख, संत अहिल्याबाई होळकर, चांदबीबी, रानी चेन्नम्मा, रानी लक्ष्मीबाई महिला राज्यकर्ता प्रसिद्ध है । संत मीराबाई, संत मुक्ताबाई, कान्होपात्रा थी । भारतीय नारियों में कस्तूरबा गांधी , सरोजनी नायडू , भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरागांधी , एनी वेसेन्ट लेखिका सुभद्राकुमारी चौहान , महादेवी वर्मा आदि है।
बहुत उत्तम जानकारी l
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा और तथ्यपरक
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