गुरुवार, जुलाई 11, 2024

चतरा की सांस्कृतिक विरासत

चतरा की सांस्कृतिक विरासत  
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
उत्तरी छोटानागपुर का प्रवेश द्वार पठारीय व  प्राकृतिक वनों से परिपूर्ण  झारखंड राज्य का चतरा जिले के 3706 वर्गकिमी क्षेत्रफल में चतरा एवं हंटरगंज अनुमंडल ,12 प्रखंडों में चतरा , कुंडा ,हंटरगंज , प्रतापपुर ,लावालौंग , गिधौर ,पथलगड्ढा ,सिमरिया ,टंडवा ,इटखोरी ,कान्हाचट्टी ,मयूरहंड में 154 पंचायत। और 1474  गाँव में 2011 जनगणना के अनुसार 1042304 आबादी निवास करते है । चतरा जिले की स्थापना 29 मैं 1991 ई. में हुई है । ब्रिटिश साम्राज्य के शासन ने चतरा को अनुमंडल का दर्जा 1914 ई. में किया था । 18 वी. शताब्दी में रामगढ़ जिले का मुख्यालय चतरा एवं 1804-05  में  रामगढ़ जिला का मुख्यालय चतरा का राजा राम मोहन राय सेरिस्तदार थे । चतरा जिले का क्षेत्र सनातन धर्म का शाक्त। सम्प्रदाय , सौर , शैव , वैष्णव  , बौद्ध , जैन सम्प्रदाय एवं मगही , हिंदी भाषीय क्षेत्र  है । कीकट प्रदेश का अंग और शाक्त एवं शैव , सौर और वैष्णव सम्प्रदाय का स्थल चतरा का क्षेत्र था । 
इटखोरी भद्रकाली मंदिर -  चतरा  के पूर्व में 35 किमी और जीटी  रोड  चौपारण से 16 किमी पश्चिम महाने  एवं बक्सा नदी के संगम पर अवस्थित इटखोरी मां भद्रकाली मंदिर परिसर में शाक्त , शैव , बौद्ध , जैन  धर्मों का संगम स्थल है ।प्रागैतिहासिक काल से इटखोरी पवित्र भूमि पर धर्म संगम की अलौकिक भक्ति धारा  है । सनातन धर्मावलंबियों के लिए भूमि मां भद्रकाली तथा सहस्त्र  शिवलिंग महादेव का सिद्ध पीठ , भगवान बुद्ध की तपोभूमि के रूपमें आराधना वा उपासना का स्थल  शांति की खोज में निकले युवराज सिद्धार्थ की  तपस्या स्थली पर उनकी मां उन्हें वापस ले जाने आयी थी |  सिद्धार्थ का ध्यान नहीं टूटने एवं  उनके मुख से इतखोई शब्द निक्लाने से  इटखोरी कहा जाने लगा था ।| जैन धर्मावलंबियों ने जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ स्वामी की जन्मभूमि है| तपस्वी मेघा मुनि की  तप से भद्रकाली मंदिर परिसर परिसर को सिद्ध करके के सिद्धपीठ के रूप में स्थापित किया था । त्रेतायुग में भगवान राम के वनवास तथा पांडवों के अज्ञातवास में  मां भद्रकाली मंदिर परिसर का जुड़ाव रहा है । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा वर्ष 2011 में उत्खनन के दौरान के पुरातत्व विभाग ने 9वी० 10वि० काल में मठ मंदिरों के निर्माण की पुष्टि की है । सेंड स्टोन पत्थर को तराश कर बनाए गए प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष तथा बहुमूल्य पत्थरों से निर्मित प्रतिमाएं है । मां भद्रकाली की प्रतिमा बेशकीमती काले पत्थर को तराश कर 5 फीट ऊंची आदम कद प्रतिमा चतुर्भुज है । प्रतिमा के चरणों के नीचे ब्राह्मी लिपि में अंकित है । माता भद्रकाली प्रतिमा का
 निर्माण 9 वी शताब्दी में राजा महेंद्र पाल द्वितीय ने कराया था| बौद्ध धर्मावलंबियों द्वारा माता भद्रकाली की  प्रतिमा को मां तारा के रूप में उपासना करते  हैं|
कोल्हुआ पहाड़ -  समुद्र तल से 1750 फीट की ऊंचाई पर स्थित हंटरगंज प्रखंड से 6 किलोमीटर दूर कोल्हुआ पहाड़ 1575 फिट की उचाई श्रंखला पर  मां कौलेश्वरी मंदिर परिसर वैदिक काल का स्थल है| कल्हूआ  पहाड़ की चोटी पर सनातन, बौद्ध एवं जैन धर्म का संगम स्थल  है| महाभारत काल में स्थल राजा विराट की राजधानी थी । धर्मपरायण राजा विराट ने  मां कौलेश्वरी की प्रतिमा को  स्थापित किया था ।  बौद्ध धर्मावलंबी के लिए कौलेश्वरी पहाड़ भगवान बुद्ध की तपोभूमि के साथ मोक्ष प्राप्त करने का पवित्र स्थल है| । कोल्हुआ  के मांडवा मांडवी नामक स्थल पर बौद्ध धर्मावलंबी बाल व नाखून का दान कर मोक्ष प्राप्त करने का संस्कार करते हैं |पहाड़ के पाषाणों ने बौद्ध भिक्षुओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है| जैन धर्म के दशवीं तीर्थंकर स्वामी शीतलनाथ की तपोभूमि कौलेश्वरी पहाड़ था । जैन धर्मावलंबियों ने पहाड़ की चोटी पर  भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमाएं स्थापित है|इसके सबसे ऊँची चोंटी को आकाश लोचन कहा जाता है । कौलेश्वरी मंदिर - पहाड़ की चोटी पर राजा विराट  द्वारा कौलेश्वरी मंदिर के गर्भगृह  में मां कौलेश्वरी की  प्रतिमा स्थापित है |  कौलेश्वरी माता की प्रतिमा काले दुर्लभ पत्थर को तराश कर बनाई गई है| मंदिर के पुजारियों वह भक्तों के अनुसार माता यहां जागृत अवस्था कौलेश्वरी सिद्धपीठ  है। ऋषि मार्कण्डेय के  दुर्गा सप्तशती में उल्लेख  है-कुलो रक्षिते कुलेश्वरी। अर्थात कूल की रक्षा करने वाली कुलेश्वरी। त्रेतायुग में श्रीराम, लक्ष्मण सीता ने वनवास काल और द्वापरयुग में कुंती ने अपने पांचों पुत्रों के साथ अज्ञातवास का काल और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का विवाह मत्स्य राज की पुत्री उत्तरा का हुआ था ।।भू-तल से 1575 फीट ऊंचे कल्हूआ पर्वत का प्राकृतिक सौंदर्य ,  हरे-भरे मनोहारी वादियों के मध्य मां कौलेश्वरी मंदिर, शिव मंदिर, जैन मंदिर व बौद्ध  स्थल और  तीन प्राकृतिक झील व  तलाब है।
 तमासीन जलप्रपात -  कान्हाचट्टी प्रखंड का  चतरा के उत्तर – पूर्व में 26 किलोमीटर की दुरी पर तमसीन  झरना तथा तमासिन पर्वत की गुफा माँ भगवती को समर्पित है । तमासिन  क्षेत्र मिश्रित जंगल में   उच्चे  पेड़ दिन के उजाले में  अँधेरा  बनाते हैं। मालुदाह जलप्रपात -  चतरा के पश्चिम में लगभग 8 किलोमीटर  की दूरी पर 5 किमी तक यह गाडियों के द्वारा और 3 किमी पैदल चलकर मलूदाह पर्वत से  50 फीट की ऊंचाई से मलूदाह झरना गिरता है। मलूदाह  झरने का अर्ध गोलाकार पहाड़ को काटा गया  है। डुमेर – सुमेर जलप्रपात -  चतरा से 12 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में स्थित डुमेर पर्वत का  सुमेर जलप्रपात   वसंत, चट्टानी दीवारों की चमक  सफेद किरणों से उगते हैं। गोवा जलप्रपात - चतरा  के पश्चिम में 6 किलोमीटर की दूरी एवं  मालुदाह से 4.5 किलोमीटर पर स्तित गोवा पर्वत की झरना 30 फीट की ऊंचाई से जलाशय में गिरता चट्टानें से घिरे गोवा जलाशय है। कुंदामहल -  कुंदा गांव से  चार मील की दूरी पर  17 वीं शताब्दी में निर्मित कुंडा किला या कुदा महल  है। कुंदा महल दक्षणी भाग  से  आधा मील की दूरी पर कुंड गुफा अवस्थित है । कुंडा गुफा का प्रवेश द्वार काफी संकीर्ण है ।  गुफा के अन्दर  सेंट्रल हॉल  है । केंद्रीय हॉल के साथ अपने एकमात्र मार्ग के साथ जुड़े छोटे हॉल, पूरी तरह से अंधेरा हैं। गुफा के केंद्रीय कक्ष के अंदर के दीवारों पर नक्काशी द्वारा ब्राह्मी लिपि लिखी गई हैं । बिचकिलिया जलप्रपात - चतरा से 11 कि.मी. की दूरी पर पश्चिम  अवस्थित बिचकिलिया पर्वत का बिचकिलिया झरना से निरंजना (लिलाजन ) नदी के किनारे पर ‘दाह’  जलाशय है। दुवारी जलप्रपात - चतरा जिले से 35 किलोमीटर दूर पूर्व में गिधौर – कटकमसांडी मार्ग पर स्थित बलबल दुबारी जलप्रपात है । बलबल नदी के किनारे दुवारी के समीप हजारीबग्ग जिले का कटकम सांडी प्रखंड के बलबल में गर्मकुंड  है। गर्मकुंड बलबल के किनारे माता बागेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में माता बागेश्वरी एवं 18वीं शताब्दी की मूर्तियां , शिवलिंग है । खैवा बंदारू जलप्रपात -  चतरा शहर के दक्षिण-पश्चिम में जिला मुख्यालय से चतरा – चन्दवा रोड में  10 किलोमीटर पर बधार से तीन किलोमीटर की दुरी पर बंदारू जलप्रपात है। जंगलों के मध्य  में  सुंदरता के सौंदर्य में चमकदार है। बंदारू (दाह) जलाशय की धारा चट्टानों के माध्यम से अपना रास्ता बनाती है । खैवा जलाशय पत्थर की दीवारों को काट घाटी का निर्माण कर दोनों किनारों की दीवार वाले पत्थरों में कई आकृतियों के साथ गहरी खाई बनाती  है ।  प्रकृति ने चट्टानों में चट्टानी नदी का विस्तार प्रतिध्वनि गाने घाटी की दीवारों से आत्मापूर्ण भव्यता के  मधुर संगीत में गूंजते हैं अगर एक पत्थर जलाशय में फेंक देने पर  कई कबूतर उस ध्वनि से अपने घोंसले से एक साथ उड़ जाते है| धाराओं के नृत्य की लहरें, जगहों पर फोम, गड़गड़ाने की आवाज का निर्माण पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए निश्चित  घाटी ध्वनि के साथ गूंजती  है ।केरिदाह जलप्रपात -   चतरा के उत्तर-पश्चिम भाग पर 8 किमी   स्थित  पानी की गिरावट दो  पहाड़ियों के बीच  से तीन भागो में विभक्त करती है ।
 चतरा - , झारखंड के प्रवेशद्वार, बिहार के गया , औरंगाबाद जिले की सिमा से घिरा उत्तरी छोटानागपुर  का चतरा ऐतिहासिक प्रगति का  मूक दर्शक है। मगध साम्राज्य के सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान 232 ई.पू.  “अतावी” या वन राज्यों का। का प्रमुख क्षेत्र चतरा  था ।  मगध साम्राज्य के राजा  समुद्रगुप्त ने छोटानागपुर के माध्यम से चलते हुए महानद की घाटी में दक्षिण कौशल के राज्य के खिलाफ प्रथम  हमला करने का निर्देश दिया था । तुगलक के शासनकाल के दौरान,दिल्ली सल्तनत के संपर्क में चतरा  आया। औरंगजेब के शासनकाल में बिहार के  गवर्नर दाऊद खान ने 5 मई 1660 को कोठी किले पर कब्जा करने के बाद  कुंडा  पहाड़ी तट पर स्थित कुंडा किले पर कब्जा किया था । कुंडा किला और कोठी किला  2 जून, 1660 ईस्वी पर पूरी तरह से नष्ट हो गया था। 17 वीं सदी में राजा  रामदास  के कब्जे में कुंदा  किला था। अलीवर्गी खान 1734 ई. में कुंदा  की ओर अग्रसर थे । टिकारी (गया) के विद्रोही जमींदारों को पराजित करने के बाद और फिर उन्होंने चतरा किला पर हमला किया और कुंडा और कोठी किले को ध्वस्त कर दिया था । ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन चतरा का क्षेत्र 1769 ई. . में समाजसुधारक राजा राम मोहन रॉय, , 1805-06 में चतरा  में ‘सिरिश्द्दर’ के पद   रहते  थे । बिहार में  1857 के विद्रोह के दौरान छोटानागपुर में विद्रोहियों और ब्रिटिशों के बीच लड़ा जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई ‘चतरा की लड़ाई’ थी। चतरा की लड़ाई  2 अक्टूबर 1857 को ‘फांसी तालाब  के पास एक घंटे तक युद्ध  चला था । विद्रोहियों को पूरी तरह हराया गया था। 56 यूरोपियन सैनिकों और अधिकारियों की मौत हुई जबकि 150 क्रांतिकारियों की मौत हो गई और 77 लोगों को गड्ढे में दफनाया गया। सूबेदार  जय मंगल पांडे और नादिर अली खान को 4 अक्टूबर 1857 ई. .को जयमंगल पांडेय व नादिर अली को  मौत की सजा सुनाई गई। यूरोपीय और सिख सैनिकों को उनके हथियारों और गोला-बारूद के साथ  दफनाया गया।  इंस्क्रिप्वर पट्टिका  में शिलालेख में उल्लेख है: “रामगढ़ बटालियन के विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई में 2 अक्टूबर 1857 को हर महामहिम की 53 वीं रेजिमेंट पैर और सिपाही की एक पार्टी मारे गए थे। 53 वीं रेजिमेंट के 70 वें बंगाल मूल इंफैंट्री और सर्गेन्ट डी। डायन की लेफ्टिनेंट जे.सी.सी. डुन को युद्ध में विशिष्ट वीरता के लिए विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था, जिसमें विद्रोहियों को पूरी तरह हराया गया था और उनके सभी चार बंदूकों और गोला-बारूद को खो दिया था। चतरा जिले की नदियां में बसाने , भद्रकाली ,महाने ,हदहदवा ,अमानत , फल्गु ,निरंजना ,जमानत ,नदियां।  एवं पर्वतों में कोल्हुआ  1575 फिट ऊँचाई पर स्थित है । कुनवा ,  चनकी ,चौपारि ,गटमाही , ,कुरखेमापाली ,पिपरा ,हेदी ,कुडलॉन्जा ,अहिरपुरवा ,आरा , कुंडा सपरि पहाड़ियां है ।
करपी , अरवल , बिहार 804419
9472987491

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