गिरिडीह की सांस्कृतिक विरासत
सत्येन्द्र कुमार पाठक
झारखंड राज्य के पूर्वी क्षेत्र 4550 वर्गकिमी .56 व 1873.97 वर्गमील क्षेत्रफल में फैला गिरीडीह जिला का मुख्यालय गिरिडीह है। गिरिडीह ज़िला की 2011 जनगणना के अनुसार 2445774 आबादी हिंदी , मगही और संथाली भाषीय है। गिरिडीह का अर्थ है “गिरी” का अर्थ “पहाड़,पर्वत” और “डीह” का अर्थ है “क्षेत्र या भूमि" होता है । गिरिडीह शब्द “पहाड़ों वाला क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक धरोहर, और कृषि दृष्टि से समृद्धि का केंद्र है, और यह अपने स्थानीय आदिवासी भाषा और सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है। अबरख एवं कोयला खनिजों , जैनियों का तीर्थस्थल पार्श्वनाथ और वैज्ञानिक सर जगदीश चन्द्र बोस है। उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल का हजारीबाग जिला के विभजन के २४ डिग्री ११ मिनट उत्तरी अझांश और ८६ डिग्री १८ मिनट पूर्वी देशांतर के बीच स्थित गिरिडीह अनुमंडल का सृजन ब्रिटिश साम्राज्य काल मे 1870 ई. और गिरिडीह जिला का सृजन 04 दिसंबर 1972 ई. में हुआ है। गिरिडीह जिले के उत्तर में बिहार रज्य के जमुई और नवदा जिले , पुर्व में झारखंड राज्य का देवधर और जामताड़ा, दक्षिण में धनबाद और बोकारो तथा पश्चिम में हजारीबाग एवं कोडरमा जिले की सीमाओं से घिरा हुआ है । पारसनाथ पहाड़ी की ऊँचाई समुद्र तल से ४४३१ फिट है। विदेशी आक्रमणकारियों के कारण छोटा नागपुर के निवासियों का मुण्डा राज्य का बना था । गिरिडीह जिला के 1556 ई0 में दिल्ली के गद्दी का उत्तरघिकारी अकबर काल में गिरिडीह को खुखरा के नाम ख्याति था। गिरिडीह का क्षेत्र का प्रथम मुगल राजस्व प्रसासन के रूप में पेश किया गया । . रामगढ़ केंदी कुंदा और खरगडीहा को ब्रिटिश जिला के रूप मे गठन किया गया था । कोल के उत्पादन में बढ़ोत्तरी 1931 ई. के बाद क्षेत्र की प्रसाशनिक संरचना बदल गयी थी ।भौगोलिक दृष्टि से, गिरिडीह जिले के बगोदर ब्लॉक के निकट पश्चिमी भाग और निचले पठार की औसत ऊंचाई उनकी उतार-चढाव सतह से 1300 फुट है। उत्तर और उत्तर पश्चिम में, निचली पठार काफी फार्म का स्तर पठार होता है । 700 फुट नीचे घाटी पर नहीं पहुंच जंगलों को समान रूप से वितरित करता हैं। वृक्षों में साल और प्रजातियो में बांस, सिमुल, महुआ, पलास, कुसुम, केन्द, आसन पीयार और भेलवा हैं। गिरिडीह जिला का बराकर और सकरी नदी. खनिज संसाधनों में समृद्ध कोयला क्षेत्र , मेटलर्जिकल कोल , मिका है। तिसरी और गांवा ब्लॉकों में मिका पाया जाता है।गिरिडीह जिले में पर्यटक स्थल में पारसनाथ पर्वत पर 24 जैन तीर्थंकरों ने मोक्ष प्राप्त किया था। शिखरजी पर्यटन स्थल समुद्र तल से 1350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। र्ण्यटक स्थल उसरी फॅाल, खण्डोली, मधुबन, पारसनाथ(मारांग् बुरू), राजदह धाम निमाटाँड, झारखण्डी धाम और हरिहर धाम हैं। गिरिडीह जिले के अनुमंडल में गिरिडीह सदर, खोरिमहुआ, बगोदर- सरिया और डुमरी और सामुदायिक विकास प्रखण्ड, गिरिडीह, गाण्डेय, बेंगाबाद, पीरटांड, डुमरी, बगोदर, सरीया, बिरनी, धनवार , जमुआ, देवरी, तिसरी और गांवा हैं।
पारसनाथ पर्वत - गिरीडीह जिले में समुद्र तल से 1365 मीटर की उचाई युक्त पारसनाथ पहाड़ी श्रृंखला में एक पर्वत शिखर का नाम 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के नाम है। पारसनाथ पर्वत की चोटी पर जैन तीर्थ शिखरजी हैं। संथाल और आदिवासी लोगों द्वारा पारसनाथ पर्वत को मारांग बुरु , 'महान पर्वत', सर्वोच्च देवता कहा गया है। पारसनाथ पर्वत जैन धर्मावलम्बियों के लिए विश्व में प्रसिद्ध जैन धर्म के 20 तीर्थंकरों के मंदिर अवस्थित है।। तलैटी से शिखर तक तकरीबन 10 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है।
भगवान पार्श्वनाथ - जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर 9 हाथ लंबाई युक्त भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म पौष कृष्ण एकादशी 872 ई. पू. में इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन की भार्या रानी वामा देवी के पुत्र वाराणसी के भेलूपुर में हुआ एवं 100 वर्षीय पार्श्वनाथ का मोक्ष श्रावण शुक्ल अष्टमी 772 ई.पू. को सामवेद शिखर ( पारसनाथ पर्वत ) पर हुआ था । जैन ग्रंथ के अनुसार भगवान् कृष्ण के चाचा अश्वसेन के पुत्र बचपन से अहिंसा विचार धारा से ओतप्रोत थे जब वैवाहिक कार्यक्रम में श्री कृष्ण एवं बलराम द्वारा विभिन्न स्थानों के राजाओं को आमंत्रित किया गया जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में शाकाहारी एवं मांसाहारी भी थे फलस्वरूप नेमिनाथ जी बहुत दुखी हुए और जैन धर्म समर्थन एवंं प्रसार के लिए स्वयं को समर्पित किया था । वृक्ष में अशोक , रंग हरा , शासकदेव यक्ष ,धरणेन्द्र यक्षणी पद्मावती प्रथम गणधर श्री शुभदत , श्वेताम्बर परंपरा में 8 और दिगंबर परंपरा के 10 अनुयायी थे । तीर्थंकर पार्श्वनाथ के शरीर पर सर्पचिह्म था। वामा देवी ने गर्भकाल में स्वप्न में सर्प देखने के कारण पुत्र का नाम 'पार्श्व' रखा गया। उनका प्रारंभिक जीवन राजकुमार के रूप में व्यतीत हुआ। एक दिन पार्श्व ने महल से देखा कि पुरवासी पूजा की सामग्री लिये तपस्वी पंचाग्नि जलाने के क्रम में अग्नि में सर्प का जोड़ा मर रहा है। पार्श्व ने कहा— 'दयाहीन' धर्म किसी काम का नहीं'। तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने तीस वर्ष की आयु में घर त्याग दिया था और जैन दीक्षा ली। काशी में 83 दिन की कठोर तपस्या करने के बाद 84वें दिन केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। पुंड़्र, ताम्रलिप्त आदि देशों में भ्रमण किया। ताम्रलिप्त में उनके शिष्य हुए। पार्श्वनाथ ने चतुर्विध संघ की स्थापना मे श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविका है । प्रत्येक गण एक गणधर के अन्तर्गत कार्य करता था। सभी अनुयायियों, स्त्री या पुरुष सभी को समान माना जाता था। सारनाथ जैन-आगम ग्रंथों में सिंहपुर के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं पर जैन धर्म के 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ जी ने जन्म लिया और अहिंसा धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। केवल ज्ञान के पश्चात तीर्थंकर पार्शवनाथ ने जैन धर्म के चार मुख्य व्रत – सत्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रह की शिक्षा दी थी।श्री सम्मेद शिखरजी गिरिडीह जिले की पारसनाथ पर्वत पर चले गए जहाँ श्रावण शुक्ला सप्तमी को उन्हे मोक्ष की प्राप्ति हुई। जैन ग्रंथों में तीर्थंकर पार्श्वनाथ को नौ पूर्व जन्मों का वर्णन में प्रथम जन्म में ब्राह्मण, दूसरे में हाथी, तीसरे में स्वर्ग के देवता, चौथे में राजा, पाँचवें में देव, छठवें जन्म में चक्रवर्ती सम्राट और सातवें जन्म में देवता, आठ में राजा और नौवें जन्म में राजा इंद्र (स्वर्ग) , दसवें जन्म में तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूर्व जन्मों के संचित पुण्यों और दसवें जन्म के तप के फलत: तीर्थंकर बनें थे ।
18वीं सदी तक खडागड़िहा राज्य के अधीन ,ब्रिटिश साम्राज्य के तहत जगंल तराई के तहत और कॉल विद्रोह के बाद 1833 ई. में खडागड़िहा राज्य , कुंडा राज्य कैंडी राज्य और रामगढ़ राज्य को को मिला कर हजारीबग्ग जिला में गिरिडीह को मिला दिया गया । खडागड़िहा राज्य बंदोवस्ती धनबाद राज्य के साथ 1809 ई. में गिरिडीह को मिला था । गिरिडीह जिले के 6 विधान सभा क्षेत्र में जमुआ प्रखंड के मिजोगंज में भगवान सूर्य को समर्पित जलीय सूर्यमंदिर ,, पिरताड़ में श्वेताम्बरी जैन मंदिर ,, रामोशरण मंदिर ,भूमिया जी मंदिर , उसरी नदी के किनारे कबीरज्ञान मंदिर , झूमर खेलना पर्वत पर कबूतरी गिरिनाथ धाम एवं खुखरा पर्वत पर पार्श्वनाथ मंदिर है । गिरिडीह जिले में पार्श्वनाथ पर्वत ( खुखरा पर्वत ) , डाबर सैनी पर्वत ,खंडीली पर्वत ,जुबली पर्वत ,झुमरखेलवा पर्वत , नचनियां पर्वत है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें