गुरुवार, अक्टूबर 30, 2025

सूर्योपासना

वैवस्वत मनु, देवमाता अदिति और सूर्योपासना 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
भारतीय पौराणिक इतिहास का आरंभिक काल, विशेषकर सप्तम मन्वन्तर, महर्षि कश्यप की पत्नी देवमाता अदिति और उनके पुत्रों आदित्यों के वंश से जुड़ा हुआ है। यह वंश न केवल देवताओं का मूल स्रोत है, बल्कि इसी से वैवस्वत मनु का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्हें वर्तमान मानव जाति का आदि-पिता माना जाता है।
देवमाता अदिति का वंश ब्रह्मा जी से जुड़ा हुआ है। वह ब्रह्मा जी के पौत्री, दक्ष प्रजापति की पुत्री संप्रति की पुत्री थीं। उनका विवाह ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि के पुत्र, महान ऋषि कश्यप से हुआ। अदिति को 'देवमाता' कहा जाता है, जिसका अर्थ है देवताओं की माता। अदिति के 12 तेजस्वी पुत्रों को द्वादश आदित्य कहा गया है, जो सृष्टि के कल्याण और व्यवस्था के प्रतीक हैं। ये आदित्य इस प्रकार हैं: विवस्वान (सूर्य देव) , अर्यमा ,पूषा ,त्वष्ठा , सविता ,भग ,धात , वैवस्वत (मनु) , वरुण ,मित्र ,इंद्र , विष्णु (वामन रूप में) है।  इनके अतिरिक्त, अदिति की एक पुत्री इला का भी उल्लेख मिलता है, जो वंश विस्तार में महत्त्वपूर्ण थीं। इन पुत्रों में, विवस्वान (सूर्य देव) का स्थान सृष्टि के काल-चक्र और ऊर्जा के स्रोत के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
देवमाता अदिति के पुत्र विवस्वान (सूर्य देव) का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा (या विवस्वती संज्ञा) से हुआ। इस तेजस्वी जोड़े की संतानों ने सृष्टि के काल-चक्र और धर्म-व्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाई:मन्वन्तर संचालक वैवस्वत मनु: ये वर्तमान (सातवें) मन्वन्तर के संचालक हैं और इन्हें मानव जाति का 'आदि-पिता' माना जाता है। मृत्युदेव यम धर्मराज: मृत्यु और धर्म के देवता।देव वैद्य अश्विनी कुमार: देवताओं के चिकित्सक। यमुना: नदी के रूप में प्रतिष्ठित पुत्री थी । वैवस्वत मनु ने ही जल प्रलय के पश्चात् शेष बची सृष्टि को पुनः स्थापित किया। उन्हें मानव जाति का प्रथम पिता कहा जाता है, जिससे आगे चलकर सूर्यवंश और चंद्रवंश जैसी महान राजवंशावलियाँ निकलीं। पत्नी और संतान: मनु की पत्नी श्रद्धा थीं, जिनसे उनके नौ तेजस्वी पुत्र और एक पुत्री थीं: पुत्र: इक्ष्वाकु, नरिष्यन्त, करुष, धृष्ट, शर्याति, नभग, पृषध्र, कवि। पुत्री: इला थी । वैवस्वत मनु का कार्यक्षेत्र प्राचीन भारतीय सभ्यता के विकास में केंद्रीय भूमिका निभाता है: सरस्वती नदी क्षेत्र: उनका मुख्य निवास और कार्यक्षेत्र प्राचीन काल की महत्वपूर्ण नदी सरस्वती के किनारे माना जाता है। यह क्षेत्र वैदिक संस्कृति का केंद्र था। उत्तर भारत: उनका साम्राज्य हिमालय के दक्षिण में और गंगा नदी के मैदानी इलाकों तक फैला था। अयोध्या: पौराणिक स्रोतों के अनुसार, उनका संबंध अयोध्या से भी था, जो बाद में उनके ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु के वंशजों (सूर्यवंश) की राजधानी है।वैवस्वत मनु के पुत्रों ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपने वंश और साम्राज्य की स्थापना की, जिससे सभ्यता का भौगोलिक विस्तार हुआ।
इक्ष्वाकु सूर्यवंश अयोध्या, कोसल। पुत्र निमि का क्षेत्र: गंडकी प्रदेश, बागमती प्रदेश, वर्तमान बज्जि, मिथिला, नेपाल का क्षेत्र। ,शर्याति शैर्यत/शार्यात कीकट प्रदेश (वर्तमान मगध, सोन प्रदेश, फल्गु प्रदेश, पुनपुन प्रदेश, गांगेय प्रदेश), पंजाब, हरियाणा और उसके आसपास के क्षेत्र। , करुष कारूष मध्य भारत क्षेत्र, बघेलखण्ड, कौशाम्बी (कौशाम्बी वंशीय)। ,नरिष्यन्त नैरिष्यन्त (पश्चिमी क्षेत्र) , धृष्ट धृष्टकुल/धृष्टवंश (मध्यवर्ती क्षेत्र) ,नभग नाभाग/नाभागवंशी (उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र) , पृषध्र पृषध्रवंश (दक्षिणी क्षेत्र) ,कवि कविवंश/काव्यवंशी (धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र) ,शर्याति वंश का कीकट/मगध में योगदान:शर्याति का कार्यक्षेत्र आरंभ में उत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा) में था, किंतु बाद में उनका संबंध कीकट प्रदेश (वर्तमान बिहार के मगध, सोन, फल्गु, पुनपुन क्षेत्र) से जुड़ा। उनकी पुत्री सुकन्या का विवाह महान च्यवन ऋषि से हुआ। सुकन्या और च्यवन ऋषि के पुत्र प्रमति ने ही सोन प्रदेश, गांगेय प्रदेश आदि की नींव रखी थी, जो इस क्षेत्र में मनु के वंश के प्रभाव को स्थापित करता है । 
वैवस्वत मनु की पुत्री इला का विवाह बुध से हुआ, जो चंद्र (सोम) और तारा के पुत्र थे। बुध को मगध, कीकट, फल्गु प्रदेश के क्षेत्र का राजा माना जाता है। इला और बुध के वंश से चंद्रवंश का उदय हुआ।
इला-बुध के पुत्रों के क्षेत्र: गय ने  गया , उत्कल ने उड़ीसा , विशाल ने वैशाली  (वर्तमान बिहार) , इक्ष्वाकु के पुत्र  निमि वंशीय    ने मिथिला , नेपाल । वसु: वसुनागर।विशाल: बज्जि प्रदेश (वर्तमान कीकट, मगध, झारखण्ड क्षेत्र)। है। यह विवरण दर्शाता है कि मनु के वंशजों ने भारत के उत्तर-पश्चिम से लेकर मध्य और पूर्वी क्षेत्रों (मगध, मिथिला) तक सनातन धर्म के सौर संस्कृति  सभ्यता का विकास हुआ था । पौराणिक स्रोतों के अनुसार, वैवस्वत मनु के वंशजों और उनके निकट संबंधियों ने सूर्योपासना को अपने-अपने क्षेत्रों में स्थापित किया। वैवस्वत मनु की पुत्री इला, उनके दामाद बुध, पुत्र शर्याति और इक्ष्वाकु, तथा च्यवन ऋषि एवं देव वैद्य अश्विनी कुमार ने अपने क्षेत्रों में सूर्य की पूजा और छठ पूजा (सूर्य षष्ठी व्रत) का आरंभ किया। यह परंपरा आज भी पूर्वी भारत, विशेष रूप से बिहार, झारखण्ड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक महान और पवित्र पर्व छठ के रूप में प्रचलित है, जो आदिकाल में हुए सूर्य के तेज और जीवन-प्रदायिनी शक्ति के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है। देवमाता अदिति के वंशज और वैवस्वत मनु का इतिहास केवल एक पौराणिक गाथा नहीं है, बल्कि यह प्राचीन भारतीय सभ्यता के भौगोलिक विस्तार, राजनैतिक वंशावलियों (सूर्यवंश और चंद्रवंश), और सांस्कृतिक तथा धार्मिक परंपराओं (जैसे छठ पूजा) की जड़ों को दर्शाता है। मनु और उनके पुत्रों के माध्यम से ही मानव समाज ने संगठित होकर भारत के विशाल भूभाग पर अपनी संस्कृति का विस्तार किया था ।

गुरुवार, अक्टूबर 16, 2025

बिहार विधान सभा : लोकतंत्र का मंदिर

बिहार विधानसभा और जनतांत्रिक चुनाव 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
बिहार विधानसभा का इतिहास कई संवैधानिक सुधारों और महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलावों से होकर गुजरा है। इसका विकास 19वीं सदी की शुरुआत से ही विधायी परिषद के रूप में शुरू हुआ, जो आज एक पूर्ण विकसित द्विसदनीय विधानमंडल है। बिहार विधानसभा के विकास के प्रमुख चरण. बिहार एवं उड़ीसा राज्य का गठन (1912)।22 मार्च 1912 को, बंगाल से अलग होकर 'बिहार एवं उड़ीसा राज्य' अस्तित्व में आया। सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली इस नए राज्य के पहले उप राज्यपाल बने। इसकी विधायी प्राधिकार के रूप में 43 सदस्यीय विधायी परिषद् का गठन किया गया, जिसमें 24 सदस्य निर्वाचित और 19 सदस्य मनोनीत थे। इस परिषद् की पहली बैठक 20 जनवरी 1913 को पटना में हुई। . द्विसदनीयता की शुरुआत और विधानसभा भवन (1919-1937) भारत सरकार अधिनियम, 1919: इस अधिनियम ने केंद्रीय स्तर पर द्विसदनीय विधायिका की शुरुआत की और इसके साथ ही, कई प्रांतों (बिहार सहित) में भी विधायी परिषद् को द्विसदनीय विधानमंडल में बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई।
विधानसभा भवन: वर्तमान विधानसभा भवन मार्च 1920 में बनकर तैयार हुआ। 7 फरवरी 1921 को विधानसभा के नव-निर्मित भवन में पहली बैठक हुई थी, जिसे बिहार के पहले गवर्नर लॉर्ड सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा ने संबोधित किया था। भारत सरकार अधिनियम, 1935: इस अधिनियम के तहत, बिहार और उड़ीसा अलग-अलग प्रांत बन गए, और द्विसदनीय विधानमंडल प्रणाली (विधान सभा और विधान परिषद्) को औपचारिक रूप से लागू किया गया। पहली बिहार विधान परिषद् की स्थापना 22 जुलाई 1936 को हुई थी, जिसके पहले अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद थे।
बिहार विधानसभा के दोनों सदनों का पहला संयुक्त अधिवेशन 22 जुलाई 1937 को हुआ, जिसमें राम दयालु सिंह को बिहार विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया।. स्वतंत्रता और प्रथम सरकार (1946-1952) अंतरिम सरकार (1946): स्वतंत्रता से पहले, 25 अप्रैल 1946 को बिहार में अंतरिम सरकार का गठन किया गया। इस विधानसभा के वक्ता (स्पीकर) बिंदेश्वरी प्रसाद वर्मा थे। पहले मुख्यमंत्री: डॉ. श्री कृष्ण सिंह सदन के पहले नेता बने और उन्हें बिहार का पहला मुख्यमंत्री (1946 में अंतरिम और 1952 में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित) होने का गौरव प्राप्त हुआ। पहले उपमुख्यमंत्री: डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह सदन के पहले उपनेता और बिहार के पहले उपमुख्यमंत्री चुने गए। स्वतंत्र भारत में विधानसभा (1952 से वर्तमान तक) पहला आम चुनाव (1952): स्वतंत्र भारत के संविधान के तहत बिहार विधानसभा का पहला चुनाव 1951 (परिणाम 1952) में हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस को भारी जीत मिली, और श्री कृष्ण सिंह मुख्यमंत्री बने।पहली विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या 331 थी (जिसमें एक मनोनीत सदस्य भी शामिल था)। झारखंड का गठन (नवंबर 2000): बिहार पुनर्गठन विधेयक के पारित होने के बाद झारखंड अलग राज्य बना। इसके परिणामस्वरूप, बिहार विधानसभा की सीटें घटकर वर्तमान में 243 रह गईं। मध्यवधि चुनाव: 1967 के चौथे आम चुनाव के बाद विधानसभा के विघटन के चलते 1969 में पहली बार मध्यावधि चुनाव हुए।  राज्य में अब तक पाँच बार राष्ट्रपति शासन के दौरान विधानसभा चुनाव हुए हैं। बिहार विधानसभा ने कई ऐतिहासिक कानून पारित किए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: चंपारण भूमि-संबंधी अधिनियम, 1918: महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के बाद 'तिनकठिया' व्यवस्था से किसानों को राहत दिलाने के लिए यह महत्वपूर्ण कानून विधान परिषद् में पारित हुआ था। जमींदारी उन्मूलन कानून: आजादी के तुरंत बाद, बिहार देश का पहला राज्य बना जिसने जमींदारी प्रथा को खत्म करने के लिए कानून बनाने की घोषणा की, जिसका मसौदा के.बी. सहाय ने तैयार किया था।।बिहार सिविल कोर्ट बिल, 2021: इस विधेयक के पारित होने के बाद, राज्य को 72 साल बाद सिविल कोर्ट के संचालन के लिए अपना कानून मिला, जो पुराने 1857 के अंग्रेजों के समय के कानून की जगह लेता है। 
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की रणभेरी बज चुकी है, और यह चुनाव एक बार फिर बिहार की राजनीति की चिर-परिचित विडंबना को उजागर करता है: जहाँ एक ओर विकास, रोज़गार, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर जनहित के मुद्दे अपनी जगह बनाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर चुनाव का माहौल जातीय और सामाजिक ध्रुवीकरण के इर्द-गिर्द सिमटता नज़र आ रहा है। यह चुनाव केवल राजनीतिक दलों के बीच नहीं, बल्कि 'मुद्दों' और 'पहचान की राजनीति' के बीच भी एक निर्णायक संघर्ष है। जन विवरण के अनुसार, बिहार चुनाव का विमर्श विकास के बजाय निम्नलिखित प्रतीकात्मक और जातीय नारों में उलझ गया है: 'माई' (मुस्लिम-यादव), 'दम' (दलित-मुस्लिम), 'कम': ये जातीय समीकरण पर आधारित नारे हैं, जो पारंपरिक रूप से किसी एक विशिष्ट राजनीतिक धड़े की पहचान रहे हैं। भुराबाल साफ करो': यह नारा एक खास सवर्ण समूह (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) के वर्चस्व को खत्म करने का आह्वान करता है, जो स्पष्ट रूप से पुरानी जातीय दुश्मनी को हवा देने की कोशिश है। आरक्षण, एस सी / एस टी / एक्ट, और जातिवाद: इन विषयों को चुनावी बहस के केंद्र में लाकर, राजनीतिक दल समाज के एक बड़े वर्ग को भावनात्मक रूप से एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, भले ही इसके कारण रोज़मर्रा के जीवन से जुड़े वास्तविक मुद्दे पीछे छूट जाएँ। जनहित के मुद्दों का गौण होना: सबसे बड़ी आलोचना यह है कि बेरोज़गारी, पलायन, बदहाल शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था जैसे गंभीर मुद्दे, जो बिहार के युवाओं और आम जनता की सबसे बड़ी समस्याएँ हैं, चुनावी मंच से पीछे धकेल दिए गए हैं। हालाँकि, चुनावी खबरें बताती हैं कि विपक्ष (इंडिया गठबंधन/महागठबंधन) द्वारा रोज़गार, पलायन, अपराध और भ्रष्टाचार कृषि जैसे मुद्दों को लगातार उठाया जा रहा है, पर प्रमुख विमर्श अभी भी पहचान की राजनीति  पर टिका है।
जातिवाद का राजनीतिक हथियार: जातिवाद, जो सदियों से बिहार के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करता रहा है, इस चुनाव में एक बार फिर राजनीतिक दलों का सबसे धारदार हथियार बन गया है। विभिन्न जातीय समूहों को साधने की यह रणनीति, तात्कालिक चुनावी लाभ तो दे सकती है, लेकिन यह समावेशी विकास और सामाजिक सद्भाव की राह में बड़ी बाधा है। प्रशासनिक और मूलभूत सुविधाओं पर कम ध्यान: बिहार को 19वीं सदी की शुरुआत से ही विधायी परिषद और विधानसभा भवन जैसी संस्थाओं के विकास का लंबा इतिहास मिला है, जिसने 1952 के बाद लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की स्थापना की। इतने लंबे राजनीतिक इतिहास के बावजूद, आज भी चुनाव की मुख्य चर्चा में सड़क, बिजली, पानी, बेहतर कानून व्यवस्था जैसे मूलभूत प्रशासनिक सुधारों पर कम और जातीय गोलबंदी पर ज़्यादा ज़ोर है। भले ही दोनों प्रमुख गठबंधन (एनडीए और इंडिया गठबंधन) अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हों, लेकिन यह चुनाव कई मायनों में नेतृत्व और विश्वसनीयता की कसौटी भी है। अनुभवी नेताओं के दावों और युवा नेतृत्व के वादों के बीच, मतदाताओं के लिए यह तय करना चुनौती होगा कि कौन बिहार के विकास के लिए अधिक विश्वसनीय चेहरा है। राजनीतिक अस्थिरता और दल-बदल की प्रवृत्ति ने भी नेताओं की विश्वसनीयता को प्रभावित किया है।
प्रमुख राजनीतिक खिलाड़ी और उनकी रणनीतियाँ में  गठबंधन प्रमुख दल मुख्य रणनीति में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन भाजपा, जदयू, लोजपा (रामविलास) आदि सत्ता विरोधी लहर को थामना, केंद्र की योजनाओं और सुशासन के दावों पर ज़ोर, नीतीश कुमार के नेतृत्व को बनाए रखना। लंबे समय तक सत्ता में रहने के कारण प्रशासनिक कमियों, खासकर रोज़गार सृजन और पलायन के मुद्दे पर जनता के सवालों का सामना करना। जातीय समीकरणों को साधने में संतुलन की चुनौती है। इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) राजद, कांग्रेस, वाम दल, वीआईपी आदि युवा चेहरा (तेजस्वी यादव), रोज़गार के वादे, सामाजिक न्याय के नारों से अतिपिछड़ा और दलित वोटों को एकजुट करना, केंद्र और राज्य की विफलताओं को उजागर करना। सीट बंटवारे और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर आंतरिक खींचतान, पुराने 'जंगल राज' के आरोपों से खुद को मुक्त करने की चुनौती। क्षेत्रीय/अन्य दल जन सुराज, सुभासपा, एआईएमआईएम आदि क्षेत्रीय/जातीय आधार पर वोटों का बंटवारा करना और सत्ता विरोधी वोटों को खींचना। मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों के बीच होने के कारण इनकी प्रासंगिकता सीटों के समीकरण बिगाड़ने तक सीमित हो सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025, 'सत्ता में निरंतरता' और 'परिवर्तन की बयार'के बीच का चुनाव है। चुनाव आयोग की घोषणा और प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनावी विमर्श एक बार फिर जातीय गणित के चक्रव्यूह में फँस गया है। बिहार के इतिहास ने दिखाया है कि यहाँ की जनता ने समय-समय पर बड़े संवैधानिक सुधारों (जमींदारी उन्मूलन, 1918 का चंपारण भूमि अधिनियम) और लोकतांत्रिक बदलावों का समर्थन किया है। यह चुनाव एक अवसर है कि राजनीतिक दल 'माई', 'कम', और 'भुराबाल' जैसे प्रतीकों से ऊपर उठकर, बिहार को पलायन से मुक्त करने, औद्योगिकरण को बढ़ावा देने और शिक्षा-स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए स्पष्ट रोडमैप प्रस्तुत करें। अंतिम रूप से, यह बिहार के प्रबुद्ध मतदाताओं पर निर्भर करेगा कि वे जातीय भावनाओं से संचालित होते हैं या फिर राज्य के उज्जवल भविष्य को सुनिश्चित करने वाले वास्तविक विकास के एजेंडे को चुनते हैं।
बिहार की 18वीं विधान सभा चुनाव 2025 के लिए भारत चुनाव आयोग द्वारा 243 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए बिहार विधानसभा चुनाव, 2025 हेतु 06 और 11 नवम्बर 2025 को मतदान होने वाला है और मत गणना 14 नवम्बर को भारत निर्वाचन आयोग द्वारा आयोजित किया जाएगा। बिहार विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर 2025 को समाप्त होने वाला है। पिछला विधानसभा चुनाव अक्टूबर–नवंबर 2020 में हुआ था। चुनाव के बाद, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने राज्य सरकार बनाई और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। भारत निर्वाचन आयोग ने 06 अक्टूबर 2025 को बिहार विधान सभा चुनाव के कार्यक्रम का आधिकारिक रूप से घोषणा किया। बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में होने वाले हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का कार्यक्रम  - 
पहला चरण (121 सीटें) दूसरा चरण (122 सीटें)
अधिसूचना दिनांक 10 अक्टूबर 2025 10 अक्टूबर 2025
नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 17 अक्टूबर 2025 20 अक्टूबर 2025
नामांकन की जांच 18 अक्टूबर 2025 21 अक्टूबर 2025
नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 20 अक्टूबर 2025 23 अक्टूबर 2025
मतदान की तिथि 06 नवम्बर 2025 11 नवम्बर 2025
मतगणना की तिथि 14 नवम्बर 2025 14 नवम्बर 2025 को होगा।
बिहार विधानसभा के 243 निर्वाचन क्षेत्रों की सूची में : पश्चिमी चंपारण जिले में :वाल्मीकि नगर , राम नगर (एससी) , नरकटियागंज , बगहा ,लउरिया ,नौतन ,चनपटिया।बेतिया , सिकटा , पूर्वी चंपारण जिले : 10. रक्सौल 11. सुगौली 12. नरकटिया 13. हरसिद्धि 14. गोविंदगंज (लोजपा (आर) राजू तिवारी) 15. केसरिया 16. कल्याणपुर 17. पिपरा 18. मधुबन 19. मोतिहारी 20. चिरैया 21. ढाका ,शिवहर (22): 22. शिवहर ,सीतामढ़ी जिले (23-30): 23. रिगा (भाजपा बैद्यनाथ प्रसाद) 24. बथनाहा (एससी) 25. परिहार 26. सुरसंड 27. बाजपट्टी 28. सीतामढ़ी (भाजपा सुनील कुमार पिंटू) 29. रून्नीसैदपुर 30. बेलसंड ,मधुबनी जिले (31-40): 31. हरलाखी 32. बेनीपट्टी (भाजपा विनोद नारायण झा) 33. खजौली (भाजपा अरुण शंकर प्रसाद) 34. बाबूबरही 35. बिस्फी (भाजपा हरिभूषण ठाकुर बचौल) 36. मधुबनी (राष्ट्रीय लोक मोर्चा माधव आनन्द) 37. राजनगर (एससी) (भाजपा सुजीत पासवान) 38. झंझारपुर ,  39. फुलपरास 40. लौकाहा ,सुपौल जिले : 41. निर्मली 42. पिपरा 43. सुपौल 44. त्रिवेणीगंज (एससी) 45. छातापुर ,  ,अररिया जिले (46-51): 46. नरपतगंज ,  47. रानीगंज (एससी) 48. फारबिसगंज (भाजपा विद्या सागर केशरी) 49. अररिया 50. जोकीहाट 51. सिकटी , ,किशनगंज जिले (52-55): 52. बहादुरगंज 53. ठाकुरगंज 54. किशनगंज , 55. कोचाधामन , पूर्णिया जिले (56-62): 56. अमौर 57. बैसी 58. कस्बा 59. बनमनखी (एससी) , 60. रूपौल 61. धमदाहा 62. पूर्णिया ,  कटिहार जिले (63-69): 63. कटिहार , 64. कड़वा 65. बलरामपुर ,  66. प्राणपुर (भाजपा निशा सिंह) 67. मनिहारी (एसटी) 68. बरारी 69. कोरहा (एससी) ,  मधेपुरा जिले (70-73): 70. आलमनगर 71. बिहारीगंज 72. सिंहेश्वर (एससी) 73. मधेपुरा , सहरसा जिले (74-77): 74. सोनबर्षा (एससी) 75. सहरसा , 76. सिमरी बख्तियारपुर , 77. महिषी , दरभंगा जिले (78-87): 78. कुशेश्वर अस्थान (एससी) 79. 80. बेनीपुर 81. अलीनगर 82. दरभंगा ग्रामीण 83. दरभंगा , 84. हयाघाट 85. बहादुरपुर 86. केओटी  87. जाले मुजफ्फरपुर जिले में : 88. गायघाट 89. औराई (भाजपा) 90. मीनापुर 91. बोचाहन (एससी) 92. सकरा (एससी) 93. कुरहानी (भाजपा) 94. मुजफ्फरपुर , 95. कांति 96. बरूर 97. पारू  98. साहेबगंज (भाजपा) , गोपालगंज जिले  का 99. बैकुंठपुर (भाजपा) 100. बरौली 101. गोपालगंज 102. कुयायकोटे 103. भोरे (एससी) 104. हथुआ सिवान जिले का  105. सिवान (भाजपा मंगल पांडेय) 106. जिंरादेई 107. दरौली (एससी) 108. रघुनाथपुर 109. दारौंदा (भाजपा) 110. बरहरिया 111. गोरियाकोठी 112. महाराजगंज सारण जिले (113-122): 113. एकमा 114. मांझी 115. बनियापुर 116. तरैया  117. मढ़ौरा 118. छपरा  119. गरखा (एससी)   120. अमनौर 121. परसा 122. सोनपुर , वैशाली जिले (123-130): 123. हाजीपुर 124. लालगंज 125. वैशाली 126. महुआ 127. राजा पाकर (एससी) 128. राघोपुर , 129. महनार 130. पातेपुर (एससी)  समस्तीपुर जिले (131-140): 131. कल्याणपुर (एससी) 132. वारिसनगर 133. समस्तीपुर 134. उजियारपुर 135. मोरवा 136. सरायरंजन 137. मोहिउद्दीननगर  138. विभूतिपुर 139. रोसेरा (एससी) 140. हसनपुर बेगूसराय जिले (141-147): 141. चेरिया-बरियारपुर 142. बछवाड़ा  143. तेघरा  144. मटिहानी 145. साहेबपुर 146. बेगुसराय 147. बखरी (एससी) खगड़िया जिले (148-151): 148. अलौली (एससी) 149. खगरिया 150. बेलदौर 151. परबत्ता , भागलपुर जिले (152-158): 152. बिहपुर 153. गोपालपुर 154. पिरपैंती (एससी) 155. कहलगांव 156. भागलपुर 157. सुल्तानगंज 158. नाथनगर  बाँका जिले (159-163): 159. अमरपुर 160. धौरैया (एससी) 161. बांका 162. कटोरिया (एसटी)  163. बेलहर मुंगेर जिले (164-166): 164. तारापुर 165. मुंगेर 166. जमालपुर ,लखीसराय जिले में  167. सूर्यगढ़ा 168. लखीसराय शेखपुरा जिले (169-170): 169. शेखपुरा 170. बारबीघा , नालंदा जिले (171-177): 171. अस्थावान 172. बिहार शरीफ 173. राजगीर (एससी) 174. ईस्लामपुर 175. हिलसा 176. नालंदा 177. हरनौत पटना प्रमंडल/जिले (178-191): 178. मोकामा 179. (विधानसभा 179 ) , 180. बख्तियारपुर 181. दीघा 182. बांकीपुर 183. कुम्हरार 184. पटना साहिब 185. फतुहा 186. दानापुर 187. मनेर 188. फुलवारी (एससी) 189. मसौढ़ी (एससी) 190. पालीगंज 191. बिक्रम , भोजपुर जिले का  192. संदेश 193. बड़हरा 194. आरा 195. अगिआंव (एस सी ) 196. तरारी 197. जगदीशपुर 198. शाहपुरबक्सर जिले का  199. ब्रह्मपुर 200. बक्सर 201. डुमरांव 202. राजपुर (एससी)कैमूर जिले (203-206): 203. रामगढ़ 204. मोहनिया (एससी) 205. भभुआ 206. चैनपुर रोहतास जिले (207-213): 207. चेनारी (एससी) 208. सासाराम 209. करगहर 210. दिनारा 211. नोखा 212. डेहरी 213. काराकाट , अरवल जिले  का 214. अरवल 215. कुर्था , जहानाबाद जिले का : 216. जहानाबाद 217. घोसी 218. मखदुमपुर (एससी)औरंगाबाद जिले का  219. गोह 220. ओबरा 221. नबीनगर 222. कुटुम्बा (एससी) 223. औरंगाबाद 224. रफीगंज , गया जिले का  225. गुरूआ 226. शेर घाटी 227. इमामगंज (एससी) 228. बाराचट्टी (एससी) 229. बोधगया (एससी) 230. गया टाउन 231. टिकारी 232. बेलागंज 233. अतरी 234. वज़ीरगंज नवादा जिले (235-239): 235. रजौली (एससी) 236. हिसुआ 237. नवादा 238. गोविंदपुर 239. वारसलीगंज ,जमुई जिले : 240. सिकंदरा (एससी) 241. जमुई 242. झाझा 243. चकाई है ।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025: विकास का विमर्श बनाम पहचान की राजनीति का चक्रव्यूह 
बिहार विधानसभा का इतिहास संवैधानिक सुधारों और लोकतांत्रिक बदलावों की एक लंबी यात्रा है, जिसकी शुरुआत 19वीं सदी की विधायी परिषद् से हुई और जो आज एक पूर्ण विकसित द्विसदनीय विधानमंडल के रूप में स्थापित है। इस ऐतिहासिक विकास में, 1912 में बिहार एवं उड़ीसा राज्य का गठन, 1935 के अधिनियम के तहत औपचारिक द्विसदनीय प्रणाली की शुरुआत, और 1952 में स्वतंत्र भारत के संविधान के तहत पहले आम चुनाव ने महत्वपूर्ण मोड़ दिए। इस गौरवशाली लोकतांत्रिक विरासत के बावजूद, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 एक बार फिर विकास, रोज़गार, और मूलभूत सुविधाओं जैसे जनहित के मुद्दों के बजाय, जातीय और सामाजिक ध्रुवीकरण के चक्रव्यूह में फँसता दिख रहा है।
बिहार विधानसभा का ऐतिहासिक सफर: एक लोकतांत्रिक विरासत
बिहार विधानसभा का विकास दर्शाता है कि राज्य ने समय-समय पर प्रगतिशील विधायी कदम उठाए हैं।
आरंभिक गठन 1912 बिहार एवं उड़ीसा राज्य का गठन (22 मार्च 1912), 43 सदस्यीय विधायी परिषद् का गठन। सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली पहले उप राज्यपाल बने। परिषद् की पहली बैठक 20 जनवरी 1913 को पटना में हुई। द्विसदनीयता और भवन 1919-1937 भारत सरकार अधिनियम, 1919 (प्रांतीय स्तर पर द्विसदनीयता की शुरुआत), वर्तमान विधानसभा भवन का निर्माण (मार्च 1920)। 7 फरवरी 1921 को नव-निर्मित भवन में पहली बैठक। भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने द्विसदनीय विधानमंडल (विधान सभा और विधान परिषद्) को औपचारिक रूप से लागू किया। राम दयालु सिंह पहले विधानसभा अध्यक्ष चुने गए (22 जुलाई 1937)।
स्वतंत्रता और प्रथम सरकार 1946-1952 अंतरिम सरकार का गठन (25 अप्रैल 1946)। पहला आम चुनाव (1951-52)। डॉ. श्री कृष्ण सिंह पहले मुख्यमंत्री (अंतरिम 1946, लोकतांत्रिक 1952) और डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह पहले उपमुख्यमंत्री बने। पहली विधानसभा में 331 सदस्य थे।
आधुनिक विधानमंडल 1952-वर्तमान झारखंड का गठन (नवंबर 2000)। सीटों की संख्या घटकर 243 हुई। मध्यावधि चुनाव (1969 में पहली बार)। विधानसभा ने चंपारण भूमि-संबंधी अधिनियम, 1918 और जमींदारी उन्मूलन कानून (देश का पहला राज्य) जैसे ऐतिहासिक कानून पारित किए। बिहार सिविल कोर्ट बिल, 2021 से 72 साल पुराना कानून बदला। बिहार ने देश को कई प्रगतिशील कानून दिए हैं: चंपारण भूमि-संबंधी अधिनियम, 1918: महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के बाद यह कानून 'तिनकठिया' व्यवस्था से किसानों को मुक्ति दिलाने के लिए पारित हुआ था। जमींदारी उन्मूलन कानून: आज़ादी के तुरंत बाद, बिहार देश का पहला राज्य बना जिसने जमींदारी प्रथा को खत्म करने के लिए कानून बनाने की घोषणा की। यह एक युगांतकारी सामाजिक-आर्थिक सुधार था।
 बिहार चुनाव 2025: पहचान की राजनीति का बोलबाला
ऐतिहासिक विकास और संवैधानिक परिपक्वता के बावजूद, 18वीं बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का विमर्श विकास के वास्तविक मुद्दों से भटककर जातीय और प्रतीकात्मक नारों में उलझ गया है।
जातीय प्रतीकों का वर्चस्व का चुनावी खबरें बताती हैं कि चुनाव का माहौल 'विकास' के रोडमैप के बजाय निम्नलिखित जातीय नारों और प्रतीकों के इर्द-गिर्द सिमटा हुआ है:
'माई', 'दम', 'कम': ये सीधे तौर पर मुस्लिम-यादव, दलित-मुस्लिम जैसे जातीय समीकरणों पर आधारित नारे हैं। ये नारे वोटबैंक की पहचान की राजनीति को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।'भुराबाल साफ करो': यह नारा भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला (कायस्थ) जैसे सवर्ण समूहों के पारंपरिक राजनीतिक वर्चस्व को खत्म करने का आह्वान करता है। यह पुरानी जातीय कटुता को राजनीतिक लाभ के लिए पुनर्जीवित करने का प्रयास है। आरक्षण और जातिवाद: राजनीतिक दल आरक्षण, SC/ST एक्ट, और जातिवाद को चुनावी बहस के केंद्र में लाकर समाज के बड़े वर्गों को भावनात्मक रूप से एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। बिहार के लोगों की सबसे गंभीर समस्याएँ, जैसे बेरोज़गारी, पलायन, बदहाल शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था, चुनावी मंच से पीछे धकेल दी गई हैं। रोज़गार सृजन की कमी के कारण बिहार का युवा बड़े पैमाने पर राज्य से बाहर जाने को मजबूर है। यह चुनाव का सबसे ज्वलंत आर्थिक मुद्दा होना चाहिए।प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक की गुणवत्ता बदहाल है। स्वास्थ्य सेवाएँ, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, आज भी मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं ।कृषि एक प्रमुख आर्थिक आधार है, लेकिन इसका आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण का अभाव राज्य के विकास में बाधा डाल रहा है। हालांकि, विपक्ष (इंडिया गठबंधन/महागठबंधन) द्वारा रोज़गार, पलायन, और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लगातार उठाया जा रहा है, लेकिन मुख्य विमर्श पहचान की राजनीति पर ही टिका हुआ है, जो प्रशासनिक और मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता को कम कर रहा है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन केंद्र की योजनाओं, सुशासन के दावे और नीतीश कुमार के अनुभवी नेतृत्व को बनाए रखने पर ज़ोर। सत्ता विरोधी लहर को थामने की कोशिश। लंबे समय तक सत्ता में रहने के कारण प्रशासनिक कमियों, विशेषकर रोज़गार सृजन और पलायन पर जनता के सवालों का सामना करना। जातीय समीकरणों को साधने में संतुलन बनाए रखना। इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) युवा चेहरा (तेजस्वी यादव), बड़े पैमाने पर रोज़गार के वादे, सामाजिक न्याय के नारों से अतिपिछड़ा और दलित वोटों को एकजुट करना, केंद्र और राज्य की विफलताओं को उजागर करना। सीट बंटवारे और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर आंतरिक मतभेद। पुराने 'जंगल राज' के आरोपों से खुद को मुक्त करने की चुनौती।
बिहार विधानसभा में 243 निर्वाचन क्षेत्र है। बिहार का राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह है कि यहाँ की जनता ने बड़े संवैधानिक और लोकतांत्रिक बदलावों का समर्थन किया है, चाहे वह 1918 का चंपारण भूमि अधिनियम हो या जमींदारी उन्मूलन। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 बिहार के लिए एक निर्णायक अवसर है। राजनीतिक दलों को 'माई', 'कम', और 'भुराबाल' जैसे प्रतीकों से ऊपर उठकर एक स्पष्ट रोडमैप प्रस्तुत करना चाहिए, जो:पलायन से मुक्ति दिलाए। औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दे। शिक्षा और स्वास्थ्य , कृषि  की गुणवत्ता में सुधार करे। यह चुनाव केवल दो गठबंधनों के बीच की लड़ाई नहीं है, बल्कि 'मुद्दों' और 'पहचान की राजनीति' के बीच एक निर्णायक संघर्ष है। बिहार के प्रबुद्ध मतदाताओं पर यह निर्भर करेगा कि वे जातीय भावनाओं से संचालित होते हैं या फिर राज्य के उज्जवल भविष्य को सुनिश्चित करने वाले वास्तविक विकास के एजेंडे को चुनते हैं। समावेशी विकास और सामाजिक सद्भाव की स्थापना के लिए प्रशासनिक और मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करना बिहार की सबसे बड़ी जरूरत है, न कि केवल जातीय गोलबंदी है। 
मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ:में एनडीए अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से चल रही मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को उजागर करेगा। इसमें गंगा पथ विस्तार योजना, पुलों का निर्माण, सड़कों का जाल, और नए हवाई अड्डों का विकास शामिल है। इसे 'डबल इंजन' सरकार की सफलता के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। केंद्र की कल्याणकारी योजनाएँ: प्रधानमंत्री आवास योजना, किसान सम्मान निधि, मुफ्त अनाज योजना (फ्री बिजली/मुफ्त अनाज) और अन्य केंद्रीय योजनाओं के लाभार्थियों को साधने पर ज़ोर दिया जाएगा
एनडीए  विशेष रूप से जद यू नीतीश कुमार के दशकों के प्रशासनिक अनुभव और राज्य में 'जंगलराज' को समाप्त करने के उनके दावे को प्रमुखता देगा। हालांकि नीतीश कुमार की लोकप्रियता कम हुई है, फिर भी वह सुशासन के प्रतीक बने हुए हैं। स्थिरता का आश्वासन: केंद्र में भी गठबंधन सरकार होने के कारण, एनडीए राज्य में राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने का वादा करेगा, ताकि बार-बार होने वाले पाला बदलने की प्रवृत्ति को एक पूर्ण विराम दिया जा सके। एनडीए ने सीट-बंटवारा लगभग फाइनल कर लिया है: भाजपा , जदयू ,  लोजपा (रामविलास) , हम और आरएलएम । भाजपा और जदयू के बीच समान सीटों का वितरण इस बात का संकेत है कि दोनों बड़े सहयोगी अब बराबर की शक्ति रखते हैं। चिराग पासवान (लोजपा-रा) और जीतन राम मांझी (हम)  सहयोगियों को सम्मानजनक सीटें देकर एनडीए  अपने जातीय आधार (खासकर पासवान और महादलित वोट) को एकजुट रखने की कोशिश कर रहा है, भले ही उनके द्वारा अधिक सीटों की मांग की गई थी । लगभग दो दशकों से सत्ता में रहने के कारण, राज्य सरकार के खिलाफ एक स्वाभाविक सत्ता विरोधी लहर है। रोज़गार सृजन, पलायन और प्रशासनिक कमियों जैसे मुद्दों पर जनता के सवालों का सामना करना एनडीए   के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।।सहयोगियों के बीच खींचतान: हालांकि सीट बंटवारे की घोषणा हो गई है, लेकिन छोटे सहयोगियों को कम सीटें मिलने पर आंतरिक नाराज़गी उभर सकती है। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी  नेताओं ने अतीत में JD(U) की सीटों पर नुक्सान पहुंचाया है। मुख्यमंत्री चेहरे की बहस: नीतीश कुमार के घटते समर्थन के बीच,भाजपा को अपने सहयोगियों को साधते हुए अपने दीर्घकालिक लक्ष्य को भी साधने में संतुलन बिठाना होगा । इंडिया गठबंधन, जिसका नेतृत्व राष्ट्रीय जनता दल  कर रहा है और जिसमें कांग्रेस , वाम दल आदि शामिल हैं, सत्ता विरोधी लहर को भुनाने और अपने युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने की कोशिश में है। हुए कुछ हद तक पूरा भी किया। एनडीए  की सबसे बड़ी विफलता के रूप में बेरोज़गारी और पलायन को उजागर करना महागठबंधन की प्राथमिक रणनीति है। महागठबंधन का मूल आधार 'My (मुस्लिम-यादव) समीकरण रहा है। इस बार, वे इस आधार को अतिपिछड़ा वर्ग  और दलितों तक विस्तारित करने की कोशिश कर रहे हैं, सामाजिक न्याय के पुराने नारों के माध्यम से। जातिगत गणना (Caste Census): हाल ही में हुई जातिगत गणना के आंकड़ों का उपयोग करके, गठबंधन सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े वर्गों को गोलबंद करने का प्रयास करेगा और सरकारी नौकरियों/कल्याणकारी योजनाओं में उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का वादा करेगा।
गठबंधन राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार, लचर कानून-व्यवस्था (अपराध), और बदहाल स्वास्थ्य-शिक्षा व्यवस्था को एनडीए की विफलताओं के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। राष्ट्रीय नेताओं का हस्तक्षेप: राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे कांग्रेस के बड़े नेता अब बिहार में अधिक रैलियां कर रहे हैं, जो इस बात का संकेत है कि गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति को मजबूती से दर्शाना चाहता है। पहले चरण के नामांकन की समय सीमा नज़दीक होने के बावजूद, महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी रही है। कांग्रेस, जो पिछली बार 70 सीटों पर लड़ी थी और कम जीती थी, इस बार अधिक 'जिताऊ' सीटें मांग रही है। राजद जो सबसे बड़ा घटक है ।  जिससे छोटे सहयोगियों (वाम दल, आदि) को साधना मुश्किल हो रहा है। इस चुनाव में कुछ गैर-गठबंधन खिलाड़ी और मुद्दे दोनों गठबंधनों के लिए चुनौती पेश कर जन सुराज (प्रशांत किशोर) विकास-केंद्रित पिच के साथ सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। प्रशांत किशोर (PK) युवा मतदाताओं और विकास की चाह रखने वाले वर्गों के बीच एक तीसरी ताकत बन सकते हैं। ओपिनियन पोल में उन्हें CM पद के लिए दूसरा सबसे लोकप्रिय चेहरा बताया गया है। उनकी पार्टी वोट कटवा के रूप में दोनों गठबंधनों को नुकसान पहुंचा सकती है।  ए आई एम आई एम सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम वोटों को साधने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। पिछली बार (2020) में 5 सीटें जीतकर उन्होंने महागठबंधन को नुक्सान पहुँचाया था। इस बार लगभग 100 सीटों पर लड़ने की घोषणा से मुस्लिम वोटों का विभाजन हो सकता है, जिससे एनडीए को अप्रत्यक्ष लाभ मिलने की संभावना है।
जातीय बनाम विकास विमर्श यह चुनाव 'मुद्दों' (विकास, रोज़गार, पलायन) और 'पहचान की राजनीति' (जातिगत गोलबंदी) के बीच एक निर्णायक संघर्ष है। जो गठबंधन इन दोनों ध्रुवों के बीच संतुलन बिठा पाएगा, उसे निर्णायक बढ़त मिलेगी।, ।बिहार विधानसभा चुनाव 2025 एनडीए  की संगठनात्मक शक्ति और अनुभवी नेतृत्व बनाम इंडिया गठबंधन की युवा ऊर्जा और 'काम' के वादे का मुकाबला है, जिसमें जातीय समीकरण और आंतरिक कलह का प्रबंधन दोनों गठबंधनों के लिए अंतिम परिणाम निर्धारित करेगा।
 बिहार विधानसभा चुनाव 2025: विश्लेषणात्मक  -  बिहार की 18वीं विधानसभा के चुनाव (नवम्बर 2025) राज्य के समृद्ध लोकतांत्रिक इतिहास और वर्तमान की गहन सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के बीच एक निर्णायक संघर्ष हैं। यह चुनाव केवल सत्ता के संघर्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि विकास के एजेंडे और पहचान की राजनीति के बीच के द्वंद्व को भी दर्शाता है। लोकतांत्रिक इतिहास की विरासत और वर्तमान विडंबना -  - बिहार विधानसभा का इतिहास (1912 से) प्रगतिशील विधायी कदमों का साक्षी रहा है। चंपारण भूमि-संबंधी अधिनियम (1918) महात्मा गांधी के पहले सफल सत्याग्रह का परिणाम, 'तिनकठिया' व्यवस्था का अंत। इतना प्रगतिशील इतिहास होने के बावजूद, आज भी चुनावी विमर्श मूलभूत प्रशासनिक सुधारों (शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली) के बजाय जातीय ध्रुवीकरण पर केंद्रित है।जमींदारी उन्मूलन कानून आज़ादी के बाद देश में सामाजिक-आर्थिक न्याय की स्थापना की दिशा में बिहार का नेतृत्व, बिचौलियों का अंत। जमींदारी उन्मूलन के बाद भी, पलायन और बेरोज़गारी राज्य की सबसे बड़ी समस्याएँ बनी हुई हैं, जिन्हें राजनीतिक मंच से लगातार दरकिनार किया जाता है। जिस राज्य में संवैधानिक चेतना इतनी मज़बूत रही है, वहाँ आज भी चुनाव के केंद्र में 'मुद्दे' नहीं, बल्कि 'पहचान के नारे' (  माई ,  दम ,  भुराबाल )   हैं। चुनावी रणनीतियाँ: NDA बनाम इंडिया गठबंधन -  दोनों प्रमुख गठबंधन सत्ता हासिल करने के लिए अपनी-अपनी शक्तियों और केंद्रीय मुद्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। पहलू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) - मुख्य चेहरा जदयू  (अनुभव और सुशासन का दावा) राजद कोर विमर्श/मुद्दे 'डबल इंजन' सरकार की उपलब्धि, मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट, केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी (मुफ्त अनाज/आवास) रोज़गार (10 लाख नौकरियों का वादा), पलायन, एनडीए  की सत्ता विरोधी लहर का फायदा, सामाजिक न्याय (जातिगत गणना) , जातीय समीकरण  (अतिपिछड़ा वर्ग), सवर्ण, और सहयोगियों के माध्यम से दलित दम ( दलित मुस्लिम ) , MY  (मुस्लिम + यादव) कोर आधार, साथ ही अतिपिछड़ा वर्ग और दलितों को 'सामाजिक न्याय' के नाम पर खींचने का प्रयास है।
सत्ता विरोधी लहर, रोज़गार सृजन में विफलता पर जवाबदेही, सहयोगियों  के बीच संतुलन और खींचतान है। सीट बंटवारे में अंतिम गतिरोध, 'जंगलराज' के आरोपों से मुक्ति, युवा नेतृत्व की विश्वसनीयता सिद्ध करना एनडीए में भाजपा , जदयू , लोजपा , हम, आरएलएम है वही चुनौतीपूर्ण कांग्रेस , राजद , सीपीआई माले , भाकपा , माकपा , जनसुराज  अनेक क्षेत्रीय दल है । बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों के बीच है, लेकिन कुछ 'अन्य' खिलाड़ी परिणामों की दिशा बदल सकते हैं जन सुराज प्रशांत किशोर का विकास-केंद्रित, गैर-जातीय विमर्श युवाओं और एंटी-इनकम्बेंसी वोटों को आकर्षित कर सकता है। जिससे सीधे मुकाबले वाली सीटों पर दोनों गठबंधनों को नुक्सान होगा। ए आई एम आई एम सीमांचल और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सक्रिय। मुस्लिम वोटों को विभाजित करके महागठबंधन को सीधे तौर पर नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे एनडीए  को अप्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। मतदाता जातीय भावनाओं और पारंपरिक वफादारी से संचालित होता है या फिर रोज़गार और मूलभूत विकास के एजेंडे को चुनता है। यह अंतिम परिणाम तय करेगा। तेजस्वी का रोज़गार एजेंडा युवा मतदाताओं के बीच एक सकारात्मक परिवर्तन का संकेत है: नेतृत्व और विश्वसनीयता की कसौटीकी  चुनाव नीतीश कुमार की 'निरंतरता' और तेजस्वी यादव के 'परिवर्तन' के वादे के बीच एक जनमत संग्रह है।
एनडीए  के लिए जीत का अर्थ है केंद्र और राज्य में मजबूत पकड़, जो उसे देश की राजनीति में एक निर्णायक ताकत बनाए रखेगी। इंडिया गठबंधन के लिए जीत का अर्थ है बिहार के सामाजिक न्याय की राजनीति में युवा नेतृत्व का उदय और देश के विपक्षी दलों के लिए एक नई उम्मीद।  बिहार विधानसभा चुनाव 2025 उस सामाजिक-आर्थिक न्याय की प्रतिज्ञा की कसौटी है, जिसे बिहार ने 1918 और 1952 में शुरू किया था। मतदाताओं का निर्णय यह तय करेगा कि बिहार पीछे खींचने वाली पहचान की राजनीति के चक्रव्यूह में फँसा रहता है, या विकास और रोज़गार के एजेंडे को आगे बढ़ता है।