शुक्रवार, दिसंबर 12, 2025

गणपति , बुध और बुधवार का महासमन्वय

बुद्धि, वाणी और व्यापार का महासंगम: बुधवार, बुध और गणपति
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
भारतीय सनातन धर्म और ज्योतिष शास्त्र में, सप्ताह के प्रत्येक दिन का अपना विशिष्ट महत्व है, जो किसी न किसी ग्रह या देवता को समर्पित होता है। इन्हीं में से एक है बुधवार, जिसे न केवल ग्रहों के राजकुमार बुध (Mercury) को समर्पित माना जाता है, बल्कि यह प्रथम पूज्य भगवान गणेश की आराधना के लिए भी सर्वश्रेष्ठ दिवस है। बुद्धि, विवेक, संचार और व्यापार के कारक बुध और ज्ञान के देवता गणपति का यह अनूठा संगम, इस दिन की गई पूजा-अर्चना को अक्षय फलदायी बना देता है।  बुधवार की पौराणिक पृष्ठभूमि, ज्योतिषीय महत्व और धार्मिक अनुष्ठानों का विस्तृत विश्लेषण करता है, यह बताता है कि यह दिवस भक्तों के लिए ज्ञान, समृद्धि और विघ्न-निवारण का द्वार कैसे खोलता है। बुधवार का पौराणिक जन्म और वैवश्वत मन्वन्तर का संबंध - बुधवार की उत्पत्ति की कथा सीधे तौर पर ज्योतिषीय गणनाओं और पौराणिक आख्यानों से जुड़ी है। बुध ग्रह का नामकरण और दिवस समर्पण सीधे बुध ग्रह से संबंधित है। पुराणों के अनुसार, बुध देव चंद्रमा (चंद्र देव/सोम) और देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा के पुत्र हैं। बुध को अपनी बुद्धि, चपलता और तीव्र गति के कारण 'ग्रहों के राजकुमार' की उपाधि मिली है। वैवश्वत मनु और इला का संदर्भ पुराणों के अनुसार, बुधवार का संबंध वैवश्वत मन्वन्तर की पौराणिक गाथा से भी जुड़ा है। इसी मन्वन्तर में, सप्तम मनु वैवश्वत के अनुरोध पर मित्र और वरुण की सहायता से उत्पन्न पुत्री इला के पति बृहस्तपति एवं चंद्रमा एवं तारा  के पुत्र बुध को यह दिवस समर्पित किया गया। बुध को मगध देश का राजा माना गया है, और वे राशिचक्र में मिथुन तथा कन्या राशि के स्वामी हैं। यह ऐतिहासिक और ज्योतिषीय जुड़ाव बुधवार के महत्व को और भी अधिक गहरा करता है।
 गणेश पुराण में बुधवार का समर्पण बुधवार को भगवान गणेश की पूजा का विधान क्यों है, इसका सबसे मार्मिक और पुष्ट आधार गणेश पुराण की कथा में मिलता है: जब माता पार्वती ने कैलाश पर्वत पर अपने पुत्र गणेश जी को अद्भुत रूप में प्रकट किया, तब सभी देवी-देवता और नवग्रह उनके दर्शन के लिए पधारे। उन उपस्थित देवगणों में बुध देव भी शामिल थे। बालक गणेश के दिव्य रूप, उनकी बुद्धि की तीक्ष्णता और ज्ञान के तेज को देखकर बुध देव अत्यंत अभिभूत हो गए। अपनी इस परम प्रसन्नता को व्यक्त करते हुए, बुध देव ने तत्काल यह घोषणा की कि उनका प्रिय दिवस, बुधवार, अब से भगवान गणेश को समर्पित होगा। बुध देव ने यह वरदान दिया कि जो भक्त बुधवार के दिन गणेश जी की सच्चे मन से पूजा करेगा, उसे बुध ग्रह से संबंधित सभी शुभ फल प्राप्त होंगे, और विघ्नहर्ता उसके सभी संकट दूर करेंगे। इसी समर्पण के कारण बुधवार को गणेश जी की पूजा करने का विधान बना और यह दिन ज्ञान, वाणी और व्यापार के लिए विशेष फलदायी हो गया। ज्योतिष शास्त्र में, बुध ग्रह और भगवान गणेश दोनों का कारकत्व (प्रतिनिधित्व करने वाला गुण) पूरी तरह से एक-दूसरे से मेल खाता है। इसी कारण, बुधवार को इन दोनों की पूजा करना 'सोने पर सुहागा' के समान माना जाता है। कारकत्व बुध ग्रह (ग्रहों के राजकुमार) भगवान गणेश (बुद्धि के देवता) बुद्धि बुद्धि, विवेक, तर्क, विश्लेषण क्षमता और हास्य-बोध का प्रतिनिधित्व। स्वयं बुद्धि और ज्ञान के शाश्वत देवता। वाणी/संचार व्यक्ति की वाणी की मधुरता, संवाद कौशल, लेखन और पत्रकारिता का कारक। विघ्नहर्ता होने के कारण, वाणी और संचार में आने वाली सभी बाधाओं का निवारण करते हैं। व्यापार वाणिज्य, व्यापार, लेखा-जोखा और वित्तीय सौदों का नियामक। रिद्धि और सिद्धि (समृद्धि और सफलता) के स्वामी होने के कारण व्यापार में वृद्धि करते हैं। ज्योतिष में, यदि जन्म कुंडली में बुध ग्रह पीड़ित या कमजोर होता है, तो व्यक्ति को वाणी दोष (हकलाना), व्यापार में घाटा, कमजोर याददाश्त और मानसिक अस्थिरता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसे ही बुध दोष कहते हैं। भगवान गणेश विद्या और विवेक के देवता हैं, और वे समस्त ग्रहों के स्वामी व विघ्नहर्ता भी हैं, इसलिए बुधवार को उनकी आराधना करने से बुध देव प्रसन्न होते हैं। इससे बुध दोष शांत होता है, बुद्धि-ज्ञान बढ़ता है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
बुधवार के दिन की गई गणेश आराधना निम्नलिखित क्षेत्रों में विशेष फलदायी सिद्ध होती है: ज्ञान और करियर में उत्थान: यह दिन छात्रों, शिक्षकों, वकीलों और लेखकों के लिए अत्यंत शुभ है। पूजा से बुध की कृपा प्राप्त होती है, जिससे स्मरण शक्ति और एकाग्रता बढ़ती है, और शिक्षा तथा प्रतियोगिता में सफलता मिलती है। जिन लोगों को व्यापार में लगातार हानि हो रही है या पैसों की किल्लत है, उन्हें बुधवार का व्रत और पूजा अवश्य करनी चाहिए। बुध को मजबूत करने से व्यापार में तेजी आती है और धन-धान्य की वर्षा होती है। समस्त बाधाओं का निवारण: गणपति की कृपा से जीवन की सभी प्रकार की आर्थिक, शारीरिक और मानसिक बाधाएँ दूर होती हैं। बुधवार की पूजा केवल बुध दोष ही नहीं, बल्कि राहु और केतु जैसे क्रूर ग्रहों से संबंधित समस्याओं के निवारण के लिए भी प्रभावी मानी जाती है, क्योंकि गणेश जी विघ्नहर्ता हैं।बुधवार के दिन अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए: भगवान गणेश को दूर्वा घास (चूँकि दूर्वा घास हरे रंग की होती है, यह बुध ग्रह को भी प्रिय है) और सिंदूर अर्पित करें। उन्हें मोदक या गुड़-धनिया का भोग लगाएं।
मंत्र जाप: बुध ग्रह की शांति और बुद्धि वृद्धि के लिए: "ॐ बुं बुधाय नमः"। बाधा निवारण और शुभता के लिए: "ॐ गं गणपतये नमः"।किसी भी मंत्र का कम से कम एक माला (108 बार) जाप करना चाहिए। इस दिन हरी वस्तुओं जैसे हरी मूंग दाल (सबूत), हरी सब्जियां, हरे वस्त्र या हरे रंग की चूड़ियां (महिलाओं को) दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे बुध देव की प्रसन्नता प्राप्त होती है। यदि संभव हो तो बुधवार के दिन हरे रंग के वस्त्र धारण करें, इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। बुधवार का दिन केवल एक खगोलीय घटना नहीं है, बल्कि यह वह आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है जहाँ बुद्धि और विवेक के देव गणेश अपने सबसे शक्तिशाली स्वरूप में विराजमान रहते हैं। बुध ग्रह और गणपति का यह अटूट संबंध इस दिवस को विद्या, वाणी, ज्ञान और व्यापार में सफलता प्राप्त करने का महावरदान प्रदान करता है। जो भक्त बुधवार को सच्ची श्रद्धा से गणेश जी की पूजा करते हैं, उनके जीवन से बुध दोष दूर होता है, मानसिक शांति मिलती है और हर क्षेत्र में सफलता और सौभाग्य के मार्ग खुलते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए भौतिक व्यापार (बुध) और आध्यात्मिक ज्ञान (गणेश) दोनों का संतुलन आवश्यक है।

गुरुवार, दिसंबर 11, 2025

संस्कार , संस्कृति और सभ्यता

संस्कार से सभ्यता तक: भारत की शिक्षा और संस्कृति
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
मानव समाज की प्रगति केवल गगनचुंबी इमारतों या तकनीकी आविष्कारों से नहीं मापी जाती, बल्कि यह इस बात पर निर्भर करती है कि उस समाज के नागरिक कितने संस्कारवान, अनुशासित और नैतिक हैं। भारतीय मनीषियों ने इस तथ्य को सहस्राब्दियों पूर्व ही पहचान लिया था और संस्कार, संस्कृति और सभ्यता को एक दूसरे से अभिन्न रूप से जोड़कर एक ऐसी जीवन प्रणाली विकसित की जो कालातीत है। आज, जब भौतिकवाद और त्वरित प्रगति की होड़ में हमारी नैतिक और सांस्कृतिक जड़ें कमजोर पड़ रही हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली—विशेषकर गुरुकुल—के सिद्धांतों को आधुनिक संदर्भ में स्थापित करने का प्रयास है। त्रिवेणी का सिद्धांत में संस्कार, संस्कृति और सभ्यता अवधारणाएँ एक-दूसरे को पोषित कर तत्व अर्थ कार्य और पहचान शिक्षा में संबंध बनाती है।
संस्कार आंतरिक शुद्धि और परिष्करण की प्रक्रिया ( 16 संस्कार)। व्यक्ति को विवेकशील, नैतिक और कर्तव्यनिष्ठ बनाना। बीज: चरित्र निर्माण का आधार।संस्कृति समाज के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने का सामूहिक तरीका। समाज की पहचान, मूल्य और जीवनशैली का सार। पौधा: संस्कारों को पोषित करने वाली जीवनशैली। सभ्यता संस्कृति का भौतिक और बाहरी प्रकटीकरण; उन्नत समाज की उपलब्धियाँ (तकनीक, वास्तुकला)। समाज की भौतिक प्रगति और विकास को दर्शाना। वृक्ष/फल: संस्कृति का परिणाम है। संस्कार व्यक्ति के अंदर नैतिकता का बीज बोते हैं, जिससे संस्कृति रूपी पौधा पल्लवित होता है। यही संस्कृति, अंततः सभ्यता रूपी विशाल वृक्ष के रूप में फलती-फूलती है। संस्कृति हमें बताती है कि 'हम क्या हैं' (आंतरिक स्थिति), जबकि सभ्यता बताती है कि 'हमारे पास क्या है' (बाहरी उपलब्धि) है।
संरक्षण और संवर्धन का माध्यम शिक्षा में संस्कार , संस्कृति और सभ्यता  को संरक्षित और संवर्धित करता है। शिक्षा केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाना है।1. संस्कारों का पोषण शिक्षा का प्राथमिक कार्य उत्तम आचरण और व्यवहार सिखाना है। पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा, मानवीय मूल्यों और सामाजिक दायित्वों को शामिल करके छात्रों में विनम्रता, आदर, और सत्यनिष्ठा जैसे संस्कार विकसित किए जाते हैं। सेवा परियोजनाओं और सामुदायिक जुड़ाव के माध्यम से ये नैतिक मूल्य केवल सैद्धांतिक न रहकर, व्यावहारिक रूप से जीवन का हिस्सा बनते हैं। संस्कृति का संचार में  शिक्षा हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, ज्ञान परंपराओं, कलाओं और भाषाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाती है। साहित्य, कला-एकीकृत शिक्षा और भारतीय भाषाओं के अध्ययन के माध्यम से छात्र अपनी जड़ों से जुड़ते हैं। यह जुड़ाव उन्हें वैश्विक मंच पर आत्मविश्वास के साथ अपनी पहचान बनाए रखने में सक्षम बनाता है। 3. सभ्यता का मार्गदर्शन:शिक्षा वैज्ञानिक ज्ञान, तकनीकी कौशल और आलोचनात्मक चिंतन प्रदान करती है, जो सभ्यता की भौतिक प्रगति के लिए आवश्यक है। साथ ही, यह नैतिक और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी शिक्षा में एथिक्स, सामाजिक जिम्मेदारी और पर्यावरण चेतना को भी शामिल करती है।
 प्राचीन आदर्शों की आधुनिक अभिव्यक्ति राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा को भारतीय मूल्यों के साथ पुनर्संयोजित करने का सबसे बड़ा प्रयास है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का मातृभाषा/ क्षेत्रीय  भाषा में शिक्षा पर जोर सांस्कृतिक संरक्षण का एक महत्वपूर्ण कदम है। मातृभाषा में शिक्षा से छात्र संज्ञानात्मक रूप से बेहतर सीखते हैं, जटिल विचारों को तेजी से समझते हैं, और भावनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस करते हैं। मातृभाषा  सीधे तौर पर उनकी संस्कृति और संस्कारों को उनके मन में आत्मसात करने में सहायक होता है। भारतीय ज्ञान प्रणाली नीति में भारतीय कला, विज्ञान, गणित और दर्शन के योगदान को पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रावधान है। यह छात्रों को अपनी समृद्ध सभ्यता से परिचित कराता है और उनमें राष्ट्रीय गौरव का भाव भरता है।समग्र प्रगति कार्ड राष्ट्रीय शिक्षा नीति  में चरित्र निर्माण, सहकर्मी संबंध और सामाजिक जागरूकता को शैक्षणिक अंकों के समान महत्व दिया गया है। यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षा का अंतिम लक्ष्य एक चरित्रवान व्यक्ति (संस्कार) तैयार करना है, न कि केवल डिग्रीधारी है। गुरुकुल प्रणाली, प्राचीन भारतीय शिक्षा का आधार, इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण है कि संस्कार और संस्कृति किस प्रकार शिक्षा का मूल केंद्र थे।सादा जीवन और अनुशासन: गुरु के सान्निध्य में रहकर शिष्य विनम्रता, श्रम का मूल्य और अनुशासन सीखते थे। यज्ञोपवीत संस्कार से शिक्षा आरंभ होती थी, जो जीवन के महत्वपूर्ण चरणों को संस्कारों द्वारा चिह्नित करती थी। गुरुकुलों में केवल आध्यात्मिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि 64 कलाओं (वास्तुकला, चिकित्सा, युद्ध कौशल) की शिक्षा भी दी जाती थी, जो भारतीय सभ्यता की उन्नति का कारण बनी। शिक्षा निःशुल्क थी, जिसके बदले शिष्य गुरु की सेवा करते थे। इससे उनमें सेवा भाव और आदर का संस्कार गहरे उतरता था। संस्कार, संस्कृति और सभ्यता का संरक्षण और संवर्धन आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। NEP 2020 के माध्यम से हम गुरुकुल के उस मूलभूत सिद्धांत की ओर लौट रहे हैं जहाँ शिक्षा का उद्देश्य एक ऐसे व्यक्ति का निर्माण करना था जो नैतिक रूप से सशक्त (संस्कार), सांस्कृतिक रूप से समृद्ध (संस्कृति) और ज्ञान-विज्ञान में निपुण (सभ्यता) हो। यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम बच्चों को केवल यह न सिखाएँ कि 'हमारे पास क्या है' (सभ्यता), बल्कि यह भी सिखाएँ कि 'हम क्या हैं' (संस्कृति) और 'हमें कैसा होना चाहिए' (संस्कार)। जब ये तीनों तत्व शिक्षा के माध्यम से संतुलित होंगे, तभी लोक जीवन में सच्चा सुकून और राष्ट्रीय प्रगति सुनिश्चित हो सकेगी ।