राजगीर की सांस्कृतिक विरासत
सत्येन्द्र कुमार पाठक
बिहार राज्य के नालंदा ज़िले का राजगीर द्वापर युग में मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी । राजगृह को वसुमतिपुर, वृहद्रथपुर, गिरिब्रज और कुशग्रपुर राजगीर के नाम से विख्यात है। सनातन धर्म ग्रंथों , बौद्ध एवं जैन ग्रंथों साहित्य के अनुसार राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केन्द्र तथा जैन धर्म के 20 वे तीर्थंकर मुनि सुव्रतनाथ स्वामी के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान कल्याणक एवं 24 वे तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम देशना स्थली और भगवान बुद्ध की साधनाभूमि राजगीर है। ऋगवेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय उपनिषद, वायु पुराण, महाभारत, वाल्मीकि रामायण आदि में राजगीर का उल्लेख मिलता है। जैनग्रंथ विविध तीर्थकल्प के अनुसार राजगीर जरासंध, श्रेणिक, बिम्बसार, कनिष्क आदि प्रसिद्ध शासकों का निवास स्थान था। विश्व शांति स्तूप, राजगीर पहाड़ियों का दृश्य, रत्नागिरि पहाड़ियों में रोपवे, प्राचीन दिवारें, स्वर्ण भंडार , गुफाएँ, गृद्धकूट पर्वत निर्देशांक: 25°02′N 85°25′E / 25.03°N 85.42°Eनिर्देशांक: 25°02′N 85°25′E / 25.03°N 85.42°E पर अवस्थित राजगीर समुद्र तल से ऊँचाई 73 मी (240 फीट) , 2011 जनगणना के अनुसार राजगीर की जनसंख्या 41,587 हिन्दी एवं मगही भाषायी क्षेत्र है। पटना से 100 किमी दक्षिण-पूर्व में पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बसा राजगीर प्रसिद्ध धार्मिक सनातन धर्म , जैन और बौद्ध तीनों धर्मों के धार्मिक स्थल हैं। बौद्ध धर्म के महात्मा बुद्ध का निवास एवं उपदेश और प्रथम बौद्ध संगति तथा बुद्ध के उपदेशों को लिपिबद्ध स्थल राजगीर है।पंच पहाड़ियों से घिरा राजगीर वन्यजीव अभ्यारण्य प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। पर्यावरण एवं वन विभाग द्वारा सन् 1978 में 35.84 वर्ग किलोमीटर के राजगीर अरण्य क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य बना दिया गया था ।
राजगीर की भूमि, धार्मिक तीर्थस्थल, तीन साल पर आनेवाला बृहद मलमास मेला स्थल है। राजगीर की पंच पहाड़ियों में रत्नागिरी, विपुलाचल, वैभारगिरि, सोनगिरि उदयगिरि पहाड़ियों से घिरा राजगीर का घोड़ा कटोरा झील तट पर भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा स्थापित है । राजगीर मगध सम्राट राजा जरासंध एवं भगवान बुद्ध महावीर की तपभूमि है। गृद्धकूट पर्वत पर बुद्ध ने महत्वपूर्ण उपदेश दिये थे। जापान के बुद्ध संघ ने गृद्धकूट पर्वत की चोटी पर“शान्ति स्तूप” का निर्माण करवाया है। शांति स्तूप के चारों कोणों पर बुद्ध की चार प्रतिमाएं स्थपित हैं। स्तूप तक पहुंचने के लिए पैदल या “रज्जू मार्ग” रोपवे से यात्रा करते है । राजस्थानी चित्रकला का अद्भुत कारीगरी राजस्थानी चित्रकारों के द्वारा लाल मन्दिर में बनाया गया है । लाल मन्दिर में भगवान महावीर स्वामी का गर्भगृह भूतल के निचे बनाया गया है । लाल मन्दिर में २० वे तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ स्वामी की काले वर्ण की 11 फुट ऊँची विशाल खडगासन प्रतिम है।भगवान महावीर स्वामी की लाल वर्ण की 11 फुट ऊँची विशाल पद्मासन प्रतिमा वीरशासन धाम तीर्थ है । इस मन्दिर में भगवान महावीर स्वामी के दिक्षा कल्याणक महोत्सव में विशाल जुलुस हर साल जैन धर्मावलम्बियों द्वारा निकाला जाता है । भगवान महावीर के प्राचीन चरण वेणुवन के समीप समाप्त होता है । दिगम्बर जैन मन्दिर।को धर्मशाला मन्दिर के नाम से जाना जाता है। जैन धर्मावलम्बियों के ठहरने के लिए विशाल धर्मशाला से पंचपहाड़ी के दर्शन करते है मन्दिर मैं भगवान महावीर की श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा है । वेदी में सोने तथा शीशे से निर्मित 10 धातु की प्रतिमा,छोटी श्वेत पाषण की प्रतिमा एवं 2 धातु के मानस्तंभ है । गर्भ गृह की बाहरी दिवाल के बायीं ओर पद्मावती माता की पाषाण की मूर्ति के शिरोभाग पर पार्श्वनाथ विराजमान एवं दायीं ओर क्षेत्रपाल जी स्थित है । बायीं ओर की अलग वेदी में भगवान पार्श्वनाथ एवं अन्य प्रतिमायें अवस्थित है । दाहिनी ओर नन्दीश्वर द्वीप का निर्मित है । मन्दिर का निर्माण गिरिडीह निवासी सेठ हजारीमल किशोरीलाल ने कराया था और प्रतिष्ठा विक्रम संवत 2450 में हुई थी। बैभारपर्वत की सीढ़ियों पर मंदिरों के बीच गर्म जल के सप्तधाराएं सप्तकर्णी गुफाओं से जल आता है। झरनों के पानी में चिकित्सकीय गुण होने के प्रमाण हैं। पुरुषों और महिलाओं के नहाने के लिए 22 कुन्ड हैं। सप्त झरने का जल प्रवाहित निरंतर है।“ब्रह्मकुन्ड” का जल सबसे गर्म ४५ डिग्री है। वैभारगिरी का जरासंध का सोने का खजान है। बैभार पर्वत की गुफा के अन्दर अतुल मात्रा में स्वर्ण छुपा है और पत्थर के दरवाजे पर उसे खोलने का रहस्य किसी शांख लिपि एवं गुप्त भाषा में खुदा हुआ है। मगध साम्राज्य का राजा बिंदुसार के शासन काल में शांख लिपि प्रचलित थी ।जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की प्रथम वाणी विपुलाचल पर्वत पर जैन मंदिर विखरी थी । भगवान महावीर ने समस्त विश्व को "जिओ और जीने दो" दिव्य सन्देश विपुलाचल पर्वत से दिया था । पहाड़ों की कंदराओं के बीच बने २६ जैन मंदिरों को आप दूर से देखते हैं । जैन मतावलंबियो में विपुलाचल, सोनागिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, वैभारगिरि पहाड़ियाँ प्रसिद्ध हैं। जैन मान्यताओं के अनुसार इन पर 23 तीर्थंकरों का समवशरण आया था । आचार्य महावीर कीर्ति दिगम्बर जैन सरस्वती भवन का निर्माण परम पूज्य आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में सन् 1972 को सम्पन्न हुआ था । नीचे एक बड़े हॉल में आचार्य महावीर कीर्ति जी की पद्मासन प्रतिमा विराजित है । ऊपर के कमरों में एक विशाल पुस्तकालय है, जिसमें जैन धर्म सम्बंधित हज़ारों हस्तलिखित एवं प्रकाशित पुस्तकें संग्रहित है । इसके अतिरिक्त जैन सिद्धांत भवन ‘आरा’ के सौजन्य से जैन चित्रकला एवं हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ की प्रदर्शनी आयोजित है । इसके अतिरिक्त विपुलाचल पर्वत पर भगवान महावीर के जीवनी से संबंधित हस्तनिर्मित चित्रों कि प्रदर्शनी लाखों जैन अजैन यात्रियों द्वारा देखी और सराही जाती हैं । कई वर्ष पूर्व श्री महावीर कीर्ति सरस्वती भवन के संचालन के लिये एक बड़ी रकम पू० आचार्य श्री भरत सागर जी के प्रेरणा से शिखर जी में कमिटी को भेजने के लिये कुछ प्रबुद्ध व्यक्तियों को सौंपी गई थी, पर खेद है कि अभी तक कमिटी को वह रकम नही मिली हैं । कुछ प्राचीन खण्डित प्रतिमाएँ एवं अन्य पदार्थ जो उत्खनन से प्राप्त हुये थे । यहाँ भी संग्रहित है । ऊपरी हिस्से में वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित है । गृद्धकूट पहाड़ी पर मगध साम्राज्य के राजा बिम्बिसार का बिम्बिसार कारागार में भगवान बुद्ध के अनुयायी, बिम्बिसार का पुत्र अजातशत्रु द्वारा कैद किया गया था। अअजातशत्रु ने अपने पिता से कारावास की जगह का चयन करने के लिए पूछा था। राजा बिम्बिसार ने स्थान चुना, जहां से वे भगवान बुद्ध को देख सकें। इसके बावजूद वह गृधाकुट और बुद्ध को खिड़की से देखते है। वैभारगिरी पहाड़ी में स्थित सप्तर्णी गुफा है। प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन सप्तर्णी गुफा स्थान पर हुआ था। ब्रह्मकुण्ड व गरम जल स्रोत में स्नान करने से स्वास्थ्य लाभ होता है। सनातन धर्म संस्कृति के लिये पवित्र ब्रह्म कुण्ड है। सप्तपर्णी गुफा के स्थल पर प्रथम बौध परिषद का गठन का नेतृत्व महा कस्साप ने किया था।
“मनियार मठ" के समीप प्राचीन गुफाएं स्वर्ण भंडार है। मनियार मैथ अष्टकोणी मंदिर की दीवारें गोलाकार हैं। मनियार मठ के परिसर में विभिन्न राजकुलों में गुप्त राजकुल का धनुष और द्वापरयुग कालीन महाभारत में उल्लिखित मणि-नाग का समाधि स्थान है। सनातन धर्म की ज्योतिषीय गणना के अनुसार तीन वर्ष में अतिरिक्त एक महीने को पुरूषोतम मास व अधिकमास और मलमास या अतिरिक्त मास मेला लगता है । ऐतरेय बह्मण के अनुसार अधिमास को अपवित्र और अग्नि पुराण के अनुसार मलमास में मूर्ति पूजा–प्रतिष्ठा, यज्ञदान, व्रत, वेदपाठ, उपनयन, नामकरण आदि वर्जित है। मलमास अवधि में राजगीर सर्वाधिक पवित्र माना जाता है। अग्नि पुराण एवं वायु पुराण आदि के अनुसार मलमास अवधि में 33 कोटि 8 वासु , 11 रुद्र , 12 आदित्य , अश्विनी कुमार , ब्रह्मा जी देवी देवता यहां आकर वास करते हैं। ब्रह्माजी के द्वारा वैभारगिरी ब्रह्मकुण्ड को प्रकट किया था और मलमास में ब्रह्मकुण्ड में स्नान का विशेष फल की संज्ञा दी है। बुद्ध के समय प्रसिद्ध वैध जीवक ने बुद्ध को राजगीर में आश्रम समर्पित किया था । वैद्य जीवक ने बुद्ध के बीमार होने पर बुद्ध का इलाज वेणु वन में किया था। बुद्ध स्नान स्थल वेणुवन स्थित तालाब है। तपोधर्म आश्रम गर्म चश्मों के स्थान पर स्थित लक्ष्मी नारायण मन्दिर है। तपोधर्म के स्थल पर बौध आश्रम और गर्म चश्मे थे। मगध साम्राज्य का राजा बिम्बिसार तपोवन पर स्नान स्थल था । मगध साम्राज्य का सम्राट जरासंध बार-बार मथुरा पर हमले से श्री कृष्ण तंग आकर मथुरा-वासियों को द्वारिका भेजना पड़ा था । जरासंध का सैन्य कलाओं का स्थल पर गुलाबी रंग वाली हिन्दू लक्ष्मी नारायण मन्दिर अपने दामन में प्राचीन गर्म चश्मे समाए हुए हैं। लक्ष्मी नारायण मन्दिर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। जल कुंड में एक डुबकी ही गर्म चश्मे को अनुभव करने का स्रोत था, परन्तु अब एक उच्च स्तरीय चश्मे को काम में लाया गया है जो कई आधूनिक पाइपों से होकर आने पर हॉल की दीवारों से जुड़े स्थल पर लोग बैठकर अपने ऊपर से जल के जाने का आनंद लेते हैं। कर्णदा कुंड बुद्ध स्नान स्थल , प्रथम शताब्दी का मनियार मठ , मराका कुक्षी स्थल अजन्मित अजातशत्रु को पिता की मृत्यु का कारण बनने का श्राप मिला था । पांडव पुत्र भीम और जरासंध महाभारत का मल्ल युद्ध स्थल रणभूमि जरासंध का अखाड़ा है। विष्णु पुराण 23वाँ अध्याय के अनुसार मगध साम्राज्य की राजधानी राजगीर में द्वापरयुग में मगध साम्राज्य का राजा वृहद्रथ वंशीय मगध सम्राट जरासंध , सहदेव ,सोमापि ,श्रुतश्रवा ,आयुतायु, निरमित्र ,सुनेत्र ,वृहतकर्मा ,सेनजीत ,श्रुतन्जय ,विप्र ,शुचि ,क्षेम्य ,सुब्रत ,धर्म ,सुश्रवा ,दृहसेन ,सुबल ,सुनीत सत्यजीत ,विश्वजीत और रिपुंजय द्वारा मगध साम्राज्य पर एक हजार वर्ष तक शासन था । सुनिक के पुत्र प्रद्योत मगध साम्राज्य का राजा बना था । मगध साम्राज्य का प्रद्योत वंशीय विशाख यूप ,जनक ,नंदिवर्धन , नंदी शासक 148 वर्ष तक रहा था। नंदी का पुत्र शिशुनाभ ,काकवर्ण, क्षेमधर्मा ,क्षतौजा , विधिसार ,अजातशत्रु ,अर्भक ,उदयन , नंदिवर्धन ,महानन्दी शिशुनाग वंशीय राजाओं द्वारा 362 वर्ष तक मगध साम्राज्य का राजा थे ।शिशुनाभ वंशीय मगध साम्राज्य का राजा उदयन द्वारा मगध साम्राज्य की राजधानी राजगीर से स्थानांतरित कर गंगा नदी के किनारे अवस्थित पाटलिपुत्र में मगध साम्राज्य की राजधानी बनाया था।
आध्यात्मिकता और करुणा का केंद्र, वैभारगिरी पहाड़ियों की तलहटी में स्थित विरायतन में आध्यात्मिक और करुणा केंद्र सुंदर और शांतिपूर्ण हैं । विरायतन परिसर में संग्रहालय , पुस्तकालय , आधुनिक अतिथिगृह , सप्तपर्णी में ध्यान और पार्श्व जिनालय दर्शनीय है। नेत्र ज्योति सेवा मंदिरम् की स्थापना 1987 ई. में होने के पश्चात मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, पेटीगियम, भेंगापन, लैक्रिमल विकार और एंट्रोपियन के लिए नेत्र शल्य चिकित्सा और चिकित्सा प्रबंधन प्रदान किया जाता है। बिहार का विशेष रेटिनल क्लिनिक, 2011 में स्थापित हुआ एवं वीरायतन में युवाचार्य श्री शुभम जी की याद में अत्याधुनिक डायग्नोस्टिक सेंटर 26 जनवरी 2024 ई. को खोला गया।गौतम गुरुकुल के नाम से 26 जनवरी 2024 को विद्यालय प्रारम्भ हुई है। श्री ब्राह्मी कला मंदिरम संग्रहालय तीर्थंकरों के जीवन और शिक्षाओं को शिक्षाप्रद प्रदर्शित करता है। पूज्य गुरुदेव श्री अमर मुनिजी महाराज के 82 वें जन्मदिन के अवसर पर 1982 में श्री ब्राह्मी कला मन्दिरम संग्रहालय प्रारम्भ किया गया था। श्री ब्राह्मी कला मंदिरम का नामकारण जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की पुत्री ब्राह्मी के नाम पर रखा गया है । संग्रहालय पूज्य ताई माँ की आंतरिक दृष्टि का संग्रहालय में अवस्थित नाटकीय अनुवाद और प्रत्येक विवरण को अपने हाथों से डिज़ाइन और तैयार है। संग्रहालय का मुख्य आकर्षण प्राकृतिक सामग्री सूखी पत्तियां, टहनियाँ, बांस के तने, पत्थर और पुनर्नवीनीकृत उत्पाद जैसे कपड़े, टूटे आभूषण, टूटे बर्तन आदि से निर्मित सुंदर, रंगीन पैनल हैं। पूज्य ताई माँ इन वस्तुओं को एक साथ रखकर लघुचित्र बनाती हैं । पूज्य ताई माँ द्वारा निर्मित अनूठी रचना, प्राचीन बिहार, प्राचीन बिहार के ऐतिहासिक शहरों, मंदिरों और स्थलों का एक मॉडल प्रदर्शन नालंदा, पावापुरी, कौशाम्बी, वाणिज्य ग्राम, श्रावस्ती, वैशाली, राजगीर, मिथिला, चंपा और लछुआर को कवर करते हुए बिहार के प्राचीन इतिहास को दर्शाता है। राजगीर के वीरायतन में स्थित पुस्तकालय का नाम ज्ञानजलि में अमर मुनि की जीवन पर की पुस्तकें आदि विभिन्न धर्मों और दर्शनों पर विभिन्न भाषाओं में 20,000 से अधिक पुस्तकों का विशाल संग्रह है। वैभारगिरी पहाड़ियों की तलहटी में स्थित वीरायतन परिसर में अतिथि गृह तीर्थयात्रियों के लिए स्वच्छ, आरामदायक बोर्डिंग और लॉजिंग सुविधाएं प्रदान कर 300 अतिथियों के ठहरने की व्यवस्था है। वातावरण का 50 एकड़ भू क्षेत्र में विकसित बहुत सुंदर और शांत , बगीचे, संग्रहालय, नेत्र अस्पताल, मंदिर, प्रार्थना कक्ष और भोजनालय , स्वस्थ, पौष्टिक शाकाहारी भोजन प्रदान करता है।कृपानिधि रिट्रीट के पवित्र शहर में वैभारगिरी पर्वत श्रृंखला की तलहटी में हरे-भरे परिदृश्य के बीच स्थित इमारत की एल-आकार की संरचना सुनिश्चित करती है कि हर कमरे से पहाड़ों का मनोरम दृश्य दिखाई है। रेस्तरां में विशेष शाकाहारी व्यंजन , बैठकों, सम्मेलनों और सामाजिक समारोहों के लिए 2 बैंक्वेट हॉल हैं।सप्तपर्णी गुरुदेव श्री अमर मुनिजी को समर्पित सप्तर्णी स्मारक में ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास करते हुए कई साल बिताए थे। वीरायतन परिसर में स्थित भगवान श्री पार्श्वभव्य जिनालय मंदिर का उद्घाटन 2017 में हुआ था। साध्वीजी की उपस्थिति में पार्श्व भव्य जिनलग में पार्श्वनाथ को प्रतिदिन पूजा-अर्चना और आरती की जाती है। राजगीर में 20वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का प्रतीक सर्प एवं 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का प्रतीक सिंह 468 ई. पू. प्रसिद्ध था । राजगीर का राजा मल्लराज सृस्टिपाल के शासन काल 468 ई. पू. में जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का पवित्र स्थल एवं पावापुरी निर्वाण स्थल था । कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ के द्वितीय गुरु राजगीर में रुद्रक व रुद्रक रामपुत्र द्वारा कपिलवस्तु के राजा सुद्धोदन के पुत्र राजकुमार सिद्धार्थ व महात्मा बुद्ध को ज्ञान की शिक्षा दी गयी थी ।मगध साम्राज्य के राजा अजातशत्रु द्वारा 483 ई. पू. को राजगीर का सप्तर्णी गुफा के क्षेत्र में महाकाश्यप की अध्यक्षता में प्रथम बौद्ध संगति हुई थी । मगध साम्राज्य का राजा बिम्बिसार ने 52 वर्ष , 493 ई. पू. मगध साम्राज्य का राजा आजातशत्रु ने 32 वर्ष एवं मगध साम्राज्य का राजा उदयन ने 461 ई.पू. तक राजगीर में शासक था । उदयन द्वारा मगध साम्राज्य की राजधानी राजगीर से पाटलिपुत्र किया गया था। शिशुनाभ ने उदयन का अमात्य 412 ई. में बना था । राजा उदयन के बाद मगध साम्राज्य का शासन शिशुनाभ बना था । मगध वासी एवं शासक भगवान सूर्य के उपासक थे । राजगीर का क्षेत्रफल 50 .18 वर्गकिमी में 2011 जनगणना के अनुसार 41507 आवादी वाले क्षेत्र में मगध साम्राज्य का राजा वृहद्रथ द्वारा भगवान शिव को समर्पित सिद्धनाथ मंदिर के गर्भगृह में बाबा सिद्धनाथ व वृहदरथेश्वर शिवलिंग , 2011 में निर्मित 6 फिट चौड़ा 85 फिट लंबी ग्लास ब्रिज , 10 मंदिर पर्वतों पर और 2 मंदिर पर्वत के तलहटी पर है । पर्वतों की उचाई 73 मीटर है । शांति स्तूप , गर्म कुंड , जरासंध का अखाड़ा , स्वर्णभण्डार , मणियार स्थल , बिम्बिसार का कारावास स्थल , विरायतन , 20 वें तीर्थंकर सुब्रत स्वामी की जन्मभूमि , भगवान महावीर स्वामी की प्रथम देशनस्थली आदि प्रसिद्ध है।साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा 6 एवं 7 दिसंबर 2024 को राजगीर परिभ्रमण के दौरान राजगीर की सांस्कृतिक विरासत का अध्ययन किया गया ।
राजा मागध द्वारा मगध साम्राज्य की स्थापना कर मगध की राजधानी गया बनाया गया था । मागध वंशीय राजा वसु ने मगध साम्राज्य की राजधानी गया से स्थान्तरित कर राजगृह में स्थापित की । राजगृह को वसुमतीपुर कहा जाता था । मगध साम्राज्य का राजा वसु वंशीय वृहद्रथ ने वसुमतीपुर को वृहद्रथपुर नामकरण किया गया था । राजगीर को वसुमतीपुर , वृहद्रथपुर ,गिरिब्रज ,कुशाग्र पुर , राजगृह कहा गया है ।राजगीर में 22 कुंड ,52 झरने थे । वैभारगिरी को विवहाय गिरी कहा जाता था ।बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय 6 ठी ई.पू. पटना , गया , नालंदा , जहानबाद , नवादा , अरवल और औरंगाबाद जिले मिलाकर मगध था ।वैवस्वत मन्वंतर में वैवश्वत मनु की मित्रावरुण के परामर्श से पुत्री इला एवं देवगुरु वृहस्पति की पत्नी तारा एवं वनस्पति देव चंद्रमा के पुत्र बुध मगध का राजा थे । मगध का राजा बुध द्वारा गया में राजधानी बनाई गई थी । मगध राजा बुध काल मे ईशानकोण में वणाकार 8 अंगुल क्षेत्रफल में विकशित अत्रि गोत्र ,पीतवर्ण मिथुन कन्या राशि का राजा बुध थे । बुध का वाहन सिंह और समिधा अपामार्ग प्रिय वस्त्र हरा था ।