सोमवार, नवंबर 11, 2024

धर्म , संस्कृति और पर्यावरण का संगम उतराखण्ड की नदियां

उतराखण्ड की नदियाँ : धर्म ,  संस्कृति और पर्यावरण का संगम 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
सनातन धर्म संस्कृति में उतराखण्ड की नदियाँ  महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं । नदियों में भागीरथी , अलकनन्दा , मंदाकनी , यमुना और सहायक नदियाँ एवं झीलें मानव संस्कृति के लिए आस्था का केंद्र है। हिमालय की चोटियों के राजसी ग्लेशियर से प्रवाहित नदियाँ   भारतीय, नेपाली और तिब्बती सीमाओं पर पाए जाते है उत्तराखंड की नदियाँ में  काली, टोंस, अलकनंदा, भागीरथी, कोसी आदि हैं। उत्तराखंड के गंगोत्री ग्लेशियर के शीर्ष पर स्थित गौमुख से भागीरथी नदी निकल कर देवप्रयाग में अलकनंदा के साथ मिलकर संगम बनाती है ।संतोपथ ग्लेशियर और भागीरथी खरक ग्लेशियर का संगम से प्रवाहित होने वाली अलकनंदा नदी है। कालिंदी पर्वत श्रंखला पर 6365 मीटर उचाई पर स्थित यमुना ग्लेशियर ऋषिकुंड तक प्रवाहित होने के बाद उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में गंगा , यमुना और सरस्वती नदियों का संगम बनाती है। यह स्थल को त्रिवेणी , प्रयाग संगम कहा जाता है । भागीरथी नदी की 80 किमी प्रवाहित होने वाली  सहायक भिलंगना नदी  में घुत्तु, बिरोदा, कल्याणी, भेलबाही, घोंटी नदियाँ  टिहरी में भागीरथी में गिरती है ।  गंगा नदी सभी नदियों में सबसे पवित्र है। पवित्र गंगा नदी का आत्मा ,  दिव्यता, आध्यात्मिकता, मोक्ष और स्वच्छता के गुणों का प्रतीक  उत्तरकाशी में गोमुख से बहती है। गंगोत्री ग्लेशियर, सतोपंथ ग्लेशियर और खतलिंग ग्लेशियर इसके स्रोत हैं। गंगा नदी की सहायक नदियाँ भागीरथी और अलकनंदा हैं। पिथौरागढ के कालापानी के समीपधौली गंगा की श्रंखला  3600 मीटर व 11800 फीट की उचाई पर स्थित गोमुख से  तवाघाट में काली नदी, व शारदा नदी और महाकाली नदी प्रवाहित है। मना का वसुंधरा झरने और संतोपथ झील की ओर जाने वाली मार्ग में सरस्वती नदी का उद्गम है । सरस्वती नदी का संगम अलकनन्दा नदी में मिलने से केशव प्रयाग स्थल मना में अवस्थित है ।यहां पांडव पुत्र भीम द्वारा शिला रखी है । शिला को भीम पुल कहा जाता है। मार्ग में गिरता है।  पहाड़ पानी के समीप सातताल झील का मुहाना किच्छ से  103 किलोमीटर तक प्रवाहित होने वाली गौला नदी  रामगंगा से  गौला नदी निकलती है। गोरी गंगा को जिसे गोरी गाड ​​और घोरी गंगा कहा गया है।  पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील में बहने वाली गौरी गंगा नदी है। यह नदी मिलम ग्लेशियर से 104 किलोमीटर तक बहती है और जौलजीबी में काली नदी में मिल जाती है। हिमालय में धारपानी धार के पास से  प्रारंभ होकर कोसी नदी  उत्तर प्रदेश से होकर रामगंगा नदी में मिल कर  नदी घाट, बुजान, अमदाना, बेताल और रामनगर शहरों को सिंचाई का पानी भी उपलब्ध कराती है।  केदारनाथ के समीप  चोराबारी ग्लेशियर से मंदाकिनी नदी  बहने वाली अलकनंदा नदी इसकी सहायक नदी  और सोनप्रयाग में वासुकीगंगा नदी से पानी प्राप्त कर रुद्रप्रयाग में अलकनन्दा में मिलत्ती है मंदाकिनी नदी और अलकनंदा नदी के संगम स्थल को रुद्रप्रयाग कहा जाता है। नंदाकिनी नदी - नंदा देवी राष्ट्रीय वन में नंदा घुंघटी ग्लेशियर विशाल नंदाकिनी नदी को पोषण देते हैं।  मंदाकिनी  नदी 56 किलोमीटर तक बहती और फिर पंच प्रयागों में से नंदप्रयाग पहुँचती हुई  अलकनंदा नदी से मिलती है। सरयू नदी - कुमाऊं क्षेत्र में कई नदियाँ निकलती हैं। सरयू उत्तराखंड की एक प्रमुख नदी है जो कुमाऊं क्षेत्र से निकलने वाली सरयू नदी  सरमूल से शुरू होती है और पंचेश्वर पहुँचने से पहले 145 किलोमीटर तक बहती है। नदी खूबसूरत मल्ला कत्यूर घाटी से होकर गुज़रती है, जहाँ यह कई बड़ी और छोटी सहायक नदियों से मिलती है।टोंस नदी -  गढ़वाल हिमालय पर्वतों से होकर गुजरने वाली  टोंस नदी कलसी के पास यमुना नदी से मिलकर  दून घाटी में यह बहुत सारा पानी ले जाती है। यमुना की सबसे लंबी सहायक टोंस  148 किलोमीटर तक फैली हुई है।नायर नदी -  गंगा नदी की 94 किमी लंबी सहायक नायर  नदी  पौड़ी जिले में गढ़वाल दूधातोली पहाड़ियों से निकलती है। पिंडारी नदी -  पिंडारी ग्लेशियरों से बहने वाली पिंडारी नदी  105 किलोमीटर तक पर प्रवाहित होती हुई भगोली, कुलसारी, नौटी और थरली गाँवों से होकर गुजरती है। नायर नदी (पश्चिमी) - पौड़ी जिले में गढ़वाल की दूधातोली पहाड़ियों से 91 किमी लंबी नायर पश्चिमी नदी  निकलती है। धौलीगंगा नदी-कुमाऊं - कजली नदी सहायक धौलीगंगा नदी कुमाऊं मंडल से होकर बहती  हुई  गोवनखाना हिमानी से प्रारम्भ  होकर तावधार में समाप्त होती है। रामगंगा नदी (पश्चिमी) रामगंगा पश्चिम नदी पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र में दूधातोली पहाड़ियों से 155  किमी लंबी रामगंगा पश्चमी नदी निकलकर जलग्रहण क्षेत्र 30,641 वर्ग किलोमीटर में फैली  है।
 गौरवशाली उत्तराखंड  को  “देवभूमि” व देवताओं की भूमि से सम्मानित किया गया है। उतराखण्ड राज्य में पवित्र। नदियों में गंगा , अलकनंदा , मंदाकिनी , यमुना , बद्रीनाथ धाम , केदारनाथ मंदिर , गंगोत्री , यमुनोत्री  तीर्थस्थल हैं । चार धाम , पंच केदार , पंच प्रयाग , पंच बद्री , शक्ति पीठ और सिद्ध पीठ पवित्र मंदिर हिमालय की शांति में पहाड़ी क्षेत्रों में सुशोभित और आभा को दिव्य बनाते हैं।  देवताओं के दिव्य हस्तक्षेप में आत्मसमर्पण कर और पहाड़ी मंदिरों के आध्यात्मिक आनंद में आनंदित होता है।यहाँ "दिव्य ज्ञान" के मंदिर में भगवान शिव के (अग्नि) रूप दुर्गा, सर्वश्रेष्ठ देवी, काली के सबसे भयानक रूपों का प्रतिनिधित्व करने वाली चंडिका के गढ़वाल में नौ और कुमाऊँ में दो मंदिर ,  चेचक की देवी शीतला के  अल्मोड़ा , श्रीनगर , जागेश्वर और अन्य स्थानों में समर्पित मंदिर हैं। हजारों मंदिरों की भूमि सहस्त्र वर्षों  से ऋषि-मुनि , संत भगवान शिव  के हिमालय स्थित निवास पर जाते और वासुदेव, सर्वशक्तिमान से आशीर्वाद मांगते रहे हैं। हरिद्वार भारत के सप्त पुरी या सात सबसे पवित्र प्राचीन शहरों में से हरिद्वार   प्रमुख तीर्थ स्थल है। ऋषिकेश में मंदिर और आश्रम  हैं । भगीरथी गंगा और अलकनन्दा नदी के संगम पर अवस्थित देवप्रयाग है। केदारनाथ और बद्रीनाथ के पवित्र तीर्थस्थल गंगोत्री और यमुनोत्री के साथ मिलकर  चार धाम सर्किट बनाते हैं ।,  पंच केदार मंदिर भगवान शिव को समर्पित पाँच मंदिरों का समूह है । उत्तराखंड के मंदिरों को श्रेणी में केदारखंड- जिसमें गढ़वाल मंडल के मंदिर और मानसखंड-  के कुमाऊं मंडल के मंदिर हैं। उतराखण्ड राज्य में 147 प्राचीन मंदिर है । उत्तराखंड का चार धाम में गंगोत्री मंदिर , यमुनोत्री मंदिर , केदारनाथ मंदिर , बद्रीनाथ मंदिर है। पंच बद्री मंदिर में बद्रीनाथ - विशाल बद्री , योगध्यान बद्री , भविष्य बद्री , वृद्ध बद्री , आदि बद्री , पंच केदार मंदिर में केदारनाथ , तुंगनाथ , रुद्रनाथ मन्दिर , कल्पेश्वर , मध्यमहेश्वर या मद्महेश्वर , अंग्यारी महादेव मंदिर , अनुसूया देवी मंदिर और अत्रि ऋषि  आश्रम , ऑगस्त ऋषि  , बधाणगढ़ी मंदिर , बद्रीनाथ , बद्रीनाथ मंदिर द्वाराहाट , बागेश्वर , बाघनाथ मंदिर , बैजनाथ मंदिर , बैरासकुण्ड महादेव , बालेश्वर मंदिर , बंसी नारायण मंदिर , बसुकेदार मंदिर ,बेरीनाग , भैरव मंदिर ,भविष्य बद्री ,भीमेश्वर महादेव मंदिर ,बिलकेश्वर महादेव मंदिर , बिनेश्वर महादेव मंदिर , बुद्ध मंदिर , बूढ़ा केदार , बूढ़ा मदमहेश्वर , चैती देवी मंदिर ,चमोलानाथ मंदिर ,चंडिका देवी सिमली , चंडिका देवी मंदिर , चंडिका मंदिर बागेश्वर ,चंद्रबानी मंदिर ,चंद्रशिला ट्रेक ,चिंता हरण महादेव मंदिर ,चितई गोलू देवता मंदिर , डाट काली मंदिर , देवलगढ़: , देवी मंदिर , देवप्रयाग , ध्वज मंदिर , दूदाधारी बर्फानी मंदिर, दूनागिरी मंदिर ,गैरार गोलू देवता ,गंगोत्री , गंगोत्री मंदिर , गौरी उडियार गुफा , गौरीकुंड , गौरीकुंड मंदिर , गोलू देवता / ग्वाल देवता , गोलू देवता मंदिर , गोपेश्वर , गोपीनाथ मंदिर , गुजरू गढ़ी , हाट कालिका मंदिर, , हैदाखान मंदिर , हनुमान गढी , हनुमानचट्टी (बद्रीनाथ) , हरिद्वार , इंद्रासनी मनसा देवी मंदिर , इंद्रासनी मनसा देवी मंदिर , जागेश्वर , जागेश्वर , झूला देवी मंदिर , झूला देवी मंदिर , ज्योतिर्मठ , ज्योतिर्मठ , कैंची धाम , कैंची धाम , काली मंदिर कालापानी , काली मंदिर कालापानी , कालीमठ , कालीमठ , कालीशिला , कालीशिला , कल्पेश्वर , कल्पेश्वर , कालू सिद्ध , कालू सिद्ध , कामाख्या देवी मंदिर , कामाख्या देवी मंदिर , कमलेश्वर मंदिर , कमलेश्वर मंदिर , कपिलेश्वर महादेव मंदिर , कपिलेश्वर महादेव मंदिर , कर्कोटक मंदिर , कर्कोटक मंदिर , कर्मा जीत मंदिर , कर्मा जीत मंदिर , कार्तिक स्वामी , कार्तिक स्वामी , कसार देवी मंदिर , कसार देवी मंदिर , काशी विश्वनाथ मंदिर उत्तरकाशी , कटारमल सूर्य मंदिर , केदारनाथ , केदारनाथ मंदिर , खरसाली , कोट भ्रामरी मंदिर , क्रांतेश्वर महादेव मंदिर , क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर , लाखामंडल , लखनपुर मंदिर , लटेश्वर मंदिर , लक्ष्मण सिद्ध मंदिर , माँ बाराही देवी मंदिर, देवीधुरा , मदमहेश्वर , बिसोई में महासू देवता मंदिर , हनोल में महासू देवता मंदिर , मक्कूमठ , मांडू शिध , मनेश्वर मंदिर , मनकामेश्वर मंदिर , माता मूर्ति मंदिर , मठियाना देवी मंदिर , मोस्टामानु मंदिर , मुखबा , मुक्तेश्वर मंदिर ,नाग देव मंदिर , नाग देवता मंदिर बारसू , नागनाथ ममंदिर , नैना देवी मंदिर , नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा , नंदा देवी मंदिर मुनस्यारी , नारायण कोटि मंदिर, ओंकार रत्नेश्वर महादेव  , ओंकारेश्वर मंदिर  , पंचेश्वर महादेव मंदिर , पांडवखोली , पांडुकेश्वर , पारद शिवलिंग , पाताल भुवनेश्वर ,रघुनाथ मंदिर, देवप्रप्रयाग  ,राहु मंदिर ,राम मंदिर रानीखेत ,रामशिला मंदिर, अल्मोड़ा  , ऋषिकेश , रुद्रधारी झरना और महादेव मंदिर , रुद्रनाथ मन्दिर , रुद्रेश्वर महादेव मंदिर , साईं मंदिर , संतला देवी मंदिर , शनि देव मंदिर , शंकराचार्य समाधि , शिखर धाम मंदिर , शीशमहल राम मंदिर, हरिद्वार , शिव मंदिर , सीताबनी मंदिर , सोमेश्वर महादेव सांकरी , सोमेश्वर मंदिर अल्मोड़ा ,सुरा देवी मंदिर , सुरकंडा देवी मंदिर , टपकेश्वर , त्रियुगीनारायण , तुंगनाथ , उखीमठ ,उमरा नारायण मंदिर , उपत कालिका मंदिर , वैतरणी मंदिर समूह , विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी , वृद्ध बद्री , व्यास गुफा , यमुनोत्री मंदिर , योगध्यान बद्री मंदिर है।
सिख धर्म के 10वें गुरु गोविंद सिंह का कर्म भूमि , धनरिया का पवित्र  हेमकुंड , हेमकुंड साहिब , लक्ष्मण मंदिर , गर्म कुंड बद्रीनाथ  गोविंद घाट , ऋषिकेश का गुरुद्वारा ,लक्ष्मण झूला , नीलकंठ महादेव , गीताप्रेस , योग केंद्र , जोशीमठ में भगवान नरसिंह , भगवान सूर्य आदि देव , देव प्रयाग , कर्ण प्रयाग , रुद्र प्रयाग , सोन प्रयाग , केशव प्रयाग , विष्णु प्रयाग , हरिद्वार का हरि की पैड़ी , कनखल पवित्र स्थान है । नारायण पर्वत , नर पर्वत , द्रोण पर्वत , धौला गिरी पर्वत , केदार चट्टी , वसुधरा आदि स्थल पवित्र है ।

रविवार, अक्तूबर 27, 2024

लालकिला , दिल्ली परिभ्रमण।


 पुराणों एवं स्मृति ग्रंथों के अनुसार खाण्डव वन को भगवान कृष्ण के परामर्श से पांडवों ने  इन्द्रप्रस्त का निर्माण कर पांडव की राजधानी बनी थी । पांडव वंशीय द्वारा दक्षिण दिल्ली का  सूरजकुंड  700 ई. में दिल्ली का रूप दिया गया । पांडव वंशीय तोमर शासक  अनंगपाल तोमर  द्वितीय ने  दिल्ली में लालकोट का निर्माण 1060 ई. में करने के बाद  अपनी राजधानी बनाई थी ।12 96 ई. में अल्लाउद्दीन खिलजी ने  लालकोट को कुष्क ए लाल , लाल प्रासाद में विश्राम किया था । लाल कोट में अष्टभुजी प्राचीर , तोरण द्वार और हाथी पोल द्वार थे । अग्निपुराण , अकबर नामा के अनुसार 1060 ई. में लालकोट का पुनर्निर्माण पृथ्वीराज चौहान द्वारा कराई गई थी । 1398 ई. में तैमूर लंग लालकोट का भ्रमण किया । लाल किला को लाल कोट , किला राय पिथौरा , लाल हवेली ,भाग्यशाली किला ,कुष्क ए लाल , , लाल प्रसाद , , लाल महल , शाहजहाबाद , किला ए मुबारक , लाल किला विभिन्न राजाओं , सुल्तानों , बादशाहों शासकों द्वारा नामकरण किया गया था । लाल की का दरवाजा में दिल्ली दरवाजा ,वर्खि दरवाजा ,अखबार दरवाजा ,नोवेल दरवाजा ,हिमायु दरवाजा ,लाहौर व लाहौरी गेट दरवाजा है ।सिखों द्वारा 174 , 1775 और 1703 ई. में लाल किला पर अधिकार किया गया था।लाल किले क्षेत्र 254 .67 एकड़ में फैले क्षेत्रफल में  है। लाल किला व लाल कोट का राजा पृथ्वीराज चौहान एवं गोविंद चौहान 12 वीं सदी तक 


थे । साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा 20 अक्टूबर 2024 को लालकिला परिभ्रमण किया गया ।
पुरानी दिल्ली क्षेत्र  में स्थित, लाल बलुआ पत्थर से निर्मित  "लाल किला", को 2007 ई. में  युनेस्को द्वारा  विश्व धरोहर स्थल किया गया है । यमुना नदी के किनारे दिल्ली का बादशाह शाहजहाँ द्वारा 1638 ई. में  250 एकड़ जमीन में लाल किला का निर्माण कराया गया गया था । बादशाह  शाहजहां ने 1638 ई . में अपनी राजधानी आगरा को दिल्ली में स्थापित कर लिया था । मुगल काल के प्रसिद्ध वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी को लाल  किले की शाही डिजाइन बनाने के लिए चुना था। उस्ताद अहमद ने लाल किला को बनवाने में विवेकशीलता और कल्पनाशीलता का इस्तेमाल कर इसे अति सुंदर और भव्य रुप दिया था। लाल किला बनने के कारण भारत की राजधानी दिल्ली को शाहजहांनाबाद कहा जाता था ।, मुगल बादशाह  शाहजहां के बाद औरंगजेब ने लाल  किले में मोती-मस्जिद का निर्माण करवाया था।  लाल किले पर 17 वीं शताब्दी में  मुगल बादशाह जहंदर शाह के अधीनहोने के बाद  30 साल तक लाल किले बिना शासक का रहा था।  नादिर शाह ने लाल किले पर अपना शासन किया । ब्रिटिश साम्राज्य  ने 18 वीं सदी में  लाल किले पर अधिकार कर  लिया था  ।  भारत की आजादी के बाद  देश के प्रथम  प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लाल किला  पर तिरंगा फहराकर देश के नाम संदेश दिया था। लाल किले का इस्तेमाल सैनिक प्रशिक्षण के लिए किया जाने लगा था।  प्रमुख पर्यटन स्थल के रुप में मशहूर है । सलीमगढ़ के पूर्वी छोर पर स्थित लाल बलुआ पत्थर की प्राचीर एवं दीवार के कारण लाल किला  है। लाल किला की  चार दीवारी  1.5 मील (2.5 किमी) लम्बी और यमुना नदी के किनारे से ऊँचाई 60 फीट (16मी), तथा 110 फीट (35 मी) ऊँची और  82 मी की वर्गाकार ग्रिड (चौखाने) का प्रयोग कर बनाई गई है। लाल किले 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद, किले को ब्रिटिश सेना के मुख्यालय के रूप में प्रयोग किया जाने लगा था । उमेद दानिश द्वारा 1903 ई. में लाल किले के नष्ट हुए बागों एवं बचे भागों को पुनर्स्थापित करने की योजना  प्रारम्भ  की  गयी थी । लाल किले  की कलाकृतियाँ फारसी, यूरोपीय एवं भारतीय कला एवं  शाहजहानी शैली था। यह शैली रंग, अभिव्यंजना एवं रूप में उत्कृष्ट है। लालकिला सन 1913 ई. में राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक घोषित होने से पूर्वैसकी उत्तरकालीनता को संरक्षित एवं परिरक्षित करने हेतु प्रयास हुए थे।
लाल किला की दीवार  लाहौर दरवाज़े  मुख्य प्रवेशद्वार के अन्दर एक लम्बा बाजार ,, चट्टा चौक, जिसकी दीवारें दुकानों से कतारित,  खुला स्थान उत्तर-दक्षिण सड़क को काटती , सड़क पहले किले को सैनिक एवं नागरिक महलों के भागों में बांटती और  सड़क का दक्षिणी छोर दिल्ली गेट  है। लाहौर गेट से चट्टा चौक तक आने वाली सड़क से लगे खुले मैदान के पूर्वी ओर नक्कारखाना संगीतज्ञों हेतु बने महल का मुख्य द्वार है। गेट के पार एक और खुला मैदान में  मुलतः दीवाने-ए-आम का प्रांगण हुआ करता था। दीवान-ए-आम। जनसाधारण हेतु बना वृहत प्रांगण था। अलंकृत सिंहासन का छज्जा दीवान की पूर्वी दीवार के बीचों बीच निर्मित बादशाह के लिए निर्मित सिंहासन और सुलेमान के राज सिंहासन  था। नहर-ए-बहिश्त - राजगद्दी के पीछे की ओर शाही निजी कक्ष नहर ए बहिश्त  के क्षेत्र का , पूर्वी छोर पर ऊँचे चबूतरों पर बने गुम्बददार इमारतों की कतार से यमुना नदी का किनारा दिखाई पड़ता है। मण्डप  छोटी नहर से जुडे़ को  नहर-ए-बहिश्त कहते हैं । नहर के बहिका सभी कक्षों के मध्य से जाती है। लाल किले के पूर्वोत्तर छोर पर बने शाह बुर्ज पर यमुना  जल से  नहर की  जल आपूर्ति होती है। किले का परिरूप कुरान में वर्णित स्वर्ग या जन्नत के अनुसार बना है।  लालकिले का प्रासाद, शाहजहानी शैली का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करता है। महल के  दक्षिणवर्ती प्रासाद महिलाओं हेतु निर्मित को जनाना व मुमताज महल,संग्रहालय बना हुआ एवं रंग महल, में सुवर्ण मण्डित नक्काशीकृत छतें एवं संगमर्मर सरोवर में नहर-ए-बहिश्त से जल आता है। दक्षिण से तीसरा खास महल में शाही कक्ष निर्मित  हैं।  खास महल में राजसी शयन-कक्ष, प्रार्थना-कक्ष,  बरामदा और मुसम्मनबुर्ज से बादशाह जनता को दर्शन देते थे। दीवान-ए-खास मंडप राजा का मुक्तहस्त से सुसज्जित निजी सभा कक्ष था। दिवान के खास महल  में  सचिवीय qक़क़ मंत्रीमण्डल तथा सभासदों से बैठकों के काम आता थाइस म्ण्डप में पीट्रा ड्यूरा से पुष्पीय आकृति से मण्डित स्तंभ बने हैं। इनमें सुवर्ण पर्त भी मढी है, तथा बहुमूल्य रत्न जडे़ हैं।  महल की मूल छत को रोगन की गई काष्ठ निर्मित छत से बदल दिया गया है। इसमें अब रजत पर सुवर्ण मण्डन किया गया है।तुर्की शैली में रंगीन संगमरमर पाषाण युक्त निर्मित  हमाम महल की राजसी स्नानागार था, एवं तुर्की शैली में बना है। हमाम के पश्चिम में मोती मस्जिद का निर्माण सन् 1659 में, औरंगजे़ब की निजी मस्जिद निर्मित थी। मोती मस्जिद तीन गुम्बद वाली, तराशे हुए श्वेत संगमर्मर से निर्मित ,  मुख्य फलक तीन मेहराबों से युक्त , एवं आंगन में  फुलो का मेला है। मोती मस्जिद के  उत्तर में हयात बख्श बाग  हैं।  मण्डप उत्तर दक्षिण कुल्या के दोनों छोरों पर स्थित हयात महल का निर्माण अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वारा 1842 बनवाया गया था।  लाल  किला स्थल जहाँ से भारत के प्रधान मंत्री स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को देश की जनता को सम्बोधित करते हैं। लाल किला इमारत समूह में  3000 लोग  रहा करते थे परंतु 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद, किले पर ब्रिटिश सेना का कब्जा़ हो गया, एवं रिहायशी महल नष्ट कर दिये गये। लाल किला  ब्रिटिश सेना का मुख्यालय  बनाया गया। स्वतंत्रता  संग्राम के दौरान  बहादुर शाह जफर पर मुकदमा भी चला ,  नवंबर 1945 में इण्डियन नेशनल आर्मी के तीन अफसरों का कोर्ट मार्शल किया गया था। स्वतंत्रता के बाद 1947 में  भारतीय सेना ने  किले का नियंत्रण ले लिया था।  दिसम्बर 2003 में, भारतीय सेना ने लालकिला भारतीय पर्यटन प्राधिकारियों को सौंप दिया। किले पर दिसम्बर 2000 में लश्कर-ए-तोएबा के आतंकवादियों द्वारा हमला के दौरान  दो सैनिक एवं एक नागरिक मृत्यु को प्राप्त हुए।  भारत के आजाद होने पर 1947 ई. में  ब्रिटिश सरकार ने लाल किला परिसर भारतीय सेना के हवाले कर दिया था । २२ दिसम्बर २००३ को भारतीय सेना ने 22 दिसंबर 2003 को लाल किला खाली कर  समारोह में पर्यटन विभाग को सौंप दिया था । लाल किले पर 1739 में फारस के बादशाह नादिर शाह ने हमला किया और   स्वर्ण मयूर सिंहासन ले गया था।