सत्येन्द्र कुमार पाठक
झारखंड के रामगढ़ में एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान शंकर के शिवलिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं मां गंगा करती हैं. मंदिर की खासियत यह है कि यहां जलाभिषेक साल के बारह महीने और चौबीस घंटे होता है. यह पूजा सदियों से चली आ रही है. माना जाता है कि इस जगह का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. भक्तों की आस्था है कि यहां पर मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है lझारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर को लोग टूटी झरना के नाम से जानते है. मंदिर का इतिहास 1925 से जुड़ा हुआ है और माना जात है कि तब अंग्रेज इस इलाके से रेलवे लाइन बिछाने का काम कर रहे थे. पानी के लिए खुदाई के दौरान उन्हें जमीन के अन्दर कुछ गुम्बदनुमा चीज दिखाई पड़ा. अंग्रेजों ने इस बात को जानने के लिए पूरी खुदाई करवाई और अंत में ये मंदिर पूरी तरह से नजर आया.शिव भगवान की पूजा होती है l
मंदिर के अन्दर भगवान भोले का शिव लिंग मिला और उसके ठीक ऊपर मां गंगा की सफेद रंग की प्रतिमा मिली. प्रतिमा के नाभी से आपरूपी जल निकलता रहता है जो उनके दोनों हाथों की हथेली से गुजरते हुए शिव लिंग पर गिरता है. मंदिर के अन्दर गंगा की प्रतिमा से स्वंय पानी निकलना अपने आप में एक कौतुहल का विषय बना हैlसवाल यह है कि आखिर यह पानी अपने आप कहा से आ रहा है. ये बात अभी तक रहस्य बनी हुई है. कहा जाता है कि भगवान शंकर के शिव लिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं मां गंगा करती हैं. यहां लगाए गए दो हैंडपंप भी रहस्यों से घिरे हुए हैं. यहां लोगों को पानी के लिए हैंडपंप चलाने की जरूरत नहीं पड़ती है बल्कि इसमें से अपने-आप हमेशा पानी नीचे गिरता रहता है. वहीं मंदिर के पास से ही एक नदी गुजरती है जो सूखी हुई है लेकिन भीषण गर्मी में भी इन हैंडपंप से पानी लगातार निकलता है।
: विश्व की भूगर्भिक संरचना और भारतीय संस्कृति झारखंड और बिहार की भूमि में सांस्कृतिक विरासत बिखरी पड़ी है ।
विश्व की भूगर्भिक संरचना भूगर्भिक इतिहास से जुड़ा है।भू पटल की उत्पत्ति आर्कियन महाकल्प ( प्रो कैम्ब्रियन युग के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति 4.6 अरब वर्ष पूर्व हुई और 57 करोड़ वर्ष पूर्व से पैलोजोइक युग प्रारंभ हुआ है । भारतीय वेदों ,पुराणों ,उपनिषदों तथा इतिहासकारों ने पुरुजीवी महाकल्प 5करोड़ 70 लाख वर्ष से 2 करोड़ 45 लाख वर्ष पूर्व तक पृथ्वी पर जीवन मिला है ।जिसे मध्य जीवन अर्थात मेसोजोइक्कह गया है । धर्म ग्रंथों के अनुसार भारतीय उप महाद्वीप के चट्टानों को विष्णु पुराण,शिव पुराण ,ब्रह्मपुराण ,वामन पुराण में आर्कियन ,पौराणिक ,द्रविड़ियन और आर्यन युग में विभाजित कर सात द्वीपो में बांटा है जिसमें जम्बू द्वीप ,प्लक्ष द्वीप, शाक द्वीप,शाल्मलद्वीप ,क्रोंच द्वीप ,कुश द्वीप तथा पुष्कर द्वीप का वर्णन है। भू मापक के अनुसार विंध्य पर्वत माला 103600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली है तथा गंगा का मैदान और दक्कन का पठार विंध्य पर्वत को मध्य में विभाजित करता है ।विंध्य पर्वत, अरावली ,कुडुप्पा, मेघालय ,धारवाड़ ,मेघालय ,मिकर की पर्वत आर्कियन युग की बताई गई है ।विंध्य पर्वत की चट्टानों की उत्पत्ति 3 600 मिलियन वर्ष पूर्व हुई है ।प्रायद्वीपीय भारत की बहू आकृतियां 16 लाख वर्ग किलोमीटर में भारत का सबसे बड़ा प्राकृतिक प्रदेश त्रिभुजाकार है ।भारत के उत्तरपुराब में झारखंड की पहाड़ियां ,पश्चिम में सह्याद्रि पर्वत बिहार में पूर्वी घाट के रूप में फैला हुआ है।बहु आकृति प्रदेश उत्तर मध्य की उच्च भूमि ,दक्षिण मध्य की उच्च भूमि विंध्य पर्वतका बिहार में कैमूर की पहाड़ियां ,गया,नवादा ,औरंगाबाद ,नवादा ,राजगीर ,,बराबर ,भागलपुर की पहाड़ियां रोहतास की पहाड़ियां , झारखंड के छोटानागपुर का पठार बंगाल का पुरैलिया ,झारखंड के रांची ,हजारीबाग, रामगढ़, चतरा , धनवाद, पलामू,संथालपरगना , उड़ीसा , आंध्रप्रदेश और छतीशगढ़ तक ऊँचे और छोटे पठार है । सभी पठार आर्कियन युग और गोंडवाना युग एवं क्रिटेशियम युग की बताई गई है ।सभी पठार मध्य एवं पश्चमी भाग 1100 उचाई पर स्थित रहने के कारण पठार को पाट कहा गया है।पठार का जल अपवाह झारखंड से प्रवाहित होने वाली नदियां और जल प्रपात बनाती है।झारखंड 79714 वर्ग किलोमीटर में फैला भौगोलिक प्रदेश है जिसमे 22637 वर्ग कीलोमिटर क्षेत्रफल में वन प्रदेश है वही बिहार 9 4163 वर्ग किलो मीटर क्षेत्रफल में भौगोलिक प्रदेश तथा 5720 वर्गकीलोमिटर वन प्रदेश है ।
भू वैज्ञानिक लोली,बी सी ने माउंटेन एंड रिवर्स ऑफ इंडिया 1968 तथा चटर्जी एस पी ने 1975 ई. में फियोग्राफी इन गज़ेटियर ऑफ इंडिया चैप्टर 1 पुस्तक में छोटानागपुर की महत्वपूर्ण चर्चा की है ।विंध्य पर्वतमाला की अमरकंटक पठार से प्रवाहित सोन नद छोटानागपुर पठार होते हुए बिहार के पटना जिले का मनेर प्रखंड के शेरपुर में गंगा नदी में मिलता है।छोटानागपुर पठार से प्रवाहित एवं उद्गम होने वाली नदी दामोदर नदी ,स्वर्णरेखा नदी ,ब्राह्मी नदी,शंख नदी ,कोयल नदी ,बटाने नदी,निलंजनदी ,मुहाने नदी ,पुनपुन नदी ,मोरहर नदी , मदार ,फल्गु ,नदी,आद्री ,धावा ,पैमार ,तिलैया सकरी,जोवा ,धड़कर आदि नदियां तथा घघरी,हुंडरू,,जोहना तथा बिहार में ककोलत आ का जलप्रपात है।ऋग्वेद ,यदुर्वेद 30 16,3,4,12 अथर्ववेद 10 ,4,14 में छोटानागपुर साम्राज्य में कीरात ,असुर ,नाग संस्कृति की चर्चा की है।30000 वर्ष पूर्व दक्षणी छोटा नागपुर के क्षेत्रों में शैलचित्र ,संगम क्षेत्र तथा अल्मीकि लिपि तथा 32 भाषाओं का प्रयोग होता है। यहां आर्य को सादान के नाम से पुकारा जाता था ।कीरात संस्कृति के अनुयायी प्रकृति पूजक थे और भगवान शिव आराध्य और सूर्य पूजक , वृक्ष ,जल, नदी ,शक्ति पूजक है।प्राचीन काल मे छोटानागपुर वासियों को कीरात , असुर,नाग,गिरिजन ,वनवासी ,कीरात ,आदिवासी और वर्तमान में अनुसूचित जनजाति कहा गया है।
: कीरात संस्कृति के लोग तीरंदाज़ी, युद्ध कला में निपुण थे। कीरात प्रदेश के बाद नाग ने नागवंशी संस्कृति प्रारम्भ किया ।मनु स्मृति ,वाजपेयी संहिता ,महाभारत वैन पर्व के अनुसार कीरात,भील,और पुलिंद शासक थे ।कीरात वंश के संस्थापक यलम्बर रहलन ,पुलिंद वंश के संस्थापक सुबाहु था ।पुलिंद ने पुलिंद नगर का निर्माण किया वही नाग वंशियों ने छोटानागपुर प्रदेश का निर्माण किया ।ये लोग वैन,पर्वत ,नदियां तथा सूर्य के उपासक थे ।पुराणों के अनुसार ऋषि कश्यप की भार्या दनु के पुत्र दानव ,कद्रु ने नाग ,सर्प, सखी ने राक्षस ,दिति ने मरुद्गण , दैत्य ,और अदिति ने आदित्य, पुलोम ने पुलोम का जन्म दिया । कर्कोटक नाग ने शिव गण बन कर रांची के पहाड़ी बाबा एवं कीरात संस्कृति के देव भगवान शिव लिंग के समीप गुफा में नारद जी की शाप से समाहित है।छोटानागपुर के क्षेत्रों में दैत्य,सिद्ध ,पितर ,पिसाच ,राक्षस ,दानव,गुह्य,ऋषि किम पुरुष ,विद्याधर गंधर्व संस्कृति फैला था । छोटानागपुर का दक्षिण क्षेत्र कीकट प्रदेश कहा जाता था ।कीकट प्रदेश में वर्तमान झारखंड के जिलों में हजारीबाग, पलामू ,कोडरमा, गिरिडीह , रामगढ़, रांची, चतरा ,दुमका संथाल परगना,बिहार के गया, औरंगाबाद,नवादा,जहानाबाद ,अरवल ,नालंदा तथा पटना ,रोहतास कैमूर जिले शामिल हुए है । रांची में नागवंशी राजा कीरात के देव भगवान शिव पहाडी नाथ शिव लिंग, तथा कर्कोटक नाग , संथाल परगना के देवघर में ज्योतिर्लिंग बाबा वैद्यनाथ एवं वासुकि नाग , गया में असुर संस्कृति के राजा गया सुर ,बराबर में व बाणासुर ,राजगीर में वसु नाग तथा नवादा में नाडोवला का शासन था ।त्रिशंकु के पुत्र हरिश्चंद्र तथा रोहिताश्व शासक थे।नाग छोटानागपुर में मुंडा और उरांव द्वारा ने सुतिया नाग खंड के रूप में गठन किया गयाथा । 82 ई. पू . फनि मुकुट ने 66 परगनों का निर्माण कर रामगढ़ में राजधानी बना कर शैव धर्म तथा शाक्त,सौर धर्म की नींव डाला है। रामगढ़ के समीप भैरवी नदी के संगम पर माता क्षीण मस्तिके , छोटी झरना के समीप भगवान शिव फणीश्वर शिव लिंग जिस पर माता गंगा द्वारा अपने हस्त से जलाभिषेक कर रही है ।इस जलाभिषेक से छोटी नदी प्रवाहित को फनि नदी कहा गया है।प्राचीन काल इस स्थल को खरखरा ,खरखरा कहा जाता था ।यह राजा फनीमुकुट रहते थे । रामगढ़ जिला 1211 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है ।1368 ई .में राम गढ़ का राजा बाघ देव थे ।रामगढ़ जिले का तीर्थ स्थल रजरप्पा का क्षिणनमस्तिके , टूटी झरना ,वनार्वेता, चुटुपालु है।
टूटी झरना - रामगढ़ जिले का प्रसिद्ध टूटी झरना अलौकिक है ।17 एकड़ में फैला टूटी झरना का शिव मंदिर में भगवान शिव लिंग पर माता गंगा की नाभि से प्रवाहित होती हुई जल उनकी हाथों में समाहित जल से जलाभिषेक निरंतर होता है ।यह जलाभिषेक का जल से नदी प्रवाहित होती है और श्रद्धालुओं के लिये पवित्र गंगा जल प्रसाद के रूप में ग्रहण कर अमृत तुल्य है। 1925 ई. में रेलवे लाइन विछाने के क्रम में पानी हेतु उत्खनन किये जा रहे थे ।जल के लिए खुदाई के क्रम में शिव लिंग एवं सफेद पत्थर में निर्मित गंगा की मूर्ति का नाभि से गुजरते हुए उनकी दोनों हाथों में प्रवेश करते हुए जल शिव लिंग पर जलाभिषेक कर रही है।उस समय से टूटी झरना शिव मंदिर के नाम प्रसिद्ध हुए।यह स्थल छोटानागपुर का राजा और रामगढ़ का संस्थापक फनीमुकुट ने 80 ई . पू .विकास किया था और अपने आराध्य देव शिव की पूजा अर्चना करते थे।बाद में प्राकृतिक आपदा के कारण भूमिगत हो गया था ।1925 में रेलवे लाइन के क्रम में पानी हेतु खुदाई करने पर यह मंदिर प्राप्त हुआ है।
क्षिणमस्तिके - रामगढ़ जिले का रजरप्पा जलप्रपात से प्रवाहित होने वाली भैरवी और दामोदर नदी के संगम पर स्थित रजरप्पा का क्षिणमस्तिके का स्थल तंत्र और मंत्र के लिए प्रसिद्ध है ।यहां दकनी और शाकिनी माता क्षिणमस्तिके की सहेलियां भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती है। रामगढ़ से 28 कि. मि . पर रजरप्पा जल प्रपात 1135 फीट की ऊँचाई से उन्नयन हो कर 30 फीट की ऊँचाई पर गिरते हुए भैरवी नदी प्रवाहित होकर दामोदर नदी माता क्षिणमस्तिके का पाँव पखारती है ।क्षिणमस्तिके माता की मूर्ति स्थापना 6000 ई. पू. हुई थी।रजरप्पा में प्रचंड चण्डिके के रूप में है।यहां अष्ट मंत्रिका दक्षिण काली के रूप में विराजमान है । यह स्थल दानव राज प्रचंड का आराध्या माता चण्डिके थी ।यह स्थल तंत्र और मंत्र का प्रसिद्ध केंद्र है ।
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