मंगलवार, अगस्त 11, 2020

VRIKSH pRAKRITI AUR JIVAN

प्रकृति संरक्षण और संवर्धन का मूल वृक्ष 
        सत्येन्द्र कुमार पाठक 
विश्व तथा भारतीय संस्कृति में वृक्षों का निवास जीवन में है । सनातन संस्कृति एवं सभ्यता में प्रकृति पूजा का प्रादूर्भाव वृक्ष, जल, सूर्य, चंद्र, पौधों से प्रारंभ है । प्राचीन काल से मानव जीवन की सुरक्षा पर्यावरण पर निर्भर है । भारतीय संस्कृति में वृक्षों की पूजा सूत्र बंधन, दीप दान, पुष्प, चंदन, अभिषेक की जाती है । 
पीपल - भगवान सूर्य द्वारा पीपल वृक्ष की उत्पत्ति हुई ।पीपल वृक्ष का कटाई और जलाने से पितर दोष, पर्यावरण दूषित तथा जीवों पर संकट हो जाता है । पीपल शोक, विनाश से बचाव कर समृद्धि, सुखमय, ज्ञान तथा मोक्ष की प्राप्ति करता है । भगवान कृष्ण ने गीता मे कहा है कि 
वृक्षों में मैं पीपल हूँ ।पीपल की छाया मे शान्ति प्रेतात्माओ का शाप  नहीं  लगता है ।प्रेतात्माओ का रात को पीपल पर निवास  हैं। इसलिए रात्री के समय पीपल की पूजा नहीं होती है।सूर्योदय मे पीपल पर माता लक्ष्मी का निवास नही मना गया है। पीपल की पूजा बृहस्पति और शनि दोषों से मुक्ति के लिए भी की जाती है| पीपल को विष्णु वृक्ष कहा गया है । 
बरगद (वट वृक्ष )- यक्ष राज मणिभद्र ने वरगद की उत्पत्ति कर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए समर्पित किया है । वट (बरगद ) वृक्ष को शिव वृक्ष है |सृष्टि और  प्रलय के समय मुकुंद ने अक्षय वट पर विश्राम किया था | यह अक्षय वट प्रयाग में है तथा सृष्टि के प्रारंभ मे गया का अक्षय वट की स्थापना की गई थी । महिलाएं वट सावित्री की पूजा सौभाग्य के वरदान के लिए करती हैं ।  वट वृक्ष जटाधारी भगवान् शिव का ही रूप है |
कमल - भगवान विष्णु के नाभि से कमल की उत्पत्ति हुई है । माता लक्ष्मी का निवास होता है |यह एक ऐसा पुष्प है जो अपने गुणों के कारण प्रत्येक देवी देवता को प्रिय है | सृष्टि की रचना का मूलभूत रूप 
कमल है । 
नारियल - भू लोक में कल्प वृक्ष का रूप नारियल है ।  नारियल एक ऐसा फल है जो प्रत्येक देवी देवता को प्रिय है। इसे पौराणिक ग्रंथो में "कल्प वृक्ष" का नाम दिया गया है। शक्ति पूजा में और किसी अनुष्ठान में यह विशेष रूप से प्रयोग में लाया जाता है | माता लक्षमी द्वारा की गई उत्पत्ति नारियल को श्री फल के नाम से ख्याति प्राप्त है । 
बिल्व:--वृक्ष में लक्ष्मी जी का निवास है।ऋग्वेद के "श्री सूक्तं" के अनुसार माता लक्ष्मी की कठोर तपस्या के परिणाम स्वरुप  बिल्व वृक्ष उत्पन्न हुआ""वनस्पतिस्तव वृक्शोथ बिल्वयह वृक्ष, इसके पत्ते और फल भगवान् शिव को अत्यंत प्रिय हैं | बिल्व पत्र महादेव के विग्रह की शोभा हैं | शास्त्रानुसार संध्या के समय बिल्व वृक्ष के नीचे दीप दान करने वाला व्यक्ति मृत्योपरांत शिवलोक को ही जाता है अर्थात उसकी सद्गति निश्चित होती है |देवी कात्यायनी की पूजा भी में भगवान् राम ने बिल्व पत्रों का प्रयोग किया था |
रुद्राक्ष:--शिव वृक्ष है |इसके बीजो से बनी माला पूजा में प्रयुक्त होती है | रुद्राक्ष भगवान् शंकर का श्रृंगार हैं|
तुलसी:--वृंदा देवी हैं | तुलसी के स्पर्श, दर्शन, सेवन से जन्म-जन्मान्तरों के पाप कर्मों का नाश होता है |यह भगवान् विष्णु को अत्यंत प्रिय है | कोई भी अनुष्ठान या पूजा कार्य संपन्न करने के लिए तुलसी पत्र का होना आवश्यक माना गया है | वर्ष भर तुलसी में जल अर्पित करना एवं सायंकाल तुलसी के नीचे दीप जलाना अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है |कार्तिक मास में तुलसी के समक्ष दीपक जलाने से मनुष्य अनंत पुण्य का भागी बनता है एवं उसे माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है क्योंकि तुलसी में साक्षात माता लक्ष्मी का निवास माना गया है |
 धान:--"धान्य देवी" अर्थात "माता अन्नपूर्ण" का ही रूप हैं|प्रत्येक पूजा में अक्षत (चावलों के साबुत दाने) का प्रयोग होता है।
 नीम:--शीतला देवी रहती हैं जो रोगों से रक्षा करती हैं |देश भर में शीतला देवी के मंदिरों में नीम के वृक्ष सहजता से मिल जाते हैं|
. आम:--आम के वृक्षों पर यक्ष किन्नर विहार करते हैं।*
. आंवला:--विष्णु और लक्ष्मी माँ का प्रिय है |कार्तिक मास में आंवले की परिक्रमा और पूजा होती है|
. कैंथ और जामुन:--कैंथ और जामुन के वृक्ष गणपति गणेश को प्रिय हैं।* और इनके फल गणेश पूजा में अर्पित किये जाते हैं|"कपित्थ जम्बू फल चारु भक्षणं"|
. केले:--बृहस्पति दोषों से मुक्ति पाने हेतु केले की पूजा की जाती है|
. आक और पलाश:--सूर्य वनस्पति है और पलाश चन्द्र वनस्पति* सूर्य और चन्द्र के दोषों से मुक्ति पाने हेतु ज्योतिष में इन वनस्पतिओं का प्रयोग्किया जाता है |वनस्पतियाँ विधाता का वरदान हैं | इनकी मधुरिमा को बने रखने के लिए वेद मंत्र है"मधुमान्नोवनस्पते:"वृक्षों में देवात्मा होती है | वृक्षारोपण एक धार्मिक अनुष्ठान है | वृक्षों में खिले हुए पुष्पों की गंध और फलो के रसात्मक तत्वों को पाकर देवता तृप्त होते हैं |
मानव पर्यावरण संरक्षण के लिए स्थलों के परिसर में पुष्प और फलदार वृक्ष लगाये जाते हैं | फूलो, फलो अथवा हरे भरे वृक्षों को काटने पर महापाप लगता है|वृक्षारोपण से व्यक्ति महापुण्य का भागीदार होता है.।

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