सभ्यता और संस्कृति से क्षेत्र की विरासत से पहचान होती है । मागधीय कि प्राचीन संस्कृति का इतिहास में नेर की गौरवशाली रही थी । मगध क्षेत्र नवपाषाणकाल 9000 ई .पू. में विकसित था । नेर की नाव पाषाणिक संस्कृति के अंतर्गत पषणयुक्त शिव मंदिर एवं परिसर है । नेर गढ़ में छिपी अनेक पुरातत्विक विरासत है । बिहार का जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंडान्तर्गत मकरपुर पंचायत स्थित नेर के पूर्व रोजा तलाव , पश्चिम भैरव आहर एवं नेर के मध्य में भगवानशिव का पषणयुक्त मंदिर है । जहानाबाद से 22 कि. मि. दक्षिण मखदुमपुर से 4 कि. मि. , गया पटना रोड एन एच तथा पटना गया रेलखंड नेर हॉल्ट है । 2011 कि जनगणना के अनुसार 860 हेक्टयर में फैले नेर की आवादी 3380 में साक्षरों की संख्या 1951 है । नेर से 3 कि. मि. पर धरनई , 4 कि मि. पर छेरियारी , और डकरा तथा जगपुरा 5 कि. मि . एवं मकरपुर पंचायत में 14 ग्राम एवं टोले है । सूर्य वंशीय इक्ष्वाकु कुल के कुक्षी के पौत्र विकुक्षि के पुत्र बाण द्वारा बाणावर नगर की स्थापना की थी । साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि विकुक्षि पुत्र बाण द्वारा बराबर पर्वत समूह की ऊंची चोटी सूर्यान्क गिरी पर सिद्धेश्वरनाथ उपासना स्थल की नींव डाला गया था । बाण का पुत्र अनरण्य की पत्नी अजा के पौत्र पृथु का पुत्र दशरथ द्वारा अनरण्य नगर की स्थापना की थी । अनरण्य नगर में अनरेश्वर शिव लिंग की स्थापना एवं मंदिर का निर्माण किया था । अंधक वंशीय हृदक कुल के नरान्त द्वारा अनरण्य नगर का नामकरण नरान्त नगर एवं ब्रह्मपुराण के अनुसार मनुवर तीर्थ के रूप में विख्यात हुआ । महाभारतकाल तथा द्वापरयुग में राजा बलि के औरस पुत्र बाणासुर की पुत्री उषा का प्रिय स्थल मनुतीर्थ थी । नेर को अनरण्य नगर , नरान्त नगर , मनुवरतीर्थ , राजा किश द्वारा अपने पिता के नाम पर मनुवर स्थल को नेर नामकरण किया था । अकबर कसल में खानदेश राजा फारूकी द्वारा अकबर शासन काल में नेर को राजधानी बनाई वही बिहार का सूबेदार दाऊद खां द्वारा नेर का पुत्र अब्नेर ने नेर का विकास किया । अब्नेर द्वारा नेर से पूरब रोजा तलाव का निर्माण किया था । बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय एवं जैन ग्रंथ के भगवती सूत्र में मगध की सभ्यता का उल्लेख किया गया है ।गुप्त वंशीय राजाओं द्वारा 319 ई. से समाज और संस्कृति का प्रकाश लाया गया है । शूद्रक का मृच्छकटिक में नगर जीवन के विषय में रोचक सामग्री है । गुप्त काल में नेर शिवमंदिर की वास्तुकला का आविर्भाव है । नेर शिवमंदिर एवं परिसर पाषाण खम्भों से युक्त वर्गाकार सपाट छत ,उथले स्तम्भों पर पंचायतन शैली में निर्मित है । पषणयुक्त मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित एवं भगवान शिव माता पार्वती का विहार मूर्ति तथा पषणयुक्त मंदिर परिसर में त्रिदेव की मूर्ति , अन्य मूर्तियां है । नेर से पश्चिम वैट वृक्ष की छया में चतुर्मुख पशुपति नाथ जिसे भैरवनाथ की मूर्ति है । भैरवनाथ के समीप भैरव आहार एवं भूमि संपर्पित है । नेर गढ़ का अतिक्रमण करने के बाद अवशेष 4 ए. है । नेर की विरासत नेर गढ़ के गर्भ में छिपी हुई है ।
nice job
जवाब देंहटाएंमाननीय
जवाब देंहटाएंग्राम नेर के अति प्राचीन शिव मंदिर के स्थल का अवलोकन कर नेर की संस्कृतिक विरासत एवम् गौरवशाली इतिहास को जनमानस के समक्ष प्रस्तुत करने जो कार्य किया है,उससे आपके साहित्य के मर्मज्ञता एवम् पुरातात्विक अध्ययनशीलता पुष्ठ प्रमाण मिलता है। आपके चरणो मे कोटि कोटि नमन।।
अपने गांव नेर का पुरातन इतिहास पढ़कर अति प्रसन्नता हुई, इस गांव के पुरातन इतिहास का आपने बहुत ही सुंदर सटीक और उत्कृष्ट वर्णन किया है जिसके लिए मैं आपका सहृदय आभारी रहूंगा।
जवाब देंहटाएंMagadhiy virasat ka ek rup hai ner Shiv Mandir evam murtiyan . sadhuvad
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