सोमवार, मार्च 28, 2022

देवघर जिले की सांस्कृतिक विरासत .....


      झारखंड राज्य का देवघर जिले का देवघर शहर में भगवान शिव का रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग और  शक्ति पीठ है । ‘देवघर’ को देवी एवं देव’का निवास ,  देवघर , बाबा धाम ,  वैद्यनाथ , वैजनाथ , वैजू  के नाम से  जाना जाता है । संस्कृत ग्रंथों में हरित किवन या केतकी वन के रूप में कहा जाता है। वैद्यनाथ  मंदिर के सामने वाले हिस्से के भागों को 15 9 6 में गिद्धौर के महाराजा के पुण्य पुर मल द्वारा निर्माण कराया गया था।  श्रावण के महीने में   भक्त पूजा के लिए सुल्तानगंज से देवघर तक गंगा जल ले कर भगवान शिव पर जल चढाते है  और  जीवन की इच्छा की इच्छा प्राप्त करते हैं।   समुद्र तल से 254 मी. व 833 फीट ऊँचाई पर अवस्थित 2011 जनगणना के अनुसार 1492073 जनसंख्या वाले 2478. 61  वर्ग कि. मि . व 957 वर्ग मील क्षेत्रफल में फैले देवघर जिले का मुख्यालय तथा हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल देवघर को  'बाबाधाम'  से विख्यात  है|  देवघर जिले में अनुमंडल 02 ,प्रखंड 10 , ग्रामपंचेस्ट 194 ,ग्राम 2662 वाले देवघर जिले की स्थापना 01 जून 1981 को हुई है । देवघर में  भगवान शिव मंदिर का रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग  पर  लाखों शिव भक्तो ,  'काँवरिया' द्वारा जलाभिषेक किया जाता है।  शिव भक्त बिहार के भागलपुर जिले का  सुल्तानगंज से गंगा नदी से गंगाजल लेकर 105 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर देवघर में भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं। शिव पुराण के अनुसार  श्मशान नदी के तट पर चिताभूमि पर स्थापित शिव मंदिर एवं मंदिर  प्रांगण मे कुआ स्थित है । । देवघर की भाषा हिंदी , संथाली , अंगिका , मगही , भोजपुरी , मैथिली , वज्जिका बोली जाती है ।देवघर  उत्तरी अक्षांश 24.48 डिग्री और पूर्वी देशान्तर 86.7 पर स्थित  है। वैद्यनाथ मंदिर, देवघर -   देवघर शिव मंदिर की स्थापना 1596 ई. में  हुई है । देवघर के निवासी बैजू ने ज्योतिर्लिंग  की उपासना की थी । भगवान शिव के उपासक वैजू के  मंदिर का नाम बैद्यनाथ पड़ गया है । वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को कामना ज्योतिर्लिग  कहा गया हैं। भगवान शिव भक्त  सावन में सुल्तानगंज से गंगा जल भर कर कांवरिया पैदल करीब 105 किलोमीटर की यात्रा करके भगवान शिव को गंगा जल अर्पित करते हैं। बासुकीनाथ  - भगवान शिव के प्रिय नागों के राजा वासुकीनाथ  को समर्पित वासुकीनाथ मंदिर देवघर से 42 कि. मि.की दूरी पर अवस्थित जरमुंडी पर स्थित है । जरमुंडी स्थित वासुकीनाथ मंदिर स्थल को  नोनीहाट और घटवाल कहा गया है। बैजू मंदिर - बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार मे बैजू मंदिर ,  मुख्य पुजारी के वंशजों ने करवाया था। प्रत्येक मंदिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है। त्रिकुट - देवघर से 16 किलोमीटर दूर दुमका रोड पर एक खूबसूरत पर्वत त्रिकूट स्थित  पहाड़ पर  गुफाएं और झरनें हैं। नौलखा मंदिर - देवघर के बाहरी हिस्से में स्थित यह मंदिर अपने वास्तुशिल्प की खूबसूरती के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण बालानन्द ब्रह्मचारी के एक अनुयायी ने किया था जो शहर से 8 किलोमीटर दूर तपोवन में तपस्या करते थे। तपोवन भी मंदिरों और गुफाओं से सजा एक आकर्षक स्थल है। नंदन पर्वत - नन्दन पर्वत की महत्ता यहां बने मंदिरों के झुंड के कारण है जो विभिन्न देवों को समर्पित हैं। पहाड़ की चोटी पर कुंड  है ।  ठाकुर अनुकूलचंद्र के अनुयायियों के लिए कुंड स्थान धार्मिक आस्था का प्रतीक है। सर्व धर्म मंदिर के अलावा यहां पर संग्रहालय और चिड़ियाघर  है। पाथरोल काली माता का मंदिर - मधुपुर में एक प्राचीन  काली मंदिर को पथरोल काली माता मंदिर" के नाम से जाना जाता है। काली मंदिर  का निर्माण राजा दिग्विजय सिंह ने 6 से 7 शताब्दी पहले करवाया था। मुख्य मंदिर के समीप नौ और मंदिर है । बाबा  वैद्यनाथ मन्दिर - झारखण्ड राज्य के देवघर  जिले का देवघर  में अवस्थित रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग  मंदिर एवं सिद्ध पीठ है। बैद्यनाथ शिव मंदिर और पार्वती माता का मंदिर एक पवित्र लाल रस्सी से बंधे हुए हैं ।बाबा वैद्यनाथ मंदिर का निर्माता देव शिल्पी विश्वकर्मा एवं संथाल राजा पूरनमल द्वारा मंदिर परिसर में अन्य मंदिर का निर्माण किया  गया है ।राक्षस राज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर तपस्या की और अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये। एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर भी काटने को ही था कि शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये। भगवान शिव ने राक्षस राज रावण के दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने को कहा। रावण ने लंका में जाकर उस लिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी। शिवजी ने अनुमति तो दे दी, पर चेतावनी के साथ दी कि यदि मार्ग में शिवलिंग  पृथ्वी पर रखने पर वहीं अचल हो जाएगा। रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में एक चिताभूमि आने पर उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। रावण उस लिंग को व्यक्ति को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया। इधर उन व्यक्ति ने ज्योतिर्लिंग को बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया। फिर क्या था, लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे न उखाड़ सका और निराश होकर मूर्ति पर अपना अँगूठा गड़ाकर लंका को चला गया। भगवान ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर  शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की वहीं उसी स्थान पर प्रतिस्थापना कर दी और शिव-स्तुति करते हुए वापस स्वर्ग को चले गये। वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है।
 दुमका - झारखण्ड राज्य की उपराजधानी एवं  सन्थाल परगना प्रमंडल का दुमका जिला का मुख्यालय दुमका है।समुद्र तल से 137 मी. व 449 फीट की ऊँचाई पर स्थित दुमका जिले की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 970584 में दस प्रखंडों में दुमका, गोपीकांदर, जामा, जरमुंडी, काठीकुंड, मसलिया, रामगढ़, रानेश्वर, शिकारीपाड़ा और सरैयाहाट  है । दुमका में आदिवासियों में  सन्थाल , पहाड़िया और मेलर घटवार जाति भी पाई जाती है। 1855 में सन्थाल विद्रोह के बाद भागलपुर से काटकर दुमका को  जिला बनाया गया था। दुमका से 10 किलोमीटर कुमड़ाबाद  पूरी तरह नदी और पहाड़ से घेरा हुआ है,दुमका जिला का क्षेत्र  सम्पूर्ण प्राकृतिके से पूर्ण है।दुमका शब्द की उत्पत्ति दामिन -ई- कोह या पहाड़ों  का आंचल) शब्द से माना जाता है।पाषाणकाल- खनन के प्राप्त औजारों से पता चला है कि यहां के मूल निवासी मोन-ख्मेर और मुंडा थे । दुमका जिले प्राचीन निवास पहाड़ी लोग थे। ग्रीक यात्री मेगास्थानीज ने इन्हें माली नाम से संबोधित किया।मध्यकालीन इतिहास- राजमहल की पहाड़ियों के घिरे होने के कारण दुमका जितना दुर्गम रहा है उतना है आर्थिक दृष्ट से अहम भी. 1539 में चौसा के युद्ध में शेरशाह सूरी की जीत के बाद यह क्षेत्र अफगानों के कब्जे में आ गया, लेकिन जब हुसैन कुली खान ने बंगाल पर जीत हासिल की तो यह क्षेत्र मुगल सम्राट अकबर के प्रभुत्व में आ गया। अंग्रेजी शासन- अंग्रेज प्रतिनिधि डॉ गैबरियल बोकलिटन ने शाहजहां से एक फरमान हासिल किया।1742-1751के  दौरान मराठा शासक राघोजी भोसले और पेशवा बालाजी राव यहां आते रहे. , 1745: संथाल परगना के जंगलों और राजमहल की पहाड़ियों से राघोजी भोसले का दुमका में प्रवेश. ,1769: बंगाल के बीरभूम जिले के अंतर्गत दुमका घाटवाली पुलिस थाना रह चुका है। , 1775 ई. में दुमका को भागलपुर संभाग के अंतर्गत शामिल किया गया।1865: दुमका को स्वतंत्र जिला बनाया गया। , 1872: दुमका को संथाल परगना का मुख्यालय बनाया गया। 1889: यूरोपीय ईसाई उपदेशकों की गतिविधियाँ हुई। ,1902: पहली नगरपालिका की स्थापना हुई। 1920: बसें व कार यहाँ चलने शुरु हुए। 1983: दुमका संथाल परगना का मुख्यालय बना।  झारखंड राज्य की उप-राजधानी दुमका बना। संथाली द्वारा भगवान सिंगबोंगा की उपासना  करते है।  वन क्षेत्र से घिरे होने के वजह से  लोग जंगलो पर आश्रित है । आदिवासियों द्वारा मुख्य रूप से मनाए जाने वाले पर्व में बन्धना, रास पर्व, सकरात, सोहराई आदि है। दुमका में वासुकिनाथ मन्दिर, मलूटी मन्दिर, मसानजोर डेम, बास्कीचक, सृष्टि पार्क। वासुकिनाथ दुमका शहर से 25 किमी की दूरी पर अवस्थित है। यहाँ हरवर्ष सावन के महिने में देश विदेश से शिव भक्त आते है और गंगा जल अर्पित करते है। मलूटी मन्दिर - यह मंदिर दुमका - तारापीठ, रामपुरहाट मार्ग मे अवस्थित है। मलूटी को मंदिरों का गांव भी कहा जाता है। यहां एक समय मे 108 मन्दिर और 108 तालाब थे।यहां का मुख्य मंदिर माँ मौलिक्षा को समर्पित है जिसे माँ तारा(तारापीठ, रामपुरहाट प.बंगाल)की बहन माना जाता है। आज अधिकांश मन्दिर जीर्ण शीर्ण अवस्था मे है। मसानजोर डेम या कनाडा डेम दुमका शहर से 25 कि. मी . की दूरी पर मयूराक्षी नदी पर बनाया गया है। यहां की प्राकृतिक छटा देखने योग्य है। द डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ऑफ  झारखंड  2002 के अनुसार दुमका जिले के भारतीय स्वतंत्रता सेनानी तिलका मांझी  का 1750 -,1785  तक  कीर्तित्व एवं व्यक्तित्व उल्लेख किया गया है । 3716 वर्ग कि. मि. क्षेत्रफल में फैले दुमका जिले का मयूराक्षी नदी पर 16650 ए. में कनाडा बांध व पियरसन बांध 155 फीट ऊंची एवं 2170 फीट लंबाई युक्त बांध एवं दुमका के समीप रानिबहाल के भुमका गर्म झरना पर्यटकों के लिए आकर्षण केंद्र है ।







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