सनातन धर्म के शाक्त , सौर , शैव , बौद्ध एवं जैन संप्रदायों का स्थल झारखंड राज्य का चतरा जिले के इटखोरी है । इटखोरी का मुहाने एवं बक्सा नदी संगम पर विभिन्न धर्मों का ज्ञान स्थल एवं तंत्र मंत्र साधना भूमि पर भद्रकाली मंदिर के गर्भगृह में माता भद्रकाली की मूर्ति स्थापित है । जैन धर्म के 10 वें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ स्वामी की जन्म भूमि , भगवान बुद्ध , चीन का फेंगसुई के भगवान के ताओवादी संत लाफिंग बुद्धा , भगवान शिव के पुत्र एवं देव सेनापति कर्तिकेय , स्तूप है । बुद्ध और महावीर की छोटे-बड़े पत्थरों में करीने से उकेरी हुई अनेक मूर्तियां , 10 वें जैन तीर्थंकर श्रीशीतलनाथ स्वामी के चरण चिह्न, तीन पैर की प्रतिमा, त्रिभंग मुद्रा की प्रतिमा, भार वाहक प्रतिमा, अमलक, धर्म चक्र प्रवर्तन, प्राचीन मंदिर का स्तम्भ, कार्तिकेय, छोटे गुंबद की तरह मनौती स्तूप, अमृत कलश, बुद्ध का पैनल, त्रिरथ, नागर शैली, भूगर्भ के उत्खनन के पश्चात प्राप्त जैन धर्म का सहस्त्रकूट जिनालय,जैन तीर्थंकर की मूर्तियां, कीर्ति मुखा की कलाकृति, वामनावतार की मूर्ति, सूर्य की खंडित मूर्ति, स्तम्म एवं मंदिरों का अवशेष हैं । रांची से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर चतरा जिले के हजारीबाग-बरही रोड पर ईटखोरी मोड़ से करीब 32 किलोमीटर दूरी पर भद्रकाली मंदिर अवस्थित है ।जैन धर्म के 10वें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ स्वामी का चरण चिह्न ताम्रपत्र , और पत्थर पर चरण चिह्न है। 12 वी सदी में निर्मित भद्रकाली मंदिर का निर्माण कला का अद्भुत नमूनाहै । माता भद्रकाली वात्सल्य रूप है। भद्रकाली माता का .मंदिर निर्माण के पूर्व साधक भैरवनाथ का तंत्र साधना का केंद्र, सिद्ध आश्रम था। आश्रम के समीप काले पत्थर का सहस्र शिवलिंग , एकसाथ बने छोटे-छोटे 1008 शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है । 8वी सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा हिंदू धर्म के पनरुत्थान के क्रम में 108 शिव लिंग की स्थापना कीगयी थी। भद्रकाली मंदिर के पीछे मनौती स्तूप के रूप में बौद्ध स्तूप , सहस्तरलिंगी शिव को कोठेश्वर नाथ , भगवान बुद्ध की ध्यान मुद्रा में उकेरी गईं 1008 मूर्तियां है। मनौती स्तूप के श्रृंखला पर कटोरा आकार का गड्ढा में पानी रिसकर खुद भर जाता है। चतरा जिले का ईटखोरी प्रखंड के भदुली गांव में भद्रकाली मंदिर है । प्राचीन ईतखोई का परिवर्तित नाम ईटखोरी है । सिद्धार्थ (गौतमबुद्ध) अटूट साधना में लीन थे। सिद्धार्थ की साधना के समय सिद्धार्थ की मौसी प्रजापति कपिलवस्तु वापस ले जाने आई थी । परन्तु तथागत का ध्यान मौसी के आगमन से नहीं टूटा था । सिद्धार्थ की मौसी के मुख से ईतखोई अर्थात ईत स्थान खोई ध्यान व ध्यान भूमि शब्द निकला था । वनवास काल में श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता अरण्य में निवास एवं धर्मराज युधिष्ठिर के अज्ञात वास स्थल तथा तपोभूमि क्षेत्र है।'' स्थापत्य कला, निर्माण कला की निशानी ईटखोरी की भूमि में छिपे हुए है ।
झारखंड राज्य का 1431 वर्गमील क्षेत्रफल में फैले चतरा जिले का मुख्यालय चतरा है। जंगलों से घिरा और हरियाली से भरपूर एवं खनिज के साथ कोयला से युक्त चतरा जिला समुद्र तल से 427 मीटर ऊँचाई पर स्थित है । झारखंड के प्रवेश द्वार कहे जाने वाला चतरा जिला की स्थापना 29 मई 1991 ईo में हजारीबाग जिले से विभाजित कर के की गयी थी I हजारीबाग, पलामू , लातेहार एवं बिहार के गया जिले की सीमा से घिरा चतरा जिला हैं । चतरा जिला में पर्यटन स्थल मां भद्रकाली मंदिर और मां कौलेश्वरी पर्वत है। चतरा जिले में अनुमंडल सिमरिया व चतरा , प्रखंडों में चतरा, सिमरिया, टंडवा, पत्थलगड़ा, कुंदा, प्रतापपुर, हंटरगंज, कान्हाचट्टी, इटखोरी, मयूरहंड, लावालौंग, गिधौर में 154 पंचायत व 1474 गांव , 1042886 आवादी वाले क्षेत्र में विधानसभा चतरा व सिमरिया है। चतरा झारखंड का सबसे छोटा संसदीय क्षेत्र है। चतरा लोकसभा में 47. 72 प्रतिशत वन क्षेत्रफल में चतरा, सिमरिया, पांकी, लातेहार, मनिका विधानसभा हैं। चतरा जिले में लावालौंग अभ्यारण्य और नदियों में दामोदर, बराकर, हेरुआ, महाने, निरंजने, बलबल, बक्सा प्रवाहित होती है । चतरा जिले का हंटरगंज प्रखंड के कौलेश्वरी पर्वत पर माता कौलेश्वरी की मंदिर प्राचीन है ।
Dhanyavad
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