शुक्रवार, जुलाई 15, 2022

मागधीय सांस्कृतिक का केंद्र है बराबर पर्वत समूह....

       बिहार का इतिहास मागधीय संस्कृति और सभ्यता में जहानाबाद के बराबर पर्वत समूह, गया का ब्रह्मयोनि पर्वत समूह तथा राजगीर पर्वत समूह में छिपी हुई प्राचीन धरोहरों की पहचान है।  बराबर पर्वत समूह की गुफाएं ब्राह्मण धर्म , वैदिक धर्म , बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म के विभिन्न ऋषियों , सिद्धों में लोमष ऋषि , सुदामा ऋषि , विश्वामित्र ऋषि , नागार्जुन आचार्य योगेंद्र , भदंत का न8वीएएस एवं अंगराज कर्ण को समर्पित गुफाएं ,ब्राह्मी लिपि एवं प्राकृत भाषा मे गुहा लेखन , भीतिचित्र तथा सिद्धो के नाथ सिद्धेश्वरनाथ , माता बागेश्वरी , माता सिद्धेध्वरी , भगवान सूर्य , गणपति अनेक देवी तवताओ की मूर्तियां स्थापित हसि । बराबर पर्वत समूह की सांस्कृतिक विरासत सतयुग में इक्ष्वाकु वंशीय के कुक्षी का पौत्र और विकुक्षि का पुत्र बाण एवं द्वापर में राजा बली के पुत्र बाणासुर की कर्मस्थली थी । बराबर पर्वत समूह का सूर्यान्क गिरि पर भगवान शिव द्वारा दैत्य राज सुकेशी को ईश्वर गीता का गायन गजासुर का कर्मस्थल , राजा बुध  की राजधानी थी । यह स्थल मगध साम्राज्य के सम्राट अशोक एवं पौत्र दशरथ का प्रिय स्थल और महात्मा बुद्ध का प्रिय स्थल था । बराबर पर्वत समूह का सूर्यान्क गिरि , सांध्य गिरि , नागार्जुन गिरि , कौवाडोल गिरि , भष्म गिरि , मुरली गिरि , लालपहाडी  पर मागधीय धरोहर विखरी पड़ी है । बराबर  राम गया के नाम से जाना जाता है । फल्गु नदी के किनारे बराबर पर्वत समूह स्थित है ।  931 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में जहानाबाद जिले में 1124176 आवादी निवासी है। 1872 ई. में जहानाबाद अनुमंडल की स्थापना हुई थी और 01 अगस्त 1986 ई. को जहानाबाद को जिला का सृजन किया गया है। 1819 ई. में जहानाबाद जिले के ओकरी, इक्किल, तथा भेलावर को परगाना और 1879 ई. में घेजन को महाल का दर्जा प्राप्त हुए थे ।  पर्वत समूह में मागधीय सांस्कृतिक विरासत विखरी पड़ी है । बराबर पर्वत समूह में गुफा संस्कृति, भीतिचित्र, मूर्तिकला , गुहलेखन , वास्तु शास्त्र की संस्कृति है ।जहानाबाद जिले के परगाने और महाल टिकारी राज का राजा मित्रजित सिह के आधीन था।1904 ई. में जहानाबाद जेल बने। जहानाबाद जिले के बराबर , धराउत, घेजन, ओकरी, भेलावार , दक्षणी, काको, जहानाबाद , केउर, अमथुआ, पाली तथा नेर में सौर धर्म, शैव धर्म , वैष्णव धर्म , शाक्त धर्म, बौद्ध धर्म , जैन धर्म , इस्लाम धर्म , ईसाई धर्म की विरासत विखरी पड़ी है । महाभारत काल में राजा जहनू ने  दरधा - जमुने नदी संगम पर जहान नगर की स्थापना की ।यह राजा शैव धर्म के उपासक और पंचलिंगी शिव की स्थापना की । शैव धर्म ,सौर धर्म , शाक्त धर्म तथा वैष्णव धर्म के मंदिर का निर्माण किया है परंतु काल चक्र से भूकंप, बाढ़ से प्रभावित होकर प्राचीन धरोहरों का भू में समहित है । शिव लिंग, प्राचीन धरोहर जहानाबाद ठाकुरवाड़ी में स्थित है। धराऊत में ब्राह्मण धर्म की विरासत 600-200 ई. पू. का धरोहर वीखरी हुई है । शूरसेन वंशीय राजा चंद्रसेन ने शासन के लिए धाराउत में राजधानी बनाई तथा शिव लिंग, घेज़न में भगवान बुद्ध की प्रतिमा महायान द्वारा स्थापित किया गया है। यहां के गढ़ की पहचान शाक्त धर्म से जुड़ाव है बाद में यह गढ़ बौद्ध विहार के नाम से ख्याति अर्जित की है। काको में कुकुत्स ने कोकट्स , काको नगर की स्थापना की और कोकाट्स का राजा कुकुत्स ने काको नगर का विकास किया । यह क्षेत्र सौर धर्म , शैव तथा वैष्णव धर्म का विकास तथा भगवान विष्णु आदित्य की मूर्ति और पनिहास सरोवर का निर्माण कराया था। यहां पर सूफी योगनी कमलो बीबी एवं दौलत बीबी का मजार प्राचीन काल से है। इस मजार पर मानसिक या शारीरिक अक्षमता वाले आकर चंगा होते हैं और सांप्रदायिक एकता का पवित्र स्थल है। दक्षिणी के राजा दक्ष ने सौर धर्म की उपासना के लिए उतरायण और दक्षिणायण सूर्य की मूर्ति की स्थापना एवं तलाव का निर्माण कराया था । राजा दक्ष का गढ़ दक्षिणी के नाम से जाना जाता है। भेलावर के राजा ने शिव लिंग तथा भगवान सूर्य की मूर्ति और तलाव का निर्माण कराया था। भगवान महावीर ने अपनी केवल्य प्राप्ति के बाद केवल्य वर्तमान केऊर में रह कर जैन धर्म की उपासना स्थल बनाया और संरक्षा के लिए चन्द्रगुप्त ने विष्णु , जगदम्बा, सूर्य, शिव लिंग की स्थापना की। केयूर का गढ़ से प्राप्त मूर्तियां प्राचीन धरोहर के रूप में महत्त्वपूर्ण हैं। जहानाबाद जिले के बराबर पर्वत समूह में छिपी हुई है । मोदनगंज प्रखंड में स्थित मैना मठ  और राजा चेरो वंशीय राजा चारु द्वारा चरुई नगर की स्थापना कर तंत्र मंत्र के लिए विभूक्षणी कंकाली , शिवलिंग की स्थापना की गयी थी ।  चरुई वासियों द्वारा चरुई काली मंदिर में काली मूर्ति की स्थापना कर अपनी प्राचीन धरोहरों की सुरक्षा दी है । प्राचीन धरोहरों की पहचान से मगध की सभ्यता का उद्भव और संस्कृति दिलाती है। जहानाबाद जिले के विभिन्न क्षेत्रों की चर्चा 1854 ई. में प्रकाशित थॉर्नटोन्स गजेटियर , हैमिल्टन फ्रांसिस बुकानन ने 1811 ई. तथा 1865 ई. में ईस्टर्न गज़ेटियर , डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट गया के डॉ. ग्रियर्सन  ने 1888 ई. , ओ मॉली द्वारा 1906 ई. में डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर गया , हन्टर्स स्टेटिकल एकाउंट 1877 ई. तथा स्पेशल ऑफिसर गज़ेटियर रेविशन सेक्शन रेवेन्यू डिपार्टमेंट पटना के पी . सी. राय चौधरी द्वारा बिहार डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर गया का प्रकाशन 1957 ई. में कई गयी है । आर्कोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया वॉल्यूम 1 , 8 एन्शीयट वुमेंट्स इन बंगाल 1895  में उल्लेख है ।
 बराबर पर्वत समूह में मगध सम्राट अशोक ने 322-185 ई. पू. में गुफ़ा का निर्माण कराया तथा वैदिक धर्म के ऋषि लोमाष के नाम पर लोमश गुफ़ा, सुदामा  के नाम पर सुदामा गुफ़ा, अंग राजा कर्ण के नाम पर कर्ण चौपर गुफ़ा , ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के नाम पर विश्वामित्र गुफ़ा (विश्व झोपड़ी), जैन धर्म के आचार्य योगेन्द्र के नाम योगिया (योगेन्द्र) गुफ़ा , बौद्ध धर्म के भदंत के नाम वाह्य गुफ़ा तथा बौद्ध धर्म के महान खगोल शास्त्री रसायन शास्त्र के ज्ञाता नागार्जुन के नाम पर बराबर पर्वत समूह की एक श्रृंखला का नाम नागार्जुन पर्वत रखा गया था यहां गोपी गुफ़ा का निर्माण सम्राट अशोक के पौत्र दशरथ ने कराया था। बराबर पर्वत समूह का मुरली पहाड़ी, लाल पहाड़ी, सांध्य पहाड़ी , नीतिशास्त्र के ज्ञाता काक भूसुंडी के नाम कौवाडोल पहाड़ी, बौद्ध धर्म के दर्शन शास्त्र के ज्ञाता गुनमति के नाम पर कुनवा पहाड़ी, सूर्यांक गिरि पर वैदिक धर्म एवं बौद्ध तथा जैन धर्म की पहचान है। बराबर की सभी गुफाओं को मगध सम्राट मौर्य वंश के अशोक ने महान बौद्ध दर्शन के ज्ञाता मक्खली गोशाल द्वारा स्थापित आजीविका संप्रदाय को समर्पित किया था। प्रचीन काल इक्ष्वाकु वंश के राजा बाणा सुर ने बनावर्त देश की नीव डाल कर राजधानी बराबर की मैदानी भाग तथा फल्गु नदी के तट पर बना  पाताल गंगा नाम से बनाई थी। दैत्य राज बली का पुत्र बाणासुर ने अपनी राजधानी गया जिले का बेलागंज प्रखण्ड के सोनपुर में बनाया ताथा बराबर के मैदानी भाग में सैन्य बल रखा था। सिद्धों द्वारा उत्तर प्रदेश के काशी में स्थित बाबा विश्वनाथ का उप लिंग सिद्धेश्वर नाथ की स्थापना सूर्यांक गिरि पर की थी। यहां पर माता सिद्धेश्वरी , बागेश्वरी तथा ऋषि दत्तात्रेय सूर्याक गुफ़ा में स्थापित किया गया तथा बाबा सिद्धेश्वर नाथ की आराधना दैत्य राज सूकेशी , गजासुर, भगवान राम, कृष्ण , अनिरुद्ध, उषा, महायोगिनी चित्रलेखा, माया द्वारा की गई है। यहां प्रत्येक वर्ष सावन माह में श्रद्धालु बाबा सिद्धेश्वर नाथ को गंगा जल तथा पाताल गंगा जल से जलाभिषेक ताथा भाद्रपद के शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि  अनंत चतुर्दशी को भगवान विष्णु एवं बाबा सिद्धेश्वर नाथ की आराधना करते हैं। बराबर पर्वत की चट्टानों पर भिती चित्र, गुहा लेखन वास्तु शास्त्र वैदिक काल से रेखांकित किया गया है। यहां पर शुंग वंश, गुप्त वंश , पाल वंश, सेन वंश के राजाओं द्वारा विकास का सशक्त रूप दिया है । मगध साम्राज्य का सम्राट अशोक ने 255 ई. पू.को तृतीय बौद्ध संगति पाटलिपुत्र की अध्यक्षता मोग्गलीपुत तिस्स करने के दौरान बराबर की गुफाओं को आजीवक संप्रदाय को समर्पित किया था । आजिवक संप्रदाय का अनुयाई  सम्राट विंदुसार ने अपने पुत्र अवंति के राज्यपाल अशोक को  269 ई. पू. मगध साम्राज्य का सम्राट घोषित किया था । अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा बौद्ध दर्शन के ज्ञाता उप गुप्त ने 261 ई. पू. में दिया था। बराबर की गुहा लेखन ब्राह्मी लिपि तथा मागधी भाषा में कराई गयी। जैन धर्म के अनुयाई चन्द्रगुप्त मौर्य कोे चाणक्य ने 305 ई.पू. घनानंद को समाप्त करने के बाद मगध साम्राज्य का सम्राट बनाया । चन्द्रगुप्त मौर्य की दीक्षा जैन धर्म के ज्ञाता भद्रबहू द्वारा दी गई थी। जैन धर्म के अाजिवक संप्रदाय के लिए बराबर की गुफाओं को दान दिया था। 305 ई. पू. में बराबर पर्वत समूह सिद्धों के अधीन था । यहां 84 सिद्धों में कर्ण रूपा , सरहपा, नागार्जुन , धर्मारीपा , जोगीपा , भतीपा,मैखलापा, समुदपा , धर्मारिपा आदि का निवास था । ये सभी सिद्ध संप्रदाय सिद्धेश्वर नाथ  बाबा के भक्त हैं। बराबर को सिद्धाश्रम के नाम से प्रख्यात था। यहां ब्रह्मऋषि विश्वामित्र का प्रिय स्थल था। प्राचीन काल में नाथ सम्प्रदाय का तीर्थ स्थल बराबर के सूर्यांक गिरि पर बाबा सिद्धेश्वर नाथ है। यहां लिंगायत संप्रदाय का अनुयाई रह कर बाबा सिद्धेश्वर नाथ की आराधना करते थे। मैन मठ का चरुई में काली मंदिर स्थित माता काली की प्राचीन मूर्तियां स्थापित है । राजा चेर द्वारा मैन मठ में स्थापित तंत्र मंत्र का केंद्र शाक्त धर्म का उपासना स्थल है । घेजन में भगवान बुद्ध का पावन भूमि थी । घेजन  द्वापर युग में भगवान बुद्ध और 255 ई. पू. महात्मा गौतम बुद्ध का स्थल था । ओल्ड डिस्ट्रिक्ट गजेटियर 1906 के अनुसार  अमथुआ व उमता मुगल काल का   क सूफी संत  सम्प्रदाय का मुख्य केंद्र था । अमथुआ और उमता में मुगल काल में 5 मकबरे में हाजी ,कर्बला  , शेरशाही मस्जिद ,अब्दुल क़ादिर गिलानी द्वारा कादरी सूफी  की स्थापना की गई थी  ।709 और 715 हिजरी संबत में बिहार का सूबेदार हातिम खां  द्वारा अमथुआ , काको और जहानाबाद में सूफी संतों का विकास किया गया था । 805 और 892 हिजरी संबत में मुहम्मद शाह , महमूद शाह द्वारा कको का कमलो बीबी का मंजर विकसित किया गया था । जहानाबाद में सूफीसंत हैदर सैलानी का मजार है । जहानाबाद स्थित मौर्य, शुंग , गुप्त , सेन , पल काल में सौर , शाक्त , शैव , वैष्णव संप्रदायों द्वारा सनातन धर्म विकसित किया गया था । जहानाबाद का दरधा और यमुने के संगम पर अवस्थित ठाकुवारी में पंचमुखी शिव लिंग , ठाकुर जी की शालिग्राम में निर्मित मूर्ति , भगवान सूर्य , चित्रगुप्त की मूर्तियां ,   प्राचीन काल द्वापर युग का बुद्धेश्वर शिव लिंग बुढ़वा महादेव , सोइया घाट , मुंडेश्वरी प्रसिद्ध है ।जहानाबाद में सूफीसंत हैदर सैलानी का मजार है । जहानाबाद स्थित मौर्य, शुंग , गुप्त , सेन , पल काल में सौर , शाक्त , शैव , वैष्णव संप्रदायों द्वारा सनातन धर्म विकसित किया गया था । जहानाबाद का दरधा और यमुने के संगम पर अवस्थित ठाकुवारी में पंचमुखी शिव लिंग , ठाकुर जी की शालिग्राम में निर्मित मूर्ति , भगवान सूर्य , चित्रगुप्त की मूर्तियां ,   प्राचीन काल द्वापर युग का बुद्धेश्वर शिव लिंग बुढ़वा महादेव , सोइया घाट , मुंडेश्वरी प्रसिद्ध है ।




























 

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