मागधीय और बिहार का धरोहर संयोजन स्थल है राजगीर की पहाडियां। वेदों , पुराणों तथा इतिहास के पन्नों में राजगीर की वादियों और पाच पहाडियों पर बिहार की विरासत विखरी पडी है । राजा मागध द्वारा स्थापित सम्राज्य मगध की राजधानी गया से राजगीर मे स्थापित करने वाले राजा वसु ने वाजपेयी यग्य कर 33 कोटि के देवों तथा देवी को शामिल कर मगध सम्राज्य का विस्तार किया था। वाजपेयी यग्य स्थल को वसु या वसुपुर के नाम से ख्याति प्राप्त हुई थी । राजगृह को वसुमतिपुर, वृहद्रथपुर, गिरिब्रज और राजगीर कहा जाता है। राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केन्द्र तथा जैन धर्म के 20 वे तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ स्वामी के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान कल्याणक एवं 24 वे तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम देशना स्थली भी रहा है साथ ही भगवान बुद्ध की साधनाभूमि राजगीर में ही है। इसका ज़िक्र ऋगवेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय उपनिषद, वायु पुराण, महाभारत, वाल्मीकि रामायण आदि में आता है। जैनग्रंथ विविध तीर्थकल्प के अनुसार राजगीर जरासंध, श्रेणिक, बिम्बसार, कनिक आदि प्रसिद्ध शासकों का निवास स्थान था। जरासंध ने यहीं श्रीकृष्ण को हराकर मथुरा से द्वारिका जाने को विवश किया था। पटना से 100 किमी दक्षिण-पूर्व में राजगीर की पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बसा राजगीर न केवल एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थस्थल है बल्कि एक सुन्दर हेल्थ रेसॉर्ट के रूप में भी लोकप्रिय है। यहां हिन्दु, जैन और बौद्ध तीनों धर्मों के धार्मिक स्थल हैं। खासकर बौद्ध धर्म से इसका बहुत प्राचीन संबंध है। बुद्ध न केवल कई वर्षों तक यहां ठहरे थे बल्कि कई महत्वपूर्ण उपदेश भी यहाँ की धरती पर दिये थे। बुद्ध के उपदेशों को यहीं लिपिबद्ध किया गया था और पहली बौद्ध संगीति भी यहीं हुई थी।
पंच पहाड़ियों से घिरा राजगीर वन्यजीव अभ्यारण्य प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण और साथ ही अपने अंदर जैव-विविधता को समेटे हुए जिलें में एकलौता वन्यजीव आश्रयणी है । बिहार में 12 वन्यजीव अभ्यारण्य और एक राष्ट्रीय उद्यान है । राजगीर अभ्यारण्य में वनस्पतियों और वन्यप्राणियों की कई दुर्लभ प्रजातियां देखने को मिलती है । औषधीय पौधों की कई किस्मे राजगीर के जंगलो में पाई जाती है । बचे वन्यजीवों के भविष्य को सुरक्षा को सुनिश्चित करने के दिशा में पर्यावरण एवं वन विभाग द्वारा सन् 1978 में 35.84 वर्ग किलोमीटर के राजगीर अरण्य क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य बना दिया गया था । हालाँकि कुछ वर्ष पहले तक इसे पंत वन्यजीव आश्रयणी के नाम से भी जाना जाता था । पर्यटक यहाँ बिना किसी झंझट के पहुँच सकते हैं और राजगीर का वन विश्रामागार बस ठहराव से ज्यादा दूर भी नही है ! पटना से दूरी करीब 100 किलोमीटर है । राष्ट्रीय राजमार्ग 82 राजगीर वन क्षेत्रों को होते जाती है ।राजगीर के ऐतिहासिक भूमि, धार्मिक तीर्थस्थल, तीन साल पर एक बार आनेवाला बृहद मलमास मेला और खूबसूरत वादियां पर्यटकों को खूब लुभाती है, यही वजह है कि राजगीर की पहचान आज अंतरास्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में है । पंच पहाड़ियां रत्नागिरी, विपुलाचल, वैभारगिरि, सोनगिरि उदयगिरि पतझड़ के समय बेजान तो लगते हैं लेकिन मॉनसून का आगाज होते ही जैसे ये पुर्नजीवित हो जाते हैं जिससे वन्यप्राणियों की चहलकदमी भी बढ़ जाती है जो पतझड़ वन की खासियत है । जीवनशैली में काफी घोर व्यस्तता के बाबजूद भी कुछ प्रकृति प्रेमी यहाँ आते हैं और प्राकृतिक छटाओं का आनंद लेते हैं । तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा राजगीर का घोड़ा कटोरा झील और झील से सूर्यास्त का दृश्य मन को मोह लेता है । पर्यटक यहाँ झील में नौकायान का लुत्फ़ उठा सकते हैं और यहाँ साफ़-सफाई का भी बेहद ख्याल रखा जाता हैं । हाल ही में इसी झील के बीच भगवान बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा भी स्थापित की गई है । अगर आप प्राकृतिक सौंदर्यता के साथ रोमांच का अनुभव और वन्यजीव को खुले जंगलों में विचरण करते देखना चाहते हैं तो राजगीर अभ्यारण्य की सैर जरूर करें और इसके लिए वसंत से बेहतर कोई ऋतु नही हो सकता क्योंकि इसके आगमन के साथ ही जंगलो में जैसे बहार आ जाती है कलियां खिलने लगती है और माँझर लगे फलों के पेड़, फलों से लदे बेर के पेड़, खेतों में लहलहाती सरसों के पिले-पिले फूल और बागों में गाती कोयल और पपीहा अद्भुत अनुभूति का एहसास करते हैं । प्रकृति सौंदर्य को निहारना स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है ।राजगीर अभ्यारण्य में लंबी पूँछ वाली सुल्तान बुलबुल, रंगीन तीतर, कर्वानक, हारिल, बसंता, मछलीखोर पनकौवा, कोरिल्ला किलकिला, छोटा किलकिला और खंजन, कोतवाल, निशाचर उल्लू तथा नाईटज़ार (छपका) , शिकरा बाज, अपने मधुर आवाज के लिए मशहूर कोयल, पपीहा, आकर्षक सलेटी धनेश जिसके चोंच पर सिंग होता है, सिटी जैसी आवाज निकालने वाली छोटा सिल्ही बत्तख़, जंगल का प्रहरी टिटहरी, ऑरेंज हेडेड थ्रश आदि सामान्य पक्षी देखने को मिलते हैं वही स्तनधारियों में चीतल, लंगूर, मकैक बंदर, नीलगाय, जंगली सुअर, सिवेट कैट, गीदड़, धारीदार लकड़बग्घा, जंगली खरहा, जंगली बिल्ली, साहिल और पहाड़ो के खोहों में चमगादड़ों की कुछ प्रजातियां पाई जाती हैं । शिकार के चलते खत्म होते भारतीय बज्रकिट जिसे कभी राजगीर के जंगलो में देखना कोई बड़ी बात नही थी आज बिहार के जंगलो से खत्म होने के कगार पर पहुँच गए हैं । बिहार में करीब 14 से 15 प्रजाति के उभयचर पाए गए हैं जबकि अकेले राजगीर अभ्यारण्य में ही 12 प्रजाति देखे जा चुकें हैं (बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान) । बुलफ्रॉग भारत का सबसे बड़ी प्रजाति का मेंढक है, दिन में अपने खास खुरपीनुमा पैर से खुदाई कर मिट्टी के अंदर छुपा रहने वाला रोलांड बुरोइंग फ्रॉग और जंगलो के फर्श पर उंगली के नाखून आकर के छोटे मेंढक “ऑर्नाट फ्रॉग” और रेंगनेवाले प्राणियों में बहुत कम संख्या में बचे इंडियन रॉक पाइथन (अजगर) के अलावे ब्रोंजबैक ट्री स्नेक, ग्रीन वाइन स्नेक, कोबरा, करैत, वुल्फ स्नेक, मॉनिटर लिजार्ड, स्किंक भी खूब दिखते हैं । स्ट्रिपड टाईगर, पीकॉक पैन्सी, ग्रे पैन्सी, येलो पैन्सी, लेमन पैन्सी, कॉमन क्रो, मॉरमॉन, लाइम ब्लू, ग्राम ब्लू सहित करीब 40 प्रजाति के तितलियाँ राजगीर में मिलती है ।
गृद्धकूट पर्वत पर बुद्ध ने कई महत्वपूर्ण उपदेश दिये थे। जापान के बुद्ध संघ ने इसकी चोटी पर एक विशाल “शान्ति स्तूप” का निर्माण करवाया है जो आजकल पर्यटकों के आकर्षण का मूख्य केन्द्र है। स्तूप के चारों कोणों पर बुद्ध की चार प्रतिमाएं स्थपित हैं। स्तूप तक पहुंचने के लिए पहले पैदल चढ़ाई करनी पड़ एक “रज्जू मार्ग” भी बनाया गया है जो यात्रा को और भी रोमांचक बना देता है ।लाल मन्दिर राजस्थानी चित्रकला का अद्भुत कारीगरी राजस्थानी चित्रकारों के द्वारा इस मन्दिर में बनाया गया है । इसी मन्दिर में भगवान महावीर स्वामी का गर्भगृह भूतल के निचे बनाया गया है जहां जैन तीर्थयात्री आकर भगवान महावीर के पालने को झुलाते है तथा असीम शांति का अनुभव इस मन्दिर में होता है । इसी मन्दिर में २० वे तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ स्वामी की काले वर्ण की 11 फुट ऊँची विशाल खडगासन प्रतिमा विराजमान है ।वीरशासन धाम तीर्थ भगवान महावीर स्वामी की लाल वर्ण की 11 फुट ऊँची विशाल पद्मासन प्रतिमा यहाँ विराजमान है । इस मन्दिर में भगवान महावीर स्वामी के दिक्षा कल्याणक महोत्सव में विशाल जुलुस हर साल जैन धर्मावलम्बियों द्वारा निकाला जाता है । जो भगवान महावीर के प्राचीन चरण वेणुवन के समीप बने वहाँ जाकर समाप्त होता है ।
दिगम्बर जैन मन्दिर को धर्मशाला मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। जैन धर्मावलम्बियों के ठहरने के लिए विशाल धर्मशाला है जहां भारत के कोने - कोने से आने वाले तीर्थ यात्री रात्रि में ठहरते है तथा प्रातः पंचपहाड़ी के दर्शन करते है । इस मन्दिर में सभी सुविधायुक्त कमरे मौजूद है । इस मन्दिर में मूलनायक भगवान महावीर की श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा है । वेदी में सोने तथा शीशे का काम कराया गया है, जो अलौकिक छँटा प्रदान करता है । इसके अतिरिक्त 10 धातु की प्रतिमा, एक छोटी श्वेत पाषण की प्रतिमा एवं 2 धातु के मानस्तंभ है । गर्भ गृह की बाहरी दिवाल के आले में बायीं ओर पद्मावती माता की पाषाण की मूर्ति है । इसके शिरोभाग पर पार्श्वनाथ विराजमान है एवं इसके दायीं ओर क्षेत्रपाल जी स्थित है । बायीं ओर की अलग वेदी में भगवान पार्श्वनाथ एवं अन्य प्रतिमायें अवस्थित है । दाहिनी ओर नन्दीश्वर द्वीप का निर्माण हुआ है । मन्दिर शिखरबद्ध है एवं आकर्षक प्रवेशद्वार इसकी शोभा द्विगुणित करते है । इस मन्दिर का निर्माण गिरिडीह निवासी सेठ हजारीमल किशोरीलाल ने कराया था और प्रतिष्ठा वि०सं० 2450 में हुयी थी । इस धर्मशाला मन्दिर में आने वाले तीर्थ यात्री राजस्थानी से लेकर बिहार के खाने का लुफ्त उठा सकते है ।वैभव पर्वत की सीढ़ियों पर मंदिरों के बीच गर्म जल के कई झरने (सप्तधाराएं) हैं जहां सप्तकर्णी गुफाओं से जल आता है। इन झरनों के पानी में कई चिकित्सकीय गुण होने के प्रमाण मिले हैं। पुरुषों और महिलाओं के नहाने के लिए 22 कुन्ड बनाए गये हैं। इनमें “ब्रह्मकुन्ड” का पानी सबसे गर्म (४५ डिग्री से.) होता है। राजा वसु ने गर्म कुण्ड को ब्रह्मा जी को अर्पित कर ब्रह्म कुण्ड नामकरण किया था।
स्वर्ण भंडार प्राचीन काल में जरासंध का सोने का खजाना था। कहा जाता है कि अब भी इस पर्वत की गुफा के अन्दर अतुल मात्रा में सोना छुपा है और पत्थर के दरवाजे पर उसे खोलने का रहस्य भी किसी गुप्त भाषा में खुदा हुआ है।वह किसी और भाषा में नहीं बल्कि शंख लिपि है और वह लिपि बिंदुसार के शासन काल में चला करती थी। .विपुलाचल पर्वत (जैन मंदिर) जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की प्रथम वाणी इसी विपुलाचल पर्वत से ही खिरी थी, उन्होंने समस्त विश्व को "जिओ और जीने दो" दिव्य सन्देश विपुलाचल पर्वत से दिया था । पहाड़ों की कंदराओं के बीच बने २६ जैन मंदिरों को आप दूर से देख सकते हैं पर वहां पहुंचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम है। लेकिन अगर कोई प्रशिक्षित गाइड साथ में हो तो यह एक यादगार और बहुत रोमांचक यात्रा साबित हो सकती है। जैन मतावलंबियो में विपुलाचल, सोनागिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, वैभारगिरि यह पांच पहाड़ियाँ प्रसिद्ध हैं। जैन मान्यताओं के अनुसार इन पर 23 तीर्थंकरों का समवशरण आया था तथा कई मुनि मोक्ष भी गए हैं।आचार्य महावीर कीर्ति दिगम्बर जैन सरस्वती भवन का निर्माण परम पूज्य आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में सन् 1972 को सम्पन्न हुआ था । नीचे एक बड़े हॉल में आचार्य महावीर कीर्ति जी की पद्मासन प्रतिमा विराजित है । ऊपर के कमरों में एक विशाल पुस्तकालय है, जिसमें जैन धर्म सम्बंधित हज़ारों हस्तलिखित एवं प्रकाशित पुस्तकें संग्रहित है । इसके अतिरिक्त जैन सिद्धांत भवन ‘आरा’ के सौजन्य से जैन चित्रकला एवं हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ की प्रदर्शनी आयोजित है । इसके अतिरिक्त विपुलाचल पर्वत पर भगवान महावीर के जीवनी से संबंधित हस्तनिर्मित चित्रों कि प्रदर्शनी लाखों जैन अजैन यात्रियों द्वारा देखी और सराही जाती हैं । कई वर्ष पूर्व श्री महावीर कीर्ति सरस्वती भवन के संचालन के लिये एक बड़ी रकम पू० आचार्य श्री भरत सागर जी के प्रेरणा से शिखर जी में कमिटी को भेजने के लिये कुछ प्रबुद्ध व्यक्तियों को सौंपी गई थी, पर खेद है कि अभी तक कमिटी को वह रकम नही मिली हैं । कुछ प्राचीन खण्डित प्रतिमाएँ एवं अन्य पदार्थ जो उत्खनन से प्राप्त हुये थे । यहाँ भी संग्रहित है । ऊपरी हिस्से में वाग्देवी (सरस्वती देवी) की प्रतिमा भी स्थापित है ।
बिम्बिसार जेल गृद्धकूट पहाड़ी का एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है।भगवान बुद्ध के एक कट्टर अनुयायी, बिम्बिसार को बेटे अजातशत्रु द्वारा कैद किया गया था। अअजातशत्रु ने अपने पिता से कारावास की जगह का चयन करने के लिए पूछा था। राजा बिम्बिसार ने एक स्थान चुना, जहां से वे भगवान बुद्ध को देख सकें। इसके बावजूद वह गृधाकुट और बुद्ध को खिड़की से देख सकते है। सप्तपर्णी गुफा(या सत्तपर्णगुहा) राजगीर की एक पहाड़ी में स्थित गुफा है। कुछ सूत्रों के अनुसार प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन इसी स्थान पर हुआ था। यहाँ गरम जल का एक स्रोत है जिसमें स्नान करने से स्वास्थ्य लाभ होता है। यह हिन्दुओं के लिये पवित्र कुण्ड है। सप्तपर्णी गुफा के स्थल पर पहला बौध परिषद् का गठन हुआ था जिसका नेतृत्व महा कस्साप ने किया था। बुद्ध भी कभी-कभार वहाँ रहे थे, और यह अतिथि संयासियों के ठहरने के काम में आता था।“मनियार मठ" इस मठ के पास कुछ प्राचीन गुफाएं हैं जिनके बारे में लोगों की मान्यता है इनमें प्राचीन भारत का स्वर्ण भंडार है। मनियार मठ राजगीर का एक और खुदाई स्थल है। यह एक अष्टकोणी मंदिर है, जिसकी दीवारें गोलाकार हैं। मनियार मठ के परिसर में आप विविध राजकुलों की छाप देख सकते हैं, जैसे गुप्त राजकुल का धनुष,आज पुराने राजगीर की पहचान है।राजगीर की पहचान मेलों के नगर के रूप में भी है। इनमें सबसे प्रसिद्ध मकर और मलमास मेले के हैं। शास्त्रों में मलमास तेरहवें मास के रूप में वर्णित है। सनातन मत की ज्योतिषीय गणना के अनुसार तीन वर्ष में एक वर्ष 366 दिन का होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस अतिरिक्त एक महीने को मलमास या अतिरिक्त मास कहा जाता है।ऐतरेय बह्मण के अनुसार यह मास अपवित्र माना गया है और अग्नि पुराण के अनुसार इस अवधि में मूर्ति पूजा–प्रतिष्ठा, यज्ञदान, व्रत, वेदपाठ, उपनयन, नामकरण आदि वर्जित है। लेकिन इस अवधि में राजगीर सर्वाधिक पवित्र माना जाता है। अग्नि पुराण एवं वायु पुराण आदि के अनुसार इस मलमास अवधि में सभी देवी देवता यहां आकर वास करते हैं। राजगीर के मुख्य ब्रह्मकुंड के बारे में पौराणिक मान्यता है ।
एशिया का ज्योतिपूंज बौद्धधर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध ने राजगीर के महान दार्शर्निक रूद्रकरामपुत से राजगीर मे शिक्छा ले कर गया गया गये थे। मगध सम्राज्य के राजा अजातशत्रु द्वारा 483 ई.पू. राजगीर मे महाकश्यप की सभापतित्व में प्रथम बौद्धसंगीति कराया गया था । 5122 वर्ष पूर्व मगध की राजधानी राजगीर मे व्रीहद्रथ वंश का प्रतापी राजा जरासंध था । 544 ई .पू ़. हर्यक वंश के संस्थापक बिंबिसार ने 52 वर्षो तक मगध पर राज किया ।बिंबिसार ने कौशल नरेश की बहन महाकोशला , वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना ,मद्र देश की राजकुमारी छेमा विवाह किया । बिंबिसार का पुत्र अजातशत्रु ( कुणिक ) ने 493 ई.पू . मगध का राजा बन कर राजगीर का विकास किया । मगध का राजा अजात शत्रु द्वारा 32 वर्षों तक शासन की। अजातशत्रु के पुत्र उदयन ने 461 ई .पू . मगध की सता प्राप्त करने के बाद मगध की राजधानी राजगीर से पाटलि ,पटलिग्राम ,पाटलिपुत्र मे स्थापना की। राजगीर का चतुर्दिक विकास विभिन्न राजाओं द्वारा किया गया ।
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