हिन्दी सागर में भाषा नदियां समाहित :एकता प्रतीक
सत्येन्द्र कुमार पाठक
हिन्दी सागर में भाषा नदियां प्रवाहित होकर एकता का संदेश देती है । विश्व में प्रत्येक वर्ष 1
0 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस" मनाया जाता है। विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से हिंदी है। विश्व की प्राचीन समृद्धि और सरल भाषा होने के साथ-साथ हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा भी है। यह समस्त संसार में हमें सम्मान भी दिलाती है। हिंदी हमारे लिए सम्मान, स्वाभिमान एवं गर्व की भाषा है। हिंदी ने हमें विश्व में एक नई पहचान दिलाई है। भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के अनुसार प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को संपूर्ण भारत में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में धीरे-धीरे हिंदी भाषा का प्रचलन बढ़ा और इस भाषा ने राष्ट्रभाषा का रूप ले लिया। अब हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाने लगी है । हिन्द की हिन्दी संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है। आज हर माता-पिता अपने बच्हुत ध्यान दिया जाता हहिंदी की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता। लोगों को हिंदी दिवस हमारी राष्ट्रीय भाषा हिंदी को सम्मान देने का एक शानदार अवसर है। 14 सित. 1949 को देश की 14 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा मिला जिसमें हिंदी भी एक है । महात्मा गाँधी , राजेन्द्र बाबू, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन समेत कई बड़े नेताओं ने इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की माँग रखी पर आजतक यह दर्जा नहीं मिला ।हिन्दी विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केन्द्रीय स्तर पर भारत में दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिंदुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक है और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है,क्योंकि भारत के संविधान में किसी भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। किन्तु एथनॉलोग के अनुसार हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात की जनता भी हिन्दी बोलती है। फरवरी २०१९ में अबू धाबी में हिन्दी को न्यायालय की तीसरी भाषा के रूप में मान्यता मिली। 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया।भारत के बाहर, हिंदी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में ८,६३,०७७[; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिंदी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी समान है। एक विशाल संख्या में लोग हिंदी और उर्दू दोनों को ही समझते हैं। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिन्दी भारत में सम्पर्क भाषा का कार्य करती है और कुछ हद तक पूरे भारत में आमतौर पर एक सरल रूप में समझी जानेवाली भाषा है। हिन्दी का कभी-कभी नौ भारतीय राज्यों के संदर्भ में भी उपयोग किया जाता है, जिनकी आधिकारिक भाषा हिंदी है और हिन्दी भाषी बहुमत है, अर्थात् बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिंदवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (दयानन्द सरस्वती), 'हिंदुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिंदी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न संदर्भों में प्रयुक्त है। हिन्दी, यूरोपीय भाषा-परिवार परिवार के अन्दर आती है। ये हिन्द ईरानी शाखा की हिन्द आर्य उपशाखा के अन्तर्गत वर्गीकृत है। हिन्द-आर्य भाषाएँ वो भाषाएँ हैं जो संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं। उर्दू, कश्मीरी, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, रोमानी, लिपि है । हिन्दी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसे नागरी नाम से भी पुकारा जाता है। देवनागरी में ११ स्वर और ३३ व्यंजन हैं और अनुस्वार, अनुनासिक एवं विसर्ग होता है तथा इसे बायें से दाईं ओर लिखा जाता है। हिन्दी शब्द का सम्बन्ध संस्कृत शब्द सिंधु से माना जाता है। 'सिंधु' सिंध नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिंधु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिंदू’, हिंदी और फिर ‘हिंद’ हो गया। बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिंद शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द+ईक) ‘हिंदीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिन्द का’। यूनानी शब्द ‘इन्दिका’ या अंग्रेजी शब्द ‘इंडिया’ आदि इस ‘हिंदीक’ के ही विकसित रूप हैं। हिंदी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफुद्दीन यज्दी’ के ‘जफरनामा’(1424) में है।प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने अपने " हिंदी एवं उर्दू का अद्वैत " शीर्षक आलेख में हिंदी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी। 'स्' को 'ह्' रूप में बोला जाता था। जैसे संस्कृत के 'असुर' शब्द को वहाँ a'अहुर' कहा जाता था। अफ़ग़ानिस्तान के बाद सिंधु नदी के इस पार हिंदुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी 'हिंद', 'हिंदुश' के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस्तु, भाषा, विचार को 'एडजेक्टिव' के रूप में 'हिन्दीक' कहा गया है जिसका मतलब है 'हिन्द का'। यही 'हिन्दीक' शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में 'इन्दिके', 'इन्दिका', लैटिन में 'इन्दिया' तथा अंग्रेज़ी में 'इण्डिया' बन गया। अरबी एवं फ़ारसी साहित्य में भारत (हिंद) में बोली जाने वाली भाषाओं के लिए 'ज़बान-ए-हिन्दी', पद का उपयोग हुआ है। भारत आने के बाद अरबी-फारसी बोलने वालों ने 'ज़बान-ए-हिंदी', 'हिंदी ज़बान' अथवा 'हिंदी' का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया। भारत के गैर-मुस्लिम लोग इस क्षेत्र को भारवा कहा है ।
हिन्दी भाषा का इतिहास एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। हिन्दी भाषा व साहित्य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था 'अवहट्ठ' से हिन्दी का उद्भव स्वीकार करते हैं। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इसी अवहट्ठ को 'पुरानी हिन्दी' नाम दिया।अपभ्रंश की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रांतिकाल कहा जा सकता है। हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। १००० ई. के आसपास इसकी स्वतंत्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक संदर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश का जो भी कथ्य रूप था - वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ। अपभ्रंश के सम्बंध में ‘देशी’ शब्द की भी बहुधा चर्चा की जाती है। वास्तव में ‘देशी’ से देशी शब्द एवं देशी भाषा दोनों का बोध होता है। प्रश्न यह कि देशीय शब्द किस भाषा के थे ? भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है ‘जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों से भिन्न है। ये ‘देशी’ शब्द जनभाषा के प्रचलित शब्द थे, जो स्वभावत: अप्रभंश में भी चले आए थे। जनभाषा व्याकरण के नियमों का अनुसरण नहीं करती, परंतु व्याकरण को जनभाषा की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड़ता है, प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि की प्रकृति माना। अतः जो शब्द उनके नियमों की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज्ञा दी गई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के हिन्दी को हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद ३४३, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हिन्दी भाषी राज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है, इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार,तेलंगाना और दिल्ली में द्वितीय राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है। हिन्दी का क्षेत्र विशाल है तथा हिन्दी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं। इनमें से कुछ में अत्यंत उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना भी हुई है। बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। ये बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परंपरा, इतिहास, सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतंत्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के खिलाफ भी उसका रचना संसार सचेत है। हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, भोजपुरी , मगही , मागधी ,अंगिका ,मैथिली , वज्जिका आदि भिन्न-भिन्न भाषा-भाषियों के मध्य परस्पर विचार-विनिमय का माध्यम बनने वाली भाषा को सम्पर्क भाषा कहा जाता है। अपने राष्ट्रीय स्वरूप में ही हिन्दी पूरे भारत की सम्पर्क भाषा बनी हुर्इ है। अपने सीमित रूप में, प्रशासनिक भाषा के रूप में, हिन्दी के व्यवहार में भिन्न भाषाभाषियों के बीच परस्पर सम्प्रेषण का माध्यम बनी हुर्इ है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में बोली और समझी जाने वाली राष्ट्रभाषा हिन्दी है, वह सरकार की राजभाषा भी है तथा सारे देश को एक सूत्र में पिरोने वाली सम्पर्क भाषा भी है। इस तरह अपने तीनों रूपों-राष्ट्रभाषा, राजभाषा और सम्पर्क भाषा - में हिन्दी भाषा अपना दायित्व सहजता से निभा रही है क्याेंकि इन तीनों में अन्तःसम्बन्ध हैं। 'राष्ट्रभाषा सम्पूर्ण राष्ट्र में स्वीकृत भाषा होती है जबकि प्रशासनिक कार्यों के व्यवहारों में प्रयुक्त होने वाली 'राजभाषा' घोषित कीी है तथा सम्पर्क भाषा का विकास प्राकृतिक और स्वैचिछक आधार पर होता है जो सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। सम्पर्क भाषा ही सर्व-स्वीकृत होकर राष्ट्रभाषा बनती है। समृद्ध देशों में राष्ट्रभाषा, राजभाषा और सम्पर्क भाषा के रूप में एक ही भाषा का प्रयोग होता है, जैसे जापान, अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, रूस आदि देश। इस दृष्टि से भारत भी समृद्ध देश है जहाँ हिन्दी ही अपने तीनों रूपों में प्रयुक्त होती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा कहा था। उन्होने 29 मार्च 1918 को इंदौर में आठवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। उस समय उन्होंने अपने सार्वजनिक उद्बोधन में पहली बार आह्वान किया था कि हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिये। उन्होने यह भी कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। उन्होने तो यहाँ तक कहा था कि हिन्दी भाषा स्वराज्य है। हिन्दी कम्प्यूटरी, हिन्दी टाइपिंग, कम्प्यूटर और हिन्दी, हिन्दी कम्प्यूटिंग का इतिहास, मोबाइल फोन में हिन्दी समर्थन और अन्तरजाल पर हिन्दी के उपकरण (सॉफ्टवेयर) कम्प्यूटर और इन्टरनेट ने पिछले वर्षों मे विश्व मे सूचना क्रांति ला दी है। आज कोई भी भाषा कम्प्यूटर (तथा कम्प्यूटर सदृश अन्य उपकरणों) से दूर रहकर लोगों से जुड़ी नही रह सकती। कम्प्यूटर के विकास के आरम्भिक काल में अंग्रेजी को छोड़कर विश्व की अन्य भाषाओं के कम्प्यूटर पर प्रयोग की दिशा में बहुत कम ध्यान दिया गया जिससे कारण सामान्य लोगों में यह गलत धारणा फैल गयी कि कम्प्यूटर अंग्रेजी के सिवा किसी दूसरी भाषा (लिपि) में काम ही नही कर सकता। किन्तु यूनिकोड के पदार्पण के बाद स्थिति बहुत तेजी से बदल गयी। 19 अगस्त 2009 में गूगल ने कहा की हर 5 वर्षों में हिन्दी की सामग्री में 94% बढ़ोतरी हो रही है। हिन्दी की इंटरनेट पर अच्छी उपस्थिति है। गूगल जैसे सर्च इंजन हिन्दी को प्राथमिक भारतीय भाषा के रूप में पहचानते हैं। इसके साथ ही अब अन्य भाषा के चित्र में लिखे शब्दों का भी अनुवाद हिन्दी में किया जा सकता है। फरवरी २०१८ में एक सर्वेक्षण के हवाले से खबर आयी कि इंटरनेट की दुनिया में हिंदी ने भारतीय उपभोक्ताओं के बीच अंग्रेजी को पछाड़ दिया है। यूथ4वर्क की इस सर्वेक्षण रिपोर्ट ने साबित किया है कि जैसे-जैसे इंटरनेट का प्रसार छोटे शहरों की ओर बढ़ेगा, हिंदी और भारतीय भाषाओं की दुनिया का विस्तार होता जाएगा। हिन्दी के संचार माध्यम और हिन्दी सिनेमा की भूमिका महत्वपूर्ण है। हिन्दी सिनेमा का उल्लेख किये बिना हिन्दी का कोई भी लेख अधूरा होगा। मुम्बई मे स्थित "बॉलीवुड" हिन्दी फ़िल्म उद्योग पर भारत के करोड़ कमाई कर रही हैं। हिंदी, विज्ञापन उद्योग की पसंदीदा भाषा बनती जा रही है। गूगल, ट्रांसलेशन, ट्रांस्लिटरेशन, फोनेटिक टूल्स, गूगल असिस्टैन्ट आदि के क्षेत्र में नई नई रिसर्च कर अपनी सेवाओं को बेहतर कर रहा है। हिंदी और भारतीय भाषाओं की पुस्तकों का डिजिटलीकरण जारी है। फेसबुक और व्हाट्सएप हिंदी और भारतीय भाषाओं के साथ तालमेल बिठा रहे हैं। सोशल मीडिया ने हिंदी में लेखन और पत्रकारिता के नए युग का सूत्रपात किया है और कई जनान्दोलनों को जन्म देने और चुनाव जिताने-हराने में उल्लेखनीय और हैरान करने वाली भूमिका निभाई है। सितम्बर २०१८ में प्रकाशित हुई एक अमेरिकी रपट के अनुसार हिन्दी में ट्वीट करना अत्यन्त लोकप्रिय हो रहा है। रपट में कहा गया है कि पिछले वर्ष सबसे अधिक पुनः ट्वीट किए गये १५ सन्देशों में से ११ हिन्दी के थे। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का बाजार इतना बड़ा है कि अनेक कम्पनियाँ अपने उत्पाद और वेबसाइटें हिन्दी और स्थानीय भाषाओं में ला रहीं हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1997 में 'सैन्सस ऑफ़ इंडिया' का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अंग्रेजी भाषियों से अधिक है।
विश्वभाषा बनने के सभी गुण हिन्दी में विद्यमान हैं। बीसवीं शती के अंतिम दो दशकों में हिन्दी का अनतरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। हिंदी एशिया के व्यापारिक जगत् में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिंबित कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है। वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिन्दी की मांग जिस तेजी से बढ़ी है वैसी किसी और भाषा में नहीं। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े केंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों में 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिन्दी में प्रकाशित हो रही हैं। यूएई के 'हम एफ-एम' सहित अनेक देश हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिनमें बीबीसी, जर्मनी के डॉयचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिन्दी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दिसम्बर २०१६ में विश्व आर्थिक मंच ने १० सर्वाधिक शक्तिशाली भाषाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिन्दी भी एक है। इसी प्रकार 'कोर लैंग्वेजेज' नामक साइट ने 'दस सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाषाओं'[38] में हिन्दी को स्थान दिया था। के-इण्टरनेशनल ने वर्ष २०१७ के लिये सीखने योग्य सर्वाधिक उपयुक्त नौ भाषाओं[39] में हिन्दी को स्थान दिया है। हिन्दी का एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने और विश्व हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन को संस्थागत व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से ११ फरवरी २००८ को विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना की गयी थी। संयुक्त राष्ट्र रेडियो अपना प्रसारण हिन्दी में भी करना आरम्भ किया है। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाये जाने के लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। अगस्त २०१८ से संयुक्त राष्ट्र ने साप्ताहिक हिन्दी समाचार बुलेटिन आरम्भ किया है। हिन्दी के विकास में विभिन्न हिन्दी सेवियों ने काल की गणना की है जिसमें आदि काल १००० से १५०० ई , मध्य काल १५०० - १८०० ई . और आधुनिक काल १८०० ई . से अब तक दर्शित है । १८८८ ई. मे जार्ज अब्राह्म ग्रियर्शन को हिन्दी साहित्य का ईतिहासकार कहा जाने लगा था ।१९२९ ई. को आचार्य राम चन्द्र शुक्ल , के बाद आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा हिन्दी का विकास रूप दिया गया । आधुनिक काल को भारतेंदु काल १८५७ ई. से १९०० ई . तक , द्विवेदी काल १९०० ई से १९१८ ई . तक , और छायावाद , प्रयोग काल १९१८ ई. से अब तक है । प्राचीन हिन्दी काल मे भक्ति काल ,रीति काल मे कवि हिन्दी के प्रथम कवि पुण्ड , ७ वी शताब्दी के कवि सरहपाद , भक्तिकाल के कवि तुलसी दास , सूरदास ,कवीरदास , मीरा , रसखान , विहारी , निराला , भारतेन्दु , मैथिली शरण गुप्त , जयशंकर प्रसाद , रामधारीसिंह दिनकर , शिवपूजन सहाय, महावीर प्रसाद द्वेवेदी , प्रेमचन्द , हरिवंश राय बच्चन , सुभद्रा कुमारी चौहान , महादेवी वर्मा रामदयाल पाण्डेय आदि कवियो ,लेखकों द्वारा हिन्दी के विकास में महान कार्य किया गया है ।
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