रविवार, अक्तूबर 16, 2022

ब्रह्मांड का नेत्र है भगगवन सूर्य....


वैदिक एवं स्मृति साहित्य में भगवान सूर्य का उल्लेख जगत की आँखे के रूप में किया है । भगवान सूर्य की उपासना विश्व के भिन्न भिन्न क्षेत्र में विभिन्न रूप से सहस्त्र वर्षो से होती आ रही है । शाकद्वीप के मग ब्राह्मण द्वारा सनातन धर्म के सौर सम्प्रदाय का रूप दे कर भगवान सूर्य को आराध्य देव बताया गया है । स्वायम्भुव मनु एवं शतरूपा , प्रियब्रत , , कीकट राजा कीकट , अंग , पृथु , मगध साम्राज्य का संस्थापक मागध , वैवस्वतमनु के वंशज शर्याति की पुत्री सुकन्या , , करूष , नेमी , इक्ष्वाकु वंशीय राजा में हरिश्चन्द्र , बाण , भगवान राम , राजा  हर्षवर्द्धन के कवि मयुर भट्ट का सूर्य शतक , मगध साम्राज्य का राजा जरासंध , सहदेव  , द्वारिकाधीश कृष्ण , सांबपुर का राजा साम्ब ने सूर्योपासना का रूप दिया है ।वैवस्वतमनु की की पुत्री इला एवं वृहस्पति व तारा पुत्र बुध , मन्वंतर काल में सूर्योपासना होती रही है । बिहार एवं झारखंड के निवासी लोकपर्व छठ पूजा , सूर्यपूजा , सूर्योपासना , सूर्यार्घ्य पर्व महान पर्व मानते है । शाकद्वीपीय ब्राह्मण द्वारा 72 गांवों में सूर्योपासना का केंद्र स्थापित कर सौर सम्प्रदाय की नींव डाला था ।   नेपाल का काठमांडू के  पाशुपत क्षेत्र में स्थित  गुह्येश्वरी मंदिर समीप बागमती नदी के पूर्वी तट पर अवस्थित सूर्यघाट स्थान पर प्राचीन कालीन भव्य सूर्य मंदिर था ।कालांतर सूर्यमंदिर नष्ट हो जाने के बाद पुनः सूर्यमंदिर का निर्माण कर प्राचीन भगवान सूर्य मंदिर की मूर्ति स्थापित की गई है । यहां प्रत्येक शुक्ल सप्तमी तिथि को श्रद्धालुओं द्वारा भगवान सूर्य की उपासना की जाती है । पाशुपत क्षेत्र स्थित सूर्य मंदिर में स्थित भगवान सूर्य की उपासना एवं अर्घ्य देकर उपासकों को चक्षुरोग , चर्मरोग से मुक्ति मिलती है साथ ही साथ सर्वांगीण सुख मिलता है । नेपाल का भक्तपुर के समीप सूर्यविनायक मंदिर में भगवान सूर्य की चतुर्भुज मूर्ति है । यह मूर्ति का सिर किरानावलियों से आवृत हाथ में शंख ,चक्र , गदा ,और अभय मुद्रा युक्तभागवां सूर्य  है । भक्तपुर के राजा विनायक  द्वारा अपने कुष्ट रोग निवृति के पश्चात सूर्यविनायक मंदिर का निर्माण कराया था ।वैवस्वत मन्वंतर काल में ऋषि कश्यप की भार्या माता अदिति द्वारा भगवान सूर्य के 12 अवतार में इंद्र , धता ,पर्जन्य , त्वष्ठा , पूषा, अर्यमा , भग ,विवस्वान , विष्णु , अंशुमान , वरुण  और मित्र हुए है । भगवान इंद्र आदित्य की मूर्ति देवराज इंद्र , धता आदित्य की मूर्ति प्रजापति , पर्जन्य आदित्य की मूर्ति बादलों , त्वष्टा की मूर्ति वनस्पति व औषधियों ,पूषा आदित्य की मूर्ति प्रसज जनों की पुष्टि करने में अर्यमा आदित्य की मूर्ति वायु, भानु आदित्य की मूर्ति देहधारियों में है । विवस्वान की मूर्ति  अग्नि में स्थित जीवों के खाए हुए अन्न को पचते है। विष्णु आदित्य की मूर्ति देव शत्रुओं का नाश करने वाले , समाज , धर्म रक्षक , अंशुमान आदित्य वायु , वरुण आदित्य जल् तथा मित्र आदित्य कु मूर्ति  सम्पूर्ण जगत का रक्षक है । ब्रह्मपुराण के अनुसार  मित्र आदित्य द्वारा जगत कल्याण के लिए सौरसम्प्रदाय और सूर्य उपासना और देवर्षि नारद जी को सूर्योपनिषद का मंत्र दिया गया था ।
वैदिक साहित्य , ऋगवेद , सतपथ ब्राह्मण , उत्तरवैदिक साहित्य ,रामायण , महाभारत , भविष्य , अग्नि , विष्णु , ब्रह्म , वायु  , सूर्य और मत्स्य पुरणों में भगवान सूर्य परंपराओं का विकास हुआ हसि । सूर्योपनिषद में भगवान सूर्य को भगवान ब्रह्मा , विष्णु और रुद्र का रूप मन है। एष ब्रह्मा च विष्णुश्च रुद्र एष हि भास्कर: ।।सूर्योपनिषद ।।शतपथ ब्राह्मण और पुरणों के अनुसार द्वादशादित्य में धातृ , मित्र ,आर्यमन , रुद्र , वरुण ,सूर्य ,भाग ,विवस्वान , सविता , त्वष्ठा ,और विष्णु का उल्लेख मिलता है । ईरानियों में भगवान सूर्य। के रूप में मित्र और आर्यमन की उपासना होती थी । गुप्त काल के पूर्व   सौर सम्प्रदाय के उपासक भगवान सूर्य को आदि देव मानते हसि ।  मुल्तान ,मथुरा ,कोणार्क कश्मीर ,उज्जैन ,गुजरात का मोढ़ेरा  , बिहार का गया के गयार्क , औरंगाबाद के देव स्थित देवार्क , पटना जिले के पंडारक स्थित पुण्यार्क , नालंदा का अंगयार्क , उल्यार्क़ , अरवल जिले के खतांगी का सूर्य मूर्ति ,उमगा पर्वत , बराबर पर्वत समूह का सूर्यान्क गिरि , काको का सूर्य , गया फल्गु नदी स्थित ब्रह्मीघाट में मध्याह्न सूर्य मूर्ति में भगवान सूर्य के साथ माता संध्या , रथचलक वरुण , सूर्यपुत्र यम और शनि के साथ है । यह स्थल  सूर्य उपासको का केंद्र था । गया में प्रातः काल मध्याह्न केयाल और सायंकाल की सूर्य मूर्ति है ।जहानबद जिले के दक्षणी में उत्तरायण और दक्षिणायन सूर्य ओरंगाबाद जिले के देव में प्रातः , मध्य एवं सायं काल का सूर्य मूर्ति की स्थापना राज एल द्वारा कराई गई थी । उत्तराखंड का चमोली जिले के जोशीमठ , झारखंड के रांची , मुजफ्फरपुर , दरभंगा , भोजपुर का बेलाउर मुंगेर मे भगवान सूर्य की प्राचीन मंदिर एवं मूर्तियां स्थापित है । मैत्रक राजवंश और पुष्यभूति राजवंश के राजा परम आदित्य भक्त के रूप में जाने जाते थे ।पांचाल के मित्र राजाओं के शासन में सूर्य  सिक्के प्रचलित थे । भजकी बौद्ध गुफा और जैन गुफा  में सूर्य की प्रतिमा , उड़ीसा के खंडगिरि के अनंतगुफ़ा में 2 री शती ई. , गंधार में  सूर्य मूर्ति स्थापित है। वृहदसंहिता एवं मत्स्य पुराण 260/  104 के अनुसार शकों शासक के द्वारा उदीच्यवेशमें रथारूढ़ सूर्य प्रतिमा स्थापित हुए थे । शाकद्वीप में उपास्यदेव  भगवान सूर्य है ।उत्तरदेश निवासी उदीच्य सूर्य अर्थात भगवान सूर्य की खड़ी के शरीर ढके , पैरों में बूट , कंधे पर जनेऊ पहने हुए  प्रतिमा की उपासना करते हैं ।बंगाल का राजशाही द्वारा निदायत पुर ,कुमारपुर , ईरान में दंडी और पिंगल के रूप में भगवान सूर्य की मूर्ति की उपासना करते हैं।
विश्व की मानव सभ्यता का साक्षी भगवान सूर्य की उपासना विभिन्न प्रकार से की जाती है । मित्तनी, हित्ती, मिस्र के राजाओं के लिए सूर्यपूजा का स्रोत भारत  था। ऋग्वेद की ऋचाओं में सूर्य के लिए लैटिन में ‘ सो ‘, ग्रीस में ‘हेलियोस’, मिस्र में ‘रा’ व ‘होरुस’  है। सिकंदर के अभियानों के बाद सीरिया , रोम एवं ईरानी  साम्राज्य में  मित्र (सूर्य) की उपासना होती थी । रोमन शासक मिथ्रादतेस्  धारण करते थे। मिश्र में  मित्र सूर्य  मंदिर बनाए गये थे। मिस्र में राजा मित्र देवता के प्रत्यक्ष रूप माने जाते थे। सूर्य देव को ‘ रे ‘स्थानों पर सृष्टिकर्ता  है। शाकद्वीप के मग  ब्राह्मणों द्वारा सौर सम्प्रदाय का सृजन कर भगवान सूर्य की उपासना और अर्घ्य की परंपरा कायम की हसि । सौर सम्प्रदाय के उपासक लाल वस्त्र धरि , ललाट पर रक्तचंदन , लाल पुष्प की माला और लाल जनेऊ धारक रहते है । सनातन धर्म का सौर सम्प्रदाय द्वारा प्रत्येक मास का शुक्लपक्ष सप्तमी और रविवर तथा कार्तिक और चैत्र  शुक्ल पक्ष के षष्टी एवं सप्तमी भगवान सूर्य को समर्पित किया गया है । ऋषियों में भारद्वाज , अगस्त , अत्रि , वशिष्ट , राजाओं में प्रियव्रत , वैवस्वतमनु , सूर्यवंशी , चंद्रवंशी आदि राजाओं द्वारा भगवान सूर्य की उपासना करते थे । सतयुग ,त्रेता ,द्वापर में विभिन्न राजाओं ने सौर सम्प्रदाय का आदित्य हृदय का पथ कर भगवान सूर्य की उपासना की है । 
 कुषाण काल में सूर्य की मूर्तियां मथुरा के संग्रहालय में सूर्य मूर्ति की  बनावट और साज-सज्जा पूर्णत: मध्य-एशियाई है। कालिदास ने ‘रघुवंशम’ में सूर्य की उपस्थापन का  सूर्य के सात अश्वों का उल्लेख है। गुप्त सम्राट कुमार गुप्त के शासनकाल में रेशम बुनकरों के संघ ने मंदसौर के निकट दशपुर में सूर्यमंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। हूण शासक तोरमाण और मिहिरकुल सूर्य की पूजा करते थे। थानेश्वर के राज्यवर्धन, आदित्यवर्धन, प्रभाकरवर्धन  शासक सूर्योपासक थे। इतिहास के पन्नो एवं अलबिरुद्दीन के अनुसार   मुल्तान के सूर्य मंदिर का उल्लेख में वर्णन किया है कि  मुल्तान में , “सूर्य की  सबसे प्रसिद्ध मूर्ति को  आदित्य कहलाती थी। मुल्तान की सूर्यमूर्ति  कृतयुग में बनी थी।’ मुल्तान के सूर्य मंदिर का उल्लेख स्कन्दपुराण में  है। 13 वीं सदी में निर्मित उड़ीसा का कोर्णाक सूर्य मंदिर अत्यंत भव्य और विशाल है। सौर सम्प्रदाय के सूर्य उपासक समुदाय के अनुयायी मस्तक पर लाल चंदन की सूर्य आकृति बनाते  और लाल पुष्पों की माला पहनते तथा लालवस्त्र धारक है । ताेनातिहू, वह जिसकी काया सेे प्रकाश बिखर रहा है और जो सभी आजटेक लोगों (मध्य अमेरीकी देशों के मूल निवासीआजटेक का प्रधान देव  टोनातिहु के उपासक  और मध्य अमेरिका के लोगों के सूर्य हैं। अमेरीकी गाथाओं में  सूर्य देव उपासना प्रमुख है । आजटेक लोगों ने अपने प्राणों की बलि देकर सूर्यदेव को प्रसन्न किया, उसके बाद सूर्य ब्रह्मांड में अवतरित हुए। सूर्य का पांचवां रूप टोनातिहु  है । वैज्ञानिक रूप से यह समुदाय सूर्य अथवा तारों की उत्पत्ति और विनाश की बात करता है। ऋग्वैदिक युग में  ऋग्वैदिक नाम ‘सविता’ भी है। ऋग्वैदिक काल में वे जगत के चराचर जीवों की आत्मा हैं। वे सात घोड़े के रथ पर सवार रहते हैं और जगत को प्रकाशित करते हैं। वे प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ रूप हैं। कालांतर में देशभर में उनकी पूजा प्रारंभ हुई। कुषाण काल में सूर्य की मूर्तियां भी बननी शुरू हो गईं। कालिदास ने ‘रघुवंशम’ में सूर्य की उपस्थापन का वर्णन किया है। उन्होंने सूर्य के सात अश्वों का उल्लेख किया है। गुप्त सम्राट कुमार गुप्त के शासनकाल में रेशम बुनकरों के संघ ने मंदसौर के निकट दशपुर में एक सूर्यमंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। हूण शासक तोरमाण और मिहिरकुल सूर्य की पूजा करते थे। थानेश्वर के राज्यवर्धन, आदित्यवर्धन, प्रभाकरवर्धन  शासक सूर्योपासक थे। चैत्र मास में विष्णु आदित्य ,वैशाख में अर्यमा आदित्य ,जेष्ठ में विवस्वान ,आषाढ़ में अंशुमान ,श्रवण में पर्जन्य ,भाद्रपद में वरुण ,आश्विन में इंद्र आदित्य ,कार्तिक में धता आदित्य , अगहन में मित्र आदित्य  पौष में पूषा आदित्य , माघ में भग और फाल्गुन मास में त्वष्ठा आदित्य के रूप में भगवान सूर्य तपते है ।
सूर्य उपासना केंद्र स्थल पर विभिन्न युगों के राजाओं द्वारा सूर्य मूर्ति की स्थापना , सूर्यमंदिर एवं तलाव का निर्माण कराया गया । बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड के देव स्थित त्रेतायुगीन राजा एल द्वारा  पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर , उमगा , सीतामढ़ी के पुनौरा , पटना जिले के पालीगंज अनुमंडल का उलार सूर्यमंदिर ,सहरसा जिले का महिषी प्रखंड के कन्दाहा सूर्यमंदिर ,नालंदा जिले का बड़ागाँव एवं सूरजपुर सूर्यमंदिर ,नवादा जिले का नादरगंज प्रखंड के हड़िया  सूर्यमंदिर ,रोहतास जिले का सझौली प्रखंड के उदयपुर सूर्यमंदिर , झारखंड राज्य का इडलहतु, गिरिडीह जिले का मीरगंज स्थित जगन्नाथडीह , बोकारो ,बुंडू , 7 वीं सदी ई. में निर्मित सिमडेगा का विरुगढ़ में  भगवान सूर्य मूर्ति एवं सूर्यमंदिर निर्मित है । जरमुंडी प्रखंड के केशरी ,सिदगोड़ा  , टंडवा के बड़कागाँव  में प्राचीन सूर्य मूर्ति है बंगाल राज्य का पुरुलिया ,गुप्तिपडा ,रानीगंज के अलावा कटारमल ,रणकपुर ,प्रतापगढ़ ,महोबा ,रहली , झाड़वाड ,गुजरात का मोढ़ेरा ,तमिलनाडु का सूर्यनार ,कश्मीर का मार्तण्ड , ओडिसा का कोणार्क , वाराणसी के लोलार्क सूर्यमंदिर सूर्योपासना का स्थल है । बादायुनी के अनुसार बीरबर के प्रेरणा से मुगल बादशाह अकबर द्वारा दीन -ए -इलाही धर्म के देवता भगवान सूर्य  की स्थापना 1582 ई. में की गई थी । दीन ए इलाही के तहत भगवान सूर्य और अग्नि की उपासना और प्रत्येक रविवार को सूर्योपासना के लिए अवकाश घोषित किया गया था । पारसी धर्म के संस्थापक जरयुष्ट्र द्वारा 1700 ई. पूर्व जोरोएस्त्रिनिज्म पारस का स्थापित किया गया था । पारसी ग्रंथ जंद अवेस्ता के अनुसार 650 ई. पु. इराकी की स्थापना के बाद ईरान हुआ था । सूर्य और अग्नि उपासक पारसी धर्म के संस्थापक जरथुष्ट्र द्वारा अवेस्तन भाषा में अहुरा मजदा व होर मजद अर्थात अग्नि और रूपेंता अमेशा अर्थात सूर्य उपासना के लिए आतिषबेहराम अर्थात सूर्यमंदिर की स्थापना की गई थी ।आर्मेनिया ,रोम ,ग्रीक ,मिश्र  में मित्र आदित्य की उपासना अपोलो के रूप में कई जाती थी ।आस्ट्रेलिया ,फ्रांस ,इंग्लैंड , इटली ,पोलैंड ,जापान ,यूरोप , लंदन में सूर्योपासना का केंद्र 307 ई. तक विकसित था । 4 थीं सदी ई. पूर्व  आर्मेनियन लोग प्रत्येक रविवार को सूर्योपासना करते थे ।





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें