वैदिक पंचांग एवं शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास में दीप प्रज्वलित करने का महत्व है। कार्तिक मास भगवान विष्णु , कार्तिकेय का मास है । कार्तिक में देवालयों , गोशाला , पीपल , बरगद , आंवला वृक्ष , तुलसी के पौधे , नदी के किनारे ,सड़क , जलासय ,चौराहे , ब्राह्मण के घर या अपने घर में दीप प्रज्वलित कर सर्वागीण फल की प्राप्ति किया जाता है। अग्निपुराण अध्याय 200 वे के अनुसार देवद्विजातिकगृहे दीपदोऽब्दं स सर्वभाक् ।। अर्थात जो मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है। पद्मपुराण के अनुसार मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है। देवालय में, नदी के किनारे, सड़क पर दीप देता है, उसे सर्वतोमुखी लक्ष्मी प्राप्त होती है। कार्तिक में प्रतिदिन दो दीपक जरूर जलाएं। एक श्रीहरि नारायण के समक्ष तथा दूसरा शिवलिंग के समक्ष । पद्मपुराण के अनुसार तेनेष्टं क्रतुभिः सर्वैः कृतं तीर्थावगाहनम्। दीपदानं कृतं येन कार्तिके केशवाग्रतः।। जिसने कार्तिक में भगवान् केशव के समक्ष दीपदान किया है, उसने सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया और समस्त तीर्थों में गोता लगा लिया।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख है की जो कार्तिक में श्रीहरि को घी का दीप देता है, वह जितने पल दीपक जलता है, उतने वर्षों तक हरिधाम में आनन्द भोगता है। फिर अपनी योनि में आकर विष्णुभक्ति पाता है; महाधनवान नेत्र की ज्योति से युक्त तथा दीप्तिमान होता है। स्कन्दपुराण माहेश्वरखण्ड-केदारखण्ड के अनुसारये दीपमालां कुर्वंति कार्तिक्यां श्रद्धयान्विताः॥ यावत्कालं प्रज्वलंति दीपास्ते लिंगमग्रतः॥ तावद्युगसहस्राणि दाता स्वर्गे महीयते॥ जो कार्तिक मास की रात्रि में श्रद्धापूर्वक शिवजी के समीप दीपमाला समर्पित करता है, उसके चढ़ाये गए वे दीप शिवलिंग के सामने जितने समय तक जलते हैं, उतने हजार युगों तक दाता स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। लिंगपुराण के अनुसार कार्तिके मासि यो दद्याद्धृतदीपं शिवाग्रतः।। संपूज्यमानं वा पश्येद्विधिना परमेश्वरम्।। अर्थात जो कार्तिक महिने में शिवजी के सामने घृत का दीपक समर्पित करता है अथवा विधान के साथ पूजित होते हुए परमेश्वर का दर्शन श्रद्धापूर्वक करता है, वह ब्रह्मलोक को जाता है।यो दद्याद्धृतदीपं च सकृल्लिंगस्य चाग्रतः।। स तां गतिमवाप्नोति स्वाश्रमैर्दुर्लभां रिथराम्।। अतएव जो शिव के समक्ष एक बार भी घृत का दीपक अर्पित करता है, वह वर्णाश्रमी लोगों के लिये दुर्लभ स्थिर गति प्राप्त करता है। आयसं ताम्रजं वापि रौप्यं सौवर्णिकं तथा।। शिवाय दीपं यो दद्याद्विधिना वापि भक्तितः।। सूर्यायुतसमैः श्लक्ष्णैर्यानैः शिवपुरं व्रजेत्।। जो विधान के अनुसार भक्तिपूर्वक लोहे, ताँबे, चाँदी अथवा सोने का बना हुआ दीपक शिव को समर्पित है, वह दस हजार सूर्यों के सामान देदीप्यमान विमानों से शिवलोक को जाता है।
मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में एक वर्ष दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है। कार्तिक में दीपदान करने वाला स्वर्गलोक को प्राप्त होता है। दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही। दीपदान से आयु और नेत्रज्योति की प्राप्ति होती है। दीपदान से धन और पुत्रादि की प्राप्ति होती है। दीपदान करने वाला सौभाग्ययुक्त होकर स्वर्गलोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है। एकादशी को दीपदान करने वाला स्वर्गलोक में विमान पर आरूढ़ होकर प्रमुदित होता है। मिट्टी, ताँबा, चाँदी, पीतल अथवा सोने के दीपक को अच्छे से साफ़ कर लें। मिटटी के दीपक को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगो कर सुखा लें। उसके पश्च्यात प्रदोषकाल में अथवा सूर्यास्त के बाद उचित समय मिलने पर दीपक, तेल, गाय घी, बत्ती, चावल अथवा गेहूँ लेकर मंदिर जाएँ। घी में रुई की बत्ती तथा तेल के दीपक में लाल धागे या कलावा की बत्ती इस्तेमाल कर सकते हैं। दीपक रखने से पहले उसको चावल अथवा गेहूं अथवा सप्तधान्य का आसन दें। दीपक को भूल कर भी सीधा पृथ्वी पर नही रखना चाहिए । कालिका पुराण में उल्लेख किया गया है कि दातव्यो न तु भूमौ कदाचन।* *सर्वसहा वसुमती सहते न त्विदं द्वयम्।। अकार्यपादघातं च दीपतापं तथैव च। तस्माद् यथा तु पृथ्वी तापं नाप्नोति वै तथा।। अर्थात सब कुछ सहने वाली पृथ्वी को अकारण किया गया पदाघात और दीपक का ताप सहन नही होता । उसके बाद एक तेल का दीपक शिवलिंग के समक्ष रखें और दूसरा गाय के घी का दीपक श्रीहरि नारायण के समक्ष रखें। दीपक मंत्र पढ़ते हुए दोनों दीप प्रज्वलित करें। दीपक को प्रणाम करें। दारिद्रदहन शिवस्तोत्र तथा गजेन्द्रमोक्ष का पाठ करना चाहिए ।
स्कन्द पुराण में श्री हरि को समस्त देवताओं और बद्रीनारायण को तीर्थों और कार्तिक मास श्रेष्ठ माना है। कार्तिक मास में जलाशय में स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है। स्कन्द , नारद ,पद्म पुरणों के अनुसार 'न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्। न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगा समम्।।' अर्थात कार्तिक के समान कोई अन्य मास श्रेष्ठ नहीं, सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। स्कन्द पुराण में कार्तिक को समस्त महीनों में, श्री हरि को समस्त देवताओं में और बद्रीनारायण को सभी तीर्थों में श्रेष्ठ माना है। शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास में मनुष्य की उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नाति, ईशकृपा आदि कामनाओं की पूर्ति सहज ही हो जाती है। कार्तिक मास का एक नाम शास्त्रों में दामोदर मास मिलता है। कार्तिक मास में भगवान विष्णु की आराधना और मंगलगान से उनकी कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि जो फल कुंभ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से मिलता है। पुराणों के अनुसार व्यक्ति कार्तिक मास में स्नान, दान तथा व्रत इत्यादि करने से विष्णु की परमकृपा का भागी बनता है। कार्तिक में पूरे माह ब्रह्ममुहूर्त में किसी नदी, तालाब, नहर या पोखर में स्नान कर भगवान की पूजा किए जाने का विधान है। इस मास में नदी के जल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति बताई गई है। कार्तिक मास के स्नान का धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक है।कार्तिक मास में सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी तक आने से वातावरण स्वास्थ्य के अनुकूल होता है। प्रात:काल नदी , जलासय में अथवा स्नान करने से ताजी हवा से शरीर में स्फूर्ति का संचार से शारीरिक बीमारियां अपने आप ही समाप्त हो जाती है। प्रात:काल उठने से व्यक्ति ऊर्जायमान रहता है। आरोग्यता के लिए कार्तिक स्नान , प्रात: काल स्नान के पश्चात राधा-कृष्ण का तुलसी, पीपल, आंवले आदि से पूजन करना चाहिए। देवताओं की परिक्रमा कर सायंकाल में भी भगवान विष्णु की पूजा तथा तुलसी पूजा करना चाहिए।कार्तिक मास में दीप प्रज्ज्वलन भगवान शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिर में दीप प्रज्ज्वलित करने से अश्वमेघ यज्ञ करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में माता यशोदा ने भगवान कृष्ण को अपने प्रेम-बंधन में बांधा और भक्त भी श्रीकृष्ण को अपनी भक्ति प्रेम से प्रसन्ना करने का प्रयास करते हैं। कार्तिक माह में पहले पंद्रह दिन की रातें वर्ष की सबसे काली रातों में से होती हैं। लक्ष्मी पति के जागने के ठीक पूर्व के इन दिनों में दीप जलाने से जीवन का अंधकार छटता है। कार्तिक मास में तुलसी को पूजने का विशेष महत्व है। भगवान श्री हरि तुलसी के हृदय में शालिग्राम रूप में निवास करते हैं इसलिए तुलसी पूजनएवं तुलसी दल का प्रसाद ग्रहण करना श्रेष्ठ है। कार्तिक मास में मनुष्य को भूमि पर शयन करने पर विलासिता से मनुष्य को मुक्त कर विनम्र करता है।
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