सौरसम्प्रदाय की संस्कृत में भगवान सूर्य की उपासना का महत्व है । सिंध क्षेत्र के मध्य मुल्तान , उर्वर पंजाब , मरुभूमि बहबलपुर की सभ्यता के सृजक स्तिथ है । सिंध क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा सूर्य मंदिर था। सिंध सूर्य मंदिर के उपासक पख्त राजपुत्रों को पख्तून एवं पठान है । ने महाभारत युद्ध मे भी भाग लिया था। काबुल घाटी व अफगानी नांगरहार प्रान्त में स्तिथ जून व सूर्य के उपासकों की भूमि थी। जून से सन' शब्द का जन्म हुआ था । 'गुर्जर प्रतिहार राज्य का तुर्क शाही' और काबुल की हिन्दू शाही सल्तनत था । अरब के अफगानी व मुल्तान के सूर्य मन्दिरों को रौंदा मुल्तान पर अरबों का कब्जा हो गया सूर्य प्रतिमा में जड़े सुर्ख लाल रूबी लूट लिए हए सूर्य उपासक मुल्तान इत्यादि से बेदखल हो हिंदुस्तान में यहां वहां बसने लगे उनमे से कुछ सूर्य की वैद्यकीय (मेडिकल इम्पोर्टेंस) के जानकार थे उन्होंने इस परंपरा को बिहार में नन्हे पौधे की तरह रोप दिया जो आज वट वृक्ष (बरगद) बन गया हैं। अफगानी पठानों का सूरी राजवंश 'सूरी' था। सूर्य उपासकों के परिवार से मुस्लिम बने शेरशाह सूरी बिहार के सासाराम में तलाव के मध्य में दफ़न हैं। सूर्य उपासना अरबी वहशत में पंजाब से बिहार में स्थापित हो गयी । अरबों के साथ बसे कूर्द लोगों में सूर्य उपासना प्रथा विद्यमान हैं। सूर्य उपासना पर सम्राट जयपाल, सम्राट आनन्दपाल व समेत त्रिलोचनपाल के संघर्ष को काबुल गंधार मुल्तान में समृद्ध परम्पराओं के क्षत्रिय वीर वाहक थे। विश्व में सूर्य क्षेत्र है। भारत का ओड़िशा के कोणार्क, गुजरात का मोढेरा, उत्तर प्रदेश का थानेश्वर (स्थाण्वीश्वर), पाकिस्तान का मुल्तान (मूलस्थान) , सूर्य पूजा के वैदिक मन्त्र में कश्यप गोत्रीय कलिङ्ग देशोद्भव कहते हैं। मगध साम्राज्य में कीकट , मागध , अंग , कर्ण , निमि , बुध , इला , च्यवन , सुकन्या , शर्याति , करूष , गय , वसु , नाग प्रियब्रत , इंद्रदयुम्न , एल , जरासंध , सहदेव , साम्ब , भगवान राम , कृष्ण , चाणक्य , आर्यभट्ट , वराहमिहिर , शक , विक्रमादित्य आदि राजाओं द्वारा सूर्योपासना का विकास किया गया ।
जापान, मिस्र, पेरु के इंका राजा सूर्य वंशी थे। सूर्य को भारतीय ज्योतिष में इनः है। सोवियत रूस में 1987 ई.की खोज एवं 1930 का पंडित मधुसूदन ओझा की पुस्तक इन्द्रविजय के अनुसार अर्काइम प्राचीन सूर्य पीठ है । पण्डित चन्द्रशेखर उपाध्याय के लेख ’रूसी भाषा और भारत’1931 के अनुसार प्रायः ३००० रूसी शब्दों की सूची के तहत रूस में सूर्य पूजा के लिए ठेकुआ बनता था। एशिया-यूरोप सीमा पर हेलेसपौण्ट सूर्य पूजा का केन्द्र था। ग्रीक में सूर्य को हेलिओस है। प्राचीन विश्व क्षेत्र उज्जैन से ६-६ अंश अन्तर पर थे । विश्व की सीमाओं पर ३० स्थान पर पिरामिड आदि निर्मित हैं। भारत और विश्व में सूर्य के कई क्षेत्र है। बिहार में छठ पूजा मुंगेर-भागलपुर में स्थित अंग वंशीय , महाभारत काल में कर्ण सूर्य पूजक थे। औरंगाबाद जिले के देव में सूर्य मन्दिर है। महाराष्ट्र के देवगिरि की तरह औरंगाबाद जिले का देव है।अंग वंशीय मागध काल में गया प्राचीन काल में कर्क रेखा पर था सूर्य गति की उत्तर सीमा है। सौर मण्डल को पार करनेवाले आत्मा अंश के लिए गया श्राद्ध होता है। सौर मण्डल को पार करने वाले प्राण को गय कहा जाता है । गोपथ ब्राह्मण पूर्व 5/14 के अनुसार स यत् आह गयः असि-इति सोमं या एतत् आह, एष ह वै चन्द्रमा भूत्वा सर्वान् लोकान् गच्छति-तस्मात् गयस्य गयत्वम् । शतपथ ब्राह्मण 14 / 8/ 15 /7 और वृहदारण्यक उपनिषद 5/14/4 में उल्लेख में प्राणा वै गयः अर्थात गया और देव-दोनों प्रत्यक्ष देव सूर्य के मुख्य स्थान हैं । बिहार के पटना, मुंगेर तथा भागलपुर के नदी पत्तनों से समुद्री जहाज जाते थे। पटना नाम का पत्तन है ।ओड़िशा में कार्त्तिक-पूर्णिमा को बइत-बन्धान वहित्र - नाव, जलयान का उत्सव होता है जिसमें पारादीप पत्तन से अनुष्ठान रूप में जहाज चलते हैं। कार्त्तिक में सादा भोजन करने की परम्परा है । व्यक्ति दिन में एक बार भोजन करने के बाद समुद्र यात्रा के योग्य होते हैं। समुद्री यात्रा से पहले घाट तक सामान ढोने के लिए बहंगी हैं। ओड़िशा में बहंगा बाजार है। कार्त्तिक पूर्णिमा से ९ दिन पूर्व छठ होता है।
कार्त्तिक मास में कृत्तिका नक्षत्र आकाश में ६ तारों के समूह के रूप में दीखता है। कृतिका नक्षत्र अनन्त वृत्त की सतह पर विषुव तथा क्रान्ति वृत्त (पृथ्वी कक्षा) का कटान विन्दु है। जिस विन्दु पर क्रान्तिवृत्त विषुव से उत्तर की तरफ निकलने के कारण कृत्तिका (कैंची) कहते हैं। कृतिका की २ शाखा विपरीत विन्दु पर मिलती हैं, वह विशाखा नक्षत्र हुआ। आंख से या दूरदर्शक से देखने पर आकाश के पिण्डों की स्थिति स्थिर ताराओं की तुलना में दीखती है । ऋग्वेद 10 / 106 /8 के अनुसार पतरेव चर्चरा चन्द्र-निर्णिक् अर्थात पतरा में तिथि निर्णय चचरा में चन्द्र गति से होता है। नाले पर बांस के लट्ठों का पुल चचरा है, चलने पर वह चड़-चड़ आवाज करता है।
गणना के लिये विषुव-क्रान्ति वृत्तों के मिलन विन्दु से गोलीय त्रिभुज पूरा होने को गणना करते हैं। दोनों शून्य विन्दुओं में (तारा कृत्तिका-गोल वृत्त कृत्तिका) में जो अन्तर है वह अयन-अंश है। वैदिक रास-चक्र कृत्तिका से शुरु होता है। आकाश में पृथ्वी के अक्ष का चक्र २६,००० वर्ष का है। रास वर्ष का आरम्भ भी कार्त्तिक मास से होता है जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र में होने से रास-पूर्णिमा हैं। कार्त्तिक मास में समुद्री तूफान बन्द होने से कार्त्तिक पूर्णिमा से समुद्री यात्रा शुरु होने के कारण से ओड़िशा में बालि-यात्रा कहते हैं। कार्त्तिक मास से आरम्भ होने वाला विक्रम सम्वत् विक्रमादित्य द्वारा गुजरात के समुद्र तट सोमनाथ से शुरु हुआ था। पूर्वी भारत में बनारस तक गंगा नदी में जहाज चलते थे। बनारस से समुद्र तक जाने में ७-८ दिन लग जाने के तहत ९ दिन पूर्व छठ पर्व आरम्भ हो जाता है। यात्रा के पूर्व घाट पर रसद सामग्री ले जाते हैं। ओड़िशा में पूरे कार्त्तिक मास प्रतिदिन १ समय बिना मसाला के सादा भोजन करते हैं । समुद्री यात्रा के लिये अभ्यस्त करता है । बिहार में ३ दिन का उपवास बिना जल का करते हैं । सूर्य की स्थिति से अक्षांश, देशान्तर तथा दिशा ज्ञात की जाती है । गणित ज्योतिष में त्रिप्रश्नाधिकार कहा जाता है। विश्व में समय क्षेत्र की सीमा पर स्थित स्थान सूर्य क्षेत्र कहे जाते थे। लंदन के ग्रीनविच को शून्य देशान्तर मान कर उससे ३०-३० मिनट के अन्तर पर विश्व में ४८ समय-भाग हैं। उज्जैन से 6 - 6 अंश के अन्तर पर 60 भाग थे। क्षेत्रों के राजा अपने को सूर्यवंशी पेरू, मेक्सिको, मिस्र, इथिओपिया, जापान के राजा थे । उज्जैन का समय पृथ्वी का समय का देवता महा-काल हैं। रेखा पर पहले विषुव स्थान पर लंका के राजा को कुबेर (कु = पृथ्वी, बेर = समय कहते थे। भारत में उज्जैन रेखा के निकट स्थाण्वीश्वर (स्थाणु = स्थिर, ठूंठ) या थानेश्वर तथा कालप्रिय (कालपी) था । 6 अंश पूर्व कालहस्ती, 12 अंश पूर्व कोणार्क का सूर्य क्षेत्र समुद्र के भीतर कार्त्तिकेय द्वारा समुद्र में स्तम्भ बनाया गया था , 18 अंश पूर्व असम में राजा भसगदंत की राजधानी शोणितपुर , 24 अंश पूर्व मलयेसिया के पश्चिम लंकावी द्वीप, 42 अंश पूर्व जापान की पुरानी राजधानी क्योटो है। पश्चिम में 6 अंश पर मूलस्थान (मुल्तान), १२ अंश पर ब्रह्मा का पुष्कर (बुखारा-विष्णु पुराण २/८/२६), मिस्र का मुख्य पिरामिड 45 अंश पर, हेलेसपौण्ट (हेलियोस = सूर्य) या डार्डेनल 42 अंश पर, रुद्रेश (लौर्डेस-फ्र्ंस-स्विट्जरलैण्ड सीमा) 72 अंश पर, इंगलैण्ड की प्राचीन वेधशाला लंकाशायर का स्टोनहेञ्ज 78 अंश पश्चिम, पेरु के इंका (इन = सूर्य) राजाओं की राजधानी 150 अंश पर लंका या मेरु हैं। वाराणसी की लंका में सवाई जयसिंह ने वेधशाला बनाई थी। वेधशाला स्थान को लोलार्क कहा जाता था । पटना के पूर्व पुण्यार्क (पुनारख) के दक्षिण कर्क रेखा पर देव था। औरंगाबाद को देवगिरि कहते थे।
ज्योतिषीय शास्त्र , सूर्य सिद्धान्त और सूर्योपनिषद 13 / 1 में उल्लेख है कि किसी स्थान पर वेध करने के पहले सूर्य पूजा करनी चाहिये । मग ब्राह्मण आदित्यदास के द्वारा सूर्य पूजा के पश्चात वराहमिहिर का जन्म हुआ था। गायत्री मन्त्र सूर्य की उपासना है । प्रथम पाद उसका स्रष्टा रूप में वर्णन है-तत् सवितुः वरेण्यं। सविता = सव या प्रसव (जन्म) करने वाला। यह सविता सूर्य ही है, तत् (वह) सविता सूर्य का जन्मदाता ब्रह्माण्ड (गैलेक्सी) का भी जन्मदाता परब्रह्म है। गायत्री का द्वितीय पाद दृश्य ब्रह्म सूर्य के बारे में है-भर्गो देवस्य धीमहि। वही किरणों के सम्बन्ध द्वारा हमारी बुद्धि को भी नियन्त्रित करता है-धियो यो नः प्रचोदयात्। मग ब्राह्मण को शकद्वीपी हैं । बिहार , झारखंड , उड़ीसा , नेपाल , के वन में शाक वृक्ष अधिक है । शक सूर्य द्वारा काल गणना को शक सौर वर्ष पर आधारित है । किसी विन्दु दिनों की गणना शक (अहर्गण) है। चान्द्र मास का समन्वय करने पर पर्व का निर्णय होता है। सौर और चंद्र से समाज चलने पर सम्वत्सर हैं। अग्नि पूजकों को पारसी कहा गया है। ऋग्वेद तथा सामवेद के प्रथम मन्त्र अग्नि से हैं । अग्नि को अग्निं ईळे पुरोहितम्, अग्न आयाहि वीतये आदि , यजुर्वेद के आरम्भ में ईषे त्वा ऊर्हे त्वा वायवस्थः में अग्नि ऊर्जा की गति की चर्चा है। अंग वंशीय राजा पृथु के राजा होने पर सबसे पहले मगध के लोगों ने उनकी स्तुति की थी, अतः खुशामदी लोगों को मागध कहते हैं। मागध को बन्दी राज्य के अनुगत तथा सूत इतिहास परम्परा चलाने वाले हैं। राजा मागध द्वारा मगध साम्राज्य की स्थापना कर गया राजधानी बनाई थी । भविष्य पुराण में मग कहा है । मग के ज्योतिषी जेरुसलेम गये थे । मग की भविष्यवाणी के कारण ईसा को महापुरुष माना गया। ऋग्वेद 3 / 53/8 के अनुसार सूर्य से हमारी आत्मा का सम्बन्ध किरणों के मध्यम से 01मुहूर्त 48 मिनट) में 3 बार जा कर लौट आता है । 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी एक तरफ से, तीन लाख कि.मी. प्रति सेकण्द के हिसाब से आठ मिनट लगेंगे। शरीर के भीतर नाभि का चक्र सूर्य चक्र पाचन को नियन्त्रित करता है। स्वास्थ्य के लिये भी सूर्य पूजा की जाती है। सूर्य-नमस्कार हैं।षष्ठी को क्यों-मनुष्य जन्म के बाद छठे या 21 वें नक्षत्र चक्र के २७ दिनमें उलटे क्रम से बच्चे को सूतिका गृह से बाहर निकलने लायक मानते हैं। मनुष्य भी विश्व में 6 ठी कृति मानते हैं। विश्व के 5 पर्व हुये थे- स्वयम्भू पूर्ण विश्व , परमेष्ठी या ब्रह्माण्ड (गैलेक्सी), सौर मण्डल, चन्द्रमण्डल, पृथ्वी थे । कण रूप में भी मनुष्य 6 ठी रचना है-ऋषि रस्सी, स्ट्रिंग , मूल कण, कुण्डलिनी (परमाणु की नाभि), परमाणु, कोषिका कलिल = सेल के बाद 6 ठा मनुष्य है । स्वायम्भुव मनु , वैवस्वतमनु के मन्वंतर में सूर्योपासना एवं प्रकृति पूजन की प्रधानता हुई थी । सनातन धर्म मे सौर सम्प्रदाय में भगवान सूर्य को इष्ट देव कहा गया है । भगवान सूर्यदेव के 12 अवतारों को आदित्य कहा जाता है। सौरसम्प्रदाय के अनुयायी मग द्वारा विश्व में सूर्योपासना का केंद्र स्थापित किया गया था ।
बहुत गूढ़ जानकारी मिली l
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