पुराणों एवं संहिताओं के अनुसार गुवाहाटी का सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय का क्षेत्र नीलांचल पर्वतमाला के विभिन्न श्रंखलाओं में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे अवस्थित कामाख्या श्रंखला पर माता कामख्या मंदिर , तारा मंदिर , क्षिणमस्तिके , केदाररेश्वर मंदिर के गर्भगृह में भगवान केदाररेश्वर शिवलिंग , बगला श्रंखला पर माता बंगला , भुवनेश्वरी श्रंखला पर भुनेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में माता भुवनेश्वरी अवस्थित है । नीलाचल पहाडी के मध्य अवस्थित माता कामाख्या मंदिर में स्थित असम राज्यमाता कामाख्या को कामेश्वरी , इच्छा की शक्ति के रूप एवं शक्तिपीठ है। माता कामाख्या मंदिर में चट्टान के आकार के रूप में बनी योनि अर्थात माता सती के शरीर के अंग से रक्त का स्राव होता है । माता कामख्या का मंदिर को भूकंप द्वारा नष्ट होने के बाद माता कामख्या के भक्त राजा विश्व सिह के उत्तराधिकारी राजा श्रीमान कोच उर्फ नर नारायण श्री विष्णु ने सन 1556 ई. को मंदिर का निर्माण करवाने के लिये प्रजा को प्रेरित किया और कामख्या मंदिर का पुनर्निर्माणएवं रक्षा करने का दायित्व स्वंय लिया था। सन 1700 ई. में राजा अहोम ने मंदिर का निर्माण विभिन्न प्रकार के पत्थरों से मंदिर का निर्माण कराया था । कामख्या मंदिर के प्राचीन दिवालों पर शिलालेख एवं तांबे से बनी चादरे मंदिरों की दिवालों में लगी है। कामाख्या मंदिर की पुनर्निर्माण सन 1897 ई. में कोच बिहार के राजा द्वारा किया गया था । आदिनाथ शिवशंकर का विवाह माता सती से हुआ था। माता सती के विवाह से माता सती के पिता दक्ष प्रजापति बहुत क्रोधित हुये थे क्योंकि राजा दक्ष द्वारा भगवान शिव पसंद नहीं थे। दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन में भगवान शिव को आमंत्रित नही किया और अपनी पुत्री माता सती को नही बुलाया था । माता सती अपने पति की आज्ञा के पालन किये बिना अपने पिताजी के घर पहुंच गईं। वहां उनके पिता ने भगवान शिव को अपमान किया। जिस कारण माता सती भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर पायीं और अपने प्राण देकर अपने आप को अग्नि के हवाले कर आत्मदेह कर लिया। इसकी जानकारी भगवान महादेव को प्राप्त होने पर वे वहां पर पहुंचे और माता सती की देह लेकर बहुत ज्यादा क्रोधित हुऐ और तांडवनृत्य करने लगे। यह देखकर देवी देवता डर के मारे कापने लगे और भगवान भगवन विष्णु की शरण गये एवं उनसे यह वाक्य सुनाये की सृष्टि का नास हो जायेगा, प्रभु कुछ उपाये करे। तब उन्हें रोकने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती का देह के शरीर के 51 अंग काट दिये थे। जो धरती के विभिन्न स्थानों पर गिरे थे । जिससे माता सती की योनि व गर्भ जिस स्थान पर गिरा, वहीं पर माता कामाख्या मंदिर का निर्माण हुआ था। सती के यज्ञ में आत्मदाह के बाद शिवजी जब समाधि में चले गए, तब दैत्यराज तारकासुर ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की और उनसे असीम शक्तियां प्राप्त कर तीनों लोकों में अन्याय और अत्याचार मचाने लगा। देवता ब्रम्हाजी के पास गए उनसे तारकासुर से बचाने की प्रार्थना की थी ।, ब्रह्माजी ने कहा केवल शिव का पुत्र दैत्य राज तारकासुर का संहार कर सकता है। भगवान शिव नीलांचल पर्वत की उमानंद श्रंखला पर समाधी में लीन थे। शिवजी की समाधि भंग करने का काम कामदेव को सौंपा गया था । कामदेव ने शिवजी पर काम बाण चलाने शिवजी की समाधि भंग हुई,किंतु अचानक समाधि टूटने से शिवजी क्रोधित होकर तीसरी आँख खोल कर कामदेव को भस्म कर दिया था । कामदेव की पत्नी रति एवं अन्य देवी-देवताओं ने शिव से कामदेव को पुनः जीवित करने की प्रार्थना की थी । भगवान शिव ने कामदेव को जीवनदान दिया, लेकिन कामदेव का सुन्दर रूप वापस नहीं आया था । कामदेव एवं रति ने शिवजी से पुन: याचना की हे भोलेनाथ इस सौंदर्यहीन जीवन से तो अच्छा हम बिना शरीर के ही रहे। शिव ने कामदेव एवं रति की प्रार्थना स्वीकार की और कामदेव से शर्त रखी तुम्हें तुम्हारा पुराना रूप प्राप्त जायेगा। नीलांचल पर्वत पर सती के जनन अंग गिरा हैं, उस पर भव्य मंदिर का निर्माण करना होगा। कामदेव ने शिवजी की शर्त को पूर्ण करने के लिए नीलाचल पर्वत पर कामख्या मंदिर का निर्माण किया। कामख्या मंदिर कामरूप एव कामाख्या नाम से प्रसिद्द हुआ।माता कामाख्या मासिकचक्र चलता हैं । उस जल में पानी की जगह रक्त का रिसाव होता है । माता कामाख्या मंदिर जब तक माता रजस्वला होती हैं, तब मंदिर में प्रवेश वर्जित रहता है। मंदिर के कपाट बंद होने के पहले यहां सफेदसूती वस्त्र बिछाया जाता है और जब मंदिर के कपाट खुलते पर वस्त्र लाल रक्त से सनाहुआ रहता है। लाल कपड़े वस्त्र को अंबुबाची मेले में आये भक्तो को प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है। कामख्या मंदिर प्रांगण में योनि रूपी की समतल चट्टान है जिसकी आराधना व पूजा की जाती है। माता कामाख्या मंदिर के समीप सौभग्य कुंड है । मंदिर में भक्तो की मनोकामना पूरी हो जाने पर भक्तगण माता को पशुओं बलि देते है । मंदिर में मादा पशुओं की बलि नहीं दी जाती है। शक्तिपीठ माता कामाख्या मंदिर में माता कामख्या मंदिर दस अवतारो में माता भैरवी, माता धूमावती, माता मातंगी, माता कमला, माता काली, माता तारा, माता भुवने श्वरी, माता त्रिपुरा, माता सुंदरी, माता बगुला मुखी, माता छिन्नमस्ता का मंदिर है। भगवान शिव को समर्पित मंदिर में भगवान अघोरा, भगवान केदारेश्वर, भगवान अमरत्सोस्वरा भगवान कामेश्वर, भगवान सिद्धेश्वर मंदिर स्थित है।माता कामख्या का प्रसिद्ध अंबुबाची का मेला चार दिनों तक चलता है। माता कामाख्या के मासिक धर्म के कारण प्रसिद्ध है। आषाढ़ महीने के 7 वे दिन माता कामाख्या के मासिक धर्म शुरू होत है और जब माता के मासिक धर्म खत्म होने पर मेले आयोजन किया जाता है। कामख्या मंदिर की उचाई 1 किमी की है । माता कामाख्या देवी मंदिर में जब मेले का आयोजन किया जाता है । ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य स्थित नीलांचल पर्वत की उमानंद श्रंखला पर उमानंद का मंदिर है । उमानंद पहाड़ी को भस्मकुटा व भस्मकला कहा गया हैं। उमानंद मंदिर में भगवान महादेव जी को समर्पित है ।उमानंद मंदिर के गर्भगृह में भगवन महादेव व उमापावर्ती है। त्रेतायुग में ऋषि वशिष्ठ ने अपने अंतिम क्षण अर्थात मृत्यु के उपरांत अपना आश्रम बनाया हुआ था। जिन्होंने प्रभु श्रीराम को अपना शिष्य स्वीकार किया था। गुवाहाटी के दर्शनीय स्थलों में शामिल माता भुवनेस्वरी मंदिर गुवाहटी रेलवे स्टेशन से लगभग ऑठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर गुवाहटी की नीलाचल पहाड़ियों के कारण बहुत प्रचलित है। महाभारत ग्के अनुसार राजा पांडु का पांडु हिल्स टीला गुहावटी है। पांडु हिल्स टीला पर पांडव पुत्रों द्वारा गणेश जी आराधना की गयी थी । पांडव पुत्रों के अज्ञात वास के समय पांचों पण्डव ने गुहावटी के नीलांचल पर्वत के छुपने की शरण ली थी। गुहावटी में भगवान श्री हरि विष्णु, महादेव भगवान गौतम बुद्ध, एवं मुस्लिम सुफी संतो का स्थल गुवाहटी से लगभग 25 से 26 कि . मी. की दूरी पर अवस्थित हैं। कालिका पुराण के अनुसार गुवाहटी जिले का मुख्यालय गुवाहाटी से 12 किमि की दूरी एवं मेघालय सीमा बलटोला का संध्यांचल पर्वत से प्रवाहित होनेवाली कांता ,संध्या और ललीता नदी के संगम पर स्थित दक्ष प्रजापति की भार्या प्रसूति की पुत्री अरुंधति के पति ब्रह्मा के पुत्र ऋषि वशिष्ठ का मंदिर है । ऋषि वशिष्ठ। मंदिर एवं भगवान शिव को समर्पित शिवमंदिर के गर्भगृह में वशिष्टेश्वर शिवलिंग स्थापित है । अहोम राजा राजेश्वर सिन्हा द्वारा वशिष्ट मंदिर और शिव मंदिर का निर्माण 1751 ई.में कराया गया था । ऋषि वशिष्ठ ने संध्यांचल पर्वत की गुफा में भगवान शिव की उपासना करते हुए समाधि लिया था । वशिष्ट आश्रम में ऋषि वशिष्ठ की मूर्ति स्थापित है । नीलांचल पर्वत एवं ब्रह्मपुत्र नदी का भुवनेश्वरी श्रंखला पर 7 वीं शताब्दी में निर्मित भुवनेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में माता भुवनेश्वरी विराजमान है ।नीलांचल पर्वत का शुकेश्वर श्रंखला पर शुकलेश्वर मंदिर का निर्माण अहोम वंश का राजा स्वर्गदेव परमट सिंह द्वारा 17वीं शताब्दी एवं जनार्दन मंदिर का निर्माण ब्रह्मपुत्र नदी का शुकेश्वर घाट , कटनी पारा स्थित कामदेव श्रंखला पर कामदेव मंदिर तथा नवग्रह मंदिर अवस्थित है । साहित्यकार व इतिहासकार सत्येंद्र कुमार पाठक द्वारा 12 जुलाई 2023 , श्रावण कृष्ण दशमी बुधवार विक्रम संबत 2080 को साहित्यकार व इतिहासकार सत्येंद्र कुमार पाठक के साथ पी एन बी के सेवानिवृत्त पदाधिकारी सत्येंद्र कुमार मिश्र एवं गुवाहाटी के महेशनाथ गुवाहाटी परिभ्रमण में प्रमुख भूमिका निभाई। साहित्यकार व इतिहासकार सत्येंद्र कुमार पाठक को कामख्या में मां बगलामुखी के साधक आचार्य श्री माई महाराज द्वारा श्री बगलामुखी यंत्रम एवं गुवाहाटी के महेशनाथ ने अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया ।
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