बुधवार, जुलाई 26, 2023

यात्रा संस्मरण नीलांचल की वादियाँ...


नीलांचल  पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन ब्रह्मपुत्र नदी की  धरा असम राज्य का गुवाहाटी के कामख्या   में 9 जुलाई से 14 जुलाई 2023 तक असम की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें प्राप्त हुआ । . कामख्या  सांवैधानिक एवं पुरातन  दृष्टि से शक्तिपीठ  है ।  कामख्या  का प्रधान, निशान व विधान , रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा और उपासना स्थल मनमोहक है ।
 नीलांचल  की गोद में बसा गुवाहाटी और कामाख्या  अपनी प्राचीन संस्कृति के लिए जाना जाता है और अपनी प्राकृतिक सुन्दरता  के कारण  पर्यटकों की पसंदीदा जगह है । असम कृषि प्रधान राज्य  की मुख्य फसल धान व मक्का और चाय  है । 9 जुलाई 2023 को रात्रि 8:  .00 बजे जहानाबाद रेलवे स्टेशन रेलगाड़ी द्वारा पटना राजेन्द्र नगर टर्मिनल जक्शन 11 : 00 रात्रि पहुँचा था । राजेंद्र नगर टर्मिनल पटना रेलवे स्टेशन से  रात्रि 11: 15 बजे 13248 कामख्या कैपिटल एक्सप्रेस   रेलगाड़ी द्वारा फतुहा ,वख्तियापुर ,न्यू बरौनी ,खगड़िया ,मानसी ,काढ़ागोला , कटिहार ,बारसोई ,सिलीगुड़ी न्यूमाल होते हुए 953 किमि दूरी तय करते हुए  कामख्या रेलवेस्टेशन कामाख्या पर 10 जुलाई 2023 को  रात्रि  10 : 30 बजे मैं  कामख्या रेलवेस्टेशन पंहुंच गया था । असम की वादियों में चाय बागान एवं कसैली के वृक्ष देखने मे अच्छा लगा । मेरे साथ पंजाब नेशनल बैंक के सेवानिवृत्त पदाधिकारी सत्येंद्र कुमार मिश्र थे ।   हम लोग रात्रि 11 बजे कामख्या रेलवेस्टेशन के रेस्टोरेंट में पहुंच कर खाना खाया बाद में कामख्या रेलवेस्टेशन का  यात्री ठहराव के लिए होटल में जगह नहीं रहने के कारण स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर रातें गुजारनी पड़ी थी । कामाख्या स्टेशन से 11 जुलाई 2023 को  4 : 50 सुबह स्टेशन परिसर  से  6 किमि दूरी तय करने के लिए चार पहिया वाहन के माध्यम से कामख्या पहुँच गया था । कामाख्या के बंगला रोड का काका होटल में एक हजार रुपए प्रतिदिन की दर से हम सबके ठहरने के लिए व्यवस्था की गयी थी ।  होटल के कमरे में सामान रखकर सभी ने लगभग सुबह 7 .00 बजे स्नान ध्यान किया । गुवाहाटी के मेरे मित्र  महेशनाथ द्वारा  कामख्या मंदिर से मोबाइल द्वारा खबर दिया गया कि महेशनाथ इंतजार कर रहे हैं । मै और मिश्र जी  के साथ 11 जुलाई को  कामख्या माता के दर्शन एवं मंदिर के बाहर बाजार की रौनक देखने निकल गया । दूकान में कामख्या माता  की  चुनरी , धूपबत्ती , नारियल , अन्य पूजा सामग्री  लिया । दुकानदार एवं कामख्या के निवासी  हिंदी अच्छी तरह समझते  तथा बोलते   है । कामख्या निवासी असमिया और बांग्ला भाषा का प्रयोग करते है । हम मिश्र जी और महेशनाथ 8 बजे समय पर कामख्या मंदिर के कई सीढियां पार करते हुए नारियल फोड़ा , धूपबत्ती जलाया ,  कामख्या मंदिर के गर्भगृह में पहुँच कर माता का दर्शन किया । माता का दर्शन करने के पश्चात कामख्या मंदिर की परिक्रमा करने के बाद बलि स्थल , बाजरंगबली , यज्ञकुंड , माता तारा , माता छिन्नमस्ता का दर्शन किया । मंदिर परिसर में माता कामख्या को अर्पित कबूतर , बकरी एवं खस्सी , बकरे पर नजर पड़े थे । कामख्या मंदिर परिसर में मैं , मिश्र जी और महेशनाथ द्वारा मिश्र द्वारा लिखित दुर्गासप्तशती का पद्यानुवाद का लोकार्पण किया गया था । 11 जुलाई को 2 बजे भोजनालय में तीनों मिलकर खाना खाने के बाद अपने विश्राम स्थल पर आ गया था । होटल में विश्राम करने के बाद संध्या 6 बजे माता कामख्या का दर्शन एवं भोजनालय में भोजन कर 9 बजे रात्रि में होटल आए रात्रि में विश्राम किया । माता कामख्या का 12 जुलाई को 8 बजे सुबह में   कामाख्या स्थित कामेश्वर मंदिर  के गर्भगृह में स्थापित बाबा कमेश्वरनाथ का दर्शन कर माता कामख्या   दर्शन कर की पूरी परिक्रमा की । मैं और मिश्र जी  ने घूम-घूम कर अपने अपने मोबाइल में इस दृश्य को कैद किया ।  कामख्या की  सड़कों पर घूमते हुये जगह जगह हमें  मंदिर एवं कई तरह के रुद्राक्ष , कसैली फल , काली हल्दी , मृगमरीचिका , दुकानें देखने का अवसर मिला था । सड़के साफ स्तर थे । 12 जुलाई को बगलामुखी मंदिर , भुवनेश्वरी मंदिर , उमानंद मंदिर , भैरवी मंदिर के दर्शन का कार्यक्रम बना था । मिश्र जी का एकादशी होने के कारण  उपवास था । मैं , मिश्र जी एवं महेशनाथ   सुबह 10:30 बजे  बस द्वारा उमानाथ मंदिर के लिए रवाना हुए । ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य स्थित  उमानंद मंदिर  जाने का यातायात साधन जहाज था । ब्रह्मपुत्र नदी में जल का तीब्र बहाव के कारण जहाज मार्ग  अवरुद्ध था । रोपवे द्वारा उमानंद मंदिर का दर्शन किया । लेकिन वहां पहुंचने में हमें दो   घंटे लग गये. रास्ते भर हरे-भरे पेड़ पौधों से घिरे पहाड़ियों को निहारते  रहे.  ऐसा लग रहा था मानो  पूरा कामख्या नीलांचल  पर्वत  में बसा है । नीलांचल  पर्वत की ऊंचाइयों में दूर-दूर तक एक एक, दो-दो घर दृष्टिगोचर हुये. पहाड़ी के बीच बीच में छोटे छोटे खेत बनाये गये है, 100-200 वर्ग फीट के  खेत दिखाई दिये. जहां जगह मिली लोगों ने थोड़ा  समतल कर खेत बना लिया  है । . वहां के किसान कहीं कहीं धान की कटाई कर रहे ,  कहीं धान की रोपाई . यानी धान की कटाई और रोपाई का काम साथ-साथ चल रहा था. कुछ खेतों में भुट्टे के पौधे  दिखाई दिये.  भुट्टे के पौधों की ऊंचाई 4-5 फीट की हो गई थी । पहाड़ी की ऊपरी सतह से निकलने वाले झरने के  पानी को छोटी-छोटी नालियां बनाकर खेतों में सिचाई की व्यवस्था  की गई  है ।   ब्रह्मपुत्र  नदी में अच्छा खासा पानी था ।  मैं , मिश्र जी एवं महेशनाथ ने बगलामुखी मंदिर के गर्भगृह में स्थित माता बगला गुफा , अन्य तंत्र साधना स्थल का दर्शन और वगुला को देखा । मिश्र जी ने थकावट महसूस करने के बाद वे विश्राम करने होटल चले गए थे । मैं और महेशनाथ ने नीलांचल पर्वत पर न8निर्मित प्राचीन शाक्त स्थल का परिभ्रमण के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी , भुवनेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में स्थित माता भुवनेश्वरी की उपासना और दर्शन किया । माता भुवनेश्वरी के दर्शन करने के बाद माता भैरवी मंदिर का दर्शन एवं भैरवी कुंड का दर्शन किया था । भैरवी कुंड में मछलियां , कछुए एवं बत्तक तैर रहे थे । दर्शनार्थी द्वारा भैरवी कुंड में स्थित मछलियों , कछुओं और बत्तकों को गुथे हुए आटे , चावल के दाने दे रहे थे । यहाँ अजीव जैसा लगा कि जिस किसी को दाना दिया जता उसे दूसरे जीव शामिल नही होते थे । भैरवी कुंड में रहने वाले जीव में आत्मसम्मान था । माता कामख्या मंदिर का परिक्रमा करने के बाद सौभाग्य कुंड का दर्शन एवं जल पिया ।  सौभाग्य कुंड के दर्शन करने के बाद सौभाग्य मंडप में विश्राम के दौरान चाय पिया । माता छिन्नमस्ता मंदिर परिसर में खिचड़ी और खीर का प्रसाद ग्रहण किया था ।  12 जुलाई को 6 बजे संध्या बस द्वारा  गुवाहाटी में भिन्न भिन्न स्थलों और हवाई अड्डे एवं महेशनाथ जी के घर पहुँचा । महेशनाथ जी का परिवार में उनकी पत्नी एवं पुत्री से बातें हुईं । मुझे उनके परिवार द्वारा अंगवस्त्र , कसैली का फल एवं पान के पत्तों द्वारा सम्मानित किया गया । वहाँ पर नास्ते एवं चाय पीने के बाद 9 बजे कामख्या विश्राम स्थल आ गए । साथ मे महेशनाथ जी थे । 13 जुलाई को तांत्रिक संत एवं मां बगलामुखी के साधक माई महाराज द्वारा मुझे बगलामुखी यंत्र दे कर सम्मानित किया तथा मिश्र जी द्वारा द्वयपायन पुस्तक महाराज जी को समर्पित किया गया । जीवन का अत्यंत   अदभूत छन था  जब हम नीलांचल  के सर्वोच्च शिखर एवं शाक्त सम्प्रदाय के विभिन्न स्थलों एवं ब्रह्मपुत्र नदी की यात्रा पूरी हो चुकी थी । , अब हमें सीधे आनंद विहार ट्रैन  पकड़ना था ।  कामख्या से  दोपहर  12 : 45  बजे पाटलिपुत्र  के लिए ट्रेन  थी । मै और मिश्र जी माता कामख्या का दर्शन कर बिना भोजन किये ट्रेन  में बैठ गए .।  13 जुलाई को कामख्या स्टेशन से 12 : 40 दोपहर में 12505 उत्तरपूर्व एक्सप्रेस द्वारा रंगिया ,बरपेटा ,न्यू बंगाईगाँव ,कोकराझार ,न्यू कोच बिहार ,न्यू जलपाईगुड़ी , , बारसोई होते हुए 14 जुलाई को 873 किमि दूरी तय करने के बाद सुबह 5 : 35 बजे पाटलिपुत्र जंक्शन पहुँचा । पाटलिपुत्र जंक्शन से तिनपहिया वहन से पटना जंक्शन आकर शताब्दी ट्रेन से सुबह 8 बजे जहानबाद पहुँचा था । नीलांचल पर्वत की वादियाँ , मंदिर एवं ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर बसे घर एवं ब्रह्मपुत्र नदी में में स्थित  पहाड़ियाँ मनमोहक लग रहा था ।



                         

                   


                        


                        

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