मंगलवार, जुलाई 11, 2023

कामख्या परिभ्रमण......


 भारत का सीमान्त राज्य असम सुरम्य पर्वतश्रेणियों से घिरा एवं  भारत की पूर्वोत्तर सीमा 24° 1' उ॰अ॰-27° 55' उ॰अ॰ तथा 89° 44' पू॰दे॰-96° 2' पू॰दे॰) पर क्षेत्रफल 78,466 वर्ग कि॰मी॰ पर अवस्थित  है।  असम राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम, मेघालय तथा त्रिपुरा एवं पश्चिम में पश्चिम बंगाल राज्य की सीमाओं से घिरा है। भारत का असम राज्य का दर्जा 26 जनवरी 1950 ई. को प्राप्त होने के बाद राजधानी दिसपुर 35 जिलों से युक्त विधान सभा (126 सीटें) , संसदीय क्षेत्र , राज्य सभा (7 सीटें) , लोक सभा (14 सीटें , गुवाहाटी उच्च न्यायालय क्षेत्रफल कुल 78,438 किमी2 (30,285 वर्गमील और समुद्र तल से ऊँचाई 45-1960 मी (148-6430 फीट) , जनसंख्या 2011 के अनुसार  3,11,69,272 है । असम की भाषा हिंदी , बांग्ला , बोडो , असमिया है । ब्रिटश साम्राज्य द्वारा प्रथम  बार 1 अप्रैल 1911 को असम प्रान्त  की स्थापना की गई है। असम के पर्यटन स्थलों में गुवाहाटी का नीलांचल पर्वत पर अवस्थित कामाख्या मन्दिर , आहोम राजा का महल करेंगर , शिवसागर का देवी डोल , राजाओं के मैदाम , रंग घर , तलातल घर ,कलिया भोमोरा सेतु , जोरहट का चन्द्रकान्ता हस्तकला भवन , डिब्रूगढ़ की  चाय बगान है । आसाम" संस्कृत के शब्द "अस्म " अथवा "असमा", जिसका अर्थ असमान  का अपभ्रंश है। 'असम' शब्‍द संस्‍कृत के 'असोमा' का अर्थ अनुपम अथवा अद्वितीय है। आस्ट्रिक, मंगोलियन, द्रविड़ और आर्य जातियाँ प्राचीन काल से असम  प्रदेश की पहाड़ियों और घाटियों में बसीं और  मिश्रित संस्‍कृति में योगदान कर  असम में संस्‍कृति और सभ्‍यता की समृ‍द्ध परम्परा कायम की है।सनातन एवं विभिन्न  ग्रन्थों में असम को प्रागज्युतिसपुर और महाभारत के अनुसार कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने  उषा नाम की युवती पर मोहित होकर उसका अपहरण कर लिया था। श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार उषा ने  सखी चित्रलेखाद्वारा अनिरुद्धको अपहरण करवाने के कारण  कुमार हरण स्थल कहा गया है। प्राचीन असम, कमरुप का राजा  वर्मन (350-650 ई॰) शाल्स्ताम्भस (655-900 ई॰) और कामरुप पाल (900-1100 ई॰). पुश्य वर्मन ने वर्मन राजवंश कि स्थापना की थी। भासकर वर्मन (600-650 ई॰) के शासनकाल में चीनी यात्री क्षुअन झांग क्षेत्र का दौरा किया और अपनी यात्रा दर्ज की थी । कामरुप पाल) के बाद, कामरुप परम्परा चन्द्र (1120-1185 ई॰) मैं और चन्द्र द्वितीय (1155-1255 ई॰) राजवंशों द्वारा 1255 ई॰ में विकशित किया था । सन् 1228 में बर्मा के एक ताई विजेता चाउ लुंग सिउ का फा ने पूर्वी असम पर अधिकार कर लिया। वह अहोम वंश का था जिसने अहोम वंश की सत्ता यहाँ कायम की। अहोम वंश का शासन 1829 पर्यन्त तब तक बना रहा जब तक कि अंग्रेजों ने यनदबु ट्रीटी के दौरान असम का शासन हासिल किया।
भू आकृति के अनुसार असम राज्य को  उत्तरी मैदान अथवा  ब्रह्मपुत्र नदी का  समतल मैदान को दो असमान भागों में विभक्त कर उत्तरी भाग हिमालय से आनेवाली लगभग समानान्तर नदियों, सुवंसिरी आदि, से  कट गया है। गौहाटी के समीप ब्रद्मपुत्र मेघालय चट्टानों का क्रम नदी के उत्तरी कगार पर दिखाई पड़ता है। बूढ़ी दिहिंग, धनसिरी तथा कपिली ने निकासवर्ती अपरदन की प्रक्रिया द्वारा मिकिर तथा रेग्मा पहाड़ियों को मेघालय की पहाड़ियों से लगभग अलग कर दिया है। सम्पूर्ण घाटी पूर्व में 30 मी॰ से पश्चिम में 130 मी॰ की ऊँचाई तक स्थित है जिसकी औसत ढाल 12 से॰मी॰ प्रति कि॰ मी॰  नदियों का मार्ग सर्पिल है। मिकिर तथा उत्तरी कछार का पहाड़ी क्षेत्र भौम्याकृति की दृष्टि से एक जटिल तथा कटा प्रदेश  और आसाम घाटी के दक्षिण में स्थित है। असम के दक्षिण कछार का मैदान अथवा सूरमा घाटी जलोढ़ अवसाद द्वारा निर्मित समतल उपजाऊ मैदान है । जो राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है । ब्रह्मपुत्र नदी (तिब्बत की सांगपी) पूर्व पश्चिम में प्रवाहित होती हुई धुबरी के निकट बंगलादेश में प्रविष्ट हो जाती है। प्रवाहक्षेत्र के कम ढलवाँ होने के कारण नदी शाखाओं में विभक्त हो जाती  तथा नदीस्थित द्वीपों का निर्माण कर  माजुली (129 वर्ग कि॰मी॰) विश्व का सबसे  नदी स्थित द्वीप है। वर्षाकाल में नदी का जलमार्ग कहीं कहीं 8 कि॰मी॰ चौड़ा होता है । तथा झील जैसा प्रतीत होता है। ब्रह्मपुत्र  नदी की 35 प्रमुख सहायक नदियाँ में सुवंसिरी, भरेली, धनसिरी, पगलडिया, मानस तथा संकाश आदि दाहिनी ओर से तथा लोहित, नवदिहिंग, बूढ़ी दिहिंग, दिसांग, कपिली, दिगारू आदि बाई ओर से मिलने वाली नदियाँ हैं।
भौमिकीय दृष्टि से आसाम राज्य में  प्राचीन दलाश्म तथा सुभाजा निर्मित मध्यवर्ती भूभाग मिकिर तथा उत्तरी कछार से लेकर तृतीय युग की जलोढ़ चट्टानें भी भूतल पर  हैं। प्राचीन चट्टानों की पर्त उत्तर की ओर  पतली तथा तृतीयक चट्टानों से ढकी हुई हैं। चट्टानें प्राय: हिमालय की तरह के भंजों से रहित हैं। उत्तर में  क्षैतिज  पर दक्षिण में इनका झुकाव  दक्षिण की ओर हो गया है। असम में भूकंप क्रमश: 1869, 1888, 1930, 1934 तथा 1950 में आया था । असम की भाषायें 2001 की जनगणना के अनुसार असमिया (48.8%) , बांग्ला (27.5%) ,बोडो (4.8%) , नेपाली (2.12%) ,हिन्दी (5.88%) , अन्य (11.8%) है । बंगाली बराक घाटी में असमिया प्राचीन कामरूप और मध्ययुगीन राज्यों में  कलिता, कामतापुर कछारी, सुतीया, बोरही, अहोम और कोच राज्यों में लोक भाषा  7वीं–8वीं है।  असम के जिलों में 1. तिनसुकिया 2. डिब्रूगढ़ 3. धेमाजी 4. चराईदेव 5. शिवसागर 6.लखीमपुर 7. माजुली 8. जोरहाट 9. विश्वनाथ 10. गोलाघाट 11. कार्बी आंगलोंग 12. शोणितपुर 13. नगाँव 14. होजाई 15. पश्चिम कार्बी आंगलोंग 16. डिमा हासाओ 17. काछाड़ 18. हाईलाकांदी 19. करीमगंज 20. मरिगाँव 21. उदलगुड़ी 22. दरंग 23. कामरूप महानगर 24. बक़सा 25. नलबाड़ी 26. कामरूप 27. बरपेटा 28. चिरांग 29. बंगाईगाँव 30. गोवालपारा 31. कोकराझार 32. धुबरी 33. दक्षिण सालमारा मनकाचर 34. बाजली 35. तामूलपुर असम में ३५ जनपद हैं । असमिया भाषा के अत्यन्त प्रसिद्ध कवि, नाटककार तथा वैष्णव समाजसुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रणेता शंकरदेव , गोपीनाथ बोरदोलोई - असम के प्रथम मुख्यमन्त्री ,कृष्णकान्त सन्दिकोइ - संस्कृत भाषा और साहित्य के प्रसिद्ध लेखक-विद्वान, गुवाहाटी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति ,ज्योतिप्रसाद आगरवाला - असम के प्रथम फिल्म निर्माता, कवि, गीतकार और नाटककार ,विष्णु प्रसाद राभा - कवि, चित्रकार, क्रान्तिकारी, "सैनिक कलाकार" और "कलागुरु" नामों से विभूषित ,भूपेन हाजरिका - पद्मभूषण, गायक, संगीतकार, गीतकार, फिल्मकार, कवि, समाजसेवी, दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित, भारत रत्न से सम्मानित ,वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रथम असमिया लेखक ,इंदिरा रायसम गोस्वामी (इंदिरा गोस्वामी) - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यापक है ।
 कामाख्या माता का मंदिर -  असम के गुवाहटी से 7 कि.मी. की दूरी पर स्थि​त नीलांचल पर्वत पर माता सती   की योनि का भाग गिरने के कारण कामख्या मंदिर का निर्माण हुआ था । कामख्या में अंबुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। मां कामाख्या रजस्वला रहने के कारण रजस्वला समाप्ति के बाद माता के स्नान और  पूजा के बाद अबुबाची मेला के बाद कामाख्या मंदिर के पट खोले जाते हैं । कामाख्या  मंदिर का निर्माण 8वीं और 9वीं शताब्दी के बीच किया गया था । मुगल शासक हुसैन शाह ने आक्रमण कर कामाख्या  मंदिर को नष्ट कर दिया था । राजा विश्वसिंह ने 1500 ई. में कामख्या मंदिर को पूजा स्थल के रूप में पुनर्जीवित किया एवं सन 1565 में राजा के पुत्र  ने कामख्या  मंदिर का पुन: निर्माण कराया था । माता कामाख्या तीन दिनों के लिए रजस्वला होने के  दौरान  अंबुबाची पर्व मनाया जाता है । अंबुबाच मेले के दौरान माता के मंदिर के कपाट खुद  बंद हो जाते हैं ।  ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल रहता है । चौथे दिन ब्रह्म मुहूर्त में माता को स्नान करवाकर शृंगार करने के पश्चात कामख्या मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं ।कामख्या मंदिर के गर्भगृह में माता के दर्शन  कुंड के रूप में होते हैं । कुंड फूलों से ढका जाता है । कुंड से निरंतर  जल स्राव  होता  रहता है । कामाख्या मंदिर को तंत्र और मंत्र  साधनाओं का स्थान  है। तीन दिनों में माता रानी रजस्वला होने पर  मंदिर में सफेद रंग का कपड़ा रखा जाता है । तीन दिनों बाद  कपड़े का रंग लाल हो जाता है । मेले के दौरान भक्त  को माता के दर्शन मे लाल कपड़ा प्रसाद के रूप में दिया जाता है.
उमानंद मंदिर -  गुवाहाटी के समीप  ब्रहमपुत्र नदी  के मध्य नीलांचल पर्वत की कामरूप  द्वीप श्रखला चोटी “उमानंद” मंदिर में अवस्थित गर्भगृह में स्वायंभुव भगवान उमानंद है । असम  का राजा अहोम  ने उमानंद  मंदिर का निर्माण 1664 ई. में  करवाया था ।  उत्तर प्रदेश के कन्नोज का ब्राह्मण  उमानंद मंदिर में  16 पुजारी मंदिर से  20 किलो मीटर दूर चान्ग्सारी में रहता है । उमानंद मंदिर तक पहुँचने के लिए  15 से 20 मिनट तक यात्रा बेहमपुत्र नदी में  नौका से तय करनी होती है । ब्रहमपुत्र के किनारे स्थित घाट से नौकाएं एवं जहाज  हैं।  टापू तक पहुँचने के बाद सीढियां चढ़ने के बाद  उमानंद मंदिर के परिसर में. पहाड़ी के पास नौका से उतरते प्रवेश द्वार  के दोनों ओर बैठे  नंदी और  परवेश द्वार से चोटी तक पहुँचने के लिए सीढियां बनी  हैं ।  सीढियां चढ़ने के उजले रंग का उमानंद मंदिर का प्रवेश द्वार से  मंदिर परिसर में पहुँचते है । मंदिर परिसर में झोंपड़ी नुमा गणेश मंदिर मिलता है  । उमानंद मंदिर परिसर में ब्रह्मा और विष्णु, ब्रह्मा और विष्णु विराजमान हैं।  द्वापर युग में गुवाहाटी को प्रागज्योतिष पुर  का ब्रहमपुत्र की पहाड़ी के उत्तर की ओर से बहता था. दाहनी ओर  सौदागर  के जानवर थे ।.  कामधेनु  दूध देने के लिए पहाड़ पर चली आती थी । सौदागर ने कामधेनु का पीछा किया तब देखा कि  बेल के पेड़ के नीचे दूध देती है । सौदागर ने उस स्थान की खुदाई करने के बाद  शिवलिंग दिखाई दिया. उसी रात सौदागर के सपने में भगवान शिव ने दर्शन देने के बाद  मंदिर निर्माण किया । निर्माण होने के पश्चात रात की  भूकंप से ब्रहमपुत्र का बहाव दो भाग में बंट जाने के  पहाड़ी ब्रहमपुत्र के बीचोबीच  टापू की शक्ल में रह गया था । जब नदी में पानी कम हुआ तब सौदागर वहां आया और पुनः मंदिर का निर्माण करवाने के बाद समय के साथ साथ मंदिर बनते रहे और टूटते रहे लेकिन फिर भी वहाँ उमानंद मंदिर है । उमानंद मंदिर का दर्शन  के लिए नौका , जहाज , स्टीमर से जाया जाता है वही रोपवे से आकाशी दर्शन भगवान उमानाथ का  होते है । दिनांक 11 जुलाई 2023 , श्रावण कृष्ण नवमी मंगलवार विक्रम संबत 2080 को साहित्यकार व इतिहासकार सत्येंद्र कुमार पाठक के साथ पी.एन.बी. के सेवानिवृत्त पदाधिकारी सत्येंद्र कुमार मिश्र एवं गौहाटी के महेशनाथ द्वारा  कामख्या परिभ्रमण में प्रमुख क्षेत्र का परिभ्रमण किया गया है ।







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