मंगलवार, जुलाई 04, 2023

आध्यत्मिक और ज्ञान का अधिकमास .....

 
भारतीय ज्योतिष और  धर्म ग्रंथो  में वर्णित अधिक मास का महत्वपूर्ण  उल्लेख किया गया है। प्रत्येक तीन वर्ष पर अधिकमास होते है जिसे मलमास और पुरूषोतम मास कहा गया है । अधिकमास भगवान विष्णु को समर्पित है । त्रेतायुग मे भगवान राम को मलमास के रुप में पुरूषोतम कहा गया है । अधिक मास या मलमास का उत्सव बिहार राज्य के अरवल जिला का कलेर प्रखण्ड के मदसरवॉ तथा नालंदा जिले का राजगीर बडे धुम धाम से मनाया जाता है। सौर वर्ष और चांद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चान्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक मास या अधिमास या मलमास कहते हैं। सौर-वर्ष का मान 365दिन,15  घड़ी, 22 पल और  57 विपल हैं। चंद्र वर्ष 354   दिन, 22 घड़ी, 01 पल और 23  विपल का होता है। इस प्रकार दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष 10  दिन, 53 घटी, 21 पल (अर्थात लगभग 19 दिन) का अन्तर पड़ता है। इस अन्तर में समानता लाने के लिए चांद्रवर्ष 12  मासों के स्थान पर 13 मास का हो जाता है। वास्तव में यह स्थिति स्वयं ही उत्त्पन्न हो जाती है, क्योंकि जिस चंद्रमास में सूर्य-संक्रांति नहीं पड़ती, उसी को "अधिक मास" की संज्ञा दी जाती है । जिस चंद्रमास में दो सूर्य संक्रांति का समावेश हो जाय, वह "क्षयमास" कहलाता है। क्षयमास केवल कार्तिक, मार्ग व पौस मासों में होता है। जिस वर्ष क्षय-मास पड़ता है, उसी वर्ष अधि-मास भी अवश्य पड़ता है परन्तु यह स्थिति १९ वर्षों या १४१ वर्षों के पश्चात् आती है।  विक्रमी संवत 2080  में क्षयमासों का आगमन हुआ है । श्रावण मास की कृष्ण प्रतिपदा विक्रम संबत 2080 , गुजराती संबत 2079 , शक संबत 1945  , दिनांक 03 जुलाई 2023 दिन सोमवार समय शाम 05 :  09 बजे से  प्रारंभ मलमास 19  वर्ष के  बाद पदार्पण हुआ है । श्रावण माह  में  अधिक मास अर्थात मलमास या पुरुषोत्तम मास प्रारंभ हो रहा है । 03 जुलाई 2023 समय 05 : 09 संध्या इंद्र योग से प्रारंभ से 16 अगस्त 2023  तक मलमास 8 सोमवार से युक्त रहेगा। 2023 का श्राद्ध पक्ष समाप्त होने के एक माह बाद नवरात्रि प्रारंभ होगी। पुराणों में अधिकमास यानी मलमास के पुरुषोत्तम मास बनने की बड़ी ही रोचक कथा है। दैत्याराज हिरण्यकश्यप ने अमर होने के लिए तप किया ब्रह्माजी प्रकट होकर वरदान मांगने का कहते हैं तो वह कहता है कि आपके बनाए किसी भी प्राणी से मेरी मृत्यु ना हो, न मनुष्य से और न पशु से। न दैत्य से और न देवताओं से। न भीतर मरूं, न बाहर मरूं। न दिन में न रात में। न आपके बनाए 12 माह में। न अस्त्र से मरूं और न शस्त्र से। न पृथ्‍वी पर न आकाश में। युद्ध में कोई भी मेरा सामना न करे सके। आपके बनाए हुए समस्त प्राणियों का मैं एकक्षत्र सम्राट हूं। तब ब्रह्माजी ने कहा- तथास्थु। फिर जब हिरण्यकश्यप के अत्याचार बढ़ गए और उसने कहा कि विष्णु का कोई भक्त धरती पर नहीं रहना चाहिए तब श्री‍हरि की माया से उसका पुत्र प्रहलाद ही भक्त हुआ और उसकी जान बचाने के लिए प्रभु ने सबसे पहले 12 माह को 13 माह में बदलकर अधिक मास बनाया। इसके बाद उन्होंने नृसिंह अवतार लेकर शाम के समय देहरी पर अपने नाखुनों से उसका वध कर दिया।. इसके बाद चूंकि हर चंद्रमास के हर मास के लिए एक देवता निर्धारित हैं परंतु इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई भी देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें और इसे भी पवित्र बनाएं तब भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मलमास के साथ पुरुषोत्तम मास भी बन गया। स्वामीविहीन होने के कारण अधिकमास को 'मलमास' कहने से उसकी बड़ी निंदा होने लगी। इस बात से दु:खी होकर मलमास श्रीहरि विष्णु के पास गया और उनको अपनी व्यथा-कथा सुनाई। तब श्रीहरि विष्णु उसे लेकर गोलोक पहुचें।. गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास की व्यथा जानकर उसे वरदान दिया- अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूं। इससे मेरे सभी दिव्य गुण तुम में समाविष्ट हो जाएंगे। मैं पुरुषोत्तम के नाम से विख्यात हूं और मैं तुम्हें अपना यही नाम दे रहा हूं। आज से तुम मलमास के बजाय पुरुषोत्तम मास के नाम से जाने जाओगे। इसीलिए प्रति तीसरे वर्ष में तुम्हारे आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ कुछ अच्छे कार्य करेगा, उसे कई गुना पुण्य मिलेगा। भगवान ने अनुपयोगी हो चुके अधिकमास को धर्म और कर्म के लिए उपयोगी बना दिया। अत: इस दुर्लभ पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान एवं दान करने वाले को कई पुण्य फल की प्राति होगी। अधिक मास व्रत पुरुषोत्तम महीना की कथा पुरुषोत्तम मास की श्रावण मलमास व अधिक मास पुरुषोत्तम मास सनातन पंचांग नवरात्रि 20 23 अधिकमास विष्णु भगवाननृःसिंह भगवान श्रीकृष्णदेवी देवता पूजा33 देवता है।अधिक मास की शुरुआत 03 जुलाई 2023 सोमवार श्रावण कृष्ण प्रतिपदा वर्षा ऋतु ,दक्षिणायण शाम 05: 09 बजे पूर्वाषाढ़ नक्षत्र ,इन्द्रयोग विक्रम संबत 2080  से होगी । अधिक मास में हनुमान जी  गंधमादन पर्वत पर  रहते हैं । त्रैतायुग में हनुमानजी और जाववंत जी को प्रभु श्रीराम ने चिरंजीवी रहने का वरदान दिया था । बारह महीनो के अलग-अलग स्वामी हैं पर स्वामीविहीन होने के कारण अधिकमास को 'मलमास' कहने से उसकी बड़ी निंदा होने लगी। इस बात से दु:खी होकर मलमास श्रीहरि विष्णु के पास गया और उनसे दुखड़ा रोया।
भक्तवत्सल श्रीहरि उसे लेकर गोलोक पहुँचे। वहाँ श्रीकृष्ण विराजमान थे। करुणासिंधु भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास की व्यथा जानकर उसे वरदान दिया- अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूँ। इससे मेरे सभी दिव्य गुण तुम में समाविष्ट हो जाएंगे। मैं पुरुषोत्तम के नाम से विख्यात हूँ और मैं तुम्हें अपना यही नाम दे रहा हूँ। आज से तुम मलमास के बजाय पुरुषोत्तम मास के नाम से जाने जाओगे। शास्त्रों के अनुसार हर तीसरे साल सर्वोत्तम यानी पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास के दौरान जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस मास में भागवत कथा, श्रीमद्भगवतगीता, श्रीराम कथा और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है। इस माह मे तुलसी अर्चना करने का विशेष महत्व बताया गया है।पुरुषोत्तम मास में कथा पढने, सुनने से भी बहुत लाभ प्राप्त होता है। इस मास में जमीन पर शयन, एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं। सूर्य की बारह संक्रांति के आधार पर ही वर्ष में 12 माह होते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष के बाद पुरुषोत्तम माह आता है।। सनातन पंचांग के अनुसार सारे तिथि-वार, योग-करण, नक्षत्र के अलावा सभी मास के कोई न कोई देवता स्वामी है, किंतु पुरुषोत्तम मास का कोई स्वामी न होने के कारण सभी मंगल कार्य, शुभ और पितृ कार्य वर्जित माने जाते हैं।पुराणे शास्त्रों में बताया गया है कि यह माह व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह आपके द्वारा दान दिया गया एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है। इसलिए अधिक मास के महत्व को ध्यान में रखकर इस माह दान-पुण्य देने का बहुत महत्व है। इस माह भागवत कथा, श्रीराम कथा श्रवण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। धार्मिक तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति और अनंत पुण्यों की प्राप्ति मिलती है।पुरुषोत्तम मास का अर्थ जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास कहलाता होता है। इनमें खास तौर पर सर्व मांगलिक कार्य वर्जित माने गए है, लेकिन यह माह धर्म-कर्म के कार्य करने में बहुत फलदायी है। इस मास में किए गए धार्मिक आयोजन पुण्य फलदायी होने के साथ ही ये आपको दूसरे माहों की अपेक्षा करोड़ गुना अधिक फल देने वाले माने गए हैं।  पुरुषोत्तम मास में दीपदान, वस्त्र एवं श्रीमद् भागवत कथा ,ग्रंथ दान का विशेष महत्व है। इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव में वृद्घि होने के साथ आपको पुण्य लाभ प्राप्त होता है ।
 नालंदा जिला का राजगीर पर्यटन के लिए बिहार में ही दुनिया भर में मशहूर है। प्रत्येक  लाखों की संख्या में पर्यटक जापान, श्रीलंका, चीन, थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनिशिया,नेपाल जैसे देशों से आते हैं। राजगीर पर्यटकों के लिए रमणनीय स्थल तो है ही। साथ ही इसकी अपनी धार्मिक महत्ता भी है। कहा जाता है कि मलमास मेला के दौरान हिन्दू धर्म के  तमाम 33 कोटि देवी-देवता यहां निवास करते है । धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि ऋषि मुनियों ने समय की गणना की और एक महीना अतिरिक्त निकला। ऐसे में सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष में संतुलन बैठाना मुश्किल हो रहा था। ऋषियों ने देवताओं से इस एक महीने का स्वामी बनने का आग्रह किया तो कोई भी बनने को तैयार नहीं हुए। जिसके बाद ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से इस अधिक मास का भार अपने ऊपर लेने का आग्रह किया। तो भगवान विष्णु ने इसे स्वीकार कर लिया और इसे पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा। राजगीर में  22 कुंडों और 52 जलधाराओं की उत्पति हुई है । वायु पुराण के मुताबिक भगवान ब्रह्मा के पौत्र राजा बसु ने इसी मलमास महीने के दौरान राजगीर में ‘वाजपेयी यज्ञ’ करवाया था। जिसमें सभी 33 कोटि देवी देवाओं को आने का न्योता दिया। इस दौरान काग महाराज को छोड़कर बाकी सभी देवी देवता वहां पधारे। यज्ञ में पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी। इस दौरान देवी देवताओं को एक ही कुंड में स्नान करने में परेशानी होने लगी। तभी ब्रह्मा जी ने राजगीर में 22 अग्निकुंडों के साथ 52 जल घाराओं का निर्माण कराया । बह्मा जी ने किन  22 कुंडों का निर्माण कराया गया जिसमें ब्रह्मकुंड, सप्तधारा, व्यास, अनंत, मार्केण्डेय, गंगा-यमुना, काशी, सूर्य, चन्द्रमा, सीता, राम-लक्ष्मण, गणेश, अहिल्या, नानक, मखदुम, सरस्वती, अग्निधारा, गोदावरी, वैतरणी, दुखहरनी, भरत और शालीग्राम कुंड। जिसमें ब्रह्मकुंड का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस रहता है। ब्रह्म कुण्ड में  सप्तकर्णी गुफाओं से पानी आता है। यहां वैभारगिरी पर्वत पर भेलवाडोव तालाब है, जिससे ही जल पर्वत से होते हुए यहां पहुंचता है। इस पर्वत में कई तरह के केमिकल्स जैसे सोडियम, गंधक, सल्फर हैं। इसकी वजह से पानी गर्म होता है। राजा वसु द्वारा राजगीर में बाजपेयी यग्य कराने के क्रम मे सभी  मनिषियों  का आमंत्रण दिया गया परन्तु  भूलवश काकभुसुण्डी को निमंत्रण नहीं दिया गया था । वायु पुराण के मुताबिक वाजपेयी यज्ञ में काग महाराज को छोड़कर बाकी सभी देवी देवता इसमें शरीक हुए थे। क्योंकि राजा बसु ने भूलवश काग महाराज को न्योता देना भूल गये थे। इसके कारण महायज्ञ में काग महाराज शामिल नहीं हुए। उसके बाद से मलमास मेले के दौरान राजगीर के आसपास काग महाराज कहीं दिखायी नहीं देते हैं।
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्। गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्। मंत्र का जप करते समय पीले वस्त्र धारण करने चाहिए, अत्यंत लाभ प्राप्त होता है। इसके साथ ही पूजा तथा हवन के साथ दान करना भी लाभकारी माना गया है। ऐतरेय ब्राह्रण के  मलमास के महीने में  शादी-ब्याह, गृहप्रवेश जैसे शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। वहीं, अग्नि पुराण के अनुसार मलमास  में मूर्ति पूजा–प्रतिष्ठा, यज्ञदान, व्रत, वेदपाठ, उपनयन, नामकरण आदि वर्जित है, लेकिन इस अवधि में राजगीर सर्वाधिक पवित्र माना जाता है । लेकिन इस दौरान राजगीर में सभी 33 कोटि देवी देवता मौजूद रहते हैं ऐसे में राजगीर में जाकर स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है । साथ ही चर्म रोग, कुष्ठ रोग जैसे व्याधियां भी नष्ठ हो जाती है । अरवल जिले के कलेर प्रखंड का मदसरवां मे वैवश्वत मनु के पुत्र राजा शर्याति और महर्षि च्यवन द्वारा अधिक मास के अवसर पर वाजपेयी यग्य किया गया था जिसमें 33 कोटि देव तथा देवी शामिल हए । भगवान शिव की स्थली के रूप में च्यवनेश्वर शिव लिंग की स्थापना की । राजा शर्याति ने हिरण्यबाहु ( सोनप्रदेश ) की राजधानी मदसरवां बनायी थी । वाजपेयी यग्य में सरोवर का निर्माण तथा यग्य महर्षि वधुश्रवा द्वारा संपन्न कराया गया था। यह सरोवर वधुसरोवर के नाम से ख्याति है। मध्य प्रदेश का रीवा जिले  के रीवा का स्थल प्राचीन काल से आध्यात्मिक केन्द्र रहा है । मलमास मे विंधय प्रदेश की राजधानी रीवा पवित्र माना गया है।विन्ध्याचल पर्वत की गोद में फैले हुए विंध्य प्रदेश के मध्य भाग में बसा हुआ रीवा शहर जो मधुर गान से मुग्ध तथा बादशाह अकबर के नवरत्न जैसे – तानसेन एवं बीरबल  विभूतियों की जन्मस्थली रही है। कलकल करती बीहर एवं बिछिया नदी के आंचल मेें बसा हुआ रीवा शहर बघेल वंश के शासकों की राजधानी के साथ-साथ विंध्य प्रदेश की भी राजधानी रही है। ऐतिहासिक प्रदेश रीवा विश्व जगत में सफेद शेरों की धरती के रूप में भी जाना जाता रहा है। रीवा शहर का  रेवा नदी के नाम पर पड़ा नर्मदा नदी का पौराणिक नाम कहलाता है। पुरातन काल से ही यह एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग रहा है।  कौशाबी, प्रयाग, बनारस, पाटलिपुत्र, इत्यादि को पश्चिमी और दक्षिणी भारत को जोड़ता रहा है। बघेल वंश के पूर्व गुप्तकाल कल्चुरि वंश, चन्देल एवं प्रतिहार का संजोये है। बिहार का नालंदा जिले के पांच पर्वतों से घिरा हुआ राजगीर के मैदानी क्षेत्रों में राजा वसु द्वारा यज्ञ किया गया था । यज्ञकर्ता राजा वसु ने पुरुषोत्तम मास में  33 कोटि के देवों को ब्रह्मेष्टि यज्ञ में शामिल होने के लिए आह्वान किया था । अरवल जिले का मधुश्रवा ऋषि द्वारा पुरुषोत्तम मास में हिरण्यबाह प्रदेश के राजा शर्याति , ऋषि च्यवन और सुकन्या के माध्यम से हिरन्यबाहु नदी के किनारे  ब्रह्मेष्टि यज्ञ एवं चयवनेश्वर शिव लिंग की स्थापना की गई थी । ऋषि च्यवन द्वारा अधिकमास व मलमास में रुद्रेष्ठी यज्ञ कर भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित कर 33 कोटि के देवों को आह्वान किया गया था । राजा शर्याति की कन्या और ऋषि च्यवन की भार्या सुकन्या के द्वारा वधूसरोवर का निर्माण किया गया था । 






सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार  33 कोटि  देवों में 12 आदित्य , 8 वसु , 11 रुद्र , इंद्र और ब्रह्मा जी है। विभिन्न शास्त्रों में 12 आदित्यों में   1.अंशुमान, 2.अर्यमन, 3.इन्द्र, 4.त्वष्टा, 5.धातु, 6.पर्जन्य, 7.पूषा, 8.भग, 9.मित्र, 10.वरुण, 11.विवस्वान और 12.विष्णु ,  8 वसु: में  1.आप, 2.ध्रुव, 3.सोम, 4.धर, 5.अनिल, 6.अनल, 7.प्रत्यूष और 8. प्रभाष। ,  11 रुद्र में 1.शम्भु, 2.पिनाकी, 3.गिरीश, 4.स्थाणु, 5.भर्ग, 6.भव, 7.सदाशिव, 8.शिव, 9.हर, 10.शर्व और 11.कपाली और अश्विनी कुमार: में 1.नासत्य और 2.द्स्त्र ( ब्रह्मा जी ) है।

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