सोमवार, नवंबर 02, 2020

मानवीय उत्थान का द्योतक कुल देवी और कुल देवता ...


मानवीय मूल्यों की आत्मा कुलदेवता और कुल देवी के रूप में अंगिकार किया गया है । इस संसार में अनेक सम्प्रदाय, धर्म में सौर धर्म, शाक्त धर्म, शैव धर्म, वैष्णव धर्म, ब्राह्मण धर्म, भागवत धर्म, बौद्ध धर्म, जैंन धर्म, सिख धर्म, यहूदी धर्म, ईसाई धर्म, यवन धर्म, ईस्लाम धर्म तथा अनेक सम्प्रदाय का उदय हुआ ज़िसमें कुलदेवता और कुल देवी की याद में व्यक्ति द्वारा अपने परिवार के साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए तत्पर रहते हैं । यहां की संस्कृति एवं सभ्यता का प्रादूर्भाव कुलदेवता और कुल देवी द्वारा ही संभव हो पाया है । भारतीय पौराणिक ग्रंथ पुराणों, उपनिषद, रामायण, महाभारत, गीता, रामायण, महाभारत, वेदों में कुल देव और देवी का स्थान सर्वोपरि है । व्यक्ति अपने परिवार के साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए भारतीय संस्कृति में प्रत्येक वर्ष आश्विन माह की कृष्ण पक्ष कुलदेवता और देवी को समर्पित किया है जिसमें पितृपक्ष में पितरों को तर्पण कर पिण्ड अर्पित कर याद करते हैं । व्यक्ति  के स्थानांतरित होकर कहीं और बस जाने के कारण अथवा संयुक्त परिवार के विघटन या अलग शहरों में रहने की परंपरा अथवा आधुनिकता की दौड़ में मूल संस्कार भूलने की परंपरा से बहुत अधिक लोगों और परिवारों को यह तक पता नहीं है की उनके कुलदेवता या कुलदेवी कौन हैं ,| इनकी कैसे पूजा होती है यह तो बाद की बात है |ऐसे में जब यह लोग समस्याओं में घिरते हैं ,पतन को प्राप्त होते हैं ,परिवार खराब होने लगता है तब खोज शुरू होती है कारण की और तब कुलदेवता /कुलदेवी की याद आती है जो उन्हें नहीं पता होता है |भारतीय परंपरा में कुलदेवता एक अहम् कड़ी होते हैं क्योंकि यहाँ साकार ईष्ट /देवी .पित्र ,वैदिक ज्योतिष ,साकार ईष्ट परिकल्पना ,विभिन्न धार्मिक क्रियाएं सनातन ब्रह्मांडीय सूत्रों पर आधारित विज्ञान हैं जिन्होंने हमें वह उन्नति दी है जिससे  सूत्रों पर ऊर्जा का उपयोग होता है । मनुष्य को सुखी और संतुष्ट बनाते हैं |कुलदेवता /देवी इन सूत्रों की एक कड़ी हैं जिन्हें आधुनिक लोग भूल गए |कुलदेवता /देवी की असंतुष्टि या पूजा न होने या इनके रुष्ट होने से तीन तरह के परिणाम एक साथ आते हैं जो पतन ,तबाही और कष्ट के कारण बन जाते हैं | पहला यह की आप कोई भी पूजा -अनुष्ठान -जप करें या कराएं वह आपके उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता भले आप खुद को सांत्वना दें की पूजा ईष्ट तक पहुँच रही |कोई भी पूजा -आराधना कुलदेवता /देवी द्वारा ही ईष्ट तक पहुँचती है और यह मनुष्य तथा ईश्वर के बीच की कड़ी होते हैं |दूसरा आपके पित्र लोग स्थायी रूप से असंतुष्ट हो जाते हैं और स्थायी पित्र दोष परिवार में उत्पन्न हो जाता है क्योंकि पित्र लोग कुलदेवता /देवी को पूजते आये होते हैं ,उन्होंने इन्हें स्थान दिया होता है अतः वह असंतुष्ट हो जाते हैं |पितरों की संतुष्टि के लिए किया गया कोई कार्य सफल नहीं होता क्योंकि उन्हें जिन देवताओं के माध्यम से तृप्ति मिलती है उन तक पूजा नहीं पहुँचती | तीसरा परिणाम कुलदेवता की रुष्टता या अनुपस्थिति से यह आता है की परिवार और व्यक्तियों की सुरक्षा समाप्त हो जाती है जिससे कोई भी नकारात्मक ऊर्जा ,हानिकारक शक्ति ,तांत्रिक अभिचार ,किया -कराया ,टोना -टोटका ,बाधा आदि सीधे परिवार और लोगों को प्रभावित करने लगता है |इनसे बचाने वाली कोई शक्ति नहीं होती |भूत -प्रेत जैसी वायव्य बाधाएं बेरोकटोक घर में आ सकती हैं या प्रभावित कर सकती हैं |कुलदेवता /देवी की अनुपस्थिति या रुष्टता से खानदान में गया श्राद्ध ,नाशिक या हरिद्वार श्राद्ध आदि की प्रक्रियाएं कर देने पर भी पित्र दोष के प्रभाव समाप्त नहीं होते |आपके ईष्ट तक आपकी पूजा नहीं पहुँचती जिससे आपके सारे पूजा -पाठ व्यर्थ जाते हैं |आपकी मुक्ति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है |पित्र दोष की उपस्थिति वाली समस्त समस्याएं अपने आप उपस्थित होती रहती हैं चूंकि इनका सीधा सम्बन्ध पितरों से होता है ,जैसे -मानसिक अवसाद होता है ,चिंताएं घेरे रहती हैं |व्यापार में नुक्सान होता है ,सबकुछ ठीक लगने पर भी उपयुक्त आय नहीं होती |अनायास हानि हो जाती है |धोखा मिलता है |परिश्रम के अनुसार फल नहीं मिलता ,उन्नति के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं |सभी प्रकार की योग्यता ,क्षमता होने पर भी उपयुक्त उन्नति नहीं होती |वैवाहिक जीवन में समस्याएं,अथवा विवाह न होना ,विवाह बाद भी अलगाव हो जाना ,जीवनसाथी के साथ कलहपूर्ण जीवन होना है  ।कुलदेवता की अनुपस्थिति में  अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते, कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए , उसका शुभ फल नहीं मिल पाता |क्योंकि देवताओं तक उपाय और पूजा नहीं पहुँचता |आय -व्यय में सदैव असंतुलन बना रहता है | मांगलिक कार्यों में बाधा आती है |बच्चों के विवाह नहीं हो पाते |उनकी उच्च शिक्षा में बाधा आती है |उनका दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं होता | अनायास के खर्चे आते हैं |दुर्घटनाएं और बीमारियाँ होती है |बिना किसी उपयुक्त कारण के गंभीर बीमारी हो जाती है या ऐसी बीमारी हो जाती है जो चिकित्सकीय रूप से बीमारी ही नहीं होती या चिकित्सक पकड नहीं पाते की समस्या कहाँ और क्या है |व्यापार /व्यवसाय में लगाया हुआ रुपया डूब जाता है |व्यवसाय बंद हो जाता है या हानि के कारण अथवा विवाद के कारण बंद करना पड़ जाता है | प्रापर्टी ,जमीन -जायदाद विवाद में फंस जाती है |अनावश्यक मुकदमे ,विवाद का सामना करना पड़ता है | घर में घुसते ही सर भारी हो जाता है |पूजा -पाठ का कोई परिणाम भी नहीं मिलता और स्थितियां जटिल ही होती जाती हैं |अनायास और अनावश्यक कर्ज की स्थिति उत्पन्न होती है संतानें विकारयुक्त और भाग्य में पित्र दोष लिए उत्पन्न होती हैं |इस कारण खानदान पतन की ओर अग्रसर हो जाता है |कुछ पीढ़ियों बाद खानदान का नाम लेने वाला तक नहीं बचता |ऐसी संताने उत्पन्न होती हैं जो खानदान को कलंकित करती हैं ,दुर्व्यसनी ,दुर्जन होती हैं जिन्हें समाज तिरस्कृत कर देता है और जो दंड पाती हैं |अंततः विनष्ट हो जाता है परिवार अथवा बिखर जाता है |कोई बाहरी शक्तिशाली शक्ति घर में स्थायी वास बना सकती है ,किये जा रहे पूजा पाठ लेकर अपनी शक्ति बढ़ा सकती है ,फिर घर -परिवार पर मनमानी कर सकती है अथवा अपनी तृप्ति करवा सकती है |पीढ़ियों तक स्थायी हो पूरे खानदान को तबाह कर सकती है अथवा देवता का स्थान ले सकती है |
   कुलदेवता का यदि पता हो तो सम्पूर्ण पूजन प्रक्रिया परम्परानुसार ही होनी चाहिए किन्तु यदि बहुत कोशिश पर भी उनका पता न लगे  तब या करने पर  कुलदेवता ,पित्र की संतुष्टि होती है और नकारात्मक शक्तियाँ हटती हैं |यह प्रक्रिया एक साथ तीनो क्षेत्रों में कार्य करती है चूंकि तीनो तरह की समस्याएं एक दूसरे से जुडी होती हैं |इसमें प्रथमतः कुलदेवता और देवी दोनों की स्थापना आवश्यक होती है क्योंकि यह पता नहीं होता की खानदान में कुलदेवता की परंपरा रही है या कुलदेवी की |किसी सिद्ध व्यक्ति या तांत्रिक -पंडित से इनका पता लगाना अँधेरे में तीर मारने जैसा होता है । क्योंकि कुलदेवता और देवी स्थानीय परम्परानुसार स्थानिक शतियों के रूप में पूजनीय है । इसके लिए दो चांदी की सुपारियाँ बनवानी होती हैं जिनमे एक पर मौली या कलावे के तीन घेरे बना उन्हें कुलदेवता के रूप में स्थापित किया जाता है और दुसरे सुपारी को मौली या कलावे से पूर्ण रूप से वेष्ठित कर उन्हें कुलदेवी के रूप में स्थापित किया जाता है |तात्कालिक रूप से इनकी पूजा विधिवत कर इन्हें अपने कुलानुसार भोज्य आदि प्रदान किया जाता है और इन्हें किसी डिब्बी आदि में अगले दिन रख दिया जाता है | मूल पूजा हर नवरात्र में इनकी होती है जिसके लिए पूर्ण पूजन  प्रक्रिया दो चरण की है जिनमे कुलदेवता /देवी की इस स्थापना के साथ एक ऐसी ऊर्जा की भी स्थापना करनी होती है । कुलदेवता /देवी की शक्ति को भी बढाए और नकारात्मक ऊर्जा भी हटाये |इस हेतु एक डिब्बी जिसे दिव्य गुटिका कहते हैं की भी स्थापना कुछ वर्ष के लिए होती है |  प्रक्रिया के बाद पित्र शान्ति ,विभिन्न -पूजा -पाठ ,अभिचार मुक्ति आदि के लिए पूजा पाठ आवश्यक नहीं होते यद्यपि इच्छानुसार कोई कुछ भी करा सकता है |इस प्रक्रिया में किसी बाहरी व्यक्ति और पंडित -तांत्रिक आदि की भी कोई आवश्यकता नहीं होती हैै। कुलदेवता की स्थापना के साथ ही सबसे अधिक ध्यान देना होता है नकारात्मक शक्तियों उर्जाओं पर और अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों पर |इन पितरों के साथ जुडी बाहरी शक्तियों पर  कुलदेवता /देवी की अनुपस्थिति में यह शक्तिशाली हो गए होते हैं और इन्हें कुलदेवता /देवी की स्थापना से दिक्कत होती है जबकि कुलदेवता /देवी में अभी बहुत ऊर्जा नहीं होती क्योंकि ऊनकी तो अभी स्थापना ही हुई है |उनकी ऊर्जा बढने में समय लगता है जबकि नकारात्मक शक्तियों आदि में विक्षोभ तुरंत शुरू हो जाता है ।  ऐसी शक्ति घर में उत्पन्न करनी होती है जो कुलदेवता /देवी को भी बल दे ,पित्र को संतुष्ट करें ,अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों ,बाहर से आई शक्तियों और नकारात्मक शक्तियों की ऊर्जा का ह्रास करता है  ,जिसमे 25 तरह की दुर्लभ तांत्रिक वस्तुएं हैं तथा जो काली ,चामुंडा ,लक्ष्मी ,शिव ,गणेश का प्रतिनिधित्व करते हैं | सभी कुलदेवता /देवी शिव परिवार से ही सम्बन्धित होने से इस डिब्बी के पूजन से कुलदेवता /देवी को बल मिलता है |दिव्य गुटिका विशेषतः नकारात्मक ऊर्जा हटाने और उग्र दैवीय शक्तियों की ऊर्जा /शक्ति बढाने का कार्य करती है जिससे कुलदेवता /देवी की संतुष्टि होती है ,उन्हें बल मिलता है |नकारात्मक शक्तियों का ह्रास होता है |पित्र संतुष्ट होते हैं ,जो अतृप्त पित्र और बाधाएं हैं उनके दुष्प्रभाव का शमन होता है |अतः कुलदेवता /देवी की स्थापना के साथ ही डिब्बी की भी स्थापना करनी होती है |इस डिब्बी की कम से कम 5 वर्ष पूजा होनी चाहिए जब तक की कुलदेवता /देवी शक्ति न प्राप्त कर लें और पुनः अपना स्थान न ले लें |इसके बाद इसे हटाया जा सकता है ,यद्यपि इसके लाभ इतने अधिक हैं और इसका क्षेत्र इतना व्यापक है की इसे कोई जीवन भर नहीं हटाना चाहेगा | कुलदेवता  की पूजा एक बार अभी करने के बाद मात्र नवरात्र -नवरात्र ही होगी |कुलदेवता /देवी की स्थापना पूजन गृह में नहीं होगी चूंकि इनको जलाया दीपक कन्याएं नहीं देखती जिनका विवाह कल को दुसरे कुलों और गोत्रों में होना है | इन्हें अलग डिब्बी में सुरक्षित रख दिया जाता है और नवरात्र -नवरात्र निकाल इनकी पूजा की जाती है |  कुलदेवता /देवी की स्थापना और दिव्य गुटिका के पूजन से कुलदेवता /देवी की समस्या का स्थायी निदान हो जाता है और वह स्थायी रूप से परिवार से जुड़ जाते हैं |पित्रर दोष समाप्त हो पित्रर संतुष्टि होती है तथा सभी नकारात्मक शक्तियों ,उर्जाओं ,अभिचार ,किये कराये ,टोन टोटके से बचाव होता है |अतः जो लोग कुलदेवता /देवी को भूल चुके हैं या जिनको कुलदेवता देवी का पता न लग रहा हो वह इस प्रक्रिया को अपना अपने कुलदेवता /देवी की स्थापना कर उनकी कृपा पुनः प्राप्त कर सकते हैं | भारतीय संस्कृति और सभ्यता की प्रचीन परम्पराओं में कुल देव और देवी दोनों की आराधना का मूलभूत रूप दिया गया है । मनुमय सृष्टि 1955885121वर्ष के दौरान प्रकृति की उपासाना का संकल्प लिया गया है । इस अवसर पर कुलदेवता की स्थापना की गई थी । वैवश्वत मनु के पुत्र राजा करूष, शर्याती, गय तथा राजा इक्ष्वाकु वंशीय, सोम वंशीय, चन्द्र वंशीय, सूर्य वंशीय शाक्य वंशीय  राजाओं में भगवान राम और कृष्ण, बुद्ध, महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, भारद्वाज, अगस्त, च्यवन, कश्यप, वत्स, मिहिर, मयूर, चाणक्य, कुन्ती, साम्ब आदि कुल है ।  व्यक्ति अपने पूर्वजों की याद कुल देवता और कुल देवी की उपासना शादी व्याह तथा पितरपछ में करते है ।सनातन धर्म में शुभ कार्यों मे यथा शादी व्याह मे कुल देवी और कुलदेवता को नान्दी मुख श्राद्ध , पूजा अर्चना उपासना करते है ।आधुनिक काल में अपने पूर्वजों को पूण्य दिवस के रूप मे श्रद्धा सुमन अर्पित करते है । विश्व मे विभिन्न धर्मावलंबी अपने पूर्वजों की याद भि्न्न तरीके से श्रद्धा सुमन , दीप प्रज्वलित , कैण्डल , अगरबत्ती जला कर उपासना करते है ।
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
Mobile number 9472987491

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