तंत्र शास्त्र के अनुसार तंत्र और मंत्र मानसिक शांति का द्योतक है । बिहार का जहानाबाद जिले के मोदनगंज प्रखंडान्तर्गत फल्गु नदी के किनारे स्थित मैना मठ और चरुई की काली मंदिर की माता कंकाली विख्यात है । मैना मठ की मां कंकाली की प्रतिमा मठ में तांत्रिक साधुओं द्वारा स्थापित की गई थी। 400 वर्षों से मैना मठ की भूमि तंत्र मंत्र साधना स्थल और श्मशान भूमि थी । 17वीं शताब्दी में मंदिर में प्रतिमा प्रतिष्ठापित हुई । ग्रामीणों के सहयोग से चरुई में काली मंदिर का निर्माण कर कंकाली प्रतिमा तथा अन्य मूर्तियां स्थापित की है । 13वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक मैना मठ में माता कंकाली की पूजा तांत्रिक साधक द्वारा किये जाते थे। 17वी शताब्दी में मठ से प्रतिमा मंदिर में स्थापित कर दी गई तथा मठ में अस्त्र-शस्त्र रखा जाता था । कंकाली तांत्रिक साधक निहंग सम्प्रदाय के अनुयायी थे । तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए कंकाल, खोपड़ी, ढेर सारी जलती हुई अगरबत्तियां से उपासना करते थे । तंत्र विद्या ईश्वरीय शक्ति और मनुष्य की आत्मा के बीच संपर्क जोड़ने का साधन है । तंत्र अहंकार को पूरी तरह समाप्त करने की बात करता है, जिससे द्वैत का भाव पूर्णतया विलुप्त हो जाता है। तंत्र पूर्ण रूपांतरण की बात करता है। ऐसा रूपांतरण जिससे जीव और ईश्वर एक हो जाएँ। ऐसा करने के लिए तंत्र के विशेष सिद्दांत तथा पद्धतियां हैं, जो की जानने और समझने में जटिल मालूम होती हैं। तंत्र का जुडाव प्रायः मंत्र, योग तथा साधना के साथ देखने को मिलता है। तंत्र, गोपनीय है, इसलिए गोपनीयता बनाये रखने के लिए प्रायः तंत्र ग्रंथों में प्रतीकात्मकता का प्रयोग किया गया है। कुछ पश्च्यात देशों में तंत्र को शारीरिक आनंद के साथ जोड़ा जा रहा है, जो की सही नहीं है। यदपि तंत्र में काम शक्ति का रूपांतरण, दिव्य अवस्था प्राप्ति की लिए किया जाता है अपितु बिना योग्य गुरु के भयंकर भूल होने की पूर्ण संभावना रहती है। इतिहास तंत्र का भारत में तंत्र का इतिहास सदियों पुराना है। ऐसा मन जाता है सर्वप्रथम भगवन शिव ने देवी पारवती को विभिन अवसरों पर तंत्र का ज्ञान दिया है। योग में तंत्र का विशेष महत्व है। योग तथा तंत्र दोनों, अध्यात्मिक चक्रों की शक्ति को विकसित करने की विभिन्न पद्धतियों के बारे में बताते हैं। हठयोग और ध्यान उनमें से एक है। विज्ञानं भैरब तंत्र जो की 112 ध्यान की वैज्ञानिक पद्धति है भगवान शिव ने देवी पारवती को बताई है। जिसमें सामान्य जीवन की विभिन अवस्थाओं में ध्यान करने की विशेष पद्धति वर्णित है। तंत्र मंत्र का लिखित प्रमाण लगभाग मध्य कालीन इतिहास से मिलना शुरू हो जाता है। इसीलिए लगभग सभी धर्मों में जीवन की समस्याओं का हल तंत्र मंत्र के माध्यम से बताया गया है। अति गोपनीय तांत्रिक पद्धति में योनी तंत्र का विशेष महत्व है। इस ग्रन्थ में, दस महाविद्या (देवी के दस तांत्रिक विधिओं से उपासना) वर्णित है । तंत्र मंत्र की सभी तांत्रिक कियाएं जिनमें - सम्मोहन, वशीकरण, उचाटन मुख्य हैं, मंत्र महार्णव तथा मंत्र महोदधि नामक ग्रंथों में वर्णित हैं। तंत्र अहंकार को समाप्त कर द्वैत के भाव को समाप्त करता है, जिससे मनुष्य, सरल हो जाता है और चेतना के स्तर पर विकसित होता है। सरल होने पर इश्वर के संबंध सहजता से बन जाता है।
जहानाबाद जिले का मोदनगंज प्रखण्ड के चरुई पंचायत में मैना मठ तंत्र विद्या का केंद्र था । बिहार गजेटियर मैंना मठ डायरी के लेखक सुबोध कुमार सिंह के अनुसार मैनामठ को राजस्व अभिलेख के आधार पर महम्मदपुर अब्दाल है । मठ के अधीन 10 एकड़ में तलाव के दक्षिण श्मशान था । बौद्ध मठ को मैना विकुक्षणि के नाम से समर्पित है ।मैना मठ फल्गु नदी के किनारे पश्चिम में नालंदा जिले के एकंगरसराय , पूरब में जहानाबाद जिले के कको , दक्षिण में घोसी सीमा से घीरा है । मठ के मंदिरों में 1.4 कि. मि. पर अनंतपुर पेवता में हनुमान मंदिर , 1. 6 कि. मि. पर चरुई में काली मंदिर ,शिव मंदिर है । विट्ज मैनकार्ट की पुस्तक आई कॉन ऑफ क्राइस्ट एंड एंड अब्बोट मेना 1979 के अनुसार। 3 री से 7 वी शताब्दी में नाना साहब की पुत्री मैना राजा की पुत्री हे कि सहेली थी ।। मैना तंत्र और दिव्य ज्ञान रख कर भलाई करती थी ।परंतु राजा के सेनापति ने मैना को हत्या करा दी । 8 वी . शताब्दी में आइकन , 4 थी शताब्दी में संत मेनस मैना के चरित्र पर प्रभावित थे । हरि गुप्त 240 - 280 ई. में मैना मठ खिल्य भूमि थी ।वैन्य गुप्त 495 - 507 ई. विजयालय 850 - 887 ई . में चोल वंश के स्थापना के बाद मैना मठ देव भूमि ,पडप्पर भूमि थी । उत्तर वैदिक काल में भूत यज्ञ भूमि थी । अथर्ववेद में जादू टोना , शाप, वशीकरण ,औषधि , ब्रह्म ज्ञान , रोग निवारण , सैंधव सभ्यता में तंत्र मंत्र , जादू टोना सिद्धि का केंद्र था । द्वापर युग में तंत्र मंत्र के ज्ञाता और राक्षस संस्कृति के अनुयायी जरा का स्थल था । जरा द्वारा जरासन्ध की पुनर्जीवन दी गयी थी । 2500 ई. पू. से 887 ई. तक तंत्र मंत्र का केंद्र मैना मठ विकसित था । राजा चंद्रसेन द्वारा तंत्र मंत्र का साधना स्थल का विकास किया था । चेर वंश के चारु द्वारा विकास किया गया । 19 25 ई. में तालाब उत्खनन के दौरान माता कंकाली , शिव लिंग , गणेश जी मूर्ति , भगवान विष्णु आदित्य तथा कई मूर्तियां प्राप्त हुई थी । ग्रामीणों के सहयोग से चरुई में काली मंदिर का निर्माण कर उत्खनन से प्राप्त विभूक्षणि एवं मूर्तियों की प्रतिष्ठापित हुआ है ।
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