गुरुवार, अगस्त 26, 2021

श्री कृष्ण: ज्ञान, प्रेम और कर्म का अनुपम संगम...

भारतीय संस्कृति में भगवान श्री कृष्ण का स्थान अद्वितीय है। वे सिर्फ एक आराध्य देव नहीं, बल्कि ज्ञान, प्रेम, भक्ति, योग और कर्म के साक्षात स्वरूप हैं। पुराणों और स्मृतियों में वर्णित गीता का संदेश, जो स्वयं कृष्ण ने दिया, आज भी मानव जीवन को सही दिशा दिखाने का सर्वोत्तम मंत्र है। उनका हर एक विचार, हर एक कार्य, और उनका पूरा जीवन ही एक शिक्षा है।

जन्माष्टमी: एक वार्षिक उत्सव

हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी का भव्य उत्सव मनाया जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि यह बुधवार को, रोहिणी नक्षत्र में, मध्य रात्रि को हुआ था, जिसे निशिथ काल कहा जाता है। द्वापर युग में, मथुरा के राजा कंस के कारागार में, माता देवकी और पिता वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में उनका अवतरण हुआ। इसके बाद, उन्हें गोकुल में माता यशोदा और नंद बाबा के पास लाया गया, जिन्होंने उनका पालन-पोषण किया। आगे चलकर उन्होंने वृंदावन में लीलाएं कीं और द्वारका में अपना राज्य स्थापित किया।

जन्माष्टमी के अगले दिन, इस उत्सव का एक और रोमांचक हिस्सा मनाया जाता है, जिसे दही हांडी कहते हैं।

दही हांडी: एकता और उत्साह का प्रतीक

महाराष्ट्र और भारत के पश्चिमी राज्यों में, विशेषकर मुंबई, लातूर, नागपुर और पुणे जैसे शहरों में, दही हांडी का त्यौहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है। इस परंपरा में, दही से भरे बर्तनों को ऊँचाई पर लटका दिया जाता है। "गोविंदा" कहे जाने वाले युवाओं और लड़कों की टीमें मानव पिरामिड बनाकर इन बर्तनों तक पहुँचने की कोशिश करती हैं। लड़कियाँ नाच-गाकर और गाते हुए इन टीमों को उत्साह देती हैं और उन्हें चिढ़ाती हैं। जब पिरामिड बनता है और बर्तन टूटता है, तो बिखरी हुई सामग्री को प्रसाद माना जाता है। यह सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एकता, साहस, और टीमवर्क का प्रतीक है। गुजरात के द्वारका में, यह परंपरा 'माखन हांडी' के नाम से जानी जाती है।

विभिन्न राज्यों में जन्माष्टमी की अनूठी झलक

जन्माष्टमी का त्यौहार पूरे भारत में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, हर जगह की अपनी अनूठी परंपराएँ हैं:

  • उत्तर भारत: उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों में वैष्णव समुदाय के लोग जन्माष्टमी को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। जम्मू में लोग छतों से पतंग उड़ाकर इस उत्सव का आनंद लेते हैं।

  • पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत: मणिपुर, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में कृष्ण भक्ति की परंपरा 15वीं और 16वीं शताब्दी के शंकरदेव और चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं के कारण व्यापक हुई। यहाँ बॉरगीत, अंकइणांत, सत्त्रिया नृत्य और भक्ति योग का विकास हुआ, जो आज भी इन क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय हैं। मणिपुरी शास्त्रीय नृत्य, जिसमें रासलीला और राधा-कृष्ण के प्रेम पर आधारित नृत्य नाटक शामिल हैं, जन्माष्टमी उत्सव का एक अभिन्न अंग हैं।

  • दक्षिण भारत: केरल में मलयालम कैलेंडर के अनुसार, आमतौर पर सितंबर में जन्माष्टमी मनाई जाती है। यहाँ के प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर, जैसे गुरुवायूर और उडुपी, भक्तों से भरे रहते हैं। गुरुवायूर में स्थापित कृष्ण की मूर्ति द्वारका की मानी जाती है।

  • अन्य परंपराएँ:

    • जन्माष्टमी पर माता-पिता अपने बच्चों को कृष्ण और गोपियों के पात्रों के रूप में सजाते हैं।

    • मंदिरों को फूलों से सजाया जाता है और भागवत पुराण और भगवद गीता के दसवें अध्याय का पाठ किया जाता है।

    • मीठे व्यंजन बनाए जाते हैं, उपवास रखा जाता है और पूरी रात जागरण कर भक्ति गीत गाए जाते हैं।

जन्माष्टमी सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। यह त्यौहार बांग्लादेश में एक राष्ट्रीय अवकाश है, जहाँ ढाकेश्वरी मंदिर से एक विशाल जुलूस निकलता है। नेपाल के पाटन, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, जमैका और सूरीनाम जैसे देशों में भी भारतीय मूल के लोग इसे धूमधाम से मनाते हैं। यहां तक कि पाकिस्तान के कराची स्थित स्वामीनारायण मंदिर में भी भजन और उपदेश होते हैं। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में भी इस्कॉन मंदिरों के माध्यम से यह उत्सव मनाया जाता है।

निष्कर्ष

भगवान कृष्ण का जीवन हमें यह सिखाता है कि अराजकता और बुराई के समय में भी ज्ञान, प्रेम और धर्म के मार्ग पर चलकर विजय प्राप्त की जा सकती है। उनका जन्म उस समय हुआ जब हर तरफ उत्पीड़न और अराजकता थी, और उनके मामा कंस ने उनके जीवन को खतरा बना दिया था। इसके बावजूद, वे धर्म की स्थापना के लिए यमुना नदी पार कर गोकुल पहुँचे। उनकी बाल लीलाएँ, जैसे 'माखन चोर' की उपाधि, हमें यह याद दिलाती हैं कि जीवन में आनंद और चंचलता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।

जन्माष्टमी सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव है जो हमें भगवान कृष्ण के जीवन, उनके दर्शन और उनके प्रेम के संदेश को याद दिलाता है। यह हमें यह भी सिखाता है कि कैसे अलग-अलग परंपराओं और भौगोलिक क्षेत्रों के लोग एक ही भावना से जुड़कर इस अद्भुत त्यौहार को मनाते हैं।

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