बुधवार, अगस्त 25, 2021

सनातन परंपरा: कल्प ...


      ज्योतिष शास्त्रों , स्मृतियों और पुराणों में कल्प एवं मन्वन्तर का उल्लेख किया गया है।  शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव से सृष्टि उत्पत्ति होती है । विष्णु पुराण में भगवान  विष्णु से  देवों का आविर्भाव हुआ है । ब्रह्म पुराण के अनुसार देवों के रचयिता ब्रह्मा जी  हैं ।   शिव पुराण के  " वायवीय संहिता " और लिंगपुराण  के अनुसार भगवान शिव द्वारा 28 अवतार लेकर सृष्टि प्रारम्भ किया गया है । ब्रह्मा,  विष्णु  और  रुद्र    कारणात्मा और  चराचर जगत् की सृष्टि,  पालन और  संहार और  साक्षात्  महेश्वर  से प्रकट हुए हैं । ब्रह्मा की सृष्टि कार्य में  , विष्णु की रक्षा कार्य में तथा रुद्र की संहारकार्य में नियुक्ति हुई थी । कल्पान्तर में परमेश्वर शिव के प्रसाद से रुद्र देव ने ब्रह्मा और नारायण की सृष्टि की थी । इसी  तरह दूसरे कल्प में जगन्मय ब्रह्मा ने रुद्र तथा विष्णु को उत्पन्न किया था । फिर  कल्पान्तर में भगवान् विष्णु ने  रुद्र तथा ब्रह्मा की सृष्टि की थी  । इस तरह पुनः ब्रह्मा ने नारायण की और रुद्र देव  ने  ब्रह्मा की सृष्टि की । इस प्रकार विभिन्न कल्पों में ब्रह्मा  , विष्णु  और  महेश्वर  परस्पर उत्पन्न होते और एक दूसरे का हित चाहते हैं ।  विष्णु का सप्तम वाराह कल्प चल रहा है । याने  7 × 4 ( चतुर्युग )  =  28 , अभी अठाईसवां  चतुर्युग चल रहा है । 1000  ( एक हजार ) चतुर्युग बीतने पर कल्प  ब्रह्मा जी का एक दिन कहलाता है । शिव जी के  28  ( अठाईस  )  अवतारों में प्रथम अवतार का नाम श्वेत था । भगवान विष्णु का 23 वें अवतार में  प्रथम अवतार  वाराह कल्प  था ।  " विश्व  रुप कल्प " ब्रह्मा जी को समर्पित है  । इस तरह हम पाते हैं कि हमारे। अठारहों पुराणों की कुल श्लोक संख्या चार लाख है । वैज्ञानिक  एवं सटिक गणना विश्व के ज्योतिष ज्ञान है ।    कल्पों  विवरण -    ब्रह्म लोक का एक सहस्र चतुर्युग  याने  43,20,000  मानवीय वर्ष  × 1,000  =  4,32,00,00,000  ( चार अरब बत्तीस करोड़  मनुष्य  वर्ष )  को एक कल्प कहते हैं ।  यों तो कल्प अनन्त हैं,  क्योंकि अभी तक अनेकों ब्रह्मा आ चुके हैं । प्रत्येक ब्रह्मा की आयु सौ वर्ष निर्धारित  है । अतः  30 × 12 =  360 × 100 = 36,000 कल्प एक ब्रह्मा के लिए है ।   ऋषि  - महर्षियों  ने वायु पुराण  द्वारा  35 कल्पों का निर्धारण किया है जिसके समाप्त होने पर पुनः एक से शुरुआत होकर  35 ( पैतीस ) है । ( 1 )   भव कल्प  ;( 2 )   भुव कल्प  ; ( 3 )   तपः कल्प  ;( 4 )   भव  ( 5 )   रम्भ कल्प  ;( 6 )   ऋतु  कल्प  ;( 7 )   क्रतु  कल्प  ;( 8 )   वह्नि  कल्प  ;( 9 )   हव्य वाहन कल्प  ;(10)   सावित्र  कल्प  ;(11)   भुवः  कल्प  ;(12)   उशिक  कल्प  ;(13)   कुशिक  कल्प  ;(14)   गान्धार  कल्प  ;(15)   ऋषभ  कल्प  ;(16)   षड्ज कल्प  ; (17)   मार्जालीय  कल्प ;(18)   मध्यम  कल्प  ;(19)   वैराजक  कल्प  ;(20)   निषाद  कल्प  ;(21)   पञ्चम  कल्प  ;(22)   मेघ वाहन  कल्प  ;(23)   चिन्तक  कल्प (24)   आकूति कल्प  ;(25)   विज्ञाति  कल्प  ; (26)   मन  कल्प  ;(27)   भाव  कल्प  ;(28)   वृहत्  कल्प  ; (29)   श्वेत  लोहित  कल्प  ;(30)   रक्त  कल्प  ;(31)   पीतवाशा  कल्प  ;(32)   कृष्ण  कल्प  ;(33)   विश्व रुप  कल्प  ;(34)   श्वेत  कल्प  और  (35)   वाराह  कल्प  है । श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु से उत्पन्न ब्रह्मा जी की आयु 100 वर्ष है ।ब्रह्मा जी की आयु 50 वर्ष पूर्वपरार्ध तथा 50 वर्ष द्वितीय परार्ध कहा है ।सतयुग , त्रेता , द्वापर और कलियुग को शामिल कर महायुग कहा गया है ।एक हजार महायुग व्यतीत होने पर ब्रह्मा का एक डिनर एक रात होती है ।सबत्सराबली तथा महाभारत के रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास के अनुसार  ब्रह्मा जी के 51 वर्ष प्रथम दिन के 6 मन्वन्तर गत हो गए है ।14 मनुशासन में स्वायम्भुव मनु , स्वारोचिष मनु ,उतम मनु ,तामस मनु ,रैवत ,चाक्षषु ,वैवस्वत ,सावर्णि ,दक्ष सावर्णि ,ब्रह्मसवर्णी , धर्म सावर्णि , रुद्र सावर्णि ,देव सावर्णि तथा इंद्र सावर्णि है । 7वें वैवस्वत मनु काल का 28 वां महायुग प्रारम्भ है ।प्रत्येक मनु का शासन 71 महायुग का होता है ।एक महायुग में सौर वर्ष 4323000वर्ष है । 14 मनुओं का राज्य को एक कल्प या ब्रह्मा जी का एक दिन है । मनुमय सृष्टि के सौर वर्ष 1955885122 , कलियुग 5122 विक्रम संबत 2078 , ईस्वी सम्वत 2021 शालिवाहन संबत 1943 , फसली संबत 1428 , बांग्ला संबत 1428 ,नेपाली संबत 1141 औरहिजरी संबत 1442 प्रारम्भ है । 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें