नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन कि. मि. दूरी पर देवपाटन स्थित बागमती नदी के किनारे यूनेस्को की विश्व धरोहर में पशुपतिनाथ मंदिर है । विश्व में नेपाल का काठमांडू और भारत का मंदसौर में पशुपति नाथ मन्दिर है ।
संसार के समस्त जीवों के स्वामी पशुपतिनाथ है । वेद की रचना के पूर्व पशुपतिनाथ लिंग स्थापित हो गया था। काठमांडू घाटी के प्राचीन शासकों के अधिष्ठाता देवता तथा पाशुपत संप्रदाय द्वारा पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था। 605 ई. में अमशुवर्मन ने भगवान पशुपतिनाथ के चरण छूकर अपने को अनुग्रहीत किया था। मंदिर का पुन: निर्माण 11वीं सदी में किया गया था। 17वीं सदी में इसका पुनर्निर्माण किया गया। मंदिरों निर्माण में भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस 19वीं शताब्दी शामिल हैं। पशुपतिनाथ का मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ है। मंदिर का पुनर्निर्माण नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया। अप्रैल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप में पशुपतिनाथ मंदिर के विश्व विरासत स्थल की कुछ बाहरी इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गयी थी परंतु पशुपतिनाथ का मुख्य मंदिर और मंदिर की गर्भगृह को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं हुई थी। पशुपतिनाथ मंदिर में स्थित पशुपतिनाथ की सेवा करने के लिए 1747 से नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मणों को आमंत्रित किया था। माल्ल राजवंश' के राजा ने दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त कर दिया। दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे थे। मंदिर परिसर का भ्रमण करने के लिए 90 से 120 मिनट का समय लगता है। नेपाल में पशुपतिनाथ का मंदिर में भगवान शिव की एक पांच मुख पशुपतिनाथ विग्रह में चारों दिशाओं में एक मुख और एकमुख ऊपर की ओर है। प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंदल मौजूद है। पशुपतिनाथ मंदिर का ज्योतिर्लिंग पारस पत्थर के समान है। पशुपतिनाथ का पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम की ओर वाले मुख को सद्ज्योत , उत्तर दिशा की ओर वाले मुख को वामवेद या अर्धनारीश्वर और दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते हैं। मुख ऊपर को ईशान मुख कहा जाता है। मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति तक पहुंचने के चार दरवाजे चांदी के हैं। पश्चिमी द्वार की ठीक सामने शिव जी के बैल नंदी की विशाल प्रतिमा का निर्माण पीतल से किया गया है। इस परिसर में वैष्णव और शैव परंपरा के कई मंदिर और प्रतिमाएं है। पशुपतिनाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है। मंदिर हिंदू और बौद्ध वास्तुकला का पगोडा शैली का मंदिर सुरक्षित आंगन में स्थित 264 हेक्टर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें 518 मंदिर और स्मारक सम्मिलित है। मंदिर की द्वी स्तरीय छत का निर्माण तांबे पर सोने की परत चढाई गई है। मंदिर वर्गाकार के एक चबूतरे पर सोने का शिखर को गजुर तक की ऊंचाई 23 मि. 7 से.मि. है। मंदिर परिसर के भीतर दो गर्भगृह में भीतर और दुसरी बाहर। भीतरी गर्भगृह में शिव की प्रतिमा को स्थापित किया गया है । पशुपतिनाथ मंदिर के परिसर में वासुकि नाथ मंदिर, उन्मत्ता भैरव मंदिर, सूर्य नारायण मंदिर, कीर्ति मुख भैरव मंदिर, बूदानिल कंठ मंदिर हनुमान मूर्ति, और 184 शिवलिंग मूर्तियां प्रमुख रूम से मौजूद है जबकि बाहरी परिसर में राम मंदिर, विराट स्वरूप मंदिर, 12 ज्योतिर्लिंग और पंद्र शिवालय गुह्येश्वरी हैं। पशुपतिनाथ मंदिर के बाहर आर्य घाट के पानी को मंदिर के भीतर ले जाए जाने का प्रावधान है।
पुरणों एवं नेपाली धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान शिव यहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले बैठे थे। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। कहा जाता हैं इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया था। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए थे।शिवलिंग को एक चरवाहे द्वारा खोजा गया था जिसकी गाय का अपने दूध से अभिषेक कर शिवलिंग के स्थान का पता लगाया था। भारत के उत्तराखंड राज्य से जुडी एक पौराणिक कथा से है। इस कथा के अनुसार इस मंदिर का संबंध केदारनाथ मंदिर से है। कहा जाता है जब पांडवों को स्वर्गप्रयाण के समय शिवजी ने भैंसे के स्वरूप में दर्शन दिए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन पूर्णतः समाने से पूर्व भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी।
महाभारत युद्घ में विजय के बाद पांण्डव अपने गुरूजनों और सगे संबंधियों को मारने के बाद दुखी थे और अपने पापों से मुक्ती चाहते थे। वे भगवान श्री कृष्ण के पास गए और अपने पापों से मुक्ति का उपाय पूछा । तब भगवान श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि भगवान शिव ही आपको पापों से मुक्त कर सकते हैं। भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पांण्डव शिव जी को मनाने चल पड़े। पांण्डवों द्वारा अपने गुरूओं एवं सगे-संबंधियों का वध किये जाने से भगवान शिव जी पांण्डवों से नाराज हो गये थे । गुप्त काशी में पांण्डवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलीन हो गये और उस स्थान पर पहुंच गये जहां पर वर्तमान में केदारनाथ स्थित है। लेकिन पांण्डव भगवान शिव को हर हाल में मनाना चाहते थे। शिव जी का पीछा करते हुए पांण्डव केदारनाथ पहुंच गये। इस स्थान पर पांण्डवों को आया हुए देखकर भगवान शिव ने एक बैल का रूप धारण किया और इस क्षेत्र में चर रहे बैलों के झुंण्ड में शामिल हो गये। पांण्डवों ने बैलों के झुंण्ड में भी शिव जी को पहचान लिया तो शिव जी बैल के रूप में ही धरती में समाने लगे। भगवान शिव को बैल के रूप में धरती में समाता देख भीम ने कमर से कसकर पकड़ लिया। पांण्डवों की सच्ची श्रद्धा को देख भगवान शिव प्रकट हुए और पांण्डवों को पापों से मुक्त कर दिया। इस बीच बैल बने शिव जी का सिर काठमांडू स्थित पशुतिनाथ में पहुंच गया। इसलिए केदारनाथ और पशुपतिनाथ को मिलाकर एक ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है। केदरनाथ में बैल के पीठ रूप में शिवलिंग की पूजा होती है जबकि पशुपतिनाथ में बैल के सिर के रूप में शिवलिंग को पूजा जाता है। नेपाल स्थित पशुपतिनाथ का दर्शन एवं उपासना करने वाले व्यक्ति पशुपति नाथ के दर्शन करता है उसका जन्म पशु योनी में नहीं होता है। मान्यता यह भी है कि इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय भक्तों को मंदिर के बाहर स्थित नंदी के दर्शन पहले नहीं करने चाहिए। व्यक्ति पहले नंदी के दर्शन करता है बाद में शिवलिंग का दर्शन करता है उसे अगले जन्म पशु योनी मिलती है। स्थानीय ग्रंथों के अनुसार, विशेष तौर पर नेपाल महात्म्य और हिमवतखंड के अनुसार भगवान शिव एक बार वाराणसी के अन्य देवताओं को छोड़कर बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली चले गए, जो बागमती नदी के दूसरे किनारे पर जंगल में है। भगवान शिव वहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले गए। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। कहते हैं इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए ।पशुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है। प्रत्येक मुखाकृति के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। प्रत्येक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। पहला मुख 'अघोर' मुख है, जो दक्षिण की ओर है। पूर्व मुख को 'तत्पुरुष' कहते हैं। उत्तर मुख 'अर्धनारीश्वर' रूप है। पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है। ऊपरी भाग 'ईशान' मुख के नाम से पुकारा जाता है। यह निराकार मुख है। यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है। पशुपतिनाथ धाम
में भगवान शिव के विभिन्न पंथों में पाशुपत सम्प्रदाय , अघोर सम्प्रदाय , लिंग सम्प्रदाय , नाथ सम्प्रदाय , वासव सम्प्रदाय का उपसंस केंद्र है ।
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