बुधवार, दिसंबर 01, 2021

भारतीय संस्कृति के उन्नायक अटल विहारी बाजपेयी ...


भारत के दसवें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म  25 दिसंबर 1924 ई. को मध्यप्रदेश का  ग्वालियर और निधन 16 अगस्त 2018 को दिल्ली का एम्स में संध्या 05: बजे हुआ था ।  अतलविहारी बाजपेयी   16 मई से 1 जून 1996 तक,  1998 मे और 19 मार्च 1999 से 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे थे । वे हिंदी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता एवं भारतीय जनसंघ के संस्थापक  और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष  रहे। उन्होंने लंबे समय तक राष्‍ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पत्र-पत्रिकाओं का संपादन  किया था ।
वे चार दशकों से भारतीय संसद के सदस्य थे, लोकसभा में सांसद  दस बार, और दो बार राज्य सभा में चुने गए थे।  2009 तक उत्तर प्रदेश जब स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त हुए। अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारंभ करने वाले वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमंत्री पद के 5 वर्ष बिना किसी समस्या के पूरे किए। आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेने के कारण बाजपेयी जी को भीष्मपितामह कहा जाता है । 16 अगस्त 2018 को एक लंबी बीमारी के बाद अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली में श्री वाजपेयी का निधन हो गया। वे जीवन भर भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे‍।उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के  बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में 25 दिसंबर 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में कृष्णबिहारी बाजपेयी की पत्नी कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था। महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति "विजय पताका" पढ़कर अटल जी के जीवन की दिशा  बदल गयी। अटल जी की बी॰ए॰ की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एम॰ए॰ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होनेके बाद  अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर में एल॰एल॰बी॰ की पढ़ाई  प्रारम्भ की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये। डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ  पढ़ा , साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कुशलता पूर्वक करते रहे है । सर्वतोमुखी विकास के लिये किये गये योगदान तथा असाधारण कार्यों के लिये 2015 में बाजपेयी जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है ।बाजपेयी जी  भारतीय जनसंघ का  सन् १९६८ से १९७३ तक वह उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष और सन् 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु सफलता नहीं प्राप्त हुई थी । सन् १९५७ में उत्तरप्रदेश के गोण्डा जिले के  बलरामपुर से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे। सन् १९५७ से १९७७ तक जनता पार्टी की स्थापना तक  बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में सन् १९७७ से १९७९ तक विदेश मन्त्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनायी थी । १९८० में जनता पार्टी से असन्तुष्ट होकर  जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। ६ अप्रैल १९८० में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व वाजपेयी को सौंपा गया।दो बार राज्यसभा के लिये निर्वाचित हुए। लोकतन्त्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् १९९६ में प्रधानमन्त्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। १९ अप्रैल १९९८ को पुनः प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में १३ दलों की गठबन्धन सरकार ने पाँच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए। सन् २००४ में कार्यकाल पूरा होने से पहले भयंकर गर्मी में सम्पन्न कराये गये लोकसभा चुनावों में भा॰ज॰पा॰ के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (एन॰डी॰ए॰) ने वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और भारत उदय ,  इण्डिया शाइनिंग) का नारा दिया। इस चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। ऐसी स्थिति में वामपंथी दलों के समर्थन से काँग्रेस ने भारत की केन्द्रीय सरकार पर कायम होने में सफलता प्राप्त की और भा॰ज॰पा॰ विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई। सम्प्रति वे राजनीति से संन्यास ले चुके थे और नई दिल्ली में ६-ए कृष्णामेनन मार्ग स्थित सरकारी आवास में रहते थे। अटल सरकार ने 11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इस कदम से उन्होंने भारत को निर्विवाद रूप से विश्व मानचित्र पर एक सुदृढ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया। यह सब इतनी गोपनीयता से किया गया कि अति विकसित जासूसी उपग्रहों व तकनीक से संपन्न पश्चिमी देशों को इसकी भनक तक नहीं लगी। यही नहीं इसके बाद पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर अनेक प्रतिबंध लगाए गए लेकिन वाजपेयी सरकार ने सबका दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए आर्थिक विकास की ऊँचाईयों को छुआ। था । 19 फरवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज़ शरीफ से
मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की थी । भारत रत्न ,  "अजातशत्रु" उपनाम से मशहूर बाजपेयी का विराट व्यक्तित्व युगपरिवर्तक  ,  राजनेता होने के साथ-साथ बाजपेई एक अच्छे कवि पत्रकार और लेखक  रहे हैं। शब्दों को नापतोल के बोलना बाजपेयी के व्यक्तित्व की बड़ी खूबी रही है ।अपनी वाकपटुता के कारण बाजपेयी को भारत का सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री माना जाता है।
1999 में हुए कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन करने की अंतरराष्ट्रीय सलाहकार सम्मान करते हुए धैर्य पूर्वक ठोस कार्यवाही करते हुए भारतीय क्षेत्र को मुक्त करवाया था ।दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई भारत के चारों कोनों को जोड़ने की लिए "स्वर्णिम चतुर्भुज" परियोजना की शुरुआत की।कावेरी जल विवाद, प्रौद्योगिकी उन्नति, राजमार्गों, हवाई मार्ग, सुरक्षा, व्यापार, उद्योग, आवास निर्माण आदि बहुआयामी कार्यों को करने में वाजपेयी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । बाजपेई जी  कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ कवि और लेखक  रहे हैं।  इनकी प्रथम कविता "ताजमहल" थी जिसमें उन्होंने ताजमहल के कारीगरों के शोषण के भाव को उजागर किया है। वाजपेई को देशहित से अथाह प्रेम था "हिंदू तन मन, हिंदू जीवन, रग -रग हिंदू मेरा परिचय" कविता के माध्यम से उन्होंने इस बात की पुष्टि की है।रग रग हिंदू मेरा परिचय, मृत्यु या हत्या, अमर बलिदान, कैदी कविराय की कुंडलियां, संसद में तीन दशक, अमर आग है, कुछ लेख :कुछ भाषण, सेक्युलर वाद, राजनीति की रपटीली राहें, बिंदु- बिंदु विचार इत्यादि पर बाजपेई ने इक्यावन बहुचर्चित काव्य संग्रह 1995 में प्रकाशित हुई ।अपने बहुआयामी व्यक्तित्व ,सर्वोतमुखी विकास और  असाधारण कार्यों के लिए बाजपेई को  पुरस्कार प्रदान किये गये। वर्ष 1952 में उन्हें "पदम विभूषण", 1993 में डॉक्टर ऑफ लिटरेचर  कानपुर विश्वविद्यालय ,1994 में "लोकमान्य तिलक पुरस्कार", "श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार", "भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत" पुरस्कार प्रदान किया गया। वर्ष 2014 में डॉक्टर ऑफ लिटरेचर मध्य प्रदेश विश्वविद्यालय  , 2015 में "फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वॉर अवार्ड" और 2015 को "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया है ।

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