शुक्रवार, दिसंबर 17, 2021

माता गंगा का पानी अमृत .....


हिमालय की कोख गोमुख से निकलकर गंगोत्री से होते हुए भागीरथी गंगा की अविरल धारा देवप्रयाग में अलकनंदा में चट्टानें घुलकर   जल की जैविक संरचना करती है ।  वैज्ञानिक शोध के अनुसार  गंगा के पानी में ऐसे जीवाणु हैं जो सड़ाने वाले कीटाणुओं को पनपने नहीं देते है । हरिद्वार में गोमुख- गंगोत्री से आ रही गंगा के जल की गुणवत्ता का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह हिमालय पर्वत पर उगी हुई अनेकों जीवनदायनी उपयोगी जड़ी-बूटियों, खनिज पदार्थों और लवणों को स्पर्श करता हुआ आता है । हिमालय की कोख से गंगाजल में बैट्रिया फोस  बैक्टीरिया रहने से  पानी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होने वाले अवांछनीय पदार्थों को नष्ट करता रहता है। गंगा के पानी में गंधक (सल्फर) की प्रचुर मात्रा एवं  भू-रासायनिक क्रियाएं  गंगाजल में होने से  कीड़े पैदा नहीं होते है ।  गंगा हरिद्वार से आगे  शहरों की ओर बढ़ते रहने पर शहरों, नगर  और खेती-बाड़ी का कूड़ा-करकट तथा औद्योगिक रसायनों का मिश्रण गंगा में डाल दिया जाता है । वैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर  गंगाजल से स्नान करने तथा गंगाजल को पीने से हैजा, प्लेग, मलेरिया तथा क्षय आदि रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। डॉ. हैकिन्स, ब्रिटिश सरकार की ओर से डॉ. हॉकिंग्स द्वारा  गंगाजल से दूर होने वाले रोगों के परीक्षण के लिए  गंगाजल के परिक्षण के लिए गंगाजल में हैजे (कालरा) के कीटाणु डाले गए। हैजे के कीटाणु मात्र 6 घंटें में ही मर गए और जब उन कीटाणुओं को साधारण पानी में रखा गया तो वह जीवित होकर अपने असंख्य में बढ़ गया था । फ्रांस के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. हैरेन ने गंगाजल पर वर्षों अनुसंधन करके अपने प्रयोगों का विवरण शोधपत्रों के रूप में प्रस्तुत किया था । डॉ. हैरेन ने  आंत्र शोध व हैजे से मरे अज्ञात लोगों के शवों को गंगाजल में ऐसे स्थान पर डाल दिया था । डॉ. हैरेन को आश्चर्य हुआ कि कुछ दिनों के बाद शवों से आंत्र शोध व हैजे  नहीं बल्कि अन्य कीटाणु  गायब हो गए थे । उन्होंने गंगाजल से 'बैक्टीरियासेपफेज' घटक निकाला, जिसमें औषधीय गुण हैं। इंग्लैंड के  चिकित्सक सी. ई. नेल्सन ने गंगाजल पर अन्वेषण करते हुए लिखा कि गंगाजल में सड़ने वाले जीवाणु  नहीं होते। उन्होंने महर्षि चरक को उद्धृत करते हुए लिखा कि गंगाजल सही मायने में पथ्य है। रूसी वैज्ञानिकों ने हरिद्वार एवं काशी में स्नान के उपरांत 1950 में कहा कि  गंगा स्नान के उपरांत ही ज्ञात हो पाया कि भारतीय गंगा  पवित्र  है । कनाडा के मैकिलन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. एम. सी. हैमिल्टन ने गंगा की शक्ति को स्वीकारते हुए कहा कि वे नहीं जानते कि इस जल में अपूर्व गुण कहाँ से और कैसे आए। सही तो यह है कि चमत्कृत हैमिल्टन वस्तुत: समझ नहीं पाए कि गंगाजल की औषधीय गुणवत्ता को किस तरह प्रकट किया जाए आयुर्वेदाचार्य गणनाथ सेन, विदेशी यात्री इब्नबतूता वरनियर, अंग्रेज़ सेना के कैप्टन मूर, विज्ञानवेत्ता डॉ. रिचर्डसन आदि सभी ने गंगा पर शोध करके यही निष्कर्ष दिया कि यह नदी अपूर्व है।
गंगाजल अपने खनिज गुणों के कारण  गुणकारी और   स्नान करने वाले लोग स्वस्थ और रोग मुक्त बने रहते हैं। इससे शरीर शुद्ध और स्फूर्तिवान बनता है। भारतीय सांस्कृतिक  सभ्यता में गंगा को पवित्र नदी माना जाता है। गंगा नदी के पानी में विशेष गुण के कारण  गंगा नदी में स्नान करने भारत के विभिन्न क्षेत्र से  नहीं बल्कि संसार के अन्य देशों से  लोग आते हैं। गंगा नदी में स्नान के लिए आने वाले सभी लोग विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति पाने के लिए हरिद्वार और ऋषिकेश आकर मात्र गंगा स्नान से पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं।  विद्वानों ने गंगाजल की पवित्रता का वर्ण कर  पूर्ण आत्मा से किया है। भौतिक विज्ञान  आचार्यो ने  गंगाजल की अद्भुत शक्ति और प्रभाव को स्वीकार किया है।करने भारत के विभिन्न क्षेत्र से ही नहीं बल्कि संसार के अन्य देशों से भी लोग आते हैं। गंगा नदी में स्नान के लिए आने वाले सभी लोग विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति पाने के लिए हरिद्वार और ऋषिकेश आकर मात्र कुछ ही दिनों में केवल गंगा स्नान से पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं। विद्वानों ने गंगाजल की पवित्रता का वर्णन अपने निबन्धों में पूर्ण आत्मा से किया है। भौतिक विज्ञान  आचार्यो ने गंगाजल की अद्भुत शक्ति और प्रभाव को स्वीकार किया है। भगीरथी गंगा , अलकनंदा गंगा  , मंदाकिनी गंगा मिल कर ऋषिकेश में गंगा रूप में निरंतर प्रवाहित हो कर हृरिद्वार में गिरती के बाद मानव कल्याण करती है ।माता गंगा की जलधारा पवित्र एवं जीवनोपयोगी और जीवात्मा  का मार्ग प्रशस्त करती है ।उत्तराखण्ड राज्य का  उत्तरकाशी ज़िले में गौमुख गंगोत्री ग्लेशियर का गोमुख से भागीरथी गंगा से प्रवाहित है।भागीरथी नदी को किरात नदी कहा गस्य है ।उत्तराखण्ड राज्य का मण्डल गढ़वाल , ज़िले उत्तरकाशी के भौतिक नदी शीर्ष गौमुख, गंगोत्री का निर्देशांक30°55′32″N 79°04′53″E / 30.925449°N 79.081480°E • ऊँचाई3,892 मी॰ (12,769 फीट) से भगीरथी गंगा  देवप्रयाग का निर्देशांक - 30°08′47″N 78°35′54″E / 30.146315°N 78.598251°E ऊँचाई475 मी॰(1,558 फीट),लम्बाई205 कि॰मी॰(127 मील) ,जलसम्भरआकार6,921 कि॰मी2 (7.450×1010 वर्गफुट) ,प्रवाह  • औसत257.78 m3/s (9,103 घन फुट/सेकंड) ,  अधिकतम3,800 m3/s (130,000 घन फुट/सेकंड ) , जलसम्भर भागीरथी गंगा में  केदारगंगा, भिलंगना, अलकनंदा , जाध गंगा , जाह्नवी , सिया गंगा में मिलती है ।भागीरथी गोमुख स्थान से 25 कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकल कर उत्तराखण्ड राज्य में उत्तरकाशी जिले का देव प्रयाग में  समुद्रतल से 618 मीटर की ऊँचाई पर, ऋषिकेश से 70 किमी दूरी पर स्थित अलकनंदा में भगीरथी नदी मिलती है । भागीरथी गंगा  नदी पर बनाया गया टेहरी विकास परियोजना के तहत टिहरी बाँध की ऊँचाई 260 मीटर है । टिहरी   बाँध से 2400 मेगा वाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवँ उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराया  गया है। भगीरथी गंगा में रुद्रागंगा- गंगोत्री ग्लेशियर के पास रुद्रागेरा ग्लेशियर , केदारगंगा- केदारताल , जाडगंगा / जाह्नवी - भैरोघाटी , सियागंगा- झाला , असीगंगा- गंगोरी , भिलंगना- खतलिंग ग्लेशियर टेहरी से निकलकर गणेशप्रयाग में भागीरथी से मिलती है । अब यह संगम टेहरी डैम में डूब चुका है।भिलंगना की नदियां - मेडगंगा, दूधगंगा,बालगंगा  अलकनंदा- देवप्रयाग में भााागिरथी से मिलती है।
 भागीरथी में गंगा का नबद्वीप में जलांगी से मिलकर हुगली नदी बनाती है। 16वीं शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल प्रवाह था, लेकिन गंगा का मुख्य बहाव पूर्व की ओर पद्मा में स्थानांतरित हो गया। गंगा  तट पर कभी बंगाल की राजधानी रहे मुर्शिदाबाद सहित बंगाल के कई महत्त्वपूर्ण मध्यकालीन नगर बसे। भारत में गंगा पर फ़रक्का बांध बनाया गया, ताकि गंगा-पद्मा नदी का  पानी अपक्षय होती भागीरथी-हुगली नदी की ओर मोड़ा जा सके, जिस पर कोलकाता पोर्ट कमिश्नर के कलकत्ता और हल्दिया बंदरगाह स्थित हैं। भागीरथी पर बहरामपुर में एक पुल बना है।भागीरथ की तपस्या के फलस्वरूप गंगा के अवतरण हुआ था । गंगा की धारा उत्तराखंड राज्य का  हरिद्वार , उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में गंगा , यमुना और सरस्वती नदियों का संगम त्रिवेणी , मिर्जापुर जिले का विंध्याचल , वाराणसी के काशी का गंगा किनारे बाबा विश्वनाथ की नगरी में  मोक्षदायिनी गंगा प्रवाहित , बिहार के सुल्तानगंज , पटना गंगा किनारे अवस्थित है । गंगा को  त्रिपथगा ,  दिव्या , जाह्नवी , भागीरथी , मोक्षदायिनी कहा गया है । भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृता ।। सूर्यवंशीय राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहित वंशीय  बाहुक का शत्रुओं द्वारा राज्य छीन लेने के बाद  अपनी पत्नी सहित वन चला गया। वन में बुढ़ापे के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। बाहुक के गुरु  ओर्व ने राजा बाहुक की पत्नी को सती नहीं होने दिया था । उसकी सौतों को ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसे विष दे दिया। विष का गर्भ पर  प्रभाव नहीं पड़ा। बालक विष (गर) के साथ ही उत्पन्न होने के कारण 'स+गर= सगर कहलाया था ।सगर का विवाह  सुमति और केशनी के साथ  हुआ था । सुमति- सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ। केशिनी- जिसके असमंजस  पुत्र हुआ। सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। इन्द्र ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा तपस्वी कपिल के पास ले जाकर खड़ा किया। उधर सगर ने सुमति के पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों को कहीं घोड़ा नहीं मिला था । उन्होंने सब ओर से पृथ्वी खोद डाली। पूर्व-उत्तर दिशा में कपिल मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाये और मुनि को बुरा-भला कहते हुए उधर बढ़े। फलस्वरूप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस तथा असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था। असमंजस पूर्वजन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, उसकी स्मृति खोयी नहीं थी । असमंजस  सबसे विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को सरयू में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया। उसने अपने योगबल से बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन चला गया। यह देखकर सबको बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा। उनके चरणों में प्रणाम कर उसने विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल से प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र दिलीप ने  असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा के वेग को शिव ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया था ।
 उत्तराखण्ड राज्य का गढ़वाल मण्डल के ज़िले के चमोली, रुद्रप्रयाग, पौड़ी गढ़वाल , सतोपंथ हिमानी और भागीरथी खरक हिमानी का संगमस्थल ऊँचाई 3,880 मी॰ (12,730 फीट)  से अलकनंदा नदी प्रवाहित है । देवप्रयाग में  ऊँचाई 475 मी॰ (1,558 फीट)लम्बाई195 कि॰मी॰ (121 मील) , जलसम्भर आकार10,882 कि॰मी2 (1.1713×1011 वर्ग फुट) प्रवाह  • औसत439.36 m3/s (15,516 घन फुट/सेकंड) जलसम्भर अलकनंदा नदी में सरस्वती नदी , धौली गंगा ,, नंदाकिनी ,  पिण्डार नदी प्रवाहित है ।  गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है । केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनन्दा नदी है ।यह उत्तराखंड में संतोपंथ और भगीरथ खरक नामक हिमनदों से निकलती है। यह स्थान गंगोत्री कहलाता है। अलकनंदा नदी घाटी में लगभग 195 किमी तक बहती है। देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है और इसके बाद अलकनंदा नाम समाप्त होकर केवल गंगा नाम रह जाता है।[2] अलकनंदा चमोली रुद्रप्रयाग टिहरी और पौड़ी जिलों से होकर गुज़रती है।.[3] गंगा के पानी में इसका योगदान भागीरथी से अधिक है। हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनाथ अलखनंदा के तट पर ही बसा हुआ है। राफ्टिंग इत्यादि साहसिक नौका खेलों के लिए यह नदी बहुत लोकप्रिय है। तिब्बत की सीमा के पास केशवप्रयाग स्थान पर यह आधुनिक सरस्वती नदी से मिलती है। केशवप्रयाग बद्रीनाथ से कुछ ऊँचाई पर स्थित है। अलकनन्दा नदी कहीं बहुत गहरी, तो कहीं उथली है, नदी की औसत गहराई ५ फुट (१.३ मीटर) और अधिकतम गहराई १४ फीट (४.४ मीटर) है।अलकनंदा की पाँच सहायक नदियाँ हैं जो गढ़वाल क्षेत्र में ५ अलग अलग स्थानों पर अलकनंदा से मिलकर पंच प्रयाग बनाती हैं। ये हैं:(केशवप्रयाग) यह स्थान सरस्वती और अलकनंदा नदी का संगम स्थान है। सरस्वती नदी देवताल झील से निकलती हुई माना में अलकनंदा नदी में मिलने से विष्णु प्रयाग , बद्रीनाथ के समीप नीलकंठ पर्वत से प्रवाहित होने वाली  ऋषिगंगा अलकनंदा नदी में मिलने पर ऋषि संगम , हेमकुंड से उत्पन्न लक्ष्मण गंगा गोविंदघाट में  अलकनंदा से मिलती है । केशव  प्रयाग में धौलागिरि श्रेणी का कुंलुग से प्रवाहित  पश्चिमीधौली गंगा अलकनंदा से मिलती है। विष्णु प्रयाग तक धोलीगंगा की कुल लंबाई 94 km है।  त्रिशूल पर्वत का नंदाधूंगति से प्रवाहित नंदाकिनी नदी  अलकनंदा से मिलने से नंदप्रयाग , पिंडारी ग्लेशियर से निकली पिंडर नदी  कर्ण प्रयाग में  अलकनंदा से मिलती है। पिंडर नदी का  नाम कर्णगंगा है।पिंडर की प्रमुख सहायक नदी आटागाड़ है।कर्णप्रयाग तक पिंडर नदी की कुल लंबाई 105 km है। रूद्र प्रयाग में  मंदराचल पर्वत से प्रवाहित होनेवाली मंदाकिनीनदी  अलखनंदा से मिलती है। यह अलकनंदा की सबसे बड़ी सहायक नदी है।  मंदाकिनी में  मधुगंगा,वाशुकी और सोनगंगा मंदाकनी नदी में मिलती है । रुद्रप्रयाग तक मंदाकिनी की कुल लंबाई 72km है। देव प्रयाग में  भागीरथी अलखनंदा से मिलती है। देवप्रयाग टिहरी जिले में  अलकनंदा नदी को बहु कहा जाता है।देवप्रयाग तक अलकनंदा नदी की कुल लंबाई 195 km है। अलकनंदा नदी का प्रवाह उत्तराखंड के  चमोली ,रुद्रप्रयाग तथा पौड़ी जिलों  में होता है। उत्तराखण्ड राज्य का गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ के समीप चारबाड़ी हिमानी 12779 फीट ऊँचाई अर्थात 3895 मी . से मंदाकिनी नदी प्रवाहित है । निर्देशांक - 30°17′16″N 78°58′44″E / 30.28778°N 78.97889°E , लम्बाई  81.3 कि॰मी॰ , (50.5 मील) जलसम्भर आकार1,646 कि॰मी2 (636 वर्ग मील) जलसम्भर लक्षण मन्दाकिनी नदी भारत के उत्तराखण्ड राज्य  केदारनाथ के समीप चारबाड़ी से  बहने वाली  हिमनदी है। मंदाकिनी नदी में वासुगंगा नदी संगम स्थल सोनप्रयाग से प्रवाहित होती हुई  रुद्रप्रयाग में मन्दाकिनी नदी अलकनन्दा नदी में मिल जाती है। उसके बाद अलकनन्दा नदी वहाँ से बहती हुई देवप्रयाग की ओर बढ़ती है, जहाँ बह भागीरथी नदी से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है। मंदाकिनी नदी को "मन्द" ,  "शिथिल" और "धीमा" नदी कहा जाता है । भारतीय संस्कृति में भगरीथी गंगा , अलकनंदा गंगा  और मंदाकनी गंगा पवित्र है ।

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