बुधवार, दिसंबर 29, 2021

उमंग और उल्लास का दिवस नववर्ष ....


ज्योतिष शास्त्र एवं विभिन्न राजाओं द्वारा प्रारम्भ किये गए नाव वर्ष मनाने की परंपरा कायम है । वर्ष गणना आरम्भ करने वाले भिन्न भिन्न राजा द्वारा संबत का सृजन किया गया है । भारतीय संस्कृति में विक्रम पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को हिन्दू नव वर्ष ,  ग्रिगोरियन के अनुसार 01 जनवरी , शकसंबत , नेपाली संबत , हिजरी संबत का नाव वर्ष विभिन्न तिथियों में नाव वर्ष मनाया जाता है । ज्योतिष शास्त्र में काल गणना की दो पद्धति हैं। न्यूगेबायर ने हार्वर्ड से प्रकाशित  पुस्तक एसेक्ट साइंसेज ऑफ एंटिक्विटी  के अनुसार प्राचीन मिस्र में कैलेंडर गणितीय तथा  व्यावहारिक है। भारत के ज्योतिष शास्त्र में  वर्ष गणना चन्द्रमा मन का कारक होने से  चान्द्र तिथि के अनुसार होती है।  ऋतु परिवर्तन सौर मास-वर्ष के अनुसार है।  सौर वर्ष से ११ दिन छोटा चंद्र वर्ष है।  ३० या ३१ मास के बाद एक चान्द्र मास अधिक जोड़ते हैं। सौर संक्रान्ति से चंद्र वर्ष  समन्वय करते हैं । जिस चान्द्र मास में संक्रान्ति नहीं रहने से अधिक मास होता है। सौर वर्ष के साथ चान्द्र वर्ष को चलाने से संवत्सर कहते हैं । राजा के आदेश से  संवत् या शक चलता है।  कुश के गट्ठर सदृश्य  शक्तिशाली होने से शक है। बड़े कुश या स्तम्भ के आकार का वृक्ष  शक है । उत्तर भारत में साल (शक ), दक्षिण भारत में टीक (शकवन , सागवान) ,  आस्ट्रेलिया में ३०० प्रकार के युकलिप्टस शक वृक्ष के कारण  शक द्वीप था। भारत के  गोरखपुर से कोरापुट तक सालवन का क्षेत्र लघु शकद्वीप शकद्वीपीय ब्राह्मणों का क्षेत्र है। मध्य एशिया तथा दक्षिण यूरोप की बिखरी जातियों का संघ भी शक्तिशाली हो ने के कईं   शक कहते थे। शक तथा संवत् में गणित तथा व्यावहारिक दिन मास आदि भिन्न होते हैं । सूर्य संक्रान्ति के अनुसार मास का प्रारंभ प्रतिपदा तिथि  है ।  संवत् प्रवर्तक विक्रमादित्य के  ज्योतिषी वराहमिहिर की सलाह से विक्रम संवत् आरम्भ  है। ज्योतिष शास्त्र के विद्वान  वराह मिहिर की पुस्तक वृहत संहिता 13 / 3 के अनुसार  ६१२ ई .पू . से आरम्भ शक का प्रयोग किया है । राजा ब्रह्मगुप्त ने चाप (चपहानि या चाहमान) शक कहा है।  ५०० वर्षों से गणेश दैवज्ञ का ग्रहलाघव प्रचलित है जिसमें शालिवाहन शक के अनुसार गणना है। मुहूर्त चिन्तामणि आदि पुस्तकों में संवत् का प्रयोग है। गणना या दिन के हिसाब के लिये शक उपयुक्त है। उसी के अनुसार कहते हैं कि आज कौन सी तिथि होगी। अल बरूनी की पुस्तक प्राचीन देशों की काल गणना ( कैलेन्डर ऑफ एनसिंयट नेशन्स ) के अनुसार शक राजा ने कैलेण्डर नहीँ चलाया था। वे ईरान या सुमेरिया के कैलेंडर का व्यवहार करते थे। यह वैसे भी स्पष्ट है। राजा विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन द्वारा किया गया था । राजतरंगिणी के अनुसार कनिष्क कश्मीर के गोनन्द वंश का ४३वां राजा तथा शालिवाहन शक आरम्भ ७८ ई से हुई थी । उड़ीसा ,  केरल, तमिलनाडु में सौर वर्ष को संस्कृति मानते रहे हैं । ह्वेनसांग के अनुसार राजा  हर्षवर्धन शासन में ६४२ ई में हुआ था । सौर वर्ष)का आरम्भ उत्तरायण से होता है जब भीष्म पितामह ने देह त्याग किया था। रोमन कैलेण्डर  इसी दिन आरम्भ होना था पर लोगों ने ७ दिन बाद चान्द्र मास के सा आरम्भ किया। मूल वर्ष आरम्भ कि तिथि २५ दिसम्बर हो गयी जिसे कृष्ण मास या क्रिसमस नाम दिया।  रथयात्रा  अदिति युग में १७५०० ई पू . वर्ष आरम्भ का उत्सव  पुनर्वसु नक्षत्र से वर्ष आरम्भ होता था।  पुनर्वसु का देवता अदिति तथा शान्ति पाठ के अनुसार अदितिर्जातं अदितिर्जनित्वम् अदिति से वर्ष समाप्त हुआ तथा नया आरम्भ हुआ)।उसके प्रायः १८०० वर्ष बाद कार्तिकेय कैलेण्डर में धनिष्ठा नक्षत्र या माघ मास से वर्ष आरम्भ हुआ (महाभारत, उद्योग पर्व, २३०/८-१०) के अनुसार  वर्षा ऋतु का आरम्भ होता था। अतः संवत्सर को वर्ष या अब्द (अप् या जल देने वाला) भी कहते हैं। यही व्यवस्था वेदाङ्ग ज्योतिष है। पुराणों में राजाओं के राजत्व काल की गणना भाद्र शुक्ल द्वादशी से है जब वामन ने बलि से इन्द्र के तीनों लोक वापस लिये थे। यह ओड़िशा मे प्रचलितसंबत को  अंक पद्धति कहते हैं। केरल में ओणम कहते हैं ।
 ग्रिगोरियन कैलेंडर 1582 ई. से प्रारम्भ 01 जनवरी को न्यू ईयर  को 25  दिसंबर में क्रिसमस के गुजरने के बाद मनाया जाता  है । विश्व  में ग्रिगोरियन  कैलेंडर की शुरुआत 1582 में पहले रूस का जूलियन कैलेंडर प्रचलन में था । पूर्व में ग्रिगोरियन कैलेंडर में 10 महीने होते थे ।  क्रिसमस का एक दिन निश्चित करने के लिए 15 अक्टूबर 1582 को अमेरिका के एलॉयसिस लिलिअस ने ग्रिगोरियन कैलेंडर प्रारम्भ किया था । कैलेंडर को सूर्य चक्र या चंद्र चक्र की गणना पर आधारित है । चंद्र चक्र कैलेंडर में 354 दिन तथा सूर्य चक्र पर बनने वाले कैलेंडर में 365 दिन हैं । ग्रिगोरियन कैलेंडर सूर्य चक्र पर आधारित 01 जनवरी  भारत समेत विश्व  के देशों में नया साल मनाया जाता है। 715 ई. पू.  से 673 ई.  पू . तक रोम का राजा  नूमा पोंपिलस ने रोमन कैलेंडर में जनवरी को पहला महीना बनाया था । रोम का देवता जानूस के नाम पर जनवरी और युद्ध देवता मार्स के नाम पर मार्च रखा गया था ।  रोम राजा नूमा के समय में कैलेंडर में 10 महीने और  साल में 310 दिन एवं  सप्ताह में 8 दिन होते थे।  153 ई.  पू . तक 1 जनवरी को रोमन वर्ष की शुरुआत घोषित नहीं माना गया था। रोम के राजा जूलियन सीजर ने रोमन कैलेंडर में बदलाव करते हुए जनवरी को साल का पहला महीना बनाया था । जूलियन कैलेंडर में गणनाओं के आधार पर साल में 12 महीने मान्यता मिला था । जूलियस सीजर ने खगोलविदों से संपर्क करते हुए गणना करवाई। इसमें सामने आया कि पृथ्वी 365 दिन और छह घंटे में सूर्य का चक्कर लगाती है।  जूलियन कैलेंडर में वर्ष 365 दिन माने और 6 घंटे जो अतिरिक्त बचते थे उसके लिए लीप ईयर बनाने  से प्रत्येक 4 साल बाद  6 घंटा मिलकर 24 घंटा यानी एक दिन हो जाता है । प्रत्येक चौथे साल फरवरी को 29 दिन का माना गया । रोम साम्राज्य का पतन होने और 5 वीं सदी में ईसाई देशों ने जूलियन कैलेंडर में बदलाव किया।  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 25 मार्च और 25 दिसंबर को नया साल मनाना शुरू कर दिया। ईसाई मान्यता के अनुसार 25 मार्च को ही ईश्वर के विशेष दूत गैबरियल ने आकर मैरी को संदेश दिया था कि वह ईश्वर के अवतार ईसा मसीह को जन्म देंगी। वहीं, 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ था। धर्म गुरु  सेंट बीड  के अनुसार  एक साल में 365 दिन और 6 घंटे न होकर 365 दिन 5 घंटे और 46 सेकंड होते हैं । पोप ग्रेगरी ने 1582 में 01 जनवरी को  कैलेंडर पेश करने के कारण  1 जनवरी को नए साल की शुरुआत माना गया है । ग्रेगोरियन कैलेंडर को अक्टूबर 1582 से अपनाया वर्ष गणना आरम्भ करने वाले भिन्न भिन्न राजा द्वारा संबत का सृजन किया गया है । ज्योतिष शास्त्र में काल गणना की दो पद्धति हैं। न्यूगेबायर ने हार्वर्ड से प्रकाशित  पुस्तक एसेक्ट साइंसेज ऑफ एंटिक्विटी  के अनुसार प्राचीन मिस्र में एक साथ दो प्रकार के कैलेंडर चलते थे, एक गणितीय तथा दुसरा व्यावहारिक है। भारत के ज्योतिष शास्त्र में  वर्ष गणना चन्द्रमा मन का कारक होने से  चान्द्र तिथि के अनुसार होती है।  ऋतु परिवर्तन सौर मास-वर्ष के अनुसार है।  सौर वर्ष से ११ दिन छोटा चंद्र वर्ष है।  ३० या ३१ मास के बाद एक चान्द्र मास अधिक जोड़ते हैं। सौर संक्रान्ति से चंद्र वर्ष  समन्वय करते हैं । जिस चान्द्र मास में संक्रान्ति नहीं रहने से अधिक मास होता है। सौर वर्ष के साथ चान्द्र वर्ष को चलाने से संवत्सर कहते हैं । राजा के आदेश से  संवत् या शक चलता है।  कुश के गट्ठर सदृश्य  शक्तिशाली होने से शक है। बड़े कुश या स्तम्भ के आकार का वृक्ष  शक है । उत्तर भारत में साल (शक ), दक्षिण भारत में टीक (शकवन , सागवान) ,  आस्ट्रेलिया में ३०० प्रकार के युकलिप्टस शक वृक्ष के कारण  शक द्वीप था। भारत के  गोरखपुर से कोरापुट तक सालवन का क्षेत्र लघु शकद्वीप शकद्वीपीय ब्राह्मणों का क्षेत्र है। मध्य एशिया तथा दक्षिण यूरोप की बिखरी जातियों का संघ भी शक्तिशाली हो ने के कईं   शक कहते थे। शक तथा संवत् में गणित तथा व्यावहारिक दिन मास आदि भिन्न होते हैं । सूर्य संक्रान्ति के अनुसार मास का प्रारंभ प्रतिपदा तिथि  है ।  संवत् प्रवर्तक विक्रमादित्य के  ज्योतिषी वराहमिहिर की सलाह से विक्रम संवत् आरम्भ  है। ज्योतिष शास्त्र के विद्वान  वराह मिहिर की पुस्तक वृहत संहिता 13 / 3 के अनुसार  612 ई .पू . से आरम्भ शक का प्रयोग किया है । राजा ब्रह्मगुप्त ने चाप (चपहानि या चाहमान) शक कहा है। 500 वर्षों से गणेश दैवज्ञ का ग्रहलाघव प्रचलित है जिसमें शालिवाहन शक के अनुसार गणना है। मुहूर्त चिन्तामणि आदि पुस्तकों में संवत् का प्रयोग है। गणना या दिन के हिसाब के लिये शक उपयुक्त है।  अल बरूनी की पुस्तक प्राचीन देशों की काल गणना कैलेन्डर ऑफ एनसिंयट नेशन्स के अनुसार शक राजा ने कैलेण्डर  था ।  राजा विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन द्वारा किया गया था । राजतरंगिणी के अनुसार कनिष्क कश्मीर के गोनन्द वंश का ४३वां राजा तथा शालिवाहन शक आरम्भ 78 ई.   से हुई थी । उड़ीसा ,  केरल, तमिलनाडु में सौर वर्ष को संस्कृति मानते रहे हैं । ह्वेनसांग के अनुसार राजा  हर्षवर्धन शासन में 642 ई . में हुआ था । सौर वर्ष)का आरम्भ उत्तरायण में भीष्म पितामह ने देह त्याग किया था। रोमन कैलेण्डर  इसी दिन आरम्भ होना था पर लोगों ने ७ दिन बाद चान्द्र मास के सा आरम्भ किया। मूल वर्ष आरम्भ कि तिथि २५ दिसम्बर हो गयी जिसे कृष्ण मास या क्रिसमस नाम दिया।  रथयात्रा  अदिति युग में 17500 ई. पू .  वर्ष आरम्भ का उत्सव  पुनर्वसु नक्षत्र से वर्ष आरम्भ होता था।  पुनर्वसु का देवता अदिति तथा शान्ति पाठ के अनुसार अदितिर्जातं अदितिर्जनित्वम।  १८०० वर्ष बाद कार्तिकेय कैलेण्डर में धनिष्ठा नक्षत्र या माघ मास से वर्ष आरम्भ हुआ । (महाभारत, उद्योग पर्व, २३०/८-१०)   संवत्सर को वर्ष या अब्द कहा जाता हैं।  वेदाङ्ग ज्योतिष में है। पुराणों में राजाओं के राजत्व काल की गणना भाद्र शुक्ल द्वादशी  है । भगवान  वामन ने राजा  बलि से इन्द्र के तीनों लोक वापस लिये थे। उड़ीसा  में प्रचलित अंक पद्धति हैं। केरल में ओणम कहते है। वेध या पितर कार्यों के लिए मध्याह्न से दिन आरम्भ होता है। 
 ग्रिगोरियन कैलेंडर 1582 ई. से प्रारम्भ 01 जनवरी को न्यू ईयर  को 25  दिसंबर में क्रिसमस के गुजरने के बाद मनाया जाता  है । विश्व  में ग्रिगोरियन  कैलेंडर की शुरुआत 1582 में पहले रूस का जूलियन कैलेंडर प्रचलन में था । पूर्व में ग्रिगोरियन कैलेंडर में 10 महीने होते थे ।  क्रिसमस का एक दिन निश्चित करने के लिए 15 अक्टूबर 1582 को अमेरिका के एलॉयसिस लिलिअस ने ग्रिगोरियन कैलेंडर प्रारम्भ किया था । कैलेंडर को सूर्य चक्र या चंद्र चक्र की गणना पर आधारित है । चंद्र चक्र कैलेंडर में 354 दिन तथा सूर्य चक्र पर बनने वाले कैलेंडर में 365 दिन हैं । ग्रिगोरियन कैलेंडर सूर्य चक्र पर आधारित 01 जनवरी  भारत समेत विश्व  के देशों में नया साल मनाया जाता है। 715 ई. पू.  से 673 ई.  पू . तक रोम का राजा  नूमा पोंपिलस ने रोमन कैलेंडर में जनवरी को पहला महीना बनाया था । रोम का देवता जानूस के नाम पर जनवरी और युद्ध देवता मार्स के नाम पर मार्च रखा गया था ।  रोम राजा नूमा के समय में कैलेंडर में 10 महीने और  साल में 310 दिन एवं  सप्ताह में 8 दिन होते थे।  153 ई.  पू . तक 1 जनवरी को रोमन वर्ष की शुरुआत घोषित नहीं माना गया था। रोम के राजा जूलियन सीजर ने रोमन कैलेंडर में बदलाव करते हुए जनवरी को साल का पहला महीना बनाया था । जूलियन कैलेंडर में गणनाओं के आधार पर साल में 12 महीने मान्यता मिला था । जूलियस सीजर ने खगोलविदों से संपर्क करते हुए गणना करवाई। इसमें सामने आया कि पृथ्वी 365 दिन और छह घंटे में सूर्य का चक्कर लगाती है।  जूलियन कैलेंडर में वर्ष 365 दिन माने और 6 घंटे जो अतिरिक्त बचते थे उसके लिए लीप ईयर बनाने  से प्रत्येक 4 साल बाद  6 घंटा मिलकर 24 घंटा यानी एक दिन हो जाता है । प्रत्येक चौथे साल फरवरी को 29 दिन का माना गया । रोम साम्राज्य का पतन होने और 5 वीं सदी में ईसाई देशों ने जूलियन कैलेंडर में बदलाव किया।  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 25 मार्च और 25 दिसंबर को नया साल मनाना शुरू कर दिया। ईसाई मान्यता के अनुसार 25 मार्च को ही ईश्वर के विशेष दूत गैबरियल ने आकर मैरी को संदेश दिया था कि वह ईश्वर के अवतार ईसा मसीह को जन्म देंगी। वहीं, 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ था। धर्म गुरु  सेंट बीड  के अनुसार  एक साल में 365 दिन और 6 घंटे न होकर 365 दिन 5 घंटे और 46 सेकंड होते हैं । पोप ग्रेगरी ने 1582 में 01 जनवरी को  कैलेंडर पेश करने के कारण  1 जनवरी को नए साल की शुरुआत माना गया है । ग्रेगोरियन कैलेंडर को अक्टूबर 1582 से अपनाया गया। कैथोलिक देशों ने  ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया।  स्पेन, पुर्तगाल और इटली के अधिकांश देश शामिल थे। ब्रिटिश साम्राज्य ने 1752 में और स्वीडन ने 1753 में  रूसी क्रांति के बाद  ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया लिया गया।  फ्रांस तथा भारत में 1752 में  ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया गया।  भारत में कैलेंडर शक कैलेंडर को  22 मार्च, 1957 को अपनाया है । विक्रम पंचांग के नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ,   पहला महीना चैत्र मास और साल में 365 दिन एवं अधिकमास होते हैं।

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