बुधवार, दिसंबर 15, 2021

भगवान दत्तात्रेय और माता अनुसूया....


स्मृतियों एवं पुरणों में त्रिदेव अर्थात दत्तात्रेय का उल्लेख किया गया है । महर्षि अत्रि की सहधर्मिणी सतीत्व के प्रतिमान रूप अनुसूया के पुत्र दत्तात्रेय  थे।  माँ अनुसूया ब्रह्मा, विष्णु, महेश की  पुत्र की प्राप्ति के लिए कड़े तप में लीन होने के कारण माता  सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती को जलन होने लगी थी ।माता सरस्वती ने भगवान ब्रह्मा ,माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु एवं माता पार्वती ने भगवान शिव से  कहा कि  भू लोक जाकर देवी अनुसुया की परीक्षा लें। ब्रह्मा, विष्णु और महेश संन्यासियों के वेश में अपनी जीवनसंगिनियों के कहने पर देवी अनुसुया की तप की परीक्षा लेने के लिए पृथ्वी लोक चले गए। अनुसुया के पास जाकर संन्यासी के वेश में गए त्रिदेव ने उन्हें भिक्षा देने को कहा, लेकिन उनकी  शर्त  थी। अनुसुया के पतित्व की परीक्षा लेने के लिए त्रिदेव ने उनसे कहा कि वह भिक्षा उनके सामान्य रूप में नहीं बल्कि अनुसुया की नग्न अवस्था में चाहिए। त्रिदेव की ये बात सुनकर अनुसुया पहले तो हड़बड़ा गईं लेकिन संभलकर उन्होंने मंत्र का जाप कर अभिमंत्रित जल उन तीनों संन्यासियों पर डाला।पानी की छींटे पड़ते ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ही शिशु रूप में बदल गए थे । शिशु रूप लेने के बाद अनुसुया ने उन्हें भिक्षा के रूप में स्तनपान करवाया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश के स्वर्ग वापस ना लौट पाने की वजह से उनकी पत्नियां चिंतित हो गईं और स्वयं देवी अनुसुया के पास आईं। सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें उनके पति सौंप दें। अनुसुया और उनके पति ने तीनों देवियों की बात मान ली किन्तु अनुसूया ने कहा "कि त्रिदेवों ने मेरा स्तनपान किया है इसलिए किसी ना किसी रूप में इन्हें मेरे पास रहना होगा अनुसुया की बात मानकर त्रिदेवों ने उनके गर्भ में दत्तात्रेय , दुर्वासा और चंद्रमा रूपी अपने अवतारों को स्थापित कर दिया , जिनमें दतात्रेय तीनों देवों के अवतार थे । दत्तात्रेय का शरीर तो एक , तीन सिर और छ: भुजाएं थीं। विशेष रूप से दत्तात्रेय को विष्णु का अवतार माना जाता  है । ब्रह्मा ब्रह्मलोक में ध्यान में लीन थे की तभी भगवान शंकर वहां पधारे वे ब्रह्मा का ध्यान टूटने का इंतजार करने लगे किन्तु ब्रह्मदेव ने अपने नेत्र नहीं खोले भगवान शिव की शांति का बांध टूटने लगा उन्होंने अपने डमरू से भी ब्रह्मदेव को जगाने का प्रयास किया किन्तु उनका ध्यान ही नहीं टूटा भगवान ब्रह्मा की जब आखें खुली तब उन्होंने शिवजी से माफ़ी मांगी किन्तु शिवजी को शांत नहीं कर सके उन्होंने भगवान सत्यनारायण का ध्यान किया जिससे भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांत किया किन्तु उनका अंश आधे से ज्यादा नष्ट हो चुका था | तब देवी अनुसूया ने जब तीनों में से दो शिशु अर्थात् चंद्रदेव और दुर्वासा को जन्म दिया ( दुर्वासा सबसे बड़े और चंद्रमा दूसरे स्थान के पुत्र थे ) जब तीसरे शिशु ( अर्थात् दतात्रेय ) का जन्म नहीं हुआ किन्तु अनुसूया को प्रसव पीड़ा होती रही तब ब्रह्मा जी और शिवजी को सारी बात समझ आ गई तब उन्होंने अपने कुछ अंश भेजे जिससे दतात्रेय के गर्भ में ही तीन सिर और छ: भुजाएँ हो गई | दत्तात्रेय के भाई चंद्र देव और ऋषि दुर्वासा थे। चंद्रमा को ब्रह्मा और ऋषि दुर्वासा को शिव का रूप ही माना जाता है।जिस दिन दत्तात्रेय का जन्म हुआ । राजा यदु ने दत्तात्रेय से गुरु का नाम पूछने पर भगवान दत्तात्रेय ने कहा : "आत्मा  मेरा  गुरुओं  में १) पृथ्वी , २) जल ,३) वायु ,४) अग्नि ,५) आकाश ,६) सूर्य ,७) चन्द्रमा ,८) समुद्र, ९) अजगर ,१०) कपोत ,११) पतंगा ,१२) मछली ,१३) हिरण ,१४) हाथी ,१५) मधुमक्खी ,१६) शहद निकालने वाला१७) कुरर पक्षी ,१८) कुमारी कन्या ,१९) सर्प ,२०) बालक ,२१) पिंगला वैश्या ,२२) बाण बनाने वाला ,२३) मकड़ी २४) भृंगी कीट हैं ।आदिशंकराचार्य के अनुसार भगवान दत्तात्रेय :- आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः , मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते। ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले , प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।।"यथा - "जो आदि में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अन्त में सदाशिव है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है। ब्रह्मज्ञान जिनकी मुद्रा है, आकाश और भूतल जिनके वस्त्र है तथा जो साकार प्रज्ञानघन स्वरूप है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है।" भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा-विष्णु-महेश के अवतार माने जाते हैं।भगवान शंकर का साक्षात रूप महाराज दत्तात्रेय में मिलता है और तीनो ईश्वरीय शक्तियों से समाहित महाराज दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफल और जल्दी से फल देने वाली है। महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगम्बर रहे थे।दत्तात्रेय के अवतार में श्रीपाद वल्लभ , नृसिंह सरस्वती , स्वामी समर्थ ,मणिक प्रभु है । दत्तात्रेय  का दत्तात्रेय सम्प्रदाय या दत्त सम्प्रदाय मानवोचित तथा सर्वांगीण विकास के लिए दत्त संस्कृति का  प्रभाव महाराष्ट्र, कर्नाटक  ,गिरनार ,भटगाव- नेपाल ,श्रीचांगदेव ,राऊळ माहूर ,गाणगापूर ,नृसिंहवाडी ,अक्कलकोट ,गरुडेश्वर ,विजापूर ,कडगंची ,सायंदेव,दत्तक्षेत्र ,कर्नाटक ,कोल्हापूर ,माणिकनगर ,बीदर ,चौल ,अष्टे ,खामगाव - बुलढाणा ,अंबेजोगाई ,सांखळी (गोवा) और नारेश्वर का क्षेत्र में है ।भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठे अवतार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र को भगवान दत्तात्रेय में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश  की शक्तियां समाहित हैं। दत्तात्रेय जी ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी और इन्हीं के नाम पर ही दत्त समुदाय का उदय हुआ। दक्षिण भारत में  प्रसिद्ध मंदिर है। पुरणों के अनुसार  के अनुसार, एक बार तीन देवियों को अपने सतीत्व यानी पतिव्रता धर्म पर अभिमान हो गया। तब भगवान विष्णु ने लीला रची। तब नारद जी ने तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी के समक्ष अनसूया के पतिव्रता धर्म की प्रशंसा कर दी। इस पर तीनों देवियों ने अपने पतियों से अनसूया के पतिधर्म की परीक्षा लेने का हठ किया । तब त्रिदेव ब्राह्मण के वेश में महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे, तब महर्षि अत्रि घर पर नहीं थे। तीन ब्राह्मणों को देखकर अनसूया उनके पास गईं। वे उन ब्राह्मणों का आदरसत्कार करने के लिए आगे बढ़ी तब उन ब्राह्मणों ने कहा कि जब तक वे उनको अपनी गोद में बैठाकर भोजन नहीं कराएंगी, तब तक वे उनकी आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे। उनके इस शर्त से अनसूया चिंतित हो गईं। फिर उन्होंने अपने तपोबल से उन ब्राह्मणों की सत्यता जान गईं। भगवान विष्णु और अपने पति अत्रि को स्मरण करने के बाद उन्होंने कहा कि यदि उनका पतिव्रता धर्म सत्य है तो से तीनों ब्राह्मण 6 माह के शिशु बन जाएं। अनसूया ने अपने तपोबल से त्रिदेवों को शिशु बना दिया। शिशु बनते ही तीनों रोने लगे।तब अनसूया ने उनको अपनी गोद में लेकर दुग्धपान कराया और उन तीनों को पालने में रख दिया। उधर तीनों देवियां अपने पतियों के वापस न आने से चिंतित हो गईं। तब नारद जी ने उनको सारा घटनाक्रम बताया। इसके पश्चात तीनों देवियों को अपने किए पर बहुत ही पश्चाताप हुआ। उन तीनों देवियों ने अनसूया से क्षमा मांगी और अपने पतियों को मूल स्वरूप में लाने का निवेदन किया। महर्षि अत्रि की सहधर्मिणी सतीत्व के प्रतिमान रूप अनुसूया के पुत्र दत्तात्रेय  थे।  माँ अनुसूया ब्रह्मा, विष्णु, महेश की  पुत्र की प्राप्ति के लिए कड़े तप में लीन हो गईं, जिससे तीनों देवों की अर्धांगिनियां सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती को जलन होने लगी।तीनों ने अपनी पतियों से कहा कि वे भू लोक जाएं और वहां जाकर देवी अनुसुया की परीक्षा लें। ब्रह्मा, विष्णु और महेश संन्यासियों के वेश में अपनी जीवनसंगिनियों के कहने पर देवी अनुसुया की तप की परीक्षा लेने के लिए पृथ्वी लोक चले गए। अनुसुया के पास जाकर संन्यासी के वेश में गए त्रिदेव ने उन्हें भिक्षा देने को कहा, लेकिन उनकी एक शर्त भी थी। अनुसुया के पतित्व की परीक्षा लेने के लिए त्रिदेव ने उनसे कहा कि वह भिक्षा मांगने आए हैं लेकिन उन्हें भिक्षा उनके सामान्य रूप में नहीं बल्कि अनुसुया की नग्न अवस्था में चाहिए। अर्थात देवी अनुसुया उन्हें तभी भिक्षा दे पाएंगी, जब वह त्रिदेव के समक्ष नग्न अवस्था में उपस्थित हों।त्रिदेव की ये बात सुनकर अनुसुया पहले तो हड़बड़ा गईं लेकिन फिर थोड़ा संभलकर उन्होंने मंत्र का जाप कर अभिमंत्रित जल उन तीनों संन्यासियों पर डाला।पानी की छींटे पड़ते ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ही शिशु रूप में बदल गए। शिशु रूप लेने के बाद अनुसुया ने उन्हें भिक्षा के रूप में स्तनपान करवाया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश के स्वर्ग वापस ना लौट पाने की वजह से उनकी पत्नियां चिंतित हो गईं और स्वयं देवी अनुसुया के पास आईं। सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें उनके पति सौंप दें। अनुसुया और उनके पति ने तीनों देवियों की बात मान ली किन्तु अनुसूया ने कहा "कि त्रिदेवों ने मेरा स्तनपान किया है इसलिए किसी ना किसी रूप में इन्हें मेरे पास रहना होगा अनुसुया की बात मानकर त्रिदेवों ने उनके गर्भ में दत्तात्रेय , दुर्वासा और चंद्रमा रूपी अपने अवतारों को स्थापित कर दिया , जिनमें दतात्रेय तीनों देवों के अवतार थे । दत्तात्रेय का शरीर तो एक था लेकिन उनके तीन सिर और छ: भुजाएं थीं। विशेष रूप से दत्तात्रेय को विष्णु का अवतार माना जाता  है । ब्रह्मा ब्रह्मलोक में ध्यान में लीन थे की तभी भगवान शंकर वहां पधारे वे ब्रह्मा का ध्यान टूटने का इंतजार करने लगे किन्तु ब्रह्मदेव ने अपने नेत्र नहीं खोले भगवान शिव की शांति का बांध टूटने लगा उन्होंने अपने डमरू से भी ब्रह्मदेव को जगाने का प्रयास किया किन्तु उनका ध्यान ही नहीं टूटा भगवान ब्रह्मा की जब आखें खुली तब उन्होंने शिवजी से माफ़ी मांगी किन्तु शिवजी को शांत नहीं कर सके उन्होंने भगवान सत्यनारायण का ध्यान किया जिससे भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांत किया किन्तु उनका अंश आधे से ज्यादा नष्ट हो चुका था | तब देवी अनुसूया ने जब तीनों में से दो शिशु अर्थात् चंद्रदेव और दुर्वासा एवं  दतात्रेय ) का जन्म  हुआ । अनुसूया को प्रसव पीड़ा होती रही तब ब्रह्मा जी और शिवजी को सारी बात समझ आ गई तब उन्होंने अपने कुछ अंश भेजे जिससे दतात्रेय के गर्भ में ही तीन सिर और छ: भुजाएँ हो गई | दत्तात्रेय के अन्य दो भाई चंद्र देव और ऋषि दुर्वासा थे। चंद्रमा को ब्रह्मा और ऋषि दुर्वासा को शिव का रूप ही माना जाता है।जिस दिन दत्तात्रेय का जन्म हुआ । हिन्दू धर्म के लोग दत्तात्रेय जयंती के तौर पर मनाते हैं ।

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