रविवार, फ़रवरी 20, 2022

भगवान नरसिंह का तपोभूमि जोशीमठ....


 उत्तराखण्ड राज्य के चमोली ज़िले में  23 00 मीटर अर्थात 9200 फीट ऊँचाई पर स्थित  औली को  बुग्याल ,  पर्वतीय मर्ग (घास) से ढका मैदान कहा गया है ।औली का निर्देशांक: 30°31′44″N 79°34′12″E / 30.529°N 79.570°E है । देवदार के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं। नंदा देवी के पीछे सूर्योदय देखना  सुखद है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान यहाँ से 41 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा बर्फ गिरना और रात में खुले आकाश को देखना मन को प्रसन्न कर देता है। शहर की भागती-दौड़ती जिंदगी से दूर औली पर्यटक स्थल है।  जोशीमठ महागुरू आदि शंकराचार्य का ज्ञान स्थल  जोशीमठ  में नरसिंह, गरूड़ मंदिर आदि शंकराचार्य का मठ और अमर कल्प वृक्ष 2,500 वर्ष पुराना है। जोशीमठ के समीप औली  से नंदा देवी, त्रिशूल, कमेत, माना पर्वत, दूनागिरी, बैठातोली और नीलकंठ का बहुत ही सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। जोशीमठ में ८वीं सदी में धर्मसुधारक आदि शंकराचार्य का  ज्ञान प्राप्त एवं प्रथम मठ की स्थापना स्थल है । निर्देशांक: 30°34′N 79°34′E / 30.57°N 79.57°E तथा ऊँचाई1800 मी (5,900 फीट) पर स्थित जोशीमठ की जनसंख्या (2011)  के अनुसार जनसंख्या 16,709 है । ललितशूर के तांब्रपत्र के अनुसार जोशीमठ कत्यूरी राजाओं की  राजधानी कार्तिकेयपुर था।  सेनापति कंटुरा वासुदेव ने गढ़वाल की उत्तरी सीमा पर अपना शासन स्थापित किया था । वासुदेव कत्यूरी के  कत्यूरी वंश  ने 7वीं से 11वीं सदी के बीच कुमाऊं एवं गढ़वाल पर शासन किया। जोशी मठ को कार्तिकेय पुर , ज्योतिषपीठ , ज्योतिर्मठ कहा जाता है ।आदिशंकराचार्य द्वारा 515 ई. में जोशीमठ में अवस्थित सहतूत वृक्ष की छाया में ज्ञानप्राप्ति के बाद शांकरभाष्य की रचना की गयी थी । प्रारंभ में जोशीमठ का क्षेत्र समुद्र में  पहाड़ उदित होने के बाद भगवान  नरसिंह तपोभूमि थी ।आदि शंकराचार्य द्वारा बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना तथा  नम्बूद्रि पुजारियों को बिठाने के समय से जोशीमठ बद्रीनाथ के  ,हेमंत शिशिर और वसंत ऋतु  , कार्तिक , अगहन ,  पुष्य , माघ और फाल्गुन  6 महीनों के दौरान जब बद्रीनाथ मंदिर बर्फ से ढंका होता है तब भगवान बद्रीविशाल बद्रीनाथ  की उपासना पूजा जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में होती है। ई.टी. एटकिंस दी हिमालयन गजेटियर, (वोल्युम III, भाग I, वर्ष 1982) के अनुसार  जोशीमठ शहर की वास्तुकला , “विष्णुप्रयाग से इस शहर में प्रवेश किनारे के ऊपर से होता है जहां स्लेटों तथा पत्थरों से कटी सीढ़ियां , भगवान  नरसिंह की प्रतिमा वाला भवन का निर्माण नुकीले भवन  है जिसके छत की ढलान एक तांबे की चादर से ढंकी रहती है। नरसिंह मंदिर के सामने  खुला मैदान में पत्थर की एक मांद है जिसमें दो नल हैं जिससे लगातार पानी का बहाव होता रहता है और इसमें पानी की आपूर्त्ति गांव के दक्षिण पहाड़ी पर एक झरने से होती है।   दस फीट ऊंचे चबूतरे पर महान पुरातात्विक चिह्नों के कई मंदिर मैदान के एक ओर श्रेणीबद्ध हैं। क्षेत्र के बीच में 30 फीट स्थल पर दीवालों के अंदर विष्णु मंदिर है। आदि शंकराचार्य अपने 109 शिष्यों के साथ जोशीमठ आये तथा अपने चार पसंदीदा एवं सर्वाधिक विद्वान शिष्यों को चार मठों की गद्दी पर आसीन कर दिया, जिसे उन्होंने देश के चार कोनों में स्थापित किया था। उनके शिष्य ट्रोटकाचार्य इस प्रकार ज्योतिर्मठ के प्रथम शंकराचार्य हुए। नरसिंह और वासुदेव मंदिरों के पुजारी परंपरागत डिमरी लोग हैं। यह सदियों पहले कर्नाटक के एक गांव से जोशीमठ पहुंचे। उन्हें जोशीमठ के मंदिरों में पुजारी और बद्रीनाथ के मंदिरों में सहायक पुजारी का अधिकार सदियों पहले गढ़वाल के राजा द्वारा दिया गया। वह गढ़वाल के सरोला समूह के ब्राह्मणों में से है। शहर की बद्रीनाथ से निकटता के कारण यह सुनिश्चित है कि वर्ष में 6 महीने रावल एवं अन्य बद्री मंदिर के कर्मचारी जोशीमठ में ही रहें। आज भी यह परंपरा जारी है। त्रिशूल शिखर से उतरती ढाल पर, संकरी जगह पर अलकनंदा के बांयें किनारे पर जोशीमठ स्थित है। इसके दोनों ओर एक चक्राकार ऊंचाई की छाया है और खासकर उत्तर में एक ऊंचा पर्वत उच्च हिमालय से आती ठंडी हवा को रोकता है। यह तीन तरफ बर्फ से ढंके दक्षिण में त्रिशूल (7,250 मीटर), उत्तर पश्चिम में बद्री शिखर (7,100 मीटर), तथा उत्तर में कामत (7,750 मीटर) शिखर से घिरा है। हर जगह से हाथी की शक्ल धारण किये हाथी पर्वत को देखा जा सकता है। फिर भी इसकी सबसे अलौकिक विशेषता है– एक पर्वत, जो एक लेटी हुई महिला की तरह है और इसे स्लीपिंग ब्यूटी के नाम से पुकारा जाता है । अलकनंदा के किनारे जोशीमठ के नजदीक का इलाका वनस्पतियों का धनी है। यहां की खासियत है– एन्सलिया एपटेरा, बारबरिस स्पप, सारोकोका प्रियुनिफॉरमस स्पप  पौधे, जो यहां के वन में पैदा होते हैं, जहां की जलवायु नम है। यहां बंज बलूत के जंगल भी हैं, जहां बुरांस, अयार, कारपीनस, विमिनिया तथा ईलेक्स ओडोराला के पेड़ पाये जाते हैं। तिलौज वन में लौरासिया, ईलेक्स, बेतुला अलन्वायड्स के पेड़ तथा निचले नीले देवदार के वन में यूसचोल्जिया पोलिस्टाच्या, विबुमन फोक्टेन्स, रोसा माउक्रोफाइला, विबुमन कोटोनिफोलियन, एक्सायकेरिया एसीरीफोलिया आदि झाड़ियां होती हैं।  जोशीमठ शहर 3,000 वर्ष पुराना है जिसके महान धार्मिक महत्त्व को यहां के कई मंदिर दर्शाते हैं। यह बद्रीनाथ गद्दी का जाड़े का स्थान बद्रीनाथ मंदिर के जाड़े का बद्रीनाथ गद्दी एवं बद्रीनाथ का पहुंच शहर है। औली रज्जुमार्ग तथा चढ़ाई के अवसर  प्राचीन एवं पौराणिक स्थल है। ज्योतिर्मठ, कल्पवृक्ष तथा आदि शंकराचार्य के पूजास्थल की गुफा है और इसके नीचे बद्रीनाथ की ओर बाहर निकलने पर जोशीमठ के दो प्रमुख आकर्षण नरसिंह मंदिर तथा वासुदेव मंदिर जोगी झरना , कल्पवृक्ष , शंकराचार्य गुफा स्थित हैं। जोशीमठ से  द्रोणगिरी, कामेत, बरमाल, माना, हाथी-घोड़ी-पालकी, मुकेत, बरथारटोली, नीलकंठ एवं नंदा देवी  पर्वतों के मनोरम दृश्य होते हैं।  । 6150 फीट (1875 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित हिमालय पर्वतारोहण अभियानों, ट्रेकिंग ट्रेल्स और बद्रीनाथ  तीर्थ केंद्रों का प्रवेश द्वार और आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित प्रमुख पीठों में  है । जोशीमठ में  हेमकुंड ट्रस्ट द्वारा संचालित गुरुद्वारा है । 7 वीं और 11 वीं शताब्दी के मध्य में  कत्यूरी राजाओं ने कुमाऊं में "कत्यूर" बैजनाथ  घाटी में अपनी राजधानी से अलग-अलग क्षेत्र पर शासन किया। कत्यूरी वंश की स्थापना वासुदेव कत्यूरी ने की थी। जोशीमठ के प्राचीन बसदेव मंदिर का श्रेय वासु देव को जाता है।  वासु देव बौद्ध मूल के थे, लेकिन बाद में उन्होंने ब्राह्मणवादी प्रथाओं का पालन किया और कत्यूरी राजाओं की ब्राह्मणवादी प्रथाओं को आदि शंकराचार्य 788-820 ई. के अभियान के लिए सक्रिय थे । कत्यूरी राजाओं को 11वीं शताब्दी ई. में चांद राजाओं ने विस्थापित कर दिया था।  7 फरवरी 2021 को उत्तराखंड के चमोली जिले के नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूट जाता है , जिससे ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी से रिनी , धौलीगंगा बांध , ऋषि गंगा बांध, तपोवन विष्णुगढ़ में विनाशकारी बाढ़ आती रही है। जोरदार अभियान के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। कत्यूरी राजाओं को 11वीं शताब्दी ई. में चांद राजाओं ने विस्थापित कर दिया था।  7 फरवरी 2021 को उत्तराखंड के चमोली जिले के नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूट जाता है , जिससे ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी से रिनी , धौलीगंगा बांध , ऋषि गंगा बांध, तपोवन विष्णुगढ़ में विनाशकारी बाढ़ आती रही है। ज्योतिर्मठ परिभ्रमण के दौरान साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक द्वारा ज्योतिर्मठ में स्थापित भगवान नरसिंह , आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित मठ , भगवान सूर्य , हनुमान जी , झरने , मैन काली अनेक मंदिर , मूर्तियां , औली पर्यटन स्थल, गुरुद्वारा ,अलकनंदा नदी का दर्शन किया गया है ।

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