सृष्टि के प्रारंभ के पश्चात ब्रह्मा जी ने मानव सृष्टि के लिए सनक , सनन्दन ,सनातन एवं सनत्कुमार को उत्पन्न किया था । परंतु वे मोक्ष मार्ग का अनुसरण कर ब्रह्मा जी के उद्देश्य की पूर्ति नही कर परमात्मा में तल्लीन रहने लगे थे । सनक सनंदन , सनातन और सनत्कुमार द्वारा ब्रह्मा जी का आज्ञा न मानकर तिरस्कार करने के कारण असह्य क्रोध से ब्रह्मा जी की भौहों के बीच में एक नील - लोहित बालक के रूप में प्रकट होने से देवताओं के भगवान् भव ( रूद्र ) का अवतरण हुआ था । भव रो रो कर कहने लगे कि हे विधाता ! मेरे नाम और रहने के स्थान बतलाइये । भव की प्रार्थना पूर्ण करने के लिये ब्रह्मा जी ने कहा कि , ' रोओ मत , मैं अभी तुम्हारी इच्छा पूरी करता हूँ । देवश्रेष्ठ ! तुम जन्म लेते ही बालक के समान फूट - फूट कर रोने लगे इसलिए प्रजा तुम्हें ' रूद्र ' पुकारेगी तथा रहने के लिए पहले से स्थान निर्धारित कर दिए गए हैं । रूद्र का निवास हृदय में मन्यु की रुद्राणी धी , इन्द्रिय में मनु , वृति रुद्राणी , प्राण में महीनस एवं रुद्राणी उशना , आकाश में महान रुद्राणी उमा , वायु में शिव रुद्राणी नियुत, अग्नि में ऋतध्वज रुद्राणी सर्पि , जल में उग्ररेता रुद्राणी इला , पृथिवी में भव रुद्राणी अम्बिका , सूर्य में काल , रुद्राणी इरावती , चंद्रमा में वामदेव रुद्राणी सुधा और तप में धृतव्रत एवं रुद्राणी के रूप में दीक्षा रहेगी । भगवान रुद्र द्वारा विभिन्न स्थानों पर राह कर मानव सृष्टि की रचना भिन्न नामों एवं रुद्राणी द्वारा की की गई है । भगवान शिव को 11 रुद्री वेलपत्र अर्पित कर सृष्टिकर्ता शिव की उपासना किया जाता है । प्रथम रुद्री मन्यु , द्वितीय मनु , तृतीय प्राण ,चतुर्थ आकाश , पंचम वायु ,अग्नि षष्ट , सप्तम जल , अष्टम पृथिवी , नवम सूर्य , दशम चंद्रमा और एकादश तप को तीन पत्तो का वेलपत्र भगवान शिव को अर्पित कर 33 कोटि ( प्रकार ) की देवों की उपासना करते है ।
सृष्टि का प्रारंभ में पृथिवी पर भगवान शिव का अवतरण भव और रुद्राणी के रूप में माता अम्बिका फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी महाशिवरात्रि को हुआ था । पुरणों के अनुसार सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग के उदय एवं भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। कश्मीर में शैव धर्म के अनुयायियों द्वारा हेराथ , हेरथ की उपासना किया जाता है । समुद्र मंथन से उत्पन्न हलाहल पैदा होने से ब्रह्माण्ड को नष्ट के लिए भगवान शिव ने हलाहल को कण्ठ में रख लिया था। हलाहल पीने के कारण भगवान शिव का गला नीला हो गया था। भगवान शिव के हलाहल का ग्रहण करने के बाद हलाहल कसे त्रस्त भगवान शिव का उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। भगवान भगवान शिव के चिन्तन में सतर्कता रखी। शिव का आनन्द लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे थे । सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने विश्व को बचाया था ।
भगवान शिव का बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) की उपासना त्तथा पूजा के लिए स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग के रूप में बारह ज्योर्तिलिंग स्थापित हैं। गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित सोमनाथ , मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग , उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहाँ शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था। मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदाने देने हुए ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया , गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग , झारखंड के देवघर जिले का बैद्यनाथ धाम में स्थापित रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग , महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग। त्र्यंम्बकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिं , घृष्णेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गाँव में स्थापित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग , केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग , हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है। गंगा किनारे काशी बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग और रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग अवस्थित है । नेपाल के काठमांडू में पशुपति नाथ स्थित है । बिहार के गया जिले का गया में पितामहेश्वर , जहानाबाद जिले का बराबर पर्वत समूह के सूर्यान्क गिरी पर सिद्धेश्वर , औरंगाबाद जिले के गोह प्रखंड के देवकुण्ड में दुग्धेश्वर , अरवल जिले का मधुसरवाँ का च्यावनेश्वर , मुजफ्फरपुर जिले का मुजफ्फरपुर में गरीबनाथ , चतुर्भुज शिवलिंग , सारण जिले का गंगा गंडक नदी के संगम पर सोनपुर स्थित हरिहर नाथ , सिहेश्वरनाथ , विभिन्न स्थलों पर बागवान शिव की उपासना के लिए शिवलिंग स्थापित है ।
सनातन धर्म के शैव सम्प्रदाय का वैज्ञानिक दृष्टि से महाशिवरात्रि पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध पर अवस्थित होने से मनुष्य के अंदर की ऊर्जा प्राकृतिक तौर पर ऊपर की तरफ जाने लगती है। प्रकृति स्वयं मनुष्य को आध्यात्मिक शिखर तक जाने का मार्ग सुगम करती है। महाशिवरात्रि की रात्रि में जागरण करने एवं रीढ़ की हड्डी सीधी करके ध्यान मुद्रा में बैठने से मानवीय चेतना जागृत होती है। भगवान शिव को ब्रह्मांड वैज्ञानिक कहा गया है। तंत्र, मंत्र, यंत्र, ज्योतिष, ग्रह, नक्षत्र आदि के जनक भगवान शिव ही हैं। ऊर्जा का पिंड गोल, लम्बा व वृत्ताकार शिवलिंग ब्रह्माण्डीय शक्ति को सोखता है। रुद्राभिषेक, जलाभिषेक, भस्म आरती, भांग -धतूरा और बेल पत्र आदि चढ़ाकर भक्त सकारात्मक ऊर्जा को अपने में ग्रहण कर मन व विचारों में शुद्धता तथा शारीरिक व्याधियों का निवारण करते है। शिवरात्रि के पश्चात सूर्य उत्तरायण में ग्रीष्मऋतु का आगमन प्रारंभ हो जाता है। मनुष्य गर्मी के प्रभाव से बचने के लिए अपनी चेतना को शिव को समर्पित कर देता है । महाशिवरात्रि व्रत रखने से तन के शुद्धीकरण के साथ ही रक्त भी शुद्ध और आतों की सफाई और पेट को आराम मिलता है। उत्सर्जन तंत्र और पाचन तंत्र, अशुद्धियों से छुटकारा , रोगों से मुक्ति , श्वसन तंत्र ठीक , कलोस्ट्रोल का स्तर भी घटता और स्मरण शक्ति बढ़ती है। वैज्ञानिकों के अनुसार शिवरात्रि ब्रत रखने से स्मरण शक्ति तीन से 14 फीसदी तक बढ़ जाती है ।मस्तिष्क और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
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