शनिवार, अप्रैल 16, 2022

कलात्मक ऊर्जा का स्रोत भित्तिचित्र...

    मानव की कलात्मक उत्कृष्टता की सुदृढ परंपरा गुफाओं , पर्वत के चट्टानों और महलों की दीवारों पर बने भित्तिचित्र हैं। भित्ति चित्रों का साक्ष्य अजंता और एलोरा की गुफाओं , बराबर पर्वत समूह की चट्टानों पर चित्रित भित्तिचित्र है । प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का द्योतक  लिपियों और साहित्य में, भित्ति चित्र  थे। विनय पिटक के अनुसार, आम्रपाली ने अपने महल की दीवारों पर  राजाओं, व्यापारियों और व्यापारियों को चित्रित करने के लिए चित्रकार नियुक्त किए थे । प्रागैतिहासिक ग्रंथों में राजाओं और शासकों द्वारा बनाए गए ‘चित्राग्रास’ या दीर्घाओं का संदर्भ हैं। 2 वीं शताब्दी ई . पू . से 8 वीं – 10 वीं शताब्दी ई.  पू . और प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में भित्तिचित्रों का प्रारंभ है। भारत में भित्ति चित्रों से युक्त 20 से अधिक प्राकृतिक गुफाएं और रॉक-कट शामिल हैं । भारत में भित्ति चित्रों पर रंग सामग्री प्राकृतिक टेराकोटा, चाक, लाल गेरू और पीली गेरू से ली गई थी।  अजंता के गुफा चित्र दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान बनाए गए थे और 5 वीं -6 वीं शताब्दी ईस्वी तक सजावटी रूपांकनों, भीड़ रचनाओंका  भित्ति चित्र मध्य प्रदेश के बाग ,  कर्नाटक में बादामी की गुफाएँ, तमिलनाडु में सीतानवसाल और 8 वीं शताब्दी ई के एलोरा, महाराष्ट्र के कैलाशनाथ मंदिर तथा बिहार के जहानाबाद एवं गया जिले के  बराबर पर्वत समूह एवं कौवाडोल  में  रैखिक शैलियों के लिए जाने जाते हैं ।
टेम्पेरा पेंटिंग: टेम्पेरा पेंटिंग  जल-गलत माध्यम में वर्णक की तैयारी द्वारा तैयार  चित्रों का उद्देश्य वास्तुशिल्प बुनियादी बातों को शामिल करते हुए कलाकृति में वांछित स्थिरता  है। ऑइल पेंटिंग: ऑइल पेंटिंग ऑइल रंगों में पेंटिंग का पिगमेंट के निलंबन को सुखाने वाले तेलों में पकड़ती है। फ्रेस्को पेंटिंग: फ्रेस्को पेंटिंग एक प्राचीन प्रथा है जो हाल ही में लागू प्लास्टर पर पानी आधारित पिगमेंट की पेंटिंग को बढ़ाती है। चित्रों में उपयोग किए जाने वाले रंगों को सूखे पाउडर के पाउडर को शुद्ध पानी में पीसकर तैयार किया जाता है। एनकॉस्टिक पेंटिंग: एनकॉस्टिक पेंटिंग प्रैक्टिस में हॉट, लिक्विड वैक्स के साथ पिगमेंट का संयोजन शामिल होता है ।  अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में उदात्त भित्ति चित्र  रचनाएँ  हैं। 11 वीं से  लद्दाख को अलची और हेमिस मठों में दीवार चित्रों के लिए प्रसिद्ध  है ।  11 वीं -12 वीं शताब्दी में बना और हिमाचल प्रदेश में स्पीति घाटी, तबो मठ के गोमपा में अपने बौद्ध चित्रों के लिए  है। उत्तर भारत में मुगल काल से पूर्व की भित्ति चित्रों की समृद्ध विरासत है। 12 वीं शताब्दी ई . के उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के मदनपुर में स्थित विष्णु मंदिर में भित्ति चित्र , मुगल युग का लघुचित्र , अकबर और जहाँगीर के किलों और महलों की दीवारों पर भित्ति चित्र फारसी शैलियों की  हैं। मुगल चित्रकला परंपराओं ने राजपूत चित्रकला को प्रभावित किया। दीग, बूंदी, जयपुर, अजमेर, जोधपुर और राजस्थान के अन्य स्थानों की दीवार पेंटिंग हैं। दक्षिण भारत में भित्ति चित्रों की समृद्ध परंपरा  चोल, विजयनगर और नायक के शासनकाल में चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई थी । बीजापुर, हैदराबाद और गोलकुंडा स्कूलों की दक्कन कला मुगल परंपराओं और बाद में यूरोपीय  से प्रभावित थी। मराठा भित्ति चित्र मोगुल परंपराओं और नियोजित तेल के रूप में आकार में हैं। मंदिरों और स्मारकों की दीवारों पर चित्रित केरल की भित्ति कला यूरोपीय आत्मीयता के निशान है। बिहार का जहानाबाद जिले का बराबर पर्वत समूहों एवं गया जिले के कौवाडोल पर्वत की चट्टानों पर निर्मित ब्राह्मण धर्म एवं बौद्ध धर्म का भितचित्र 500 ई. पू. की है । पर्वतों की चट्टानों में सनातन संस्कृति का देवों , देवियों , माता लक्ष्मी , सरस्वती , महिषासुरमर्दनी , भगवान ब्रह्मा , विष्णु , महेश ,  शिवलिंग , गणेश , राजाओं  का भित्तिचित्र मगध साम्राज्य की गाथाओं का मुक गवाह है । बराबर स्थित लोमश ऋषि गुफा की दीवारों पर भित्तिचित्र विलक्षण प्रतिभा और लिपि है ।






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