गुरुवार, अप्रैल 21, 2022

वैशाली की सांस्कृतिक विरासत ...

    विश्व का प्रथम गणतंत्र वैशाली का गणतंत्रात्मक पद्धति का स्थल है । बिहार राज्य  मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को 2036 वर्ग कि. मि. क्षेत्रफल  में  वैशाली के जिला का मुख्यालय हाजीपुर है ।वैशाली जिले की  मुख्य भाषा वज्जिका एवं हिंदी  है। विश्व का प्रथम  गणतंत्र में भगवान महावीर की जन्म स्थली ,  भगवान बुद्ध की कर्म भूमि ,  मशहूर राजनर्तकी और नगरवधू आम्रपाली के स्थल एवं इक्ष्वाकु वंशीय राजा विशाल की राजधानी वैशाली थी । महाभारत काल राजा ईक्ष्वाकु वंशीय राजा विशाल द्वारा वैशाली नगर की स्थापना की गई थी । विष्णु पुराण के अनुसार वैशाली क्षेत्र पर राज करने वाले ३४ राजाओं में  प्रथम नमनदेष्टि तथा अंतिम सुमति या प्रमाति थे। त्रेतायुग में राजा सुमति अयोध्या के  भगवान राम के पिता राजा दशरथ के मित्र 7थे। सातवीं सदी ई. पू. के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए १६ महाजनपदों में वैशाली का स्थान नेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्‍छवियों के संघ द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत की गयी थी।  छठी शताब्दी ई. पू.  में वैशाली  का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाने लगा और गणतंत्र की स्थापना हुई थी । चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार वैशाली नगर का घेरा १४ मील था। मौर्य और गुप्‍त राजवंश में मगध साम्राज्य की राजधानी के पाटलिपुत्र रूप में विकसित होने के क्रम  में  वैशाली व्‍यापार और उद्योग का प्रमुख केन्द्र था। भगवान बुद्ध ने वैशाली के  कोल्‍हुआ में अन्तिम सम्बोधन किया  था। भगवान बुद्ध की याद में  मगध साम्राज्य का मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई.  पू . सिंह स्‍तम्भ का निर्माण करवाया था। महात्‍मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के लगभग १०० वर्ष बाद वैशाली में दूसरे बौद्ध परिषद् का आयोजन किया गया था। इस आयोजन की याद में दो बौद्ध स्‍तूप बनवाये गये। वैशाली के समीप बौद्ध मठ में महात्‍मा बुद्ध उपदेश दिया करते थे। भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद की पवित्र अस्थियाँ हाजीपुर (पुराना नाम - उच्चकला) के पास एक स्तूप में रखी गयी थी। लिच्छवी कबीले के राजा मनुदेव  ने वैशाली में निवास स्थान बनाया था । ५९९ ईसा पूर्व में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्‍म कुंडलपुर (कुंडग्राम) में हुआ था। वज्जिकुल में जन्में भगवान महावीर यहाँ २२ वर्ष की उम्र तक रहे थे। वैशाली जिला के चेचर (श्वेतपुर) से प्राप्त मूर्तियाँ तथा सिक्के पुरातात्विक महत्त्व  हैं। पूर्वी भारत में मुस्लिम शासकों के आगमन के पूर्व वैशाली मिथिला के कर्नाट वंश के शासकों के अधीन रहा परंतु  बख्तियार खिलजी का शासन हो गया। तुर्क-अफगान काल में बंगाल के  शासक हाजी इलियास शाह ने १३४५ ई॰ से १३५८ ई॰ तक  शासन किया। बाबर ने बंगाल अभियान के दौरान गंडक तट के पार अपनी सैन्य टुकड़ी को भेजा था। १५७२ ई॰ से १५७४ ई॰ के दौरान बंगाल विद्रोह को कुचलने के क्रम में अकबर की सेना ने दो बार हाजीपुर किले पर घेरा डाला था। १८वीं सदी के दौरान अफगानों द्वारा तिरहुत कहलानेवाले  प्रदेश पर कब्जा किया। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय वैशाली के शहीदों की अग्रणी भूमिका रही है। आजादी की लड़ाई के दौरान १९२०, १९२५ तथा १९३४ में महात्मा गाँधी का वैशाली में आगमन हुआ था।  वैशाली का विस्तार आजकल के उत्तर प्रदेश स्थित देवरिया एवं कुशीनगर जनपद गाजीपुर और  बिहार के हाजीपुर तक था। सम्राट अशोक ने वैशाली में हुए महात्‍मा बुद्ध के अन्तिम उपदेश की याद में वैशाली से  ३ किलोमीटर दूर कोल्हुआ व  बखरा गढ़ के उत्खनन के बाद प्राप्त  अवशेषों को पुरातत्व विभाग ने चारदीवारी बनाकर सहेज रखा है। परिसर में प्रवेश करते ही खुदाई में मिला इँटों से निर्मित गोलाकार स्तूप और अशोक स्तम्भ  है। एकाश्म स्‍तम्भ का निर्माण लाल बलुआ पत्‍थर से निर्मित  १८.३ मीटर ऊँची अशोक स्तंभ आकर्षक है। अशोक स्तम्भ को स्थानीय लोग भीमसेन की लाठी कहते हैं। पुरातत्व विभाग द्वारा  केल्हुआ का  रामकुण्ड को मर्कक-हद के किनारे  बुद्ध का मुख्य स्तूप  और दूसरी ओर भिक्षुणी का निवास  कुटागारशाला कहा गया है । लिच्छवी द्वारा वैशाली में भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद द्वितीय बौद्ध परिषद की याद में बौद्ध अस्थि स्तूप बौद्ध स्‍तूपों का निर्माण किया गया था। अस्थि बौद्ध स्‍तूपों का  १९५८ में उत्खनन के बाद भगवान बुद्ध के राख पाये जाने से  स्‍थान का महत्त्‍व काफी बढ़ गया है। बुद्ध के पार्थिव अवशेष पर बने आठ मौलिक स्तूपों में से एक है। बौद्ध मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात कुशीनगर के मल्ल शासकों में राजा श्री सस्तिपाल मल्ल  द्वारा  भगवान बुद्ध के शरीर का राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार किया गया तथा अस्थि अवशेष को आठ भागों में बाँटा गया था । भगवान बुद्ध का अस्थि अवशेष का  भाग वैशाली के लिच्छवियों को मिला था। शेष सात भाग मगध नरेश अजातशत्रु, कपिलवस्तु के शाक्य, अलकप्प के बुली, रामग्राम के कोलिय, बेटद्वीप के एक ब्राह्मण तथा पावा एवं कुशीनगर के मल्लों को प्राप्त हुए थे। वैशाली  पाँचवी शती ई॰ पू . में निर्मित 8.07  मीटर व्यास वाला मिट्टी का  स्तूप था। मौर्य, शुंग व कुषाण कालों में 12 मीटर व्यास   पकी इँटों से आच्छादित करके चार चरणों में स्तूप का  परिवर्तन किया गया था ।  वैशाली गणराज्य द्वारा ढाई हजार वर्ष पूर्व बनवाया गया पवित्र पुष्करणी  सरोवर है।वैशाली  गणराज्‍य में जब कोई नया शासक निर्वाचित होता था  उनको पुष्करणी सरोवर  पर अभिषेक करवाया जाता था। राहुल सांकृत्यायन के उपन्यास "सिंह सेनापति"के अनुसार बुद्ध स्तूप के समीप वैशाली गणराज्य के शासक को प्रथम बार पुष्करणी जल से अभिषेक किया जाता था । अभिषेक पुष्करणी के समीप  जापान के निप्पोनजी बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया विश्‍व शान्तिस्‍तूप स्थित है। गोल घुमावदार गुम्बद, अलंकृत सीढियाँ और उनके दोनों ओर स्वर्ण रंग के बड़े सिंह जैसे पहरेदार शान्ति स्तूप की रखवाली कर रहे प्रतीत होते हैं। सीढ़ियों के सामने ही ध्यानमग्न बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमा दिखायी देती है। शान्ति स्तूप के चारों ओर बुद्ध की भिन्न-भिन्न मुद्राओं की अत्यन्त सुन्दर मूर्तियाँ ओजस्विता की चमक से भरी दिखाई देती हैं। बावन पोखर के उत्तरी छोर पर बना पाल कालीन मंदिर में हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ स्थापित है । विशाल गढ़ की परिधि एक किलोमीटर के चारों तरफ दो मीटर ऊँची दीवार और चारों तरफ ४३ मीटर चौड़ी खाई है।  विशाल गढ़ के समीप चतुर्मुख शिव लिंग में भगवान  ब्रह्मा , विष्णु ,शिव एवं सूर्य का मुख है । वैशाली से 4 कि. मि. की दूरी पर कुंड ग्राम में भगवान महावीर का जन्‍म स्‍थान एवं महावीर स्वामी मंदिर होने के कारण  जैन धर्मावलम्बियों के लिए पवित्र  है। समुद्र तल से 52 मीटर ऊँचाई पर वैशाली जिला  के गंगा और गंडक के संगम पर स्थित हाजीपुर का केला प्रसिद्ध एवं वैशाली जिले का मुख्यालय हाजीपुर है । पटना- ५५ कि. मी. , हाजीपुर- ३५ कि. मि .बोधगया- १६३ कि. मि ., राजगीर- १४५ कि. मि . , नालंदा- १४० कि. मि. की दूरी पर अवस्थित वैशाली का दर्शनीय स्थल है ।













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