मंगलवार, अप्रैल 05, 2022

सौरधर्म : सूर्योपासना....


पुरातन काल में प्रकृति पूजा में भगवान सूर्य की प्रधानता है । आर्यों और अनार्यों की धर्म रुचि में परिवर्तन होने से भगवान सूर्य के साथ भगवान विष्णु में अविर्भाव की प्रचलन हुआ है । भगवान सूर्य की त्रिकाल प्रातः काल मध्यकाल एवं संध्या काल सूर्योपासना की अंगस्वरूप है । सौरधर्म का प्रधान देव भगवान सूर्य की उपासक लाल वस्त्र धारक , ललाट पर रक्तचंदन , गले में रुद्राक्ष माला धारण कर रविवार , षष्टी , और सप्तमी की विशेष उपासना करते है । गुप्त काल से 12 वीं शताब्दी तक भारत में विभिन्न क्षेत्रों में सौर धर्म एवं सूर्य पूजा एवं त्रिकाल उपासना प्रचलित थी । 4थीं शताब्दी में हूण , शक एवं वैदिककाल से होने वाली सूर्यपूजा की प्रधानता थी । 7 विन शताब्दी में ईरान के पारसी के लोग सूर्य और अग्नि मुख्य देव है  भारतीय विरासत संगठन के अध्यक्ष साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा है कि विश्वकर्मा प्रणीत दीपर्णव के शिल्पग्रंथ में भगवान सूर्य 12 के स्थान में 13 सूर्य कलम और स्वरूप दिए गए है । वृहद्देव ता अध्याय 156 एवं वायुपुराण अध्याय 68/12 के अनुसार सुरों और असुरों के देव सूर्य और चंद्रमा थे । सौरधर्म और चंद्र धर्म  के अनुयायियों द्वारा राज्य की स्थापना की गई थी । भगवान सूर्य के 13 नामों में   आदित्यदेव ,रवि ,गौतम ,धूम्रकेतु ,भानुमान ,सम्भव ,शातित ,दिवाकर ,भास्कर ,सूर्यदेव ,संतुष्ट , सुवर्णकेन्द्र और मार्तण्ड  है । 6 ठी शताब्दी में वराहमिहिर की  वृहत्संहिता 60 ,  19 के अनुसार मग ब्राह्मण सूर्य के पुजारी है ।शुक्र नीतिशास्त्र में सूर्य की मूर्तियों का उल्लेख किया गया है। 473 ई . में मालवा का दशपुर , राजतरंगिणी इन 8 वी शताब्दी का कश्मीर राजा ललितादित्य मुक्तपिण्ड द्वारा कश्मीर में मार्तण्ड मंदिर का निर्माण कर भगवान सूर्य मार्तण्ड मूर्ति की स्थापना की गई थी । आदित्यदेव ,रवि ,गौतम ,धूम्रकेतु ,भानुमान ,सम्भव ,शातित ,दिवाकर ,भास्कर ,सूर्यदेव ,संतुष्ट , सुवर्णकेन्द्र और मार्तण्ड  है । 6 ठी शताब्दी में वराहमिहिर की  वृहत्संहिता 60 ,  19 के अनुसार मग ब्राह्मण सूर्य के पुजारी है ।शुक्र नीतिशास्त्र में सूर्य की मूर्तियों का उल्लेख किया गया है। 473 ई . में मालवा का दशपुर , राजतरंगिणी इन 8 वी शताब्दी का कश्मीर राजा ललितादित्य मुक्तपिण्ड द्वारा कश्मीर में मार्तण्ड मंदिर का निर्माण कर भगवान सूर्य मार्तण्ड मूर्ति की स्थापना की गई थी । सतयुग में वाल्मीकीय रामायण का युद्ध कांड अध्याय 107 के अनुसार ऋषि अगस्त्य द्वारा भगवान राम को सूर्यस्त्रोत की शिक्षा दी गयी थी । ग्राह्यामल ग्रंथ , द्वितीय जीवितगुप्त का 10 विन शताब्दी एवं कनिंघम का अर्कोलो जिकल ,  वॉल्यूम  XVI , 65 के अनुसार भगवान भास्कर के अंग से प्रादुर्भूत प्रकाशमान मग  ब्राह्मण शाकद्वीप से द्वापर युग मे भगवान कृष्ण की अनुमति से उनके पुत्र साम्ब द्वारा लगे गए थे । वैविलोन का एतना मिथ में कहा गया है कि थर्ड हेवन ऑफ अन्नू ,  विश्व में सर्वत्र 6000 ई. पू . से  140 ई. तक सूर्य पूजा का प्रमाण मिले है । विश्व का प्राचीन सौर दर्शन अर्थात इन अर्ली फिलॉसफी थ्रू आउट  द  वर्ल्ड थे सन वॉरशिप  है । पर्शियन मन्दिरों में मित्र ,ग्रीकों के हेलियस , मिश्र में एजिस रा , फ्लोर्स , दक्षिण अमेरिका में फुलेस्ट , एतना ,एना ,चीन में वू. ची. , जापान में लज़्न गि , एमिनो ,मिनक नाची , सूर्य , मित्र , दिवाकर आदि के रूप में भगवान सूर्य की उपासना होती है । बिहार का गया जिले के गया फल्गु नदी के किनारे कीकट प्रदेश का राजा गय द्वारा स्थापित गयार्क , औरंगाबाद जिले का देव में राजा एल द्वारा स्थापित प्रातः , मध्य एवं संध्या कालीन भगवान सूर्य की स्थापना कर देवार्क सूर्य मंदिर , पंडारक में पुण्यार्क , बेलाउर , आउंगारी का औज्ञार्क , उलार में उल्यार्क़ , जहानाबाद जिले के काको में पनिहास सरोवर के किनारे भगवान विष्णु आदित्य , दक्षणी में दक्षिणायन ,एवं उत्तरायन सूर्य , बराबर पर्वत समूह के सूर्यान्क गिरी पर सूर्यान्क मूर्ति है वही अरवल जिले का मदसरवा , करपी , पन्तित , किंजर , वंशी प्रखण्ड का खतांगी में सूर्य उपासना की जाती है । पटना के गंगा तट , मुंगेर , मुजफ्फरपुर , दरभंगा , नवादा , नालंदा , भोजपुर , रोहतास , बक्सर , भभुआ , सारण , कोशी , भागलपुर , झारखंड के क्षेत्रों एवं नेपाल के क्षेत्रों में सूर्योपासना तथा भगवान सूर्य को अर्घ्य देते है । बेविलोनिया के निवासियों ने भगवान सूर्य को आकाश के देवता एना और पृथिवी के देवता इया , मिस्र की निल घाटी सभ्यता में सूर्यपूजा , फील्डिंयन लोग सुमेरियन सभ्यता , फिनीशियन , असीरिया निवासी भगवान सूर्य के उपासक थे । ऋग्वेद में सूर्य की महिमा का 14 सूक्त है। सौरधर्म के देवता भगवान सूर्य है । वामन पुराण में असि संगम वाराणसी में सुकेशी का लोलार्क , आदित्य पुराण में अलईपुर का उत्तरार्क , भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने गोदौलिया में साम्बआदित्य ,  , द्रुपद आदित्य , मयूख आदित्य , खकहोल्क,आदित्य ,अरुणादित्य ,वृद्धादित्य ,केशवादित्य ,विमालादित्य ,गंगादित्य ,यमादित्य  है । 78 ई. के राजा कनिष्क के पूर्वज सूर्य उपासक 3 री सदी में गुप्त सम्राटों , 414 से 55 ई. तक कुमार गुप्त ,455 से 67 ई. तक स्कन्द गुप्त , 7वी ई. में हर्षवर्द्धन , ने सौर धर्म के प्रवाल उपासक एवं 724 ई. से 760 ई. तक ललितादित्य मुक्तपिड़ द्वारा मार्तण्ड मंदिर निर्माण कर सूर्य उपासना स्थल कायम किया गया ।11 वी शताब्दी में सूर्योपासना प्रवाल थी । चैत्र मास शुक्ल पक्ष में धता आदित्य की उपासना की जस्ती है । 640 ई. पू . में एशिया माइनर , एमपेडोएल्स  के अनुसार ग्रीक दर्शन में घल्स व धता आदित्य की उपासना का वर्णन है ।सम्राटों , 414 से 55 ई. तक कुमार गुप्त ,455 से 67 ई. तक स्कन्द गुप्त , 7वी ई. में हर्षवर्द्धन , ने सौर धर्म के प्रवाल उपासक एवं 724 ई. से 760 ई. तक ललितादित्य मुक्तपिड़ द्वारा मार्तण्ड मंदिर निर्माण कर सूर्य उपासना स्थल कायम किया गया ।11 वी शताब्दी में सूर्योपासना प्रवाल थी । चैत्र मास शुक्ल पक्ष में धता आदित्य की उपासना की जस्ती है । 640 ई. पू . में एशिया माइनर , एमपेडोएल्स  के अनुसार ग्रीक दर्शन में घल्स व धता आदित्य की उपासना का वर्णन है ।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें